Tuesday, January 27, 2015

दिल चाहता क्या है?

जीवन है तो हर वक्त दिल धड़कता है..कोई भी हो..छोटा या बड़ा..अमीर या गरीब..हर किसी के पास वही दिल है..उतना ही धड़कता है जितना सबका...और सवाल ये उठता है कि दिल चाहता क्या है?...दिल चाहता है सब कुछ अच्छा ही अच्छा हो..ज़िंदगी खूबसूरत हो..मान-सम्मान हो..हम लगातार ऊंचाईयों को छुएं...ओहदा हो..पैसा हो..हमारा बच्चा बाकी बच्चों से बेहतर हो..खूब नाम कमाए..पैसा कमाए..मनपसंद भोजन मिले..मनपसंद कपड़े पहने..मनपसंद गाड़ी हो, बंगला हो...ये तो वो ख्वाहिशें हैं जो हर किसी के दिल में बसती हैं..छोटी-छोटी ख्वाहिंशें भी होती हैं..जो हर रोज दिल में आती हैं..और चली जाती हैं..जाहिर है कि सारी की सारी पूरी नहीं हो पातीं। मसलन...आपने कोई गलती की है तो पकड़ी न जाए...कोई काम न किया हो..उसके लिए बहाना क्या बनाया जाए..कोई अच्छा लगता है तो उसे बार-बार कैसे देख लिया जाए..कोई बुरा है तो उस पर नजर न पड़े...कोई लजीज व्यंजन है तो पेट के न बोलने पर भी उसे ज्यादा से ज्यादा खा लिया जाए..भले ही बाद में दिक्कत हो जाए..हर अच्छी चीज के लिए दिल मांगे मोर...दिल और दिमाग में हमेशा जंग छिड़ी रहती है। दिल को दिमाग नियंत्रित करता है..अगर संतुलन है तो बात बन जाती है..अगर दिल हावी है तो बिगड़ जाती है। दिमाग हावी है तो दिली इच्छाओं का दमन हो जाता है। ऐसा नहीं कि दिल जो चाहता है वो गलत चाहता है लेकिन जब ज्यादा और ज्यादा चाहता है और बहकने लगता है तो दिमाग उसे रोकता है और रास्ते पर लाता है। जब हमारे दिल में जागी इच्छाएं दिमाग के कंट्रोल रूम में जाती हैं तो रिफाइन होती हैं और छनकर हमारे जज्बात बाहर निकलते हैं और वो सही भाव होते हैं। कहते हैं कि यार उसके पास तो दिल ही नहीं..यानि दिल की सुनो..और जो दिमाग कहे..उसे करो..केवल दिमाग को चलाओगे तो जीवन अशांत हो जाएगा..दिल कचोटने लगेगा..अंदर ही अंदर घुटन होने लगेगी...दोनों में जितना अदभुत संतुलन होगा जीवन भी उतना अदभुत रिजल्ट देगा। बाकी फिर.......