कोई हैरानी नहीं कि पेट्रोलियम और कोयला मंत्रालय में जासूसी करते अधिकारी-कर्मचारी पकड़े गए...कुछ कंपनियों के अधिकारी भी गिरफ्त में आ गए..जो पकड़ा जाए वो चोर..जो न पकड़ा जाए.वो शरीफ....सौ में से एक-दो अधिकारी..कर्मचारी..नेता..पुलिस..मीडिया के लोग शायद ऐसे निकल आएं कि जो जासूसी न कर रहे हों। जासूसी का उपकरण तो हमारी आंखों में शुरू से सेट है। हमारी निगाहें किसी न किसी का हर वक्त पीछा कर रही होती हैं। जब हमें दिखाना है तो हम दिखाते हैं नहीं तो कनखियों से देखकर पलट जाते हैं। पति पत्नी पर नजर रखता है..पत्नी पति पर नजर रखती है..माता-पिता बच्चों पर नजर रखते हैं..दफ्तर में हम अपने सहयोगियों पर नजर रखते हैं। हर वक्त दूसरे की गतिविधियों का डाटा अपने दिल-दिमाग के कंप्यूटर में स्टोर करते जाते हैं और वक्त आने पर उसे बताते हैं या दर्शाते हैं। किसके कहां लिंक हैं आप समझ भी नहीं सकते। आपके घर में सफाई करने आने वाली महिला आपके घर की कहानी कैसे घर-घर की कहानी बनाती है..आपको नहीं मालूम...डिजिटल जमाने में आपकी एक-एक हरकत उस महिला के फ्रेंड सर्किल और एक्सटेंडिड सर्किल तक कैसे पहुंचती है..आपको अंदाजा भी नहीं होगा।
एक सज्जन बोले कि मध्यप्रदेश में प्यून से लेकर क्लर्क तक करोड़ों की रकम छापे में निकल रही है..लगता है कि वहां पैसा बहुत है। उनकी नादानी पर तरस आया कि दरअसल ऐसा कोई सरकारी कर्मचारी नहीं..जिस पर यदि छापा पड़े और करोड़ों की संपत्ति न निकले...और फिर दिल्ली,नोएडा, गुड़गांव और गाजियाबाद तो सोने की खान है। यहां एक पुलिसकर्मी से लेकर अफसर..मंत्री तक रोजाना कितनी रकम पीट रहे हैं..उन्हें हिसाब रखना मुश्किल हो रहा है। पकड़े नहीं गए हैं इसलिए चोर नहीं..यादव सिंह के यहां निकला..तो लोग घबरा से गए कि इतनी संपत्ति..नोएडा अथारिटी में शायद ही कोई ऐसा कर्मचारी हो जो नौकरी के बाद हरिद्धार भजन-कीर्तन की सोच रहा हो। एक और उदाहरण बताता हूं...अरबों के मालिक बिल्डर रजिस्ट्री कराने की फीस के नाम पर आप से 15 से 20 हजार की रकम आम तौर पर लेते हैं। ये फीस होती है वकील के नाम पर...रजिस्ट्री कार्यालय में हर रोज सैकड़ों की तादाद में रजिस्ट्री होती हैं। इस फीस में से वकील आधे से ज्यादा हिस्सा रजिस्ट्री कार्यालय पहुंचाता है। रजिस्ट्री कार्यालय में जो प्यून बख्शीश के नाम पर आपसे सौ रुपए लेता है और रजिस्ट्री की रसीद पकड़ाता है वो हर शख्स से सौ रुपए लेता है..कहने को बख्शीश है पर फिक्स है..आप चाहे ज्यादा दे सकते हैं कम नहीं...सौ का सौ में गुणा करेंगे तो होंगे दस हजार रुपए..ये है हर रोज की कमाई एक प्यून की...महीने की करीब तीन लाख रुपए। ऐसे उदाहरण हर सरकारी दफ्तर के हैं। एक सरकारी स्कूल का बजट..नामी प्राइवेट स्कूल से कम होगा..एक सरकारी अस्पताल का बजट एक निजी अस्पताल से कम होगा...दोनों में फर्क कितना होता है आपको खुद मालूम है। दरअसल हमें पता है..लेकिन जब पकड़ा जाता है तब चोर की तख्ती उसके सीने पर लगती है।
पेट्रोलियम-कोयला मंत्रालय के साथ ही प्रस्तावित बजट तक की कापी यदि कर्मचारी निकाल कर निजी कंपनियों को दे रहे हैं तो ताज्जुब की कौन सी बात है। ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ होगा। नहीं तो कुछ ही सालों में अकूत दौलत ईमानदारी से तो नहीं कमाई जा सकती। कितना ही बड़ा अफसर हो..कर्मचारी हो..मंत्री हो या विधायक हो...अगर ईमानदारी से घर चलाए तो घाटे में चला जाए। जितना कमा रहा है उससे कई गुना खर्च कर उस पर करोड़ों का कर्ज बढ़ जाए। प्रधानमंत्री जी गंगा की सफाई में करोड़ों रुपए खर्च करने की बात कह रहे हैं..अच्छा ये हो कि भ्रष्टाचार के जो नाले देश भर में बह रहे हैं..उनकी सफाई कर दी जाए..इसमें एक पैसा भी खर्च नहीं होना है....बाकी फिर.....
