Saturday, January 17, 2015

don't worry

हमारे जन्म लेते ही चिंता शुरू हो जाती है...और चिता के राख होने तक..इसके बाद सब कुछ खत्म..स्कूल में एडमीशन की चिंता..कोचिंग की चिंता..नंबर की चिंता..कंपटीशन की चिंता..नौकरी की चिंता..शादी की चिंता..बच्चा होने की चिंता..फिर उसकी पढ़ाई की चिंता..ये तो हैं ही..लोग हर रोज कई चिंता पैदा कर करते हैं और अगली सुबह कुछ और चिंता..पानी नहीं भर पाए..मेड काम पर नहीं आई...कोई मेहमान आ रहा है...बच्चे की फीस भरनी है..बिजली,मोबाइल,नेट का बिल भरना है..आदि-आदि...कुछ चिंताएं लगातार बनी रहती हैं..कुछ काम निपट हो जाने के बाद खत्म हो जाती हैं...दरअसल अपने दिल-दिमाग में हम जिसे बोझ बना कर बसा लेते हैं..वहीं चिंता का सबब बनती हैं..जिसमें हमें आनंद आता है..जिसमें हम कोई उलझन और परेशानी नहीं मानते..वो चिंता का कारण नहीं बनती..हर व्यक्ति का एक अलग स्तर होता है और उसी हिसाब से उसके मन में चिंताएं घर बनाती हैं..कुछ लोग होते हैं जो बड़े-बड़े से काम का बोझ अपने सिर पर नहीं रखते हैं..और उसे जीवन का अनिवार्य अंग मानकर उसे पूरा करते हैं..उसमें उत्साह महसूस करते हैं..उसमें आनंद भी उठाते हैं तो बड़ा से बड़ा बोझ भी चिंता में नहीं बदलता। फर्क केवल सोच का है कि हम अपने जीवन के कामकाज को किस ढंग से लेते हैं..नहीं तो सुबह जल्दी उठना..नहाना..और बस-मेट्रो पकड़ना भी चिंता बन जाती है..दफ्तर का कामकाज तो ज्यादातर बोझ मानकर करते हैं..बोझ की जितनी गठरियां अपने दिमाग पर लेकर चलेंगे..चिंता से दुबले होते चले जाएंगे..बीमार होते जाएंगे..तनाव और ब्लड प्रेशर साथ में ढोएंगे..दरअसल जीवन जीने को सरल बनाना है तो वक्त के पाबंद बनिए...कामकाज में उत्साह पैदा करिए और कठिन से कठिन काम को अंजाम देने में सोचने या डरने के बजाए..उसे निपटाने की तरकीब या मेहनत करिए तो चिंताओं से पीछा छूटेगा..जब-जब चिंता घेरेगी..काम सलीके से नहीं होगा..देर से होगा और मुश्किल भी होता जाएगा। जब तक जीवन हैं..मशक्कत चलती रहेगी चाहे वो आर्थिक हो..सामाजिक हो..पारिवारिक हो या व्यक्तिगत हो..अगर उससे दो-दो हाथ करेंगे तो ज्यादा मजा आएगा..चिंता का बोझ लादेंगे..तो जीवन बोझ से दब जाएगा.खुद को कष्ट देंगे..और अपने साथ वालों को....बाकी फिर....