प्रधानमंत्री जी ने स्वच्छता अभियान चलाया. बड़े-बड़े दिग्गज जुड़े..या जोड़े गए..साफ-सफाई के लिए फोटो खिंचीं..तस्वीरें छपीं..वीडियो चले और सफाई खत्म हो गई..दरअसल ये सारे लोग महान हैं..इन्होंने भी पीएम की बात को सिर-हाथों पर लिया और पीएम की इच्छा पूरी कर दी..लेकिन इसके बाद क्या हुआ..दरअसल एक कानून होता है..एक अभियान होता है..कानून का पालन अनुशासन और सजा से होता है..जिसमें भय होता है..भय बिन प्रीत न होई..दूसरा अभियान होता है..जैसे अन्ना हजारे का आंदोलन था..अभियान या आंदोलन मन से होता है..दिल से होता है...प्रधानमंत्री जी ने इसे अभियान बनाया..लेकिन नहीं बन पाया..हम अपने घर में रोज सफाई रखते हैं..अपने आसपास भी सफाई की कोशिश करते हैं...लेकिन जिसे हम अपना नहीं मानते..उसकी सफाई करने की जरूरत नहीं समझते। हमारा घर है तो सफाई होगी..सड़क को हम क्यों साफ रखेंगे..जहां से हमें एक बार भी ही गुजरना है...जो लोग जुड़े..वो भी एक संदेश देकर बैठ गए..सफाई एक दिन का संदेश नहीं..जब हमारा मन साफ होगा..तो सफाई भीतर भी होगी..और बाहर भी...दरअसल जब भीतर ही गंदगी होगी तो बाहर हम कैसे साफ रख पाएंगे...दिल्ली और एनसीआर के ही सरकारी दफ्तरों...अस्पतालों..स्कूलों में जाकर कोई देख ले कि वहां कितनी सफाई है..करोड़ों का बजट हर साल बंटता है..बजट साफ हो जाता है लेकिन सफाई नहीं हो पाती...वहीं प्राइवेट दफ्तरों..अस्पतालों..स्कूलों में जाएंगे तो लगेगा कि अस्पताल में नहीं हम किसी किसी फाइव स्टार होटल में हैं..ऐसा क्यों हैं..दरअसल हम भीतर की सफाई की सोच ही नहीं पाएं हैं..यदि मन की सफाई हर मंत्री..सरकारी अफसर-कर्मचारी में हो जाएगी..तो बाहर की सफाई शीशे की तरह चमकने लगेगी..हमारे जो दोस्त सरकारी अफसर या कर्मचारी होंगे..उन्हें शायद बुरा लगे..लेकिन हकीकत है..हजारों में एक-दो ऐसे निकल आएंगे जिनका मन साफ हो..नहीं तो सारे ऐसे हैं जिनके मन में टनों गंदगी भरी है जो चाकू-पिस्तौल लेकर नहीं..अपने पद से न केवल सरकार को बल्कि आम लोगों को लूट रहे हैं..और जेबें भरने की तृष्णा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है..सबसे ज्यादा भ्रष्ट वो हैं जिन्हें भ्रष्ट लोगों को पकड़ना हैं..जब जीवन में ऐसे लोग ही गंदे नालों में लोट रहे हैं तो बाहर अगर कचरा पड़ा भी है तो कितना नुकसान करेगा....बाकी फिर