आजकल नेता जितने वादे करते हैं..उतना कोई नहीं...सुबह से लेकर रात तक अनगिनत वादे..उन्हें भी नहीं मालूम रहता है कि वो..पिछली सभा में क्या कह गए?..नेताओं की बात छोड़िए..अपनी बात करते हैं...हम भी कम वादे नहीं करते..और फिर मुकर जाते हैं...दरअसल वक्त का तकाजा होता है तो हम किसी भी बात पर हामी भर देते हैं..कई बार हमें मालूम भी होता है कि ये वादा निभाना हमारे बस में नहीं..हमारी हैसियत में नहीं...लेकिन कर जाते हैं...शायद बड़बोलेपन के कारण..शायद मजबूरी में..शायद पीछा छुड़ाने के लिए..शायद दबाव में...कई वजहें हो सकती हैं जबकि भीतर से हम जानते हैं कि ये वादा हम पूरा करने वाले नहीं...दिन भर हम बातचीत में...फोन पर दूसरों से हामी भरते रहते हैं..कि ये काम हो जाएगा..हम करे देंगे..हम बात कर लेंगे..हम चले जाएंगे..हम पता कर लेंगे..न जाने क्या-क्या?...और फिर बात करने के तत्काल बाद भूल जाते हैं कि हमने किसी से वादा किया है...जब कोई याद दिलाता है तो हम फिर दिलासा दे देते हैं कि वक्त नहीं मिल पाया..शख्स नहीं मिल पाया...जगह नहीं मिल पाई..उसने फोन नहीं उठाया..मैं बीमार पड़ गया था..फैमिली में दिक्कत थी..दफ्तर में बिजी था...बहानों की लंबी लिस्ट हमारे पास है..जो जहां फिट हो..तत्काल लागू कर दो...पीछा छुड़ाना है तो बहाना तो बनाना ही होगा...हम अपने परिवार में भी वादे करते हैं..दफ्तर में भी करते हैं..रिश्तेदारों से भी करते हैं..दोस्तों से भी करते हैं...कई बार हम दूसरों से भी वादे लेने के लिए पीछे पड़ जाते हैं..कि आपको ये काम करना ही होगा..आपको आना ही होगा...आपको बात करनी ही होगी..पता है कि सामने वाला दबाव में हां में हां मिला रहा है लेकिन नहीं मानते...पता है कि वो नहीं कर पाएगा..लेकिन एक आस में..एक दबाव में... हम सामने वाले को टटोलते हैं....अगर एक दिन ही हम चिंतन करें कि आज हमने क्या वादे किए..किससे किए..क्यों किए...और इनमें से कितने पूरे होंगे...तो समझ में आ जाएगा..कि वादे हैं वादों का क्या.....बाकी फिर....