Saturday, February 14, 2015

इन ख्वाहिशों का अंत नहीं

दिल क्या चाहता है...दिल चाहता है कि जिंदगी में सब कुछ अच्छा ही अच्छा हो..जो चाहो वो मिल जाए..जो करो वो हो जाए...दिल मांगे मोर..आज जो पाया है वो हमारा हो गया..कल जो चाहूं वो भी हमारा हो जाए...तरक्की के सारे पायदान चढ़ जाएं...दौलत भरमार हो जाए..लेकिन इसका अंत नहीं..हम उस बच्चे की तरह हैं जो डिमांड करता है और जब उसे नहीं मिलता है तो रोने लगता है...चिढ़ में उल्टा-पुल्टा करने लगता है जो मिल जाता है तो चेहरे पर मुस्कान खिल जाती है। जब स्कूल जाने लगता है तो बच्चा भी चाहता है कि उसकी हर जगह तारीफ हो..नहीं होती तो गुस्सा आता है..माता-पिता के मापदंड पर खरा नहीं उतरता तो माता-पिता चिढ़ जाते हैं..गुस्सा भड़कने लगता है। जब नौकरी की बारी आती है तो एक नौकरी..दूसरी नौकरी..आईआईटी आईआईएम से भी तसल्ली नहीं तो आईएएस..इसके बाद भी चैन नहीं..डीएम बने तो चीफ सेकेट्र्ररी तक की दौड़...विधायक बने तो मंत्री..मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक...बेटा हो गया तो बेटी चाहिए..बेटी हो गई तो बेटा चाहिए...एमआईजी फ्लैट हो गया तो एमआईजी..एचआईजी..बंगला तो कहने ही क्या...बाइक के बाद छोटी कार..फिर और बड़ी कार...हर दिन अलग-अलग ख्वाहिशें...जो खा लिया..उसमें मजा नहीं..जो पी लिया..उसके आगे क्या...जो पहन लिया..उससे बढ़कर क्या...जो कदम बढ़ा लिया..उसके आगे एक और कदम की ख्वाहिश..इस दौड़ का अंत नहीं..बस दौड़ते रहो..हमें खुद नहीं मालूम कि हमें कहां तक जाना है..कब रुकना है..जब तक जीवन है..चलते जाओ..जो पा लिया..उसे छोड़ते जाओ..जो नहीं मिला है..उसे पकड़ने की होड़ में लगे रहो...एक सपना पूरा हुआ तो दूसरा सपना तैयार...आगे निकलने की अंधी होड़ में जीवन का क्या उद्देश्य है किसी को नहीं मालूम...जरा सोचकर देखो..कि हमारी मंजिल क्या है.....बाकी फिर.....