गिरगिट अपने दुश्मन से बचने के लिए पलक झपकते ही रंग बदल लेता है वो भी ऐसा कि जिस रंग में हो वैसा ही नजर आए...इस श्रेणी में कौन आता है..जो अपने फायदे के लिए अपने दुश्मन के भी पैर पकड़ ले..अपने विरोधी को भी गले लगा ले..और जिससे काम निकल चुका है.. या फिर जो काम का नहीं रहा..उसे लात मार दे..या फिर नए आका के साथ मिलकर पुराने को पटखनी के लिए पहलवानी शुरू कर दे। दरअसल हमारा लालच हम पर इतना हावी हो चुका है कि हम थोड़े से फायदे के लिए किसी को भारी नुकसान पहुंचाने से नहीं चूकते। जीवन के इस संघर्ष में बहुत थोड़े ही कम लोग बचे हैं जिनकी रीढ़ की हड्डी बची हो..जो सामने भी दोस्त मानते हों..और पीठ पीछे भी..नहीं तो सुबह से लेकर रात तक हम एक संस्थान और एक व्यक्ति के बारे में दस अलग-अलग राय बनाते हैं..कभी उसे महान बताते हैं तो कभी गिरा हुआ...हम ये भी नहीं देखते हैं कि कल फिर हमें अपना स्टेटमेंट बदलना पड़ सकता है..दरअसल जमाना इंस्टेंट का है दो मिनट में नूडल्स बनते हैं इसी तरह दो मिनट में राय भी बनती-बिगड़ती है..यदि आपका काम कर दिया..आपको सपोर्ट कर दिया तो दुनिया में उससे भला कोई आदमी नहीं...नहीं किया तो उससे निकृष्ट भी कोई नहीं...एक तो लालच..दूसरा डर..तीसरा मजबूरी...लाखों में एक-दो ही होंगे जिनकी इतने खराब हालात हों कि उनकी मजबूरी हो..नहीं तो ये शब्द हम खुद अपने भीतर से तैयार करते हैं और इन्हें ही जीवन ढोने की वैशाखी बना लेते हैं...यदि हम उसकी न मानें तो क्या करें..वो मुझे ये कर देगा..वो कर देगा..अगर उसके कहने पर दिन को रात नहीं कहेंगे तो हमारा नुकसान हो जाएगा..अरे भाई..आगे बढ़ना है तो इतना तो चलता है..थोड़ी-बहुत चापलूसी कर भी दी..तो हमारे पिता जी का क्या गया..अपना तो फायदा कर देगा..बाकी तो बता कि वो भी कितना...हरा....है..लेकिन एक बात तय है कि आप जितना रंग बदलते हो..खुद की नजरों में लगातार गिरते जाते हो...आपका खुद का वजूद खोखला नजर आता है...जिसके पीछे बिना सोचे-समझे चलते हो..वजूद उसका नजर आता है..भले ही ऊपर से आप साफ-सुथरे..सूट-बूट में नजर आते हैं लेकिन लोगों के दिल-दिमाग में आप बदबू छोड़ते हो...जो आपका नाम है..आपको उसी से पहचाना जाना है.. या फिर गिरगिट का खोल पहनना है..ये आपको तय करना है...बाकी फिर......