एक मित्र अपनी प्रतिक्रिया किसी बात पर दे रहे थे तो उनके मुंह से तीन शब्द निकले..कुत्ता, गधा, साला...लगा कि इन तीन शब्दों पर लिखा जाए, क्यों हम इन्हें अपने गुस्से का शिकार बना रहे हैं...अक्सर हम एक-दूसरे को कुत्तों और गधों की उपाधि देते हैं। नाराज होने पर किसी को भी कुत्ता, गधा, साला बोलते हैं। आप को लग रहा होगा कि आज मैं ये क्या विषय लेकर बैठ गया, लेकिन थोड़ा गंभीर होकर सोचें तो मुझे ये तीन शब्द गाली से ज्यादा अपने लगते हैं। अपने से मतलब, आजकल आदमी जितना घातक है उतना कुत्ता नहीं, कुत्ता जब काटता है तो पता भी चलता है कि वो आपको काटने दौड़ रहा है लेकिन आदमी जब काटता है तो आपको पता ही नहीं चलता लेकिन कुत्ता जब वफादारी निभाता है तो उससे बेहतर साथी कोई और नहीं, एक नहीं हजारों किस्से ऐसे हैं जिनमें कुत्तों ने अपने मालिक या परिवार की जान बचाई. भले ही खुद की जान देनी पड़ी हो। कुत्ता यदि इतना ही घातक है तो लाखों लोग उसे क्यों पालते हैं और अपने परिवार के सदस्य की तरह क्यों रखते हैं, यहां तक कि उसे कुत्ता बोलने पर नाराज हो जाते हैं।
गधा शब्द बेवकूफी का पर्याय है लेकिन उसकी सहनशीलता के गुण को कोई नहीं देखता, जो अपने मालिक के सारे बोझ को खुद पर लादता जाता है और चूं भी नहीं बोलता। जब कोई गधे की तरह आपके लिए काम करता है चाहे वो इंसान हो तो आप उसकी तारीफ करते हैं कि हमारा ये कर्मचारी, हमारा ये नौकर, हमारा ये साथी देखो गधे की तरह काम करता है और उफ नहीं करता लेकिन जब ऐसा ही कोई गधा दूसरे के लिए गधे की तरह जुटा रहता है तो आप उसकी आलोचना करने लगते हैं और उसे ऐसे गधे की उपाधि देते हैं जो बेवकूफ है।
जहां तक साले की बात है तो ये प्राणी आपकी पत्नी का भाई है यानि अर्धांगिनी, यदि उसके बारे में इस तरह आप हल्के-फुल्के अंदाज में हंसी-मजाक करते हैं तब तक तो गनीमत है लेकिन जब गुस्से में साले को गाली की तरह बोलते हो तो जितने भी साले हैं उन पर क्या गुजरती होगी, यही नहीं आपमें से भी ज्यादातर किसी न किसी के साले होंगे और आपके बारे में यदि ऐसा बोला जाएगा तो कितने खंजर दिल में लगेंगे, आप खुद महसूस कर सकते हैं।
जीवन में शब्द हों या अर्थ, या फिर विचार हों, हम वक्त-वक्त पर अपनी तरह उनका अर्थ निकालते हैं, भाव दर्शाते हैं, अपनी सुविधा के हिसाब से उन्हें जाहिर करते हैं, मतलब के लिहाज से बात करते हैं, जब मतलब निकल जाता है तो उसी शब्द का अर्थ
बदल लेते हैं। ये मानकर चलिए, कोई भी हो, कितना ही बड़ा शख्स हो, यदि वो कहता है कि वो पूरी तरह से ईमानदार है तो वो सबसे बड़ा झूठ बोल रहा है, और झूठ से जुड़ा है स्वार्थ, क्योंकि स्वार्थ से जुड़ा है उसका फायदा, तो ये way of life है यानि जीवन दर्शन है जिसे लोग अपनी ही तरह जीना चाहते हैं, उसे किसी से मतलब नहीं, अपनी ही तरह से शब्दों के अर्थ निकाल लेते हैं और अपने फायदे में जुट जाते हैं। जैसा हम शब्दों के साथ करते हैं, ऐसा ही हम अपने जीवन में कई बार एक-दूसरे के साथ कर जाते हैं, या तो गलत समझ कर, या फिर अपने छोटे से फायदे के लिए..