बिहार की राजनीति में यही हो रहा है..मांझी अपना कंधा लेकर घूम रहे हैं...पहले नीतीश कंधे पर बंदूक रखकर गोली चला रहे थे..अब मांझी ने कंधा बीजेपी को दे दिया है..इसलिए मांझी के कंधे से बीजेपी की बंदूक से गोली निकल रही है। ये कोई पहली घटना नहीं...राजनीति में ही नहीं हमारे जीवन में अक्सर ऐसा होता है। हम या तो किसी को कंधा इस्तेमाल करने देते हैं या फिर हम किसी का कंधा इस्तेमाल करते हैं।
कोई भी विवाद हो..आंदोलन हो..धरना हो..प्रदर्शन हो...साजिश हो या षडयंत्र हो...प्लानिंग कोई करता है..उकसाता कोई है..करवाता कोई है..इस्तेमाल हम हो जाते हैं। छोटे-छोटे उदाहरण हम अक्सर रोज अपने जीवन में देखते हैं। जैसे...अक्सर दूसरे हमें एहसास कराते हैं कि आपका इस्तेमाल हो रहा है...आपसे काम निकाला जा रहा है..फायदा दूसरा उठा रहा है..आप मेहनत कर रहे हो..पिसे चले जा रहो हो..मलाई दूसरा ले जा रहा है और जैसे ही आपके दिलो-दिमाग में दूसरे की बात जम जाती है..आप रियेक्ट कर देते हो। यदि मिशन कामयाब होता है तो पीछे वाला शख्स क्रेडिट ले लेता है और जब आपकी बात बिगड़ जाती है तो उसकी बात बन जाती है...और फिर दोषी आपको ही ठहराता है कि मैंने ऐसे थोड़े ही कहा था..आप कुछ ज्यादा कर गए..आप ये गलती कर गए..इसलिए आप नुकसान उठा गए। जब आप फंस जाते हो..तो पीछे वाला शख्स नदारद हो जाता है।
दरअसल एक-दूसरे को इस्तेमाल करने की कोशिश हम दफ्तर में...पड़ोस में..अपने सर्किल में...अक्सर करते नजर आते हैं वो इसलिए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे....क्या गलत है..क्या सही है..ये अगर हम खुद तय करें तो सोच-समझ कर फैसला लेंगे लेकिन हर बात के लिए किसी और की सलाह से चलेंगे..बहकाबे में रहेंगे तो नुकसान ही उठाएंगे। जब एक ग्रुप बात करता है तो हम पीड़ित-शोषित में हवा भरते हैं और चाहते हैं कि वो फट जाए..और अपना काम बन जाए। खुद आगे आएंगे तो एक्सपोज हो जाएंगे। ...जहां तक माझी का सवाल है तो उन्हें एहसास हो गया कि नीतीश उनके कंधे का इस्तेमाल कर रहे हैं और जब बंदूक चल जाएगी तो यूज एंड थ्रो हो जाएंगे इसलिए उन्होंने अपना कंधा खिसका लिया। बीजेपी को कंधा इसलिए दे दिया है कि नीतीश को नुकसान पहुंचाए...तो आप समझ लीजिए कि आप यदि किसी का इस्तेमाल कर रहे हैं और वो एहसास होने पर पलट गया तो आपकी बंदूक की गोली आपको ही लगनी है..इसलिए न तो आप इस्तेमाल हों और न ही इस्तेमाल करे तो बेहतर होगा...बाकी फिर....
कोई भी विवाद हो..आंदोलन हो..धरना हो..प्रदर्शन हो...साजिश हो या षडयंत्र हो...प्लानिंग कोई करता है..उकसाता कोई है..करवाता कोई है..इस्तेमाल हम हो जाते हैं। छोटे-छोटे उदाहरण हम अक्सर रोज अपने जीवन में देखते हैं। जैसे...अक्सर दूसरे हमें एहसास कराते हैं कि आपका इस्तेमाल हो रहा है...आपसे काम निकाला जा रहा है..फायदा दूसरा उठा रहा है..आप मेहनत कर रहे हो..पिसे चले जा रहो हो..मलाई दूसरा ले जा रहा है और जैसे ही आपके दिलो-दिमाग में दूसरे की बात जम जाती है..आप रियेक्ट कर देते हो। यदि मिशन कामयाब होता है तो पीछे वाला शख्स क्रेडिट ले लेता है और जब आपकी बात बिगड़ जाती है तो उसकी बात बन जाती है...और फिर दोषी आपको ही ठहराता है कि मैंने ऐसे थोड़े ही कहा था..आप कुछ ज्यादा कर गए..आप ये गलती कर गए..इसलिए आप नुकसान उठा गए। जब आप फंस जाते हो..तो पीछे वाला शख्स नदारद हो जाता है।
दरअसल एक-दूसरे को इस्तेमाल करने की कोशिश हम दफ्तर में...पड़ोस में..अपने सर्किल में...अक्सर करते नजर आते हैं वो इसलिए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे....क्या गलत है..क्या सही है..ये अगर हम खुद तय करें तो सोच-समझ कर फैसला लेंगे लेकिन हर बात के लिए किसी और की सलाह से चलेंगे..बहकाबे में रहेंगे तो नुकसान ही उठाएंगे। जब एक ग्रुप बात करता है तो हम पीड़ित-शोषित में हवा भरते हैं और चाहते हैं कि वो फट जाए..और अपना काम बन जाए। खुद आगे आएंगे तो एक्सपोज हो जाएंगे। ...जहां तक माझी का सवाल है तो उन्हें एहसास हो गया कि नीतीश उनके कंधे का इस्तेमाल कर रहे हैं और जब बंदूक चल जाएगी तो यूज एंड थ्रो हो जाएंगे इसलिए उन्होंने अपना कंधा खिसका लिया। बीजेपी को कंधा इसलिए दे दिया है कि नीतीश को नुकसान पहुंचाए...तो आप समझ लीजिए कि आप यदि किसी का इस्तेमाल कर रहे हैं और वो एहसास होने पर पलट गया तो आपकी बंदूक की गोली आपको ही लगनी है..इसलिए न तो आप इस्तेमाल हों और न ही इस्तेमाल करे तो बेहतर होगा...बाकी फिर....