जो जीत जाता है, उसकी हम जय-जयकार करते हैं..जो हार जाता है..उसे भूल जाते हैं..ऐसे कई कलाकार हैं..खिलाड़ी हैं..राजनेता हैं...पत्रकार हैं..साहित्यकार हैं..कवि हैं...समाजसेवी हैं..जो कभी प्रसिद्ध हुआ करते थे..हमारी जुबां पर रहते थे...अब गुमनाम हो गए...अगर आप अपनी यादों के पन्ने पलटेंगे तो ऐसी कई तस्वीरें आपके मानस पटल पर उभरेगीं लेकिन वक्त के साथ ये तस्वीरें धुंधली हो गईं.जो आज हैं वो कल नहीं...इसी चक्र से हम भी गुजरते हैं..या गुजर रहे हैं...जो ये पढ़ रहे हैं..उनमें से कई अपने जमाने में नामी-गिरामी रहे होंगे..और कई ऐसे होंगे जो आगे जाकर अपनी जीत का परचम लहराएंगे..दुनिया उन्हें जानेगी। जब तक आपकी अहमियत है..आपका प्रभाव है..आपकी हैसियत है...तब तक लोग आपको जानेंगे..आप आज कितने ही दमदार हों...एक वक्त ऐसा आएगा जब आप न केवल समाज में बल्कि अपने ही परिवार में गुमनाम होते चले जाएंगे...खासकर एक उम्र के बाद..जब आपकी काम करने की क्षमता..आपकी जरूरत..आपका ओहदा...खत्म हो जाएगा..फिर समाज तो क्या आपने परिवार के लिए जिंदा लाश से कम नहीं होंगे..जब कोई लाईलाज बीमारी का शिकार होता है...जब किसी की शारीरिक क्षमता शून्य हो जाती है...तो लोग उसके परलोक सिधारने का इंतजार करने लगते हैं...आपके अजीज भी कहेंगे कि अब सहा नहीं जाता..भगवान उसे उठा ले..तो उसका और उसके परिवार का भला हो...ये उसी तरह है जिस तरह कोई कीमती वस्तु जब काम की नहीं रहती तो कुछ दिन कबाड़ में फेंक दी जाएगी और फिर या तो नष्ट कर दी जाएगी या फिर उसे आप घर से बाहर कर देंगे। साफ है कि जब तक आप जीत रहे हैं..चाहे अपने शरीर से..अपने कर्म से...अपने मन से..अपनी वाणी से..तब तक आप सिकंदर हैं..जब आप इन सबसे हारने लगेंगे...गुमनामी की ओर बढ़ते जाएंगे और फिर सब कुछ खत्म हो जाएगा...ये आप पर है कि आप कब तक जीतते हैं....बाकी फिर.....