एक बड़ा ही आलसी था..दिन भर कोई काम नहीं..जो मिल गया..खा लिया..दिन भर लेटे रहना...एक दिन उसके पिता ने समझाया कि बेटा..कुछ मजदूरी कर ले..दिनभर में कुछ कमा लेगा..बेटा बोला..इससे क्या होगा पिता जी?...पिता बोला..बेटा उसमें से कुछ हर रोज बचाएगा तो चार-छह महीने में एक फुटपाथ पर चाय-पान की गुमटी खुल जाएगी..फिर दूसरों की मजदूरी नहीं करेगा..खुद अपनी दुकान से कमाएगा..मजदूरी से ज्यादा कमाई होगी जिससे और ज्यादा बचत होगी और एक-दो साल में पक्की दुकान मिल जाएगी...बेटा बोला..पिता जी छोटी दुकान हो या बड़ी दुकान..क्या फर्क पड़ेगा....पिता बोला...बेटा..समझो...बड़ी दुकान में और ज्यादा कमाई होगी....नौकर-चाकर रख लेना..फिर तुम घर पर आराम फरमाओगे...मैनेजर-नौकर दुकान संभालेंगे...तुमें कोई काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी...बेटे का जवाब था...अभी आराम ही तो कर रहा हूं...अगर इतनी मेहनत और इतने सालों के बाद आराम ही करना है तो फिर क्या फायदा....
एक बार दुनिया के छटे हुए आलसियों की प्रतियोगिता हुई...एक बड़े से मैदान में उन आलसियों को रख दिया गया। इसके बाद उनके आलसपन की जांच शुरू हुई...मैदान के बाहर से ऐलान किया गया कि इस मैदान में आग लगाई जाने वाली है जिससे आप सब मर जाओगे...ऐलान होते ही ज्यादातर आलसी भागना शुरू हो गए..तीन आलसी बच गए...इसके बाद हकीकत में आग लगा दी गई...मैदान में आग लगते ही एक और आलसी भाग निकला...जैसे ही आग बाकी आलसियों के पास पहुंची...दूसरा आलसी भागा और बचाव के लिए पास में बने पानी के तालाब में कूद गया। आखिरी आलसी को जब आग पकड़ गई तो आयोजक चिल्लाए...कि
आप जीत गए हो..पास के पानी के तालाब में कूद कर जान बचाओ...नंबर वन आलसी बोला..यदि इतनी ही
मेहनत करनी होती तो आलस क्यों करता..और जलकर खाक हो गया।
जब हमें कोई काम दिया जाता है तो हम तब तक निश्चिंत रहते हैं कि जब तक उसकी मियाद खत्म होने का वक्त नहीं आता...मैने कई साथियों को देखा है कि उन्हें जो टारगेट दिया गया..वो पहले सुस्त चाल चलते हैं और जैसे-जैसे दिन नजदीक आते हैं उनकी चाल तेज हो जाती है...और आखिरी दिन तो गजब की बेचैनी..गजब की मेहनत दिखाई देती है। अगर हम पहले दिन से ही तेज चलते हैं...एक लय में चलते हैं तो आखिरी दिन से पहले ही काम कर लेते हैं बल्कि टारगेट से ज्यादा हासिल करते हैं। कोशिश हमेशा कामायाब होती है...आज केजरीवाल के कसीदे पढ़े जा रहे हैं...पिछले चुनाव के बाद उन पर पत्थर फेंके जा रहे थे..लोग अपने घरों का दरवाजा बंद कर रहे थे...दरअसल जहां आप हिम्मत हार गए...जहां आप थम गए..जहां आप आलसी हो गए...तो जो आपके पास है...वो भी नहीं बचेगा...कभी रूके नहीं..कभी थके नहीं....कभी डरे नहीं..तो कोई भी फील्ड हो..कामयाबी आपके कदम चूमेगी...हो सकता है पहली बार असफल हो..लेकिन उस असफलता से आपको सीख मिलेगी और गलतियों को आप अपने जीवन से दूर फेंकते चले जाओगे...बाकी फिर.......
एक बार दुनिया के छटे हुए आलसियों की प्रतियोगिता हुई...एक बड़े से मैदान में उन आलसियों को रख दिया गया। इसके बाद उनके आलसपन की जांच शुरू हुई...मैदान के बाहर से ऐलान किया गया कि इस मैदान में आग लगाई जाने वाली है जिससे आप सब मर जाओगे...ऐलान होते ही ज्यादातर आलसी भागना शुरू हो गए..तीन आलसी बच गए...इसके बाद हकीकत में आग लगा दी गई...मैदान में आग लगते ही एक और आलसी भाग निकला...जैसे ही आग बाकी आलसियों के पास पहुंची...दूसरा आलसी भागा और बचाव के लिए पास में बने पानी के तालाब में कूद गया। आखिरी आलसी को जब आग पकड़ गई तो आयोजक चिल्लाए...कि
आप जीत गए हो..पास के पानी के तालाब में कूद कर जान बचाओ...नंबर वन आलसी बोला..यदि इतनी ही
मेहनत करनी होती तो आलस क्यों करता..और जलकर खाक हो गया।
जब हमें कोई काम दिया जाता है तो हम तब तक निश्चिंत रहते हैं कि जब तक उसकी मियाद खत्म होने का वक्त नहीं आता...मैने कई साथियों को देखा है कि उन्हें जो टारगेट दिया गया..वो पहले सुस्त चाल चलते हैं और जैसे-जैसे दिन नजदीक आते हैं उनकी चाल तेज हो जाती है...और आखिरी दिन तो गजब की बेचैनी..गजब की मेहनत दिखाई देती है। अगर हम पहले दिन से ही तेज चलते हैं...एक लय में चलते हैं तो आखिरी दिन से पहले ही काम कर लेते हैं बल्कि टारगेट से ज्यादा हासिल करते हैं। कोशिश हमेशा कामायाब होती है...आज केजरीवाल के कसीदे पढ़े जा रहे हैं...पिछले चुनाव के बाद उन पर पत्थर फेंके जा रहे थे..लोग अपने घरों का दरवाजा बंद कर रहे थे...दरअसल जहां आप हिम्मत हार गए...जहां आप थम गए..जहां आप आलसी हो गए...तो जो आपके पास है...वो भी नहीं बचेगा...कभी रूके नहीं..कभी थके नहीं....कभी डरे नहीं..तो कोई भी फील्ड हो..कामयाबी आपके कदम चूमेगी...हो सकता है पहली बार असफल हो..लेकिन उस असफलता से आपको सीख मिलेगी और गलतियों को आप अपने जीवन से दूर फेंकते चले जाओगे...बाकी फिर.......