Saturday, February 7, 2015

गुस्सा क्यों आता है हमें?

हमने कभी सोचा है कि हमें गुस्सा क्यों आता है..कब आता है...कितना आता है...जरा सोच कर देखिए...कोई गलती करता है..आपके मनमाफिक काम नहीं होता है...जो आपको चाहिए..वो नहीं मिलता है तो हम गुस्से से भड़क जाते हैं..कभी-कभी आप दूसरे को अपने कंट्रोल में करने के लिए गुस्सा करते हैं...बार-बार आपके समझाने से नहीं मान रहा है तो गुस्सा आता है..गुस्से में एक डर भी छिपा होता है..एक दबाव भी छिपा होता है..एक मजबूरी भी छिपी होती है...गुस्सा कितना आता है..ये सबसे अहम है..क्या हम अक्सर झुंझलाते हैं...क्या छोटी-छोटी सी बात पर भड़क जाते हैं..तब जरूर हमें चिंतन करना चाहिए...आखिर ऐसा क्यों हो रहा है...कहां हो रहा है...कब हो रहा है....आपके जो विचार हैं..आपकी जो सोच है....जब दूसरा उसे चुनौती देता है...तो आपसे रहा नहीं जाता....हमें ये भी देखना चाहिए कि उसके साथ भी यही दिक्कत हो सकती है...जब दो गुस्सैल मिलते हैं तो बवंडर उठना स्वाभाविक है...जब एक धैर्य रखता है..सयंम  नहीं खोता..तो सामने वाला अपना गुस्सा निकाल कर शांत हो जाता है...लेकिन अगर क्रिया की प्रतिक्रिया बराबर होती है या उससे ज्यादा होती है तो मामला बिगड़ जाता है...और तनाव पैदा होता है जो कई दिनों..कई महीनों या फिर जिंदगी भर चल सकता है। आपको लगता है कि आप सही है..सामने वाले को लगता है कि वो सही है....इसलिए तकरार स्वाभावक है। जो शख्स अपनी झुंझलाहट..अपनी कमी..अपनी लाचारी..अपनी मजबूरी को दर्शाता नहीं..वो गुस्से पर काबू कर लेता है। गुस्से का रिजल्ट निगेटिव ही मिलता है। कोई भी हो..चाहे आपके अधीन हो..आपका दोस्त हो..आपसे सीनियर हो...गुस्सा मन से आसानी से निकलता नहीं..जो आपने उसे दिया है..वो उसे लौटाने की फिराक में जरूर रहेगा..जैसे आपने उसे भलाई दी है तो वो जरूर चाहेगा कि उससे ज्यादा भलाई आपको लौटाए..यही हाल गुस्से का है...जब मौका आएगा आपको रिटर्न मिलेगा..हो सकता है कि आपको पता भी नहीं चले कि ये गुस्सा आपको किसने वापस दिया है लेकिन जीवन में नुकसान के रूप में आपको जरूर मिलेगा। जो बिलकुल गुस्सा नहीं कर रहा है..उसे आप कमजोर मान सकते हैं लेकिन वो निश्चित तौर से आपसे ज्यादा आनंद में है क्योंकि वो न तो अपनी वाणी खो रहा है..न अपनी क्षमता को नष्ट कर रहा है और न ही तनाव ले रहा है...आप भले ही मन ही मन घुलते रहो..मानसिक तौर पर या शारीरिक तौर पर...ये आपको तय करना है कि गुस्सा करना है या नहीं..और करना है तो क्यों करना है..कब करना है...कितना करना है...बाकी फिर..........