दोनों ही स्थिति ठीक नहीं, क्योंकि गलती आपकी कमजोरी दर्शाती है और छोटा सा फायदा उससे बड़ी कमजोरी, क्योंकि खुद को बुलंद नहीं कर पाए तो आपने झूठ का सहारा ले लिया। अगर अपना सम्मान बरकरार रखना है तो अपनी कमजोरी दूर करनी होगी। इसके पहले भी मैं लिख चुका हूं कि सुनो, गुनो और चुनो या फिर तोल-मोल के बोल, ये अगर हम अपने जीवन में अपना लें तो जीवन को बेहतर बनाने की ओर आगे बढ़ेंगे। बाकी फिर.......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com whatsappup.blogspot.com
गधा शब्द बेवकूफी का पर्याय है लेकिन उसकी सहनशीलता के गुण को कोई नहीं देखता, जो अपने मालिक के सारे बोझ को खुद पर लादता जाता है और चूं भी नहीं बोलता। जब कोई गधे की तरह आपके लिए काम करता है चाहे वो इंसान हो तो आप उसकी तारीफ करते हैं कि हमारा ये कर्मचारी, हमारा ये नौकर, हमारा ये साथी देखो गधे की तरह काम करता है और उफ नहीं करता लेकिन जब ऐसा ही कोई गधा दूसरे के लिए गधे की तरह जुटा रहता है तो आप उसकी आलोचना करने लगते हैं और उसे ऐसे गधे की उपाधि देते हैं जो बेवकूफ है।
जहां तक साले की बात है तो ये प्राणी आपकी पत्नी का भाई है यानि अर्धांगिनी, यदि उसके बारे में इस तरह आप हल्के-फुल्के अंदाज में हंसी-मजाक करते हैं तब तक तो गनीमत है लेकिन जब गुस्से में साले को गाली की तरह बोलते हो तो जितने भी साले हैं उन पर क्या गुजरती होगी, यही नहीं आपमें से भी ज्यादातर किसी न किसी के साले होंगे और आपके बारे में यदि ऐसा बोला जाएगा तो कितने खंजर दिल में लगेंगे, आप खुद महसूस कर सकते हैं।
जीवन में शब्द हों या अर्थ, या फिर विचार हों, हम वक्त-वक्त पर अपनी तरह उनका अर्थ निकालते हैं, भाव दर्शाते हैं, अपनी सुविधा के हिसाब से उन्हें जाहिर करते हैं, मतलब के लिहाज से बात करते हैं, जब मतलब निकल जाता है तो उसी शब्द का अर्थ
बदल लेते हैं। ये मानकर चलिए, कोई भी हो, कितना ही बड़ा शख्स हो, यदि वो कहता है कि वो पूरी तरह से ईमानदार है तो वो सबसे बड़ा झूठ बोल रहा है, और झूठ से जुड़ा है स्वार्थ, क्योंकि स्वार्थ से जुड़ा है उसका फायदा, तो ये way of life है यानि जीवन दर्शन है जिसे लोग अपनी ही तरह जीना चाहते हैं, उसे किसी से मतलब नहीं, अपनी ही तरह से शब्दों के अर्थ निकाल लेते हैं और अपने फायदे में जुट जाते हैं। जैसा हम शब्दों के साथ करते हैं, ऐसा ही हम अपने जीवन में कई बार एक-दूसरे के साथ कर जाते हैं, या तो गलत समझ कर, या फिर अपने छोटे से फायदे के लिए..दोनों ही स्थिति ठीक नहीं, क्योंकि गलती आपकी कमजोरी दर्शाती है और छोटा सा फायदा उससे बड़ी कमजोरी, क्योंकि खुद को बुलंद नहीं कर पाए तो आपने झूठ का सहारा ले लिया। अगर अपना सम्मान बरकरार रखना है तो अपनी कमजोरी दूर करनी होगी। इसके पहले भी मैं लिख चुका हूं कि सुनो, गुनो और चुनो या फिर तोल-मोल के बोल, ये अगर हम अपने जीवन में अपना लें तो जीवन को बेहतर बनाने की ओर आगे बढ़ेंगे। बाकी फिर.......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com whatsappup.blogspot.com