Tuesday, February 17, 2015

डर बहुत लगता है

मैं किसी से नहीं डरता..अक्सर हम ये जुमला दिन में कई बार बोलते हैं लेकिन भीतर से हम जानते हैं कि हम हर पल डरते हैं..कई बार इसकी वजह होती है कई बार बिना वजह हम डर को पाल लेते हैं जो हमारी सोच और आगे बढ़ने की ताकत को रोक देता हैं। दिन में कई बार में हम छोटे बच्चों को हिदायत देते रहते हैं कि बेटा ऐसा मत करो..चोट लग जाएगी..पढ़ाई पर ध्यान दो...रिजल्ट खराब हो जाएगा..ऐसे कपड़े मत पहनो...ये मत खाओ..24 घंटे उन पर हमारा पहरा होता है जहां ज्यादा डर होता है वहां ज्यादा निगेटिविटी होती है। खुद के लिए भी और दूसरों के लिए भी...ट्रेन में जा रहे हैं..बस में जा रहे हैं...हर पल हमारी निगाहें अपनों पर दूसरों पर साए की तरह पीछा करती हैं...टीवी चैनल पर जो देखते हैं..उससे डर जाते हैं चाहे वो किसी के साथ हुआ है। दरअसल हम कोई भी बुरी घटना को खुद से कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं..बुरी घटना को देखकर और सुनकर हम सहम जाते हैं और वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं..जरूरत से ज्यादा सावधानी बरतने की कोशिश करते हैं और ऐसे में हम अपनी क्षमता को समेट लेते हैं..डर के आवरण से बाहर नहीं निकल पाते हैं।

 हजारों- लाखों लोग ऐसे हैं जो एक छोटी से घटना को जीवन भर नहीं भुला पाते..जैसे किसी को छिपकली से डर लगता है किसी को मकड़ी से..कोई चूहा देखकर चीख उठता है तो कोईं सांप को देखकर...दरअसल बचपन में हुई घटना हमारे मन-मस्तिष्क पर छाई रहती है..उदाहरण के लिए मुझे तालाब से डर लगता है क्योंकि बचपन में पानी में बिना-सोचे समझे कूद गया..और बमुश्किल बचाया गया। मैं जीवन भर नहीं भूल सकता। बच्चों को हम जितना डराएंगे..वो उतना दब्बू बनेंगे...उनका दायरा उतना ही सिमटता जाएगा...एक निगेटिव इनर्जी का सर्किल हम अपने चारों ओर तैयार करते हैं होता वो सुरक्षा के लिए है लेकिन उस सर्किल की वजह से अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते..क्षमता बढ़ाने की बात तो दूर की बात है...

दरअसल हम डर कर या डरा कर अपनी सुरक्षा तलाशते हैं। जैसे बिग बी भारत-पाक मैच की कमेंट्री करते वक्त बोले कि मैं जब भी मैच देखता हूं तो भारत हार जाता है..और कमेंट्री छोड़कर चले गए..बाद में भारत जीत गया। मैंने इसका जिक्र इसलिए किया कि कोई भी हो कितना ही बड़ा आदमी हो..एक अंध विश्वास एक डर उसका साया बनकर साथ में चलता है। जब हम फेल हो जाते हैं तो खुद को दोषी नहीं ठहराते..वक्त को दोषी ठहरा देते हैं या फिर कहते हैं कि मुहुर्त गलत हो गया...पूजा गलत हो गई...मैंने ज्योतिषी की बात नहीं मानी...बहुत से डर तो हम उजागर कर देते हैं लेकिन बहुत से डर ऐसे हैं जो हमारे भीतर बचपन से पल रहे हैं और साथ चल रहे हैं...खास तौर से खुद के लिए और अपने बच्चे के लिए...आपका बच्चा कहीं बिगड़ तो नहीं रहा..कहीं नशा तो नहीं करने लगा..कहीं लव-लपाटे में तो नहीं उलझ गया...हैरानी आपको तब होगी जब आप उस पर पूरी नजर रखने के बाद भी कई सालों तक सही से पता नहीं लगा पाते। कोई भी काम शुरू करने के पहले घबराते हैं कि पता नहीं कामयाब होगा या नहीं...इंटरव्यू देने जाते हैं तो घबराते हैं...हम जितना डरेंगे..जितना घबराएंगे..जितना बेचैन होंगे..उतना ही अपना नुकसान करेंगे इसीलिए कहते हैं कि डर के आगे जीत है...बाकी फिर......