देश का बजट जैसा भी आए..हम अपने बजट को भी देख लें तो जीवन बेहतर हो....बहुत सारे लोगों को मैंने देखा है कि बड़े बंगले..बड़ी गाड़ी में घूमते हैं...महंगा फोन..महंगी ड्रेस पहनते हैं...रईसी दिखा रहे हैं..दोस्तों में अपना जलवा दिखा रहे हैं..आस-पड़ोस वाले जल रहे हैं...रिश्तेदार देखकर दंग हो जा रहे हैं...भई आपका जवाब नहीं...किसी ने थोड़ा चढ़ाया नहीं कि आपने कार्ड स्वीप करा दिया..खाओ पियो मस्त रहो...ऐश करो...लेकिन जब दुखती रग छेड़ो तो बोलेंगे कि संभल ही नहीं रहा...लोन की लंबी-चौड़ी किश्त है..सब कुछ ईएमआई पर चल रहा है..मकान की इतनी..गाड़ी की इतनी..मोबाइल की इतनी...यानि इन्होंने जो भी खरीदा..ईएमआई पर ही खरीदा..और खरीदते चले जा रहे हैं...साथ में रोते भी जा रहे हैं।
दूसरे प्रकार के लोग होते हैं जो एमआईजी खरीद सकते हैं लेकिन खरीदेंगे एलआईजी...महंगी कार ले सकते हैं लेकिन लेते हैं छोटी गाड़ी...फोन ऐसा लेंगे जिससे काम चल जाए..यानि हर जगह किफायत...कम से कम लोन...कम से कम ईएमआई....उधार में नहीं नगद में भरोसा....ऐसे लोग दबा कर चलते हैं...जल्दबाजी में नहीं रहते।दूसरों की देखादेखी नहीं करते हैं..झूठी शान में नहीं जीते हैं और अपनी आर्थिक क्षमता को ध्यान में रखते हैं..ऐसे लोगों को आप परेशान नहीं देखेंगे। आपकी जितनी कमाई है यदि खर्च में उसी हिसाब से संतुलन हैं तो आप मानसिक तनाव से नहीं घिरते।
जब आप एक प्लानिंग के साथ हर महीने का और साल का बजट बनाते हैं...यानि मकान..गाड़ी...पढ़ाई..खान-पान..मनोरंजन...यात्रा...कहां कितना खर्च करना है..कितना जरूरी है..कितना सही है.. हर महीने कितना खर्च...कितनी बचत...और यही स्थिति साल भर की...यानि कहीं अनुपात गड़बड़ा गया तो अगले महीने संभाल लिया। ये नहीं कि महीने दर महीने खर्चे पर खर्चे किए जा रहे और कोई हिसाब ही नहीं रखा...चाहे आप दस हजार रुपए महीने कमाते हों या फिर एक लाख रुपए महीने...ये आप पर निर्भर है कि आप मकान पर कितना खर्च करें..गाड़ी पर कितना करें..पढ़ाई पर कितना करें...खान-पान पर कितना करें..मनोरंजन पर कितना करें..और एक होता है विविध यानि मिसलेनियस..जो सबसे खतरनाक होता है जिसका पता भी नहीं चलता कि आपने कहां खर्च किया है और कितना किया है और क्यों किया है लेकिन जब टोटल आएगा तो हो सकता है कि जरूरी मदों से ज्यादा हो जाए...इसलिए कुल कमाई का कम से कम एक चौथाई हिस्सा बचत में जाना जरूरी है जो आपके आड़े वक्त आए...ये थोड़ा ज्यादा भी हो जाए तो गलत नहीं..क्योंकि बचत ही होती है जिसके आधार पर आपका कान्फीडेंस बढ़ता है। जो रोज खर्च कर रहे हो उससे घटता है लेकिन जो डिपाजिट है उससे आपमें मजबूती है। इसलिए बजट खुद तय करिए..संतुलन के साथ करिए..ऐसा भी नहीं कि केवल बचत करें..और जीवन के रंग फीके हो जाएं...हर चीज का महत्व है..पढ़ाई का भी है...मकान का भी है..गाड़ी का भी है..खानपान का भी है..मनोरंजन का भी है और स्टेटस सिंबल का भी है लेकिन बैलेंस हो तो फिर आपका बजट सबसे अच्छा है...बाकी फिर.......