Thursday, February 26, 2015

विचार बोल्ड..मन ब्यूटीफुल

अरुंधति भट्टाचार्य..एसबीआई प्रमुख...चंदा कोचर सीईओ..आईसीआईसीआई बैंक...शिखा शर्मा..सीईओ एंड एमडी एक्सिस बैंक..किरण मजूमदार...संस्थापक बायोकान...अखिला श्रीनिवासन...एमडी श्रीराम लाइफ इंश्योरेंस...उषा सांगवान..एमडी भारतीय जीवन बीमा निगम..मेरीकाम..सायना नेहवाल...पीटी ऊषा...इन्हें कहते हैं बोल्ड एंड ब्यूटीफुल...ऐसी और भी महिलाएं हैं जो कर्म से बोल्ड हैं और ब्यूटीफुल हैं...


शरीर की चमक-दमक से कोई सुंदर नहीं होता...शरीर को फोल्ड करने से कोई बोल्ड नहीं होता...अपने कर्म से..अपनी मेहनत से...अपने विचार से ..अपनी सोच से..अपने संघर्ष से..अपने व्यवहार से महिलाएं बनती हैं बोल्ड एंड ब्यूटीफुल....तन से बड़ा है मन...मन सुंदर हैं..दिमाग बोल्ड है..विचार बोल्ड हैं..तब कहीं जाकर आप कहलाते हैं बोल्ड एंड ब्यूटीफुल...गोरी चमड़ी..अंग प्रदर्शन..भड़कीली ड्रेस...भड़काऊ अदाओं से आप कुछ वक्त के लिए फायदा उठा लें...कुछ लोगों में अपनी पहचान बना लें..कुछ कमा लें..लेकिन न तो जीवन को बेहतर बना सकते हैं..न समाज में अपना स्थान बना सकते हैं..

महिला हो या पुरुष..शार्टकट से जब चलता है तो मात खा जाता है..कुछ पल के लिए लगता है कि हम रेस में आगे हैं..लेकिन जब पैर फिसलता है तो धूल में मिल जाते हैं..जब आप अपने शरीर को बेचने की कोशिश करते हैं तो उसी पर आश्रित हो जाते हैं और उसकी भी एक सीमा होती है चाहे शारीरिक हो मानसिक..ज्यादा जोर डालेंगे तो वो भी बोल जाएगा। वो महिलाएं अच्छी हैं जो मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालती हैं..वो महिलाएं अच्छी हैं जो एक-एक पैसा के लिए दिन रात एक करती है लेकिन ईमानदारी से..जितने भी लोग उन्हें जानते हैं..दिल से सम्मान करते हैं।

जो महिलाएं तन के बल पर आगे बढ़ने की होड़ में रहती हैं..वो जब गिरती हैं तो कोई साथ देने वाला नहीं होता...वो भले ही समझें कि हम विख्यात हैं लेकिन होती हैं कुख्यात...जो उन्हें सोशल मीडिया पर लाईक भी करते हैं तो किस भाव से.. आप समझ सकते हैं...लोग कैसे-कैसे उनकी व्याख्या करते हैं...क्या सोच रखते हैं...उभारों को उभार कर खुद को भले ही सातवें आसमान पर समझें लेकिन हकीकत उन्हें भी मालूम है कि उनके पास इसके अलावा कुछ नहीं...भीतर से उनका भी यही दर्द है कि दिमाग को उन्होंने ताक पर रख दिया है और कर्म को भुला दिया है। संघर्ष उनकी डिक्शनरी में नहीं...सबसे शार्टकट रास्ता अपनाने के चक्कर में जीवन का अर्थ खो दिया है...जीवन के सच से मुंह मोड़ लिया है..कुछ मित्र वाक्या सुना रहे थे कि दिल्ली में किस तरह आधी रात के बाद उन्होंने कैसे-कैसे मंजर देखे..ऐसी-ऐसी युवतियां..ऐसे-ऐसे कारनामे..देखने वाले दंग रह जाएं..सुनने वाले सिहर जाएं...लेकिन दुस्साहस देखिए उनका..किसी की कोई परवाह नहीं..ये बात अलग है कि जब आप गलत रास्ते पर सरपट भागते हैं तो चोट लगनी स्वाभाविक है..वो भी ऐसी कि सारा नशा काफूर हो जाए..और हाथ मलते रहे जाएं..वक्त बीतने के बाद अफसोस ही कर पाएंगे...बाकी फिर....