दोस्तो..यहां आप भी हैं..आप यानि आम आदमी पार्टी भी है और बीजेपी भी..दिल्ली में जितनी सर्दी है..राजनीतिक पारा उतना ही गर्म..देर रात से आज दिन भर दिल्ली की राजनीति कितनी बदली...कितने लोगों की आस्थाएं बदलीं..अपने पराए हो गए..पराए अपने हो गए...इसे कहते हैं राजनीति.. राज की नीति को कहते थे राजनीति..पर अब हो गई सत्ता नीति...चाहे किरण बेदी हों या अरविंद केजरीवाल..या फिर बीजेपी के दिग्गज..सब उलट-पलट हो गए..एक-दूसरे से कह रहे हैं कि हम लीला कर रहे हैं..आप पाप कर रहे हो...एक-दूसरे की खामियां..एक दूसरे पर तोहमत..हर तरफ घमासान...हम सही है आप गलत...दरअसल कोई भी हो..आप या हम..जीवन बिना राजनीति के नहीं चलता...राजनीति हर जगह अलग-अलग किस्म की हो सकती है..हम अपने भीतर झांकेंगे..अपने रवैए को देखेंगे तो राजनीति की शुरूआत अपने ही परिवार से करते हैं..माता-पिता..भाई-बहन..बेटा-बेटी..पति-पत्नी.दोस्तों..आस-पड़ोस..दफ्तर...हर जगह राजनीति जबर्दस्त है..हम भले ही कहें..कि वो तो अपना है..आप तो हमारे सबसे करीबी हैं..अरे वो तो भाई है..आप तो दोस्त हैं..लेकिन सच ये है कि अपने स्वार्थ के लिए..अपने फायदे के लिए..अपनी मजबूरी के नाते..हम राजनीति खेलते हैं..कदम-कदम पर खेलते हैं और बड़ी ही तरीके से उसे वक्त और हालात के हवाले कर देते हैं...जैसे पीएम की कुर्सी है..सीएम की कुर्सी है..वैसे ही कहीं न कहीं आपकी भी कुर्सी है..ओहदा है...प्रतिस्पर्धा है...आगे बढ़ने की होड़ है..कमाई की ललक है...सम्मान की चाह है..इन सबके के लिए राजनीति जीवन भर चलती है...मानें या न मानें...लेकिन राज-नीति है तो ठीक है लेकिन सत्ता नीति है...तो आप भी ऐसे ही हैं..जैसे किरण बेदी या अरविंद केजरीवाल...दोनों अपने थे..पराए हो गए...दिल्ली की चिंता किसको कितनी है...जो सीएम नहीं बन पाए हैं..या नहीं बन पाएंगे..वो दिल्ली की चिंता कितनी कर रहे हैं या कितनी करेंगे..ये आपको भी पता है....जीवन में दोस्त बदल जाते हैं..विचार बदल जाते हैं..आस्थाएं बदल जाती हैं...वो भी इतनी तेजी से..कभी हम सोच कर देखेंगे तो हम भी अपने जीवन में किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल की भूमिका में नजर आएंगे...बाकी फिर....