जीवन में बोली मीठी तो होनी ही चाहिए..शब्दों का चयन कैसा हो..ये भी काफी मायने रखता है..जैसे बंदूक से निकली गोली वापस नहीं आती..वैसे ही शब्द वापस नहीं आते..एक बार जो लिख दिया..वो कभी मिट नहीं सकता..ऐसे ही आपने जो बोला है..वो दूसरे के दिमाग में ऐसा छपता है कि पूरी जिंदगी नहीं मिटता..इसीलिए कहते हैं कि तोल-मोल के बोल...हर शब्द की अपनी ताकत है..अपना संदेश है और मारक क्षमता है...अक्सर कई लोगों के लिए कहा जाता है..अरे..उससे क्या बात करना..खराब ही बोलेगा..फालतू है....बकवास करता है..ऐसे लोगों के सामने जाने से लोग कतराते हैं...और जिसकी बोली अच्छी है..उसका लोग बोलने से पहले ही इंतजार करने लगते हैं..अटल जी की संवाद शैली एक उदाहरण हैं...और भी दूसरे उदाहरण हैं जैसे..मायावती...लालू प्रसाद यादव...उमाभारती..दिग्विजय सिंह...निरंजन ज्योति..याकूब मोहम्मद कुरैशी...ऋतभरा...प्रवीण तोगड़िया..आचार्य धर्मेंद्र..आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि आप इनकी बोली..इनके शब्दों के चयन को किस स्तर पर रखते हैं...किस अंदाज में लेते हैं...और इनके कहे कौन-कौन से शब्द अपने दिमाग में रखे रहते हैं...रोजमर्रा के जीवन में हम हजारों शब्दों का आदान-प्रदान करते हैं...और उनमें से ज्यादातर को भूल जाते हैं लेकिन कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो जीवन भर नहीं भूलते...चाहे वो नजदीकी हो या आप उसे जानते भी न हो..शब्द आपको किसी से दूर ले जाते हैं और किसी को बिलकुल नजदीक ले आते हैं। शब्द ही आपकी बोली की गोली है जो दनादन निकलती है और दूसरे के दिमाग में आपके व्यक्तित्व की छाप छोड़ते जाते हैं..पाजिटिव या निगेटिव...इसीलिए कहते हैं कि जब भी बोल..तोल-मोल के बोल..बाकी फिर.....