कहते हैं कि हम बदलेंगे,युग बदलेगा, यदि व्यक्ति खुद अच्छा होगा, तो समाज अच्छा होगा, राज्य और देश अच्छा होगा, इसके लिए स्कूलों में शुरू से बच्चों को शिक्षा दी जाती है, माता-पिता भी अपने बच्चों को बताते हैं और जितने भी विचारक हैं, सुधारक हैं, राजनेता हैं, जो देश और समाज का ठेका लिए हुए हैं, वो भी जगह-जगह अपने व्याख्यान में ये संदेश देते रहते हैं कि पहले खुद सुधरो, फिर देश सुधरेगा लेकिन थोड़ा सा हम अपने भीतर झांकें, अपने आसपास झांकें, और दो मिनट सोचें कि साल-दर-साल हमें मिल रही शिक्षा या हमने जो शिक्षा दूसरों को दी है, क्या हम उसका पालन कर रहे हैं?
जवाब आएगा न में, ये कड़वी हकीकत है, चाहे घर-परिवार में हों, दफ्तर में हों, समाज में हों, हम खुद से ज्यादा दूसरों की सोचते हैं, बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो खुद को बेहतर बनाने में या फिर जो उनसे जुड़़े हैं, उन्हें बेहतर बनाने में जुटे हों। शुरूआत करते हैं अपने परिवार से..जहां बेटा हो बेटी, भाई हो या बहन, माता हो या पिता..हम लिंग भेद तो करते ही हैं, हैसियत के हिसाब से भी रिश्ता निभाते हैं, मैंने खुद एक नहीं सैकड़ों जगह खुद अनुभव किया है कि यदि आपके पिता के पास बेहिसाब संपत्ति है तो आप उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और यदि धेला नहीं हैं तो उनकी बीमारी या अक्षमता देखकर मन मसोसकर रह जाएंगे कि कब उनसे छुटकारा मिले। सोचिए, जिसने आपको जन्म दिया, उसके बारे में हम यदि ऐसा सोचते भी हैं, तो कितना निकृष्ट काम करते हैं। जो ऐसा सोचते हैं वो जरा ये भी सोच लें कि आप भी कभी बूढ़े होंगे, आपके साथ भी ऐसा होगा या हो सकता है। मैं केवल माता-पिता की बात नहीं करता, माता-पिता भी अपने उस बच्चे को ज्यादा मान-सम्मान देने लगते हैं जो कमाऊ पूत है, या फिर उसका स्टेटस ऊंचा है। विधायक, सांसद, मंत्री, अफसर है तो पिता भी बेचारा अपने बेटे के सामने लाचार सा महसूस करने लगता है।
यही हाल दफ्तर का है, बड़ा साहब है तो लोग चरणों में लोट जाएंगे, एक-एक भाव भंगिमा की तारीफ के पुल बांध देंगे, कोशिश रहती है कि अपने साहब को देश का सबसे महान व्यक्ति ही करार दें ताकि दूसरा हमसे आगे न निकल जाए। दरअसल जब हम किसी के सामने बौने नजर आते हैं, अपनी हैसियत कम आंकते हैं, अपने महत्व को घटता देखते हैं, तो हम तत्काल दूसरों की सोचने लगते हैं। हम चाहते हैं कि अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए दूसरों का मखौल उड़ाएं, उसे घटिया से घटिया साबित करें ताकि अपना उल्लू सीधा कर सकें।
अक्सर हम किसी भी शख्स के बारे में, किसी संस्थान के बारे में, किसी समूह के बारे में, किसी परिवार के बारे में बात करते हैं तो मतलब के हिसाब से विचार बनाते हैं, मसलन आप उससे जुड़े हैं तो आपके लिए बहुत ही भला शख्स है, बहुत ही भला संस्थान है, जब आपके विरोधी हैं तो उसे जी भरकर कोसते हैं।
मैं बार-बार आपसे ये बातें इसलिए शेयर कर रहा हूं कि हम सब जानते हैं, समझते हैं, लेकिन अपनी तरफ कम देखते हैं, दूसरों के बारे में ज्यादा सोचते हैं, जब हम खुद के बारे में सोचते हैं तो हम अपना भला करते हैं, दूसरा क्या सोचता है, क्या करता है, वो उसके लिए हैं, आपको उससे कुछ नहीं मिलेगा, अच्छा होगा तो उसका होगा, बुरा होगा तो उसका होगा, यहां तक कि आपका भाई आईएएस बन जाए, मंत्री बन जाए, करोड़पति बन जाए, वो उसका है, यदि वो गुंडा बन जाए तो वो उसका है, यदि आप अच्छे इंसान हैं, आपकी प्रतिष्ठा है तो आपकी है, इसलिए अपनी ही सोचो, अपना
way of life बेहतर बनाओ, दूसरों की टांग में टांग फंसाओगे तो खुद को नुकसान पहुंचाओगे..बाकी फिर.......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com whatsappup.blogspot.com
जवाब आएगा न में, ये कड़वी हकीकत है, चाहे घर-परिवार में हों, दफ्तर में हों, समाज में हों, हम खुद से ज्यादा दूसरों की सोचते हैं, बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो खुद को बेहतर बनाने में या फिर जो उनसे जुड़़े हैं, उन्हें बेहतर बनाने में जुटे हों। शुरूआत करते हैं अपने परिवार से..जहां बेटा हो बेटी, भाई हो या बहन, माता हो या पिता..हम लिंग भेद तो करते ही हैं, हैसियत के हिसाब से भी रिश्ता निभाते हैं, मैंने खुद एक नहीं सैकड़ों जगह खुद अनुभव किया है कि यदि आपके पिता के पास बेहिसाब संपत्ति है तो आप उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और यदि धेला नहीं हैं तो उनकी बीमारी या अक्षमता देखकर मन मसोसकर रह जाएंगे कि कब उनसे छुटकारा मिले। सोचिए, जिसने आपको जन्म दिया, उसके बारे में हम यदि ऐसा सोचते भी हैं, तो कितना निकृष्ट काम करते हैं। जो ऐसा सोचते हैं वो जरा ये भी सोच लें कि आप भी कभी बूढ़े होंगे, आपके साथ भी ऐसा होगा या हो सकता है। मैं केवल माता-पिता की बात नहीं करता, माता-पिता भी अपने उस बच्चे को ज्यादा मान-सम्मान देने लगते हैं जो कमाऊ पूत है, या फिर उसका स्टेटस ऊंचा है। विधायक, सांसद, मंत्री, अफसर है तो पिता भी बेचारा अपने बेटे के सामने लाचार सा महसूस करने लगता है।
यही हाल दफ्तर का है, बड़ा साहब है तो लोग चरणों में लोट जाएंगे, एक-एक भाव भंगिमा की तारीफ के पुल बांध देंगे, कोशिश रहती है कि अपने साहब को देश का सबसे महान व्यक्ति ही करार दें ताकि दूसरा हमसे आगे न निकल जाए। दरअसल जब हम किसी के सामने बौने नजर आते हैं, अपनी हैसियत कम आंकते हैं, अपने महत्व को घटता देखते हैं, तो हम तत्काल दूसरों की सोचने लगते हैं। हम चाहते हैं कि अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए दूसरों का मखौल उड़ाएं, उसे घटिया से घटिया साबित करें ताकि अपना उल्लू सीधा कर सकें।
अक्सर हम किसी भी शख्स के बारे में, किसी संस्थान के बारे में, किसी समूह के बारे में, किसी परिवार के बारे में बात करते हैं तो मतलब के हिसाब से विचार बनाते हैं, मसलन आप उससे जुड़े हैं तो आपके लिए बहुत ही भला शख्स है, बहुत ही भला संस्थान है, जब आपके विरोधी हैं तो उसे जी भरकर कोसते हैं।
मैं बार-बार आपसे ये बातें इसलिए शेयर कर रहा हूं कि हम सब जानते हैं, समझते हैं, लेकिन अपनी तरफ कम देखते हैं, दूसरों के बारे में ज्यादा सोचते हैं, जब हम खुद के बारे में सोचते हैं तो हम अपना भला करते हैं, दूसरा क्या सोचता है, क्या करता है, वो उसके लिए हैं, आपको उससे कुछ नहीं मिलेगा, अच्छा होगा तो उसका होगा, बुरा होगा तो उसका होगा, यहां तक कि आपका भाई आईएएस बन जाए, मंत्री बन जाए, करोड़पति बन जाए, वो उसका है, यदि वो गुंडा बन जाए तो वो उसका है, यदि आप अच्छे इंसान हैं, आपकी प्रतिष्ठा है तो आपकी है, इसलिए अपनी ही सोचो, अपना
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