हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है अहंकार...जब हम कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते हैं तो साथ-साथ अहंकार भी उसके साथ चढ़ता है और जब असफल होते हैं तो अहंकार उतरता जाता है। बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर आप..मोदी हों या केजरीवाल..सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी...लालू यादव हों या नीतीश...मायावती हों या मुलायम सिंह...देश के तमाम ऐसे नेता हैं जो कामयाबी के शिखर पर जब चढ़े..तो मीडिया ने उन्हें इतना ऊंचा दर्जा दे दिया कि वहां से और ऊपर जाना नामुमकिन हो जाए...कुछ ऐसा ही केजरीवाल और आप पार्टी के साथ हो रहा है। कांग्रेस पहले ही साफ हो रही थी..बीजेपी भी साफ हो गई...इसमें सबसे बड़ा रोल है अहंकार का..बड़बोलेपन का...जब हम आसमान पर हैं तो जमीन पर पैर नहीं पड़ते...लेकिन जब हम जमीन पर रहकर आसमान को छूते हैं तो हमारा धरातल नहीं खिसकता। अहंकार हमसे वो सब कराता है जो हमारी सच्चाई नहीं। इसके ठीक उलट होती है विनम्रता। जब हम अपनी गलती स्वीकार करते हैं..जब हम ईमानदारी से काम करते हैं..तो हम आगे बढ़ते जाते हैं। जितने लोगों का ऊपर जिक्र किया..ऐसा नहीं है कि ये सब इन्हीं के साथ हुआ है या हो रहा है..हमारे जीवन की कड़वी हकीकत भी यही है। जितना ज्यादा अहंकार होगा..हम उतने ही मक्कार..कामचोर..भ्रष्ट और दूसरों को नुकसान पहुंचाने की जुगत में लगे रहेंगे। हम जितने विनम्र होंगे..ईमानदारी..मेहनत..लगन और संघर्ष करते रहेंगे। दरअसल अहंकार के जहर की पुड़िया साथ लेकर चलेंगे तो हमारी मौत होना स्वाभाविक है। कुछ पल के लिए दूसरों का अपमान कर...नुकसान पहुंचाकर खुश जरूर हो लेंगे..लेकिन असल में हम अहंकार के जरिए खुद को नष्ट करने के सफर पर होंगे। जब सब मिट जाता है तो अहंकार हमारे पास से उसके पास चला जाता है जिसने हमें नष्ट किया है। जब हम सब खो देते हैं तो अहंकार खुद ब खुद गायब हो जाता है। अहंकार हमेशा बुरे लोगों का साथ देता है..विनम्रता अच्छे लोगों का साथ देती है। ये हमें तय करना है कि हमें अहंकार के साथ चलना है या फिर विनम्रता के साथ....बाकी फिर.....