Sunday, February 22, 2015

बच्चा नहीं है मन का सच्चा

ये टाईटिल आपको ठीक नहीं लग रहा होगा लेकिन जैसे आप हैं वैसे ही बच्चे हैं। जैसे-जैसे आप दुनिया के छल प्रपंच में अपना वक्त गुजारते हैं तो बच्चा भी उससे अछूता नहीं रहता। छोटे-छोटे बच्चे ऐसे-ऐसे कारनामे दिखाने लगे हैं कि आपने अपनी उम्र में जिसे करने की कल्पना भी नहीं की होगी। टीवी-फिल्म और अब फेसबुक-यूट्यूब ने सारी कसर पूरी कर दी है। लोग पैदा होते ही बच्चों का फेसबुक-फेक एकाउंट बनाने लगे हैं और वही बच्चा जब बोलने और लिखने की स्थिति में पहुंचता है तो उसकी उंगलियां स्मार्ट फोन पर जितनी तेजी से चलने लगी हैं उतनी तेजी से आपकी हमारी नहीं चल सकती।

एक स्मार्ट फोन में कितने फंक्शन हैं..आप नहीं बता सकते..लेकिन आपका छोटा बच्चा इतना समझदार है कि उसे मालूम है कि कौन सा बटन दबाना है और सेटिंग में कहां-कहां जाना है। कंपटीशन के हाईटेक युग में बच्चों की क्षमता भी बढ़ी है..जितनी तेजी से वो बढ़े हो रहे हैं..हम आजतक नहीं हो पाए हैं। तो स्वाभाविक हैं कि जब वक्त से पहले वो बड़े हो रहे हैं तो जहां तक वो सोच रहे हैं आप सोच नहीं सकते। आपका बच्चा आपके लिए सौ साल की उम्र में बच्चा ही रहेगा। आप उसे ताउम्र वैसे ही डांटेंगे..समझाएंगे..पुचकारेंगे और उसके प्रति दया भाव दिखाएंगे लेकिन बड़ी हैरानी होती है कि आठवीं के बच्चे स्कूल जाने से पहले किसी खंडहर में मनभावन ड्रेस पहनते हैं..फूल वाले के पास स्कूल बैग रखते हैं..और माल में जाकर फिल्म देखते हैं। माल से बाहर आते हैं..स्कूल बैग उठाते हैं और खंडहर में जाकर फिर ड्रेस पहनते हैं..वापस घर पहुंचते हैं..मां सोचती है बेटा-बेटी पढ़कर आए हैं..उनकी सेवा में जुट जाती है। सुबह-सुबह अपने आसपास देखता हूं..सातवीं-आठवीं में पढ़ने वाली लड़की घर से स्कूल के लिए रिक्शे पर निकलती है। अपनी ही कालोनी के बाहर पान के ठेले पर रुकती है..सिगरेट लेकर सुलगाती है..और स्कूल के लिए रवाना होती है। सुबह मार्निंग वाक पर जाता हूं तो ऐसे ऐसे वाक्ये देखने को मिलते हैं कि हैरान हो जाओ..स्कूल जाते छोटे-छोटे बच्चे पार्क में क्या गुल खिला रहे हैं..आप और हमने बचपन में ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी।

अपने स्मार्ट फोन में छोटे-छोटे बच्चे फेसबुक पर कैसे-कैसे कमेंट लिख रहे हैं..कैसे-कैसे फोटो चिपका रहे हैं...कैसे-कैसे वीडियो देख रहे हैं जो आप एडल्ट होने के बाद भी देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। ऐसी ही घटना पर एक छोटी सी फिल्म किसी ने बनाई थी जिसमें दो भाई-बहन होते हैं...दोनों एक-दूसरे को फेसबुक पर चैट करते हैं..दोस्ती होती है..और एक कैफे में मिलने का वक्त तय होता है..जब दोनों एक-दूसरे से मिलते हैं तो क्या होता है..ये बताने की जरूरत नहीं...

 आप तो यही कहेंगे कि नहीं..ऐसे बच्चे हमारे नहीं..हमारा बच्चा बड़ा शरीफ है..नजर उठाकर भी नहीं देखता..दरअसल हम दूसरों को देखते हैं..अपनों को नहीं...कौन क्या कर रहा है..इसका अंदाजा तभी लगता है जब आप खुद उसे देखते हैं। खास तौर से स्मार्ट दुनिया ने बच्चों को भी स्मार्ट बना दिया है और वो वक्त से पहले वो सब कर रहे हैं जो आप और हमें भी नहीं करना चाहिए। कभी बारीकी से नजर डालकर देखिए..कभी बच्चों के चेहरों को पढ़ने की कोशिश करिए...कभी बच्चों को टटोलने की कोशिश करिए...कोई बुराई नहीं...फिर तय करिए कि बच्चा है मन का सच्चा या फिर नहीं हैं मन का सच्चा...बाकी फिर.....