गोली तो एक बार में जीवन को खत्म कर देती है..बोली जीवन भर एक-दूसरे को आगे बढ़ाती है या फिर नष्ट करती रहती है। हम जैसा बोते हैं..वैसा काटते हैं..वैसे ही जैसा बोलते हैं..हमें वैसा ही रिटर्न मिलता है। सोच-समझकर बोलते हैं तो जीवन को बेहतर ढंग से आगे बढ़ाते हैं..कुछ भी बोलते हैं..न तो समय देखते हैं..न तो जगह देखते हैं..न तो व्यक्ति देखते हैं बस अपनी धुन में बोलते हैं न ही शब्दों की कीमत और ताकत समझते हैं तो हम जीवन के ऐसे हथियार का दुरुपयोग कर रहे हैं जो आपके जीवन का कष्ट और बढ़ा रहा है और यदि बोली को हम ताकतवर और सार्थक बनाते हैं हम अपने जीवन के साथ ही दूसरों के जीवन को बेहतर बनाते हैं...घर हो या बाहर...दफ्तर हो या दोस्त...या फिर सार्वजनिक स्थल..आपकी बोली..आपके बारे में राय बनाती है। नवजात शिशु भी बोली के मन से समझता है..आपकी जैसी बोली होती है..आपको वैसी ही प्रतिक्रिया मिलती है। खराब बोलते हैं तो अपने जीवन को नरक बनाते हो...बने हुए काम को बिगाड़ देते हैं..बच्चों की जिंदगी में कड़वाहट घोल देते हो..उनके उत्साह को धीमा कर देते हैं..दफ्तर में अपने सहयोगियों की कार्य क्षमता को घटा देते हो..कुछ पल के लिए आप खुद को भले ही शाबासी दे लो कि आज मैंने उसे डांट-डपट कर निपटा दिया लेकिन वही व्यक्ति जीवन भर मन में जख्म पालकर आपको या आपके कामकाज को कितना नुकसान पहुंचा रहा है ये आप हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। इसलिए जब भी बोलें तोलमोल कर बोलें..तो शायद जीवन बेहतर हो..बाकी फिर....