जब तक खुद पर भरोसा रहता है..हम अपना काम करते रहते हैं और दूसरों को बताते हैं कि हमने कामयाबी हासिल कर ली..वो तो मैं था जो ये संभव हो पाया..जब असफलता हाथ लगती है तो हम वक्त और ईश्वर को जिम्मेदार ठहराते हैं..कहते हैं कि हमारा समय खराब चल रहा है..ईश्वर साथ नहीं दे रहा है..किस्मत फूटी हुई है। जब हम संकट में होते हैं तो दिन-रात भगवान की शरण में होते हैं..उससे प्रार्थना करते हैं कि समस्या का हल निकालें...हमारी परेशानी दूर करें..हमारा स्वास्थ्य ठीक करें..हमारी नौकरी लगवा दें..हमारे आर्थिक हालात सुधार दें..हमारे बच्चे का भला करें..ये तमाम प्रार्थनाएं हैं जो हम ईश्वर से करते हैं और नहीं होता है तो फिर हम उसे जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। दरअसल हम पहले अपने सारे जतन करते हैं और जब लगता है कि बात बनने वाली नहीं है तो हम भगवान का सहारा ले लेते हैं। दो बच्चों में से एक साल भर मस्ती करता है..दूसरा पढ़ाई में ध्यान देता है..दोनों परीक्षा के पहले भगवान से विनती करते हैं..आप समझ सकते हैं कि विनती किसकी सुनी जाएगी। जाहिर है पढ़ने वाले के अच्छे नंबर आएंगे..दूसरे बच्चे की प्रार्थना क्यों नहीं सुनी..दोनों ने विनती की थी... पहले आप अपने लिए गडढा खोदते हैं..या दूसरे के लिए गडढा खोदते हैं और जब संकट से घिरते हैं तो भगवान से कहते हैं कि दूर कर दो। ये मानव की फितरत रही है कि जो काम बन जाए..उसका श्रेय खुद ले लो..नाकामी हाथ आए तो दूसरे पर थोप दो..कोई न मिले तो भगवान तो है ही...यही नहीं भगवान से ये भी कहते हैं कि मैं सौ..पांच सौ..हजार रुपए का प्रसाद चढ़ाऊंगा..कथा कराऊंगा..नैया पार लगा दो...यानि उन्हें भी हम पेशकश करते हैं कि कुछ ले लो..काम बना दो..जो अच्छा काम करते हैं..अपने कर्म को निभाते हैं..सदव्यवहार रखते हैं..उनकी भगवान अपने आप सुनते हैं..उन्हें कुछ पेशकश करने की जरूरत नहीं..जो गलत करते हैं उन्हें दंड मिलना तय है वो किसी भी रूप में मिले...ऐसे लोग भगवान को कितना ही मनाएं..मानने वाले नहीं...बाकी फिर......