ईमानदारी से सोचना और फिर बताना..पूजा क्यों करते हो? ईश्वर को प्रसन्न क्यों करना चाहते हो? प्रसाद क्यों चढ़ाते हो? भगवान के चरणों में नोट क्यों डालते हैं..ईश्वर कब याद आते हैं..ईश्वर को ज्यादा चढ़ावा कब चढ़ाते हो..ईश्वर से क्या-क्या मन्नतें मांगते हो..क्या-क्या डिमांड रखते हो भगवान से...क्या-क्या लालच देते हो भगवान को...अलग-अलग भगवान की पूजा क्यों करते हो..एक भगवान की क्यों नहीं करते...सारे भगवान की भी नहीं करते..कुछ को रोज याद करते हो..बाकी को क्यों छोड़ देते हो..किसी को हफ्ते के एक दिन करते हो...किसी को साल में एक बार ही करते हो...किसी की दिन में दो बार सुध लेते हो...आखिरी भगवान की शरण में क्यों जाते हो..जो किसी के आगे नहीं झुकता वो भगवान की शरण में झुकता है इसीलिए कि वो सबसे शक्तिशाली है..उसे सब मालूम है..वो ही आपका भला कर सकता है...वो ही आपके दुख दूर कर सकता है..वो आपको अपने से थोड़ी कम तक ऊंचाई दे सकता है...जो ऊंचाई आप जिंदगी भर के बाद भी नहीं छू सकते..भगवान चाहे तो एक दिन में कमाल कर सकता है...किसी की भी लाटरी खुल सकती है..किसी को निपटाना है तो भगवान के सहारे उसे आप बर्बाद भी कर सकते हैं...ये बात भी है कि जब भगवान आपकी मांग पूरी नहीं करते तो आप उसे भी नहीं छोड़ते हैं...ज्यादा नहीं तो थोड़ा-बहुत जरूर कोस लेते हैं कि भगवान ने मदद नहीं की..उलाहना देते तो बहुत लोग नजर आते हैं..आप को भगवान से सब कुछ चाहिए..सब कुछ अच्छा ही अच्छा..बुरा कुछ भी नहीं...भगवान के सामने भी संकट है कि वो किसकी मानें..किसकी न मानें...आपकी एक डिमांड पूरी होती नहीं...दूसरी शुरू हो जाती है...डिमांड अनगिनत हैं. वो भी ऐसी-ऐसी कि पूरी करना आसान नहीं...आप भी कहेंगे कि वो तो भगवान हैं..उनके लिए तो छोटी डिमांड हो या बड़ी डिमांड सब बराबर हैं..और फिर जब किसी से मांगना ही है तो बड़ा ही मांगो..जब हम घुटने टेक ही रहे हैं तो मेहनत तो पूरी ही हो रही है फिर शर्माना क्या...और कौन-कौन सा जोर से मांग रहे हैं. ये तो अंदर की बात है..हमारे और भगवान के बीच ही रहेगी। तीसरे को तो पता ही नहीं चलना है...और डिमांड पूरी भी हो जाएगी तो फिर ये थोड़े ही बताना है कि भगवान ने की है..कह देंगे ये तो हमारी मेहनत है...भगवान के सामने ये भी संकट है कि वो किस-किस को दें..आप कहेंगे कि उनके पास तो कोई कमी नहीं..वो तो जितने चाहे नोट पैदा कर दें..सही बात है लेकिन सबको नोट दे देंगे तो कम ज्यादा का फर्क कैसे नजर आएगा..आप जैसे ही नोट सबके पास होंगे तो एक करोड़ की एक चाय भी न मिलेगी..क्योंकि चाय वाले के पास भी करोड़ों ही होंगे...सबके पास एक जैसे बंगले हो जाएंगे तो फिर छोटे-बड़े बंगले में क्या फर्क रह जाएगा। भगवान अगर एक को देता है तो वो दूसरे के पास से देता है.अगर आपकी कमाई हो रही है तो दूसरे के पास से कम हो रहा है..जितना आपको मिलेगा..दूसरे के पास से मिलेगा...दो प्रतियोगी फाइनल में लड़ रहे हैं..भगवान एक को जिताएगा तो दूसरे को हराएगा भी...भगवान का दोहन पूरी दुनिया करनी चाहती है...भगवान किस-किस को दे..किससे कम करे..किसको ज्यादा करे...ये दुनिया उसी ने बनाई है लेकिन उसने नियम भी तय किए हैं...उस नियम में भगवान भी बंधे हैं..नहीं तो उनकी ही बनाई दुनिया नष्ट हो जाएगी...इसलिए संकट आपके सामने भी है..भगवान के सामने भी है। आप अपने बारे में तो हमेशा से सोच रहे हैं..कभी भगवान के लिए भी सोचिए....बाकी फिर..........