Wednesday, January 14, 2015

खुद की गिरेबां में झांक कर तो देखो...

प्रधानमंत्री ठीक नहीं कर रहे हैं..सीएम खाली बोल रहा है...मंत्री अपनी जेबें भरने में लगे हैं..अफसर चांदी काट कर रहे हैं..हमारा सीनियर खूब फायदा कमा रहा है..अरे वो तो नाकारा है..वो तो चापलूस है..वो किसी काम नहीं...उससे तो बात करना बेकार है..उसका कुछ नहीं हो सकता...लंबी लिस्ट है जो हम दिन भर में कई बार बोलते हैं और भूल जाते हैं...किसी के बारे में आकलन करना हो तो हमसे अच्छा समीक्षक नहीं सकता..पीएम से लेकर सीएम तक..फिल्मी हस्ती हो..या क्रिकेटर..उद्योगपति हो या समाजसेवी..अपने दफ्तर..अपने पड़ोस..अपने दोस्तों..जिन्हें हम जानते भर हैं..उनके जीवन का सत्यानाश करने में हमें चंद मिनट नहीं लगते..ये बात अलग है कि हजारों-लाखों आलोचकों के बीच आगे बढ़ने वाले..आगे बढ़ते जाते हैं...लेकिन हम कभी अपनी गिरेबां में झांकने का कष्ट नहीं करते..हम जहां भी हैं..जिस स्तर पर हैं..जो मान-सम्मान है..जो हैसियत हैं उसके लिए हम ही तो जिम्मेदार हैं...चंद मिनट निकालकर खुद की आलोचना करने की हिम्मत तो जुटाएं..सोचें..कि हममें ऐसी कौन सी खूबियां हैं जिनकी बदौलत हम यहां पहुंचे हैं..या हमारी कौन सी ऐसी खामियां हैं जिनकी बदौलत हम इतने नीचे गिरे हैं...हर कामयाबी में हमारी सोच..व्यवहार..काबिलियत...का हिस्सा है तो जहां हम चोट खाए हैं..जहां हमारा मान-सम्मान गिरा है..उनके भीतर रहते हमें नुकसान उठाना पड़ा है..जो लोग अपने पाजिटिव को आगे ले जाते हैं..वो आगे बढ़ते जाते हैं जो निगेटिव को साथ लेकर चलते हैं..उतने ही पीछे होते जाते हैं...बदमाश होते हैं उनका दिमाग कम नहीं चलता..चोरी करने के लिए भी कई शातिर कदम उठाने पड़ते हैं..चंबल के डाकुओं को भी बहुत संघर्ष करना पड़ा तब कहीं जाकर वो कुख्यात हुए..साफ है कि कुख्यात हो या विख्यात..दोनों के लिए मशक्कत बराबर की है..अब हमें तय करना है कि हम किस रास्ते पर चलें...कभी-कभी जब भी फुर्सत के दो पल हों..अकेले में मंथन करेंगे तो पता चल जाएगा कि
आखिर क्या है जो हमें आगे बढ़ने नहीं दे रहा..या फिर हममें ऐसा क्या है जो हमें इस स्थान पर ले आया है..जिंदगी का यही फलसफा है...बाकी फिर.....