मदर टेरेसा लोगों को ईसाई धर्म में शामिल करने के लिए सेवा करती थीं..ये कहना है आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का..इतने सालों बाद मदर टेरेसा पर ये सवाल उठाना भी कई सवाल खड़े करता है..अगर मोहन भागवत सही भी हैं तो आज ये सवाल क्यों उठा..वो भी उस महिला के लिए जिसे शांति दूत कहा गया..जिसने जीवन भर लोगों की सेवा की...अगर मैं जीवन भर पीड़ित हूं..शोषित हूं...आर्थिक तंगी का शिकार हूं...और कोई आकर मेरा जीवन संवारता हैं..मुझे संबल देता है..मेरी सेवा करता है..तो मैं कोई भी धर्म स्वीकार कर लूं...कम से कम मदर टेरेसा उनसे तो बेहतर थीं..जो किसी एक धर्म के लोगों के बच्चे को कुत्तों के पिल्ले कहते हैं..उनसे तो बेहतर थीं जो चार-चार बच्चे पैदा करने को कहते हैं।
मेरे कई जानने वाले हैं जिन्होंने बच्चे गोद लिए हैं..न तो उस बच्चे को मालूम कि वो कहां पैदा हुए..उनके माता-पिता किस धर्म के थे..किस जाति के थे..उन्हें केवल ये मालूम कि वो अब जहां हैं वो उसी के हैं। पीके फिल्म में आमिर कहते हैं कि बताओ धर्म का ठप्पा कहां लगा है..एक तथाकथित संत के आगे हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई को खड़ा कर देते हैं और उनसे पहचानने को कहते हैं तो वो वेशभूषा के आधार पर बताते हैं जबकि हकीकत में वो किसी और धर्म के होते हैं। जीवन की हकीकत भी यही है..जब कोई बच्चा इस दुनिया में आता है तो उसे नहीं मालूम होता है कि उसका धर्म क्या है..उसके माता-पिता जैसा कहते हैं..वो करता जाता है..जैसा बताते हैं..वो ही संस्कार ढालता जाता है और जब वो बड़ा होता है तो वो यही सब अपने बच्चों के साथ करता है।
आप पूजा करो या इबादत..आप गुरुद्वारे जाओ या चर्च...ऐसा कौन सा धर्म है जो आतंकवादी बनने को कहता है..ऐसा कौन सा धर्म है जो चोर-डकैत बनने को कहता है..ऐसा कौन सा धर्म है जो धोखाधड़ी करने को कहता है..ऐसा कौन सा धर्म है जो भ्रष्टाचार करने को कहता है। ऐसा कौन सा धर्म है जो झूठ बोलने की ट्रेनिंग देता हो... ऐसा कौन सा धर्म नहीं..जो इंसानियत न सिखाता हो..दरअसल हम अपनी सुविधा से परिभाषाएं गढ़ते हैं...हम करते हैं तो वो लीला होती है..दूसरे करते हैं तो पाप होता है...छत्तीसगढ़ में ईसाई से हिंदू बनाए जाते हैं तो उसे घर वापसी कहते हैं...अगर हिंदू से कोई मुस्लिम या ईसाई बनता है तो उसे धर्मांतरण कहा जाता है।
जहां हमारा जीवन सुख से चले..सुविधा से चले..शांति से चले..वो धर्म सबसे अच्छा..कोई अगर इसके लिए कहता भी है तो क्या बुरा है...आलोचना करने में पैसा खर्च नहीं होता...सवाल ये है कि अपना घर ठीक कर लो..तो दूसरे के घर के तरफ कोई क्यों देखेगा...अपनी कमियां सुधार लो...तो दूसरे पर सवाल उठाने की जरूरत नहीं...किसी धर्म ने ठेकेदारी का टेंडर पास नहीं किया..तो स्वयभूं ठेकेदार कहां से आ गए...कोई भी धर्म हो..उसमें रहने का अधिकार हमारा खुद का है..अगर बुरा है तो हमारा है..अच्छा है तो हमारा है..दूसरे के पेट में दर्द क्यों होता है...अगर दर्द है तो उसकी दवा दो..बाकी फिर........