केजरीवाल ने कह दिया है कि पांच साल के भीतर दिल्ली भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगी...नहीं हो पाएगी...अगर हो जाएगी तो ईश्वर के अगले अवतार केजरीवाल ही होंगे। शायद ये बात केजरीवाल और उनके समर्थकों को बुरी लगे..लेकिन सच उस कड़वी दवाई की तरह है जिसे मान लेने से सेहत ठीक हो जाती है। भ्रष्टाचार का खून तो रग-रग में है। बच्चा जब पैदा होता है तो अस्पताल में नर्स को कुछ नोट थमाने से हम भ्रष्टाचार का श्रीगणेश कर देते हैं। जब मंदिर जाते हैं तो पुजारी को कुछ नोट थमाते हैं..भगवान को भी कुछ नोट चढ़ाते हैं और कहते हैं कि हमारा काम कर दो। हम अपने बास को खुश करने के लिए रिश्वत चढ़ाते हैं। केजरीवाल को ही लोगों ने न जाने कितने किलो मिठाईयां और फूल भेंट किए होंगे..क्यों....कुछ ने क्यों भेंट किए..कुछ ने क्यों नहीं भेंट किए...जिनका वास्ता पड़ना है..जिन्हें आगे कुछ लेना-देना है उन्हें किसी तरह से केजरीवाल को खुश करना है..नहीं करोगे तो काम कैसे बनेगा..मीडिया भी खुश करने में लगी है..पहले मोदी को खुश करने में लगी थी...कभी न कभी काम तो पड़ेगा ही...जो मंत्री बने हैं उनके यहां भीड़ ज्यादा क्यों हैं...जो केवल विधायक बने हैं उनके यहां भीड़ कम है..हार के बाद बीजेपी के दफ्तर में सन्नाटा क्यों छा गया। इसलिए कि वहां मायूसी के अलावा कुछ हाथ नहीं आना है...जहां फायदा है वहां भीड़ है। जब तक कोई आपका बास है तब तक उससे लेना देना है..आपके जीवन में ऐसे न जाने कितने लोग आते हैं आपका संपर्क तब तक ही रहता है जब तक कि आपका लेना-देना है। बच्चों को भी आप रिश्वत देते हैं..अगर अच्छे नंबरों से पास हो जाओगे तो आपको ये गिफ्ट मिलेगी...अगर इससे ज्यादा लाओगे तो और बड़ी गिफ्ट मिलेगी। रिश्वत के अनगिनत रूप हैं..कुछ कैश में होती है तो कुछ काइंड में...काइंड में रिश्वत देना आसान है। सबसे अच्छी रिश्वत फूलों के जरिए होती है..उसके बाद मिठाई से...इसके बाद आते हैं त्यौहार और जन्मदिन..शादी की वर्षगांठ...आप जब कोई आयोजन करते हैं तो रिश्वत आने का एक अच्छा मौका होता है। रिश्वत को गिफ्ट में आसानी से बदला जा सकता है। आपको जितना लेना-देना है..उसके हिसाब से ही आप गिफ्ट तय करते हैं...छोटा आदमी है तो छोटी गिफ्ट..बड़ा आदमी है तो बड़ी गिफ्ट....चापलूसी भी रिश्वत का एक अंश है जिसमें कुछ खर्च नहीं होता है केवल जुबान से ही काम हो जाता है। तारीफ के इतने पुल बांधों कि सामने वाला दिनभर उससे उबर न पाए..इतना गदगद हो जाए कि आपसे कुछ बोल भी न पाए..कोई भी शख्स एक रुपए भी बिना मतलब खर्च नहीं करता.या तो आप डर के मारे रिश्वत देते हैं..या लालच में....जहां ये दोनों नहीं होते..वहां आप फूटी कौड़ी देने वाले नहीं...दान भी रिश्वत का एक और रूप है..जितना ज्यादा दान दोगे..उससे ज्यादा की डिमांड करोगे। जो इनवेस्ट किया है उसका रिटर्न तो निकालना ही पड़ेगा। जरा सोचिए..आपने बिना मतलब कब कोई गिफ्ट दी है..कब दान दिया है..बिना मतलब कब तारीफ की है..बिना मतलब खर्च करने का तो सवाल ही नहीं...बाकी फिर.......