हम छोटी सी छोटी बात पर बेचैन हो जाते हैं, अगर रात में लाइट चली गई, गर्मी से परेशान हैं तो चिड़चिड़ाहट, बेचैनी, सुबह पानी चला गया, कैसे नहाएंगे, बड़ी बेचैनी सी छा जाती है, घर में सफाई करने वाली बाई नहीं आई, आज तो काम करना पड़ेगा, दफ्तर में बास ने डांट दिया, मन बड़ा बेचैन हो जाता है, मन ही मन गुस्सा भी भड़कता रहता है, कई लोग अपना ब्लड प्रेशर तक बढ़ा लेते हैं, बच्चे के टेस्ट के नंबर आए, नंबर कम हो गए, बड़ी बेचैनी सी रहती है, बच्चे पर झुंझलाहट भी उतार देते हैं, नसीहत देने में जुट जाते हैं।
मकानमालिक ने किराया बढ़ाने को कह दिया, ये और बड़ी बेचैनी है, बिजली का बिल बढ़ता जा रहा है, मन परेशान है, बस का किराया बढ़ गया, बच्चे के स्कूल की फीस बढ़ गई, सब्जी देखो कितनी महंगी होती जा रही है, दूध हर दो-चार महीने में दो रुपए बढ़ जा रहा है, महंगाई सबसे ज्यादा बेचैन करती है। कैसे चलेगा खर्च, हैरानी इस बात की है कि न तो दूध आना कम होता है, न ही बच्चे की फीस देना बंद होती है और न ही सब्जी खरीदना। दाल खाते हैं तो सस्ती दाल खाना शुरू नहीं कर देते लेकिन बेचैन जरूर रहते हैं। रोमिंग पर हैं, मोबाइल बिल बढ़ता जा रहा है, सामने वाला आधा घंटे से हाल-चाल पूछ रहा है और इस बात से बेचैन हैं कि कब ये फोन बंद करे, हालचाल में ही पचास सौ रूपए का फटका लगा रहा है। हालचाल पूछ कर क्या कर लेगा?
मकान मालिक ने किराया बढ़ा दिया, एक-दो दिन झुंझलाहट होती है, फिर सोचना बंद कर देते हैं और इसे नियति मान लेते हैं, फिर सोचने लगते हैं, वेतन बढ़ नहीं रहा, खर्चे बढ़ते जा रहे हैं, किराया बढ़ रहा है, फीस बढ़ रही है, सब्जी, किराना महंगा हो रहा है, लेकिन तनख्वाह जस की तस है, दरअसल यही जीवन है, हम कभी चैन से नहीं रहते, चीजें महंगी होती है तो मन बेचैन होता है, वेतन बढ़ता है तो उस दिन तो खुशी होती है, लेकिन अगले दिन फिर मन बेचैन हो जाता है कि मेरे कम बढ़े, दूसरे के ज्यादा बढ़े, अपने से ज्यादा दूसरे को लेकर बेचैनी शुरू हो जाती है।
फिर सोचने लगते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ रहा है, दो हजार बढ़ भी गए तो तीन हजार की महंगाई बढ़ गई, life आगे बढ़ने के बजाए पीछे जा रही है, हर शख्स की अपनी-अपनी बेचैनी है, तरह-तरह की बेचैनी है, महिलाएं अपनी समस्याओं से बेचैन हैं, गैस सिलेंडर खत्म हो गया, इनवर्टर खराब हो गया, पानी नहीं आया, बिल ज्यादा आ रहा है, बच्चा बात नहीं मान रहा है, स्कूल से शिकायत मिल रही है, रिश्तेदार जान खा रहे हैं, खर्चा बढ़ता जा रहा है, पुरुष अलग तरह से परेशान हैं, महीने का बजट बिगड़ रहा है, लोन की किश्त भरनी है, दफ्तर में कामकाज पूरा नहीं हुआ है, बास नाराज चल रहा है, बच्चे स्कूल के मारे परेशान हैं, टेस्ट, परीक्षाएं सिर पर हैं, कोई किताब नहीं मिल रही, दोस्त से झगड़ा हो गया, मेरी कमीज उसकी कमीज से ज्यादा सफेद नहीं है, ये तो कुछ उदाहरण है, इससे ज्यादा तो हम और आप जानते हैं अपनी-अपनी बेचैनी।
दरअसल ये हमारे ऊपर निर्भर है कि हम कब चैन से रहना है कब बेचैन रहना है, कितनी छोटी बात पर रहना है कितनी बड़ी बात पर रहना है, जितना कम बेचैन रहेंगे, उतनी बेहतर life होगी, जब तक जीवन है, समस्याएं चलती रहेंगी चाहे आर्थिक हों, पारिवारिक हों, सामाजिक हों, दफ्तर की हों या फिर व्यक्तिगत हों, इसलिए बेहतर life के लिए कम से कम बेचैन रहें, life चैन से कट जाएगी। बाकी फिर......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com whatsappup.blogspot.com
मकानमालिक ने किराया बढ़ाने को कह दिया, ये और बड़ी बेचैनी है, बिजली का बिल बढ़ता जा रहा है, मन परेशान है, बस का किराया बढ़ गया, बच्चे के स्कूल की फीस बढ़ गई, सब्जी देखो कितनी महंगी होती जा रही है, दूध हर दो-चार महीने में दो रुपए बढ़ जा रहा है, महंगाई सबसे ज्यादा बेचैन करती है। कैसे चलेगा खर्च, हैरानी इस बात की है कि न तो दूध आना कम होता है, न ही बच्चे की फीस देना बंद होती है और न ही सब्जी खरीदना। दाल खाते हैं तो सस्ती दाल खाना शुरू नहीं कर देते लेकिन बेचैन जरूर रहते हैं। रोमिंग पर हैं, मोबाइल बिल बढ़ता जा रहा है, सामने वाला आधा घंटे से हाल-चाल पूछ रहा है और इस बात से बेचैन हैं कि कब ये फोन बंद करे, हालचाल में ही पचास सौ रूपए का फटका लगा रहा है। हालचाल पूछ कर क्या कर लेगा?
मकान मालिक ने किराया बढ़ा दिया, एक-दो दिन झुंझलाहट होती है, फिर सोचना बंद कर देते हैं और इसे नियति मान लेते हैं, फिर सोचने लगते हैं, वेतन बढ़ नहीं रहा, खर्चे बढ़ते जा रहे हैं, किराया बढ़ रहा है, फीस बढ़ रही है, सब्जी, किराना महंगा हो रहा है, लेकिन तनख्वाह जस की तस है, दरअसल यही जीवन है, हम कभी चैन से नहीं रहते, चीजें महंगी होती है तो मन बेचैन होता है, वेतन बढ़ता है तो उस दिन तो खुशी होती है, लेकिन अगले दिन फिर मन बेचैन हो जाता है कि मेरे कम बढ़े, दूसरे के ज्यादा बढ़े, अपने से ज्यादा दूसरे को लेकर बेचैनी शुरू हो जाती है।
फिर सोचने लगते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ रहा है, दो हजार बढ़ भी गए तो तीन हजार की महंगाई बढ़ गई, life आगे बढ़ने के बजाए पीछे जा रही है, हर शख्स की अपनी-अपनी बेचैनी है, तरह-तरह की बेचैनी है, महिलाएं अपनी समस्याओं से बेचैन हैं, गैस सिलेंडर खत्म हो गया, इनवर्टर खराब हो गया, पानी नहीं आया, बिल ज्यादा आ रहा है, बच्चा बात नहीं मान रहा है, स्कूल से शिकायत मिल रही है, रिश्तेदार जान खा रहे हैं, खर्चा बढ़ता जा रहा है, पुरुष अलग तरह से परेशान हैं, महीने का बजट बिगड़ रहा है, लोन की किश्त भरनी है, दफ्तर में कामकाज पूरा नहीं हुआ है, बास नाराज चल रहा है, बच्चे स्कूल के मारे परेशान हैं, टेस्ट, परीक्षाएं सिर पर हैं, कोई किताब नहीं मिल रही, दोस्त से झगड़ा हो गया, मेरी कमीज उसकी कमीज से ज्यादा सफेद नहीं है, ये तो कुछ उदाहरण है, इससे ज्यादा तो हम और आप जानते हैं अपनी-अपनी बेचैनी।
दरअसल ये हमारे ऊपर निर्भर है कि हम कब चैन से रहना है कब बेचैन रहना है, कितनी छोटी बात पर रहना है कितनी बड़ी बात पर रहना है, जितना कम बेचैन रहेंगे, उतनी बेहतर life होगी, जब तक जीवन है, समस्याएं चलती रहेंगी चाहे आर्थिक हों, पारिवारिक हों, सामाजिक हों, दफ्तर की हों या फिर व्यक्तिगत हों, इसलिए बेहतर life के लिए कम से कम बेचैन रहें, life चैन से कट जाएगी। बाकी फिर......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com whatsappup.blogspot.com