हमेशा पाजिटिव रहो, निगेटिव रहोगे तो दूसरों को भी नुकसान पहुंचाओगे और खुद को भी, अपना काम करते रहो, मेहनत करते रहो, अगर आपको कोई नुकसान पहुंचा रहा है,खलनायक की भूमिका निभा रहा है तो कभी उसको बुराई से मत मारो, अपनी अच्छाई से मारो। पानी के आधे भरे गिलास को दो तरह से लोग देखते हैं. कुछ उसे आधा गिलास भरा बोलते हैं तो कुछ आधा गिलास खाली बोलते हैं। ये अपनी-अपनी सोच का फर्क है और उसी सोच से आपके हमारे काम में फर्क दिखाई देता है।
जो पाजिटिव सोचते है, उनमें हमेशा एक उत्साह बना रहता है, पाजिटिव होने से हर वक्त मानसिक और शारीरिक ऊर्जा बनती रहती है जबकि निगेटिव होने पर आप में जो काम करने का माद्दा है, वो नष्ट होना शुरू हो जाता है और जो आपकी क्षमता है वो घटकर माइनस तक पहुंच जाती है जिससे शारीरिक और मानसिक कमजोरी सामने वाले को ही नजर नहीं आती, कई विकृतियां भी हम अपने लिए पैदा कर लेते हैं। जीवन दर्शन यही है।
वक्त बदलता रहता है, कामकाज बदलता रहता है, जगह बदलती रहती है, खट्टे मीठे अनुभव होते रहते हैं, सुख-दुख लगा रहता है, हार-जीत चलती रहती है, लेकिन अपने पाजिटिव लक्ष्य को कभी नहीं भूलना चाहिए, मेहनत को रुकना नहीं चाहिए, नए विचार खत्म नहीं होना चाहिए और ये सब तभी मुमकिन हैं जब हम एक काम खत्म होने से पहले ही दूसरा शुरू कर दें। अपनी सोच को लगातार सक्रिय रखें, उत्साह को कम न होने दें।
लंबे वक्त से कुछ लिख नहीं पाया था। कठिन मेहनत और समय न मिलने से जैसे ही थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा अपने साथियों से रूबरू हुआ जाए, कहीं भूल न गए हों, क्योंकि यात्रा में पड़ाव आते रहते हैं. जिस तरह पानी नहीं ठहरता, वैसे ही जीवन एक जगह नहीं चलता, उसे लगातार बहते रहना हैं और अपनी मंजिल तक पहुंचना है। जीवन है और उसका एक दर्शन है, ये सबके लिए अलग-अलग है, सबका अपना अपना तरीका है, अपनी-अपनी क्षमता है, कुछ लोग वक्त और उम्र के साथ कम कर लेते हैं तो कुछ लोग उसे बढ़ा भी लेते हैं। कुछ लोग हमेशा स्थिर रहते हैं। हमारा जैसा दर्शन होगा, वैसा ही जीवन होगा, चाहे वो योग हो या भोग हो,
राजनीतिक हो या अध्ययन, अध्यापन का, ग्लैमर हो और गुमनाम अंधेरी गलियां, आप समझ ही गए होंगे कि मैं किस तरफ इशारा कर रहा हूं, उस दर्शन से ही लोग अपने जीने का सलीका तय करते हैं, अपना नाम करते हैं या फिर बदनाम होते हैं। तो हमेशा दूसरों को मत देखिए, खुद को देखिए.रहिए B+
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जो पाजिटिव सोचते है, उनमें हमेशा एक उत्साह बना रहता है, पाजिटिव होने से हर वक्त मानसिक और शारीरिक ऊर्जा बनती रहती है जबकि निगेटिव होने पर आप में जो काम करने का माद्दा है, वो नष्ट होना शुरू हो जाता है और जो आपकी क्षमता है वो घटकर माइनस तक पहुंच जाती है जिससे शारीरिक और मानसिक कमजोरी सामने वाले को ही नजर नहीं आती, कई विकृतियां भी हम अपने लिए पैदा कर लेते हैं। जीवन दर्शन यही है।
वक्त बदलता रहता है, कामकाज बदलता रहता है, जगह बदलती रहती है, खट्टे मीठे अनुभव होते रहते हैं, सुख-दुख लगा रहता है, हार-जीत चलती रहती है, लेकिन अपने पाजिटिव लक्ष्य को कभी नहीं भूलना चाहिए, मेहनत को रुकना नहीं चाहिए, नए विचार खत्म नहीं होना चाहिए और ये सब तभी मुमकिन हैं जब हम एक काम खत्म होने से पहले ही दूसरा शुरू कर दें। अपनी सोच को लगातार सक्रिय रखें, उत्साह को कम न होने दें।
लंबे वक्त से कुछ लिख नहीं पाया था। कठिन मेहनत और समय न मिलने से जैसे ही थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा अपने साथियों से रूबरू हुआ जाए, कहीं भूल न गए हों, क्योंकि यात्रा में पड़ाव आते रहते हैं. जिस तरह पानी नहीं ठहरता, वैसे ही जीवन एक जगह नहीं चलता, उसे लगातार बहते रहना हैं और अपनी मंजिल तक पहुंचना है। जीवन है और उसका एक दर्शन है, ये सबके लिए अलग-अलग है, सबका अपना अपना तरीका है, अपनी-अपनी क्षमता है, कुछ लोग वक्त और उम्र के साथ कम कर लेते हैं तो कुछ लोग उसे बढ़ा भी लेते हैं। कुछ लोग हमेशा स्थिर रहते हैं। हमारा जैसा दर्शन होगा, वैसा ही जीवन होगा, चाहे वो योग हो या भोग हो,
राजनीतिक हो या अध्ययन, अध्यापन का, ग्लैमर हो और गुमनाम अंधेरी गलियां, आप समझ ही गए होंगे कि मैं किस तरफ इशारा कर रहा हूं, उस दर्शन से ही लोग अपने जीने का सलीका तय करते हैं, अपना नाम करते हैं या फिर बदनाम होते हैं। तो हमेशा दूसरों को मत देखिए, खुद को देखिए.रहिए B+