Tuesday, July 14, 2015

क्या आप सबसे सुखी इंसान हैं?

क्या आप दाल-रोटी-सब्जी रोज खा रहे हैं? क्या आप खट्टा-मीठा-तीखा खा पाते हैं? क्या आप साफ-सुथरा पानी पी रहे हैं? क्या आप सात-आठ घंटे की नींद ले रहे हैं? क्या आप का रहन-सहन, खाना-पीना, सोना नियमित हैं? क्या आप कोई दवाई नहीं खाते हैं? क्या आपके परिवार में सभी ऐसी ही LIFE जी रहे हैं, क्या आप अपने बच्चे की फीस और पढ़ाई के लिए दिक्कत का सामना नहीं कर रहे हैं?, क्या जब आप सोते हैं तो तनाव, ब्लड प्रेशर, नींद की गोली तो नहीं खाते हैं? क्या आप उधार तो नहीं ले रखे हैं? क्या आपको किसी से डर तो नहीं लगता है? क्या आपके मन में कोई साजिश-षडयंत्र तो नहीं चल रहा है?


यदि इनमें से कुछ भी नहीं है तो आप शायद इस धरती पर सबसे सुखी इंसान हैं और आपका परिवार भी। पुराने जमाने में कहते हैं कि दाल-रोटी खाओ और प्रभु के गुन गाओ, यदि सेहत हैं, चिंता नहीं है, आर्थिक तंगी नहीं है तो  आपकी LIFE मालामाल है। वाकई, करोड़ों हो, गाड़ी हो बंगला हो, नौकर हों लेकिन डायबिटीज है, ब्लड प्रेशर है, थकान हैं, तनाव है तो जीना बेकार है। जितना कमाओ कम है, करोड़ों कम हैं और हजारों ज्यादा है। यदि सुकून से दो वक्त की रोटी आप अपने परिवार के साथ खा रहे हैं, भले ही छोटे स्कूल में बच्चा पढ़ रहा है, दवाओं का सहारा नहीं ले रहे हैं और भरपूर नींद ले रहे हैं तो आपने जीवन सही से जी लिया..कितने बड़े सेलिब्रिटी बन जाओ, दिन-रात मेहनत कर लो, सेहत बिगाड़ लो, परिवार को तनाव दे दो, खुद भी ले लो, और फिर इस धरा से चले जाओ, बाकी सब यहीं रह जाएगा, आपके किसी काम न आया, न आएगा।
नौकरी जरूरी है, पढ़ाई जरूरी है, मेहनत जरूरी है, लेकिन प्रकृति ने जो नियम बनाए हैं, जो अनुशासन बनाया है, उन्हें भी निभाना जरूरी है, उसके खिलाफ जाओगे तो संतुलन बिगड़ जाएगा, अर्थ आ जाएगा, भाव चला जाएगा। कितना खाओगे, कितना पहनोगे, कितना रुतबा दिखाओगे, सब कर तो लोगे लेकिन जीवन को खो कर, अपने परिवार को भी खोकर..तमाम लोग हैं जो रोज सैकड़ों रुपए की तो रोज दवाएं खा जाते हैं, और कहते हैं कि इनका भी खर्च निकालना है, अरे ये सोचा क्या कि..दवा खानी क्यों पड़ रही है, इसका जिम्मेदार कौन है, आप कहेंगे, नौकरी, किस्मत, भाग्य.... नहीं...हम खुद हैं, सब हमारे हाथ में हैं, कम से कम अपने जीवन और सेहत के बारे में तो हम खुद तय कर सकते हैं उसके लिए बहुत रकम या स्टेटस की जरूरत नहीं। आर्थिक हो या सामाजिक, हम खुद अपने लिए मापदंड तय करते हैं और जब वो स्टेटस पा लेते हैं तो खुद ही उससे ऊंचा मापदंड तय कर लेते हैं और इसी आपाधापी में सारे संतुलन बिगड़ते चले जाते हैं, एक वक्त वो आता है कि जब सारे मापदंड गड़बड़ाने लगते हैं और जीवन बिखरता हुआ दिखाई देता है। कहते हैं कि जितनी रस्सी तने, उतनी ही तानो, नहीं तो टूट जाएगी, जीवन के साथ भी ऐसा ही है, ये आपको तय करना है कि आपको रस्सी को कितना तानना है....बाकी फिर........इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com