हमें हर वक्त बुरा लगता है, हमारी कोई बात न माने, चाहे पत्नी हो या बच्चा, दफ्तर में कोई सहयोगी। हमें तब भी बुरा लगता है जब हमारा वरिष्ठ सहयोगी हमें डांटता है, नाराज होता है या फिर हमारे काम में कोई कमी निकालता है। हमें उस वक्त भी बुरा लगता है जब हमारी मांग पूरी नहीं होती, हमारी ख्वाहिश पूरी नहीं होती। यहां तक कि हम भगवान से भी गुस्सा हो जाते हैं। उनसे ऐसी-ऐसी ख्वाहिश पूरी करने को कहते हैं कि जैसे भगवान ने केवल आपका ही ठेका ले रखा है, रिश्वत के नाम पर पांच सौ..हजार तक का प्रसाद, पूजा और कथा तक का प्रलोभन मन ही मन दे आते हैं। जब ख्वाहिश पूरी नहीं होती तो कोसने लगते हैं, कहते हैं भगवान ने पूरा खेल बिगाड़ दिया। यदि कोई काम बन जाता है तो कहते हैं कि देखा, हमारे दिमाग का कमाल, हमारी मेहनत का फल, यदि काम बिगड़ जाए तो कहते हैं कि सब किस्मत का खेल है, वो तो भगवान ने नहीं सुनी, नहीं तो काम तो बन ही गया था, मैने तो अपनी कोशिश कर ही ली थी।
बुरा तब भी लगता है जब हमारा कोई साथी हमसे ज्यादा तरक्की कर जाता है और हम उसे चापलूस, सिफारिशी, संपर्कों वाला जैसा कह कर उसकी काबिलियत को कम करने की कोई कसर नहीं छोड़ते। हमें बुरा तब भी लगता है जब हमारे पड़ोसी हमसे ज्यादा अमीर हो जाते हैं, घर मालामाल हो जाता है, बच्चे अच्छे कपड़े पहनते हैं, बड़ी गाड़ी में घूमते हैं, तब हम अपने परिवार को समझाते हैं कि हम तो ईमानदार हैं, स्वाभिमानी है, पड़ोसी का क्या है, सब गलत तरीके से कमा रहा है, गलत तरीके से निकल जाएगा, हमें ऐसा पैसा नहीं चाहिए, हम तो दाल-रोटी में खुश हैं।
बुरा तो हमें तब-तब लगता है जब-जब हमारे मनमाफिक कोई काम नहीं होता है। मसलन, अगर बेटा-बेटी अच्छे नंबरों से पास नहीं हो पाया, किसी कंपटीशन में सिलेक्ट नहीं हो पाया, आपके आसपास के बच्चे उससे आगे निकल जाते हैं। बुरा तब भी लगता है जब पत्नी आपकी लाईफ स्टाइल को लेकर ताने मारती है, आपकी नौकरी को लेकर कहती है, या फिर आर्थिक तंगी का रोना रोती है।
बुरा तो तब भी लगता है, जो आप सोचते हैं वो धरातल पर नहीं उतरता, जो आप करते हो वो काम कामयाब नहीं होता, जो आप सुनते हो, वो कड़वा होता है, life में जब-जब आगे बढ़ते हो, अच्छा लगता है, आपके हिसाब से सब काम होते हैं, अच्छा लगता है, लेकिन जब आप life में या तो उसी सीढ़ी पर रहते हो या फिर उससे नीचे उतर जाते है तो बुरा लगता है। गांधी जी के तीन बंदर याद हैं, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो, बुरा मत बोलो।
इसलिए हमेशा best listen, best think, best do तभी होगी best life........बाकी फिर........इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com whatsappup.blogspot.com
बुरा तब भी लगता है जब हमारा कोई साथी हमसे ज्यादा तरक्की कर जाता है और हम उसे चापलूस, सिफारिशी, संपर्कों वाला जैसा कह कर उसकी काबिलियत को कम करने की कोई कसर नहीं छोड़ते। हमें बुरा तब भी लगता है जब हमारे पड़ोसी हमसे ज्यादा अमीर हो जाते हैं, घर मालामाल हो जाता है, बच्चे अच्छे कपड़े पहनते हैं, बड़ी गाड़ी में घूमते हैं, तब हम अपने परिवार को समझाते हैं कि हम तो ईमानदार हैं, स्वाभिमानी है, पड़ोसी का क्या है, सब गलत तरीके से कमा रहा है, गलत तरीके से निकल जाएगा, हमें ऐसा पैसा नहीं चाहिए, हम तो दाल-रोटी में खुश हैं।
बुरा तो हमें तब-तब लगता है जब-जब हमारे मनमाफिक कोई काम नहीं होता है। मसलन, अगर बेटा-बेटी अच्छे नंबरों से पास नहीं हो पाया, किसी कंपटीशन में सिलेक्ट नहीं हो पाया, आपके आसपास के बच्चे उससे आगे निकल जाते हैं। बुरा तब भी लगता है जब पत्नी आपकी लाईफ स्टाइल को लेकर ताने मारती है, आपकी नौकरी को लेकर कहती है, या फिर आर्थिक तंगी का रोना रोती है।
बुरा तो तब भी लगता है, जो आप सोचते हैं वो धरातल पर नहीं उतरता, जो आप करते हो वो काम कामयाब नहीं होता, जो आप सुनते हो, वो कड़वा होता है, life में जब-जब आगे बढ़ते हो, अच्छा लगता है, आपके हिसाब से सब काम होते हैं, अच्छा लगता है, लेकिन जब आप life में या तो उसी सीढ़ी पर रहते हो या फिर उससे नीचे उतर जाते है तो बुरा लगता है। गांधी जी के तीन बंदर याद हैं, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो, बुरा मत बोलो।
इसलिए हमेशा best listen, best think, best do तभी होगी best life........बाकी फिर........इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com whatsappup.blogspot.com