Saturday, January 10, 2015

जीवन किसके लिए?

हर रोज आप किसी को भी ये कहते हुए सुनते हैं कि जीवन किसके लिए जी रहे हैं..बच्चों के लिए..परिवार के लिए...ये कतई सच नहीं...जीवन आप अपने लिए जी रहे हैं...जरा सोचिए..मनन कीजिए...सुबह से लेकर देर रात तक कमाने और नाम के चक्कर में आपको फुर्सत नहीं पत्नी और बच्चों के लिए...आज की आपाधापी में आधे से ज्यादा पति-पत्नी दोनों कमाने में जुटे हैं..जिन्हें दस हजार मिल रहे हैं..वो कहते हैं इतने में खर्च नहीं चलता..बच्चे का जीवन बनाना है..कम से कम बीस हजार मिल जाए तो कुछ काम बने..जो एक लाख कमा रहे हैं..वो भी कहते हैं कि किस लिए कमा रहे..बच्चों के लिए...कमाई में कोई हर्ज नहीं..जितना कमाएं..उतना अच्छा..लेकिन कभी हम ये नहीं सोचते..कि जिस बच्चे के लिए हम कमा रहे..उसके लिए धन की कमाई तो कर रहे हैं..लेकिन उसकी परवरिश में कितना वक्त दे रहे..उसकी परवरिश आप नहीं कर रहे..बल्कि आपके यहां काम कर रही मेड कर रही है। हो सकता है कुछ लोगों को बुरा लगे..लेकिन ये कड़वा सच है। कभी ये सोचा कि उस बच्चे की पढ़ाई में हमने कितना ध्यान दिया..कभी ये सोचा कि हमने उसके सुख-दुख में कितना वक्त दिया..कभी हमने सोचा कि उसके साथ कोई खेल खेले..उसके साथ कितना हंसी-मजाक किया। कभी ये सोचा कि हमने उसे कितने संस्कार दिए। आप कहेंगे कि उसके लिए ही तो करने में जुटे हैं तो उसे कितना वक्त देंगे। बच्चों के नाम पर आप दूसरों को धोखा दे रहे हैं और सबसे ज्यादा खुद को धोखा दे रहे हैं..दरअसल आपको खुद के स्टेटस की चिंता है..खुद के आर्थिक स्थिति की चिंता है। खुद के नाम और शोहरत की चिंता है। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारी जितनी बड़ी हैसियत होगी..जितना बड़ा नाम होगा..बच्चे भी उसका लाभ उठाएंगे...हैसियत, नाम, कमाई किसी में भी बुराई नहीं..बुराई है तो असंतुलन खो देने में...बच्चें हो या पत्नी...माता-पिता हों भाई-बहन..जीवन में अगर केवल आपाधापी में ही लगे रहे..अपनों का ख्याल न रख पाए तो सब बेकार..जीवन दर्शन यही है कि रात जब गहराती है तो सोना जरूरी है...जब घर में कष्ट है तो साथ देना जरूरी है..जब बच्चे को आपकी जरूरत है तो करोड़ों का कोई मोल नहीं...जैसे सुबह नाशता, दोपहर लंच और रात डिनर का वक्त तय है..ऐसे ही जीवन के अलग-अलग पढ़ाव और वक्त में जो संतुलन है उसे बनाये रखना जरूरी है। जीयो और जीने दो..ये हम दूसरों से कहते हैं..और अपने हम से कहते हैं..इसीलिए जीयो और आनंद के साथ जीयो..खुद को या परिवार को कष्ट देकर नहीं...बाकी फिर