पहले बिग बी बोले कि जब मैं क्रिकेट मैच देखता हूं तो भारत हार जाता है...अब सचिन तेंदुलकर बोले कि हम भी टोटके करते थे..सौरभ गांगुली ने भी हां में हां मिलाई। कभी सेंचुरी बनने के पहले एक जगह से नहीं उठते थे..कभी पैड नहीं बदलते थे..कभी बैट नहीं बदलते थे। यहां तक कि सौरभ गांगुली ने कहा कि सेंचुरी बनने के लिए दो घंटे तक बालकनी में टांग ऊपर रखकर बैठे रहे..बाद में खड़े होने में काफी दिक्कत हुई। यानि भारत कहीं से कहीं पहुंच जाए..लेकिन टोने-टोटकों से हम बाज नहीं आएंगे।
बड़ा से बड़ा आदमी अंधविश्वासी है। कभी कोई अंगूठी पहनता है तो कभी माला डालता है। कभी किसी रंग को लेकर शंका हो जाती है। कभी घर में रखी ड्रेसिंग टेबिल को खिसकाते हैं..कभी मिरर से जीवन खराब होने का डर लगता है। कभी भगवान को एक दिशा से दूसरी दिशा में खिसकाते हैं। कभी बिल्ली रास्ता काट जाए तो नुकसान होने का भय सताता है। हम अपने दिमाग और दिल में तमाम आशंकाएं लेकर चलते हैं...और अगर वो घटनाएं सच हो जाती है तो हम किसी न किसी वस्तु से उसे जोड़ लेते हैं। कभी कहते हैं कि उसका सुबह-सुबह चेहरा देख लिया..दिन खराब हो गया। ये हमें तय करना हैं कि हम अंध विश्वास किस चीज से जोड़ें और फिर उसका सत्यानाश कर दें। अपनी गलती मानने का सवाल ही नहीं..अपनी कमजोरी का सवाल ही नहीं..किसी का रिजल्ट खराब हो गया। कोई इंटरव्यू में सिलेेक्ट नहीं हो पाया। हम पहले से तय कर लेते हैं कि हमें दोषी किसे ठहराना हैं। जब कुछ न मिले तो भगवान बेचारा है ही...ईश्वर नहीं चाहता है..या फिर किस्मत को कोसने का विकल्प है। नहीं तो वक्त खराब है..कहकर काम चला लेते हैं।
अंध विश्वास का मतलब ही है अंधा विश्वास है..जिसकी आंखें नहीं..जिसमें रोशनी नहीं..लेकिन उस पर जब विश्वास करेंगे तो कहां तक जाएगा..क्योंकि अंधेरे का अंत नहीं। जितना आप उसमें धंसते जाएंगे..अपनी कमजोरी को बढ़ाते जाएंगे। किसी भी काम के अच्छे और बुरे नतीजे के कारणों को हम पहले से तैयार रखते हैं और जैसा नतीजा आता है..उसे तत्काल उससे जोड़ देते हैं। खराब नतीजा है तो खुद को छोड़कर जिस चाह पर गाज गिराओ आपकी मर्जी....बाकी फिर......
बड़ा से बड़ा आदमी अंधविश्वासी है। कभी कोई अंगूठी पहनता है तो कभी माला डालता है। कभी किसी रंग को लेकर शंका हो जाती है। कभी घर में रखी ड्रेसिंग टेबिल को खिसकाते हैं..कभी मिरर से जीवन खराब होने का डर लगता है। कभी भगवान को एक दिशा से दूसरी दिशा में खिसकाते हैं। कभी बिल्ली रास्ता काट जाए तो नुकसान होने का भय सताता है। हम अपने दिमाग और दिल में तमाम आशंकाएं लेकर चलते हैं...और अगर वो घटनाएं सच हो जाती है तो हम किसी न किसी वस्तु से उसे जोड़ लेते हैं। कभी कहते हैं कि उसका सुबह-सुबह चेहरा देख लिया..दिन खराब हो गया। ये हमें तय करना हैं कि हम अंध विश्वास किस चीज से जोड़ें और फिर उसका सत्यानाश कर दें। अपनी गलती मानने का सवाल ही नहीं..अपनी कमजोरी का सवाल ही नहीं..किसी का रिजल्ट खराब हो गया। कोई इंटरव्यू में सिलेेक्ट नहीं हो पाया। हम पहले से तय कर लेते हैं कि हमें दोषी किसे ठहराना हैं। जब कुछ न मिले तो भगवान बेचारा है ही...ईश्वर नहीं चाहता है..या फिर किस्मत को कोसने का विकल्प है। नहीं तो वक्त खराब है..कहकर काम चला लेते हैं।
अंध विश्वास का मतलब ही है अंधा विश्वास है..जिसकी आंखें नहीं..जिसमें रोशनी नहीं..लेकिन उस पर जब विश्वास करेंगे तो कहां तक जाएगा..क्योंकि अंधेरे का अंत नहीं। जितना आप उसमें धंसते जाएंगे..अपनी कमजोरी को बढ़ाते जाएंगे। किसी भी काम के अच्छे और बुरे नतीजे के कारणों को हम पहले से तैयार रखते हैं और जैसा नतीजा आता है..उसे तत्काल उससे जोड़ देते हैं। खराब नतीजा है तो खुद को छोड़कर जिस चाह पर गाज गिराओ आपकी मर्जी....बाकी फिर......