Tuesday, February 24, 2015

सावधानी हटी..दुर्घटना घटी

ट्रेन का सफर तो एक-दो दिन में पूरा हो जाता है पर जिंदगी का सफर लंबा है और इसे सुहाना बनाना है तो पूरी प्लानिंग के साथ..संतुलन के साथ..अनुशासन के साथ..सुरक्षा के साथ..धैर्य के साथ पूरा करना होगा। हम हमेशा दो मोर्चे पर काम करते हैं..एक तो शारीरिक और दूसरा मानसिक...शारीरिक दिनचर्या जब तक व्यवस्थित नहीं होगी...उसमें अनुशासन नहीं होगा..संतुलन नहीं होगा..शरीर साथ छोड़ने लगेगा। शरीर रेल की तरह ही है जो नई होगी तो मेंटिनेंस फ्री रहेगी..धीरे-धीरे उसके इंजन को..उसके शरीर में मरम्मत..ब्रेक आयल..क्लच प्लेट...चार्ज बैटरी...टायर में हवा..की जरूरत पड़ेगी। यानि आप प्रकृति के अनुरूप सुबह कितने बजे सो कर उठते हैं..कितने बजे नाश्ता करते हैं..कब तैयार होकर काम पर निकलते हैं..कब लंच करते हैं..कब डिनर करते हैं..कब सोते हैं और कितना सोते हैं। सेहत को बरकरार रखने के लिए क्या खाते हैं कितना खाते हैं और कब खाते हैं। चाहे आंखें हों या पेट हो..या हाथ-पैर हों..किसी पर ज्यादा बोझ लादा..तनाव दिया तो बोल जाएंगे और फिर डाक्टर सुधार करता रहेगा लेकिन वो मजबूती नहीं आएगी जो नेचुरल थी।


जितना शरीर का ध्यान रखना जरूरी है..उससे कहीं ज्यादा मानसिक मजबूती और स्वस्थ होना जरूरी है। आपकी सोच कैसी है पाजिटिव या निगेटिव..पाजिटिव सोच आपके काम को बेहतर बनाती हैं..एक उत्साह और इनर्जी पैदा करती है..हौसला देती है और उड़ान भरने के लिए तैयार रखती है...निराशा आपके मानसिक और शारीरिक सेहत को कमजोर कर देती है। जो आप सोचते हैं उसे आपको करना भी है इसके लिए प्लानिंग भी होनी चाहिए..अनुशासन भी होना चाहिए...केवल सोचते हैं तो जीवन भर सोचते रह जाएंगे..प्लानिंग को अमल में नहीं ला पाएंगे। अगर वक्त के पाबंद हैं..और समय सीमा का ध्यान रखते हैं तो सोच काम में तब्दील होती है और मंजिल की और तेजी से बढ़ने लगती है। जिस स्टाप पर रुकना है..समय देना है वहां रुकना भी होगा..बिना ब्रेक के चलेंगे तो एक्सीडेंट कर बैठेंगे..आपके काम को क्षति पहुंचेगी और आपको भी...ब्रेक यानि धैर्य भी जरूरी है। जहां रास्ता साफ है वहां जितनी मर्जी स्पीड बढ़ाएं लेकिन ये भी ध्यान रखें कि हड़बड़ाहट में नहीं..सुरक्षा के साथ..नहीं तो सावधानी हटी..और दुर्घटना घटी...


जीवन के सफर में अगर शताब्दी एक्सप्रेस की रफ्तार से चल रहे हैं तो आपकी पटरियां भी मजबूत हों...वक्त का ध्यान हो..सेहत भरा भोजन हो...मंजिल पर आप अच्छे माहौल में पहुंचेंगे नहीं तो किसी भी स्टेशन पर रुके रह जाएंगे और जितनी देर रुके रहेंगे..उतना ही जीवन पिछड़ जाएगा। वक्त-वक्त पर आत्म चिंतन भी करना होगा कि सब कुछ अपडेट है या नहीं...कहीं सफर में कोई कमजारी तो नहीं आ रही...न तो लगातार सफर अच्छा..न ही एक स्टेशन पर खड़े रहना..न तो इंजन का इतना दोहन करना कि सौ साल के सफर का खात्मा आधे रास्ते में हो जाए। न तो ऐसे सफर करना कि डेंट-पेंट लग जाए..या फिर आपके परिवार के डिब्बे पटरियों से उतर जाएं। जैसे किसी ट्रेन के बारे में इमेज होती है वैसे ही आपकी इमेज भी बनती या बिगड़ती है। अगर राजधानी एक्सप्रेस बनना है तो इमेज का भी ध्यान रखना होगा ताकि हर कोई आपकी ट्रेन का डिब्बा बनकर सफर करना चाहे नहीं तो एक बार के बाद लोग दूसरे का रुख कर लेंगे और लोगों का साथ आपसे छूटता जाएगा। यानि सफर अकेले नहीं होता..उसमें आपका परिवार..आपके दोस्त..आपके प्रशंसक...भी होते हैं..ऐसे यात्रियों का भी ध्यान रखना है जो ट्रेन को डेमेज करने वाले होंगे..उनसे सावधानी रखनी होगी..सुरक्षा करनी होगी..जवाब भी देना होगा...ये आप पर है कि आप जीवन की इस रेल को क्या रुप देना चाहते हैं क्या नाम देना चाहते हैं..कितनी तेजी से सफर करना चाहते हैं..और आपनी मंजिल पर किस तरह पहुंचना चाहते हैं...बाकी फिर.....