Sunday, February 22, 2015

मन की बात

प्रधानमंत्री जी ने बच्चों से परीक्षा को लेकर मन की बात की....हमारे जीवन की परीक्षा में बच्चों की परीक्षा का पूरा दारोमदार है। जितनी बच्चों की परीक्षा नहीं..उससे ज्यादा माता-पिता अपनी परीक्षा मानते हैं। किसी से भी बात करो..इतनी मेहनत किस लिए..तो जवाब मिलता है बच्चों के लिए...बच्चे आगे चलकर नाम कमाएं..पद हासिल करें...पैसा कमाएं..सबकी यही तमन्ना है। बच्चों के पढ़ाने के लिए चाहे जितना खर्च हो जाए..कितनी ही मेहनत करना पड़े..लोन लेना पड़े..लेकिन बच्चों के लिए कोई कमी न रह जाए...माता-पिता चौबीस घंटे इसी चिंता में दुबले होकर जीवन काट देते हैं। हम जो न बन पाए...हमारे बच्चे बन जाएं..हम न केवल उन्हें पढ़ाते-लिखाते हैं...शादी करते हैं..उनके बच्चों को भी पालने या मदद की आस रखते हैं बल्कि इतना करना चाहते हैं कि वो जीवन में किसी परेशानी का सामना न करें..इसके लिए जिंदगी भर जमा-पूंजी इकट्ठी करते रहते हैं ताकि जीवन के आखिरी पड़ाव में उन्हें इतना धन संपत्ति सौंप कर जाएं कि उन्हें कोई कष्ट न हो...आज भी हमारे पिता चिंता करते हैं कि बेटा तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं...75 साल से ज्यादा उम्र के बावजूद उन्हें दिन-रात और कोई काम नहीं...बस बेटे-बेटियों की चिंता..नाती-पोतों की चिंता और उनके सुख-दुख का ख्याल।


ये जीवन की नियति है या फिर परंपरा कि हमारे पिता हमारी चिंता करते हैं और हम हमने बच्चों की...तो आगे चलकर भी यही होना है...जिनके बच्चे बड़े हो चुके हैं..शादी-शुदा है..बच्चे वाले हैं तो फिर वो आपकी कितनी चिंता कर रहे हैं..उनका धर्म है अपने बच्चों की चिंता....दरअसल हम आगे की पीढ़ी की चिंता करते हैं पिछली पीढ़ी की चिंता उसके पहले की पीढ़ी की है। यानि आगे की सोचना है पीछे को भुला देना है..कहते भी हैं कि बीती ताहि बिसार दे..आगे की सुध ले...हमने जो कमाया..उसे अपने बच्चों के लिए छोड़ा..हमारे पिता ने जो कमाया..वो हमारे लिए छोड़ा....जब एक परिवार वक्त बीतने के बाद अलग-अलग युनिट में तब्दील होता है तो
नया मुखिया अपने युनिट की चिंता करता है। ये जीवन का कड़वा सच है कि जिसके लिए आप जिंदगी भर रात-दिन एक कर रहे हैं उसे आपका नहीं..अपने बच्चों का दायित्व निभाना है। ऐसे तमाम माता-पिता मैंने अपनी आंखों से देखे हैं जिन्हें उनके करोड़पति बच्चे शेल्टर होम में छोड़कर चले गए..वो इसलिए क्योंकि वो उनकी लाइफ स्टाइल में फिट नहीं थे..कई ऐसे पिता हैं जिन्हें उनके ही बच्चों ने घर से निकाल दिया क्योंकि अपने ही पिता की कमाई से बना घर उनकी बपौती बन गया। इससे भी ज्यादा हद तो तब होती है कि जिसने जन्म दिया..उसकी ही जान के दुश्मन बन गए। कई लोग कहते हैं कि मैं तो अपने पिता से बहुत प्यार करता हूं..सम्मान करता हूं...लेकिन मेरी पत्नी नहीं चाहती...उसकी इच्छा का सम्मान करने के लिए मैं उन्हें नहीं रख सकता। ऐसी-ऐसी दलीलें हैं लोगों के पास कि पूछो मत...हम तो दूध के धुले हैं पर हालात ऐसे हैं कि हम अपने माता-पिता का इलाज नहीं करा सकते..हम उन्हें अपने साथ नहीं रख सकते। हमारे पिता माल नहीं छोड़ गए..वरना हम भी ऐश काट रहे होते।

कोई माने या न माने पर..मेरा मानना ये है कि बच्चा चाहे दसवीं या बारहवीं की परीक्षा में कितने ही नंबर लाए.पर जीवन की परीक्षा में फेल न हो..वो चाहे कुछ भी बने...कितना भी कम कमाए..कोई भी ओहदा हासिल करे...हमने  जो संस्कार दिए वो न भूले...हमने उन पर जो दुलार लुटाया..वो हमें वापस भी मिले...उसे हमने जो भी दिया..उस पर ताने न मारे...जीवन में ये कभी न भूले कि हमने उसे जन्म दिया...नहीं तो मैं जरूर अपने जीवन में फेल हो जाऊंगा। बाकी फिर.......