हमारे जमाने में न मोबाइल थे..न फोन..न ही टीवी चैनल..न ही मल्टीप्लेक्स...न सोशल मीडिया...न हम जानते थे कि वेलेंटाइन डे क्या है..प्रपोज कैसे करते हैं..जहां तक मुझे याद है दसवीं और बारहवीं तक लड़कियों के सामने जाने में झेंप जाते थे..बात करने की बात तो दूर...यूं कहो कि जब ग्रेज्यूशेन में पहुंचे तो को एड शुरू हुई..और लगा कि अब हम बड़े हो गए हैं।
पिछले दस साल से पंद्रह साल में जमाना इतनी तेजी से बदला..टीवी चैनल आए..फोन के बाद मोबाइल आए..फिल्मों की पहुंच पेन ड्राइव तक हो गई। फेसबुक..टविटर..यूटयूब ने बच्चों की लाइफ ही बदल दी। बड़ों को अपने कामकाज से फुर्सत नहीं...परिवार के झमेलों का तनाव..तेज भागती जिंदगी में वक्त नहीं..आफिस को देखें..कामकाज का प्रेशर झेलें..कुछ घंटों की नींद लेना मुश्किल..ऐसे में बच्चों को देखने की हमें फुर्सत कहां...
जब हमें फुर्सत नहीं तो बच्चों ने भी तेजी से बढ़ना शुरू कर दिया और वक्त से पहले ही बड़े नहीं हो रहे..पांचवीं कक्षा के बाद वो फेसबुक पर आने लगे हैं..यूटयूब देखने लगे हैं...और दुनिया पित्तल दी..जिंदगी लुल्ल हो गई...मुन्नी बदनाम हुई..जैसे गाने गुनगुनाने लगे हैं..उन पर थिरकने लगे हैं। यही नहीं हम उन्हें कुछ दे नहीं पा रहे ऐसे में वो जो भी कर रहे हैं..उस पर हम उनकी हौसला अफजाई करने लगे हैं..छोटा सा बच्चा जब कहता है कि मेरी जिंदगी लुल्ल हो गई है या फिर मुन्नी बदनाम हो गई तो हम ठहाके लगाते हैं..और बोलते हैं शाबाश बच्चे..वेल डन..कीप इट अप..लगे रहो....
बच्चे अब खुद तय करने लगे हैं कि क्या अच्छा है..क्या बुरा..उन्हें क्या करना है..और यदि कोई रोकता है टोकता है तो मां-बाप को वो सुनाते भी हैं..बेकवर्ड भी बोलते हैं..और समझाते भी हैं कि स्मार्ट फोन में कौन सी सेटिंग कैसे करनी हैं..क्या बटना दबाना है कहां क्लिक करना है कहां नहीं....लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि तेजी के जमाने में हमारे बच्चे इतने बड़े क्यों हो गए हैं..इतना मेटेरियल उन्हें कैसे मिल रहा है जो हम ग्रेज्यूशेन तक नहीं जुटा पाए..या सीख पाए....क्योंकि उस वक्त तक मोबाइल क्रांति नहीं हुई थी। इसमें वो सारे आप्शन हैं जो बड़े-बड़े एक्सपर्ट तक न समझ पाएं..लेकिन ज्यादातर बच्चों तक उनकी पहुंच हो जाती है...क्या नया फीचर है..क्या नया तरीका है...आप जो कह रहे हैं..जो लिख रहे हैं..वो दो लोगों के अलावा तीसरा नहीं पढ़ सकता। उसे भी कुछ वक्त के बाद डिलीट किया जा सकता है। चलते-चलते इतनी हरकतें होने लगी हैं..या बच्चे कर रहे हैं कि आप अंदाजा नहीं लगा सकते..आप खुद को तीसमारखां भले ही बोलो..लेकिन बच्चे आपसे आगे बढ़ चुके हैं। इतना जरूर कहूंगा कि उन्हें रोको मत..टोको मत..लेकिन नजर जरूर रखो..क्योंकि आज के जमाने में कौन-किस के संपर्क में हैं..किसकी किस पर नजर है...कौन क्या गुल खिला रहा है..न तो आपके बच्चे को मालूम है और न ही आपको....कहीं ऐसा न हो..बच्चा जब तक बढ़ा हो..उसके पहले ही उसका बुढ़ापा आ जाए..और खुद को दोषी ठहराएं...डरे नहीं..पर सतर्क जरूर रहें..मर्यादा के साथ रहें...इतना समझ लीजिए कि जितने मन में आप चालाक हैं..बच्चा आपसे ज्यादा चालाक हो चुका है...बाकी फिर......
पिछले दस साल से पंद्रह साल में जमाना इतनी तेजी से बदला..टीवी चैनल आए..फोन के बाद मोबाइल आए..फिल्मों की पहुंच पेन ड्राइव तक हो गई। फेसबुक..टविटर..यूटयूब ने बच्चों की लाइफ ही बदल दी। बड़ों को अपने कामकाज से फुर्सत नहीं...परिवार के झमेलों का तनाव..तेज भागती जिंदगी में वक्त नहीं..आफिस को देखें..कामकाज का प्रेशर झेलें..कुछ घंटों की नींद लेना मुश्किल..ऐसे में बच्चों को देखने की हमें फुर्सत कहां...
जब हमें फुर्सत नहीं तो बच्चों ने भी तेजी से बढ़ना शुरू कर दिया और वक्त से पहले ही बड़े नहीं हो रहे..पांचवीं कक्षा के बाद वो फेसबुक पर आने लगे हैं..यूटयूब देखने लगे हैं...और दुनिया पित्तल दी..जिंदगी लुल्ल हो गई...मुन्नी बदनाम हुई..जैसे गाने गुनगुनाने लगे हैं..उन पर थिरकने लगे हैं। यही नहीं हम उन्हें कुछ दे नहीं पा रहे ऐसे में वो जो भी कर रहे हैं..उस पर हम उनकी हौसला अफजाई करने लगे हैं..छोटा सा बच्चा जब कहता है कि मेरी जिंदगी लुल्ल हो गई है या फिर मुन्नी बदनाम हो गई तो हम ठहाके लगाते हैं..और बोलते हैं शाबाश बच्चे..वेल डन..कीप इट अप..लगे रहो....
बच्चे अब खुद तय करने लगे हैं कि क्या अच्छा है..क्या बुरा..उन्हें क्या करना है..और यदि कोई रोकता है टोकता है तो मां-बाप को वो सुनाते भी हैं..बेकवर्ड भी बोलते हैं..और समझाते भी हैं कि स्मार्ट फोन में कौन सी सेटिंग कैसे करनी हैं..क्या बटना दबाना है कहां क्लिक करना है कहां नहीं....लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि तेजी के जमाने में हमारे बच्चे इतने बड़े क्यों हो गए हैं..इतना मेटेरियल उन्हें कैसे मिल रहा है जो हम ग्रेज्यूशेन तक नहीं जुटा पाए..या सीख पाए....क्योंकि उस वक्त तक मोबाइल क्रांति नहीं हुई थी। इसमें वो सारे आप्शन हैं जो बड़े-बड़े एक्सपर्ट तक न समझ पाएं..लेकिन ज्यादातर बच्चों तक उनकी पहुंच हो जाती है...क्या नया फीचर है..क्या नया तरीका है...आप जो कह रहे हैं..जो लिख रहे हैं..वो दो लोगों के अलावा तीसरा नहीं पढ़ सकता। उसे भी कुछ वक्त के बाद डिलीट किया जा सकता है। चलते-चलते इतनी हरकतें होने लगी हैं..या बच्चे कर रहे हैं कि आप अंदाजा नहीं लगा सकते..आप खुद को तीसमारखां भले ही बोलो..लेकिन बच्चे आपसे आगे बढ़ चुके हैं। इतना जरूर कहूंगा कि उन्हें रोको मत..टोको मत..लेकिन नजर जरूर रखो..क्योंकि आज के जमाने में कौन-किस के संपर्क में हैं..किसकी किस पर नजर है...कौन क्या गुल खिला रहा है..न तो आपके बच्चे को मालूम है और न ही आपको....कहीं ऐसा न हो..बच्चा जब तक बढ़ा हो..उसके पहले ही उसका बुढ़ापा आ जाए..और खुद को दोषी ठहराएं...डरे नहीं..पर सतर्क जरूर रहें..मर्यादा के साथ रहें...इतना समझ लीजिए कि जितने मन में आप चालाक हैं..बच्चा आपसे ज्यादा चालाक हो चुका है...बाकी फिर......