एक सज्जन बोले कि मध्यप्रदेश में प्यून से लेकर क्लर्क तक करोड़ों की रकम छापे में निकल रही है..लगता है कि वहां पैसा बहुत है। उनकी नादानी पर तरस आया कि दरअसल ऐसा कोई सरकारी कर्मचारी नहीं..जिस पर यदि छापा पड़े और करोड़ों की संपत्ति न निकले...और फिर दिल्ली,नोएडा, गुड़गांव और गाजियाबाद तो सोने की खान है। यहां एक पुलिसकर्मी से लेकर अफसर..मंत्री तक रोजाना कितनी रकम पीट रहे हैं..उन्हें हिसाब रखना मुश्किल हो रहा है। पकड़े नहीं गए हैं इसलिए चोर नहीं..यादव सिंह के यहां निकला..तो लोग घबरा से गए कि इतनी संपत्ति..नोएडा अथारिटी में शायद ही कोई ऐसा कर्मचारी हो जो नौकरी के बाद हरिद्धार भजन-कीर्तन की सोच रहा हो। एक और उदाहरण बताता हूं...अरबों के मालिक बिल्डर रजिस्ट्री कराने की फीस के नाम पर आप से 15 से 20 हजार की रकम आम तौर पर लेते हैं। ये फीस होती है वकील के नाम पर...रजिस्ट्री कार्यालय में हर रोज सैकड़ों की तादाद में रजिस्ट्री होती हैं। इस फीस में से वकील आधे से ज्यादा हिस्सा रजिस्ट्री कार्यालय पहुंचाता है। रजिस्ट्री कार्यालय में जो प्यून बख्शीश के नाम पर आपसे सौ रुपए लेता है और रजिस्ट्री की रसीद पकड़ाता है वो हर शख्स से सौ रुपए लेता है..कहने को बख्शीश है पर फिक्स है..आप चाहे ज्यादा दे सकते हैं कम नहीं...सौ का सौ में गुणा करेंगे तो होंगे दस हजार रुपए..ये है हर रोज की कमाई एक प्यून की...महीने की करीब तीन लाख रुपए। ऐसे उदाहरण हर सरकारी दफ्तर के हैं। एक सरकारी स्कूल का बजट..नामी प्राइवेट स्कूल से कम होगा..एक सरकारी अस्पताल का बजट एक निजी अस्पताल से कम होगा...दोनों में फर्क कितना होता है आपको खुद मालूम है। दरअसल हमें पता है..लेकिन जब पकड़ा जाता है तब चोर की तख्ती उसके सीने पर लगती है।
पेट्रोलियम-कोयला मंत्रालय के साथ ही प्रस्तावित बजट तक की कापी यदि कर्मचारी निकाल कर निजी कंपनियों को दे रहे हैं तो ताज्जुब की कौन सी बात है। ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ होगा। नहीं तो कुछ ही सालों में अकूत दौलत ईमानदारी से तो नहीं कमाई जा सकती। कितना ही बड़ा अफसर हो..कर्मचारी हो..मंत्री हो या विधायक हो...अगर ईमानदारी से घर चलाए तो घाटे में चला जाए। जितना कमा रहा है उससे कई गुना खर्च कर उस पर करोड़ों का कर्ज बढ़ जाए। प्रधानमंत्री जी गंगा की सफाई में करोड़ों रुपए खर्च करने की बात कह रहे हैं..अच्छा ये हो कि भ्रष्टाचार के जो नाले देश भर में बह रहे हैं..उनकी सफाई कर दी जाए..इसमें एक पैसा भी खर्च नहीं होना है....बाकी फिर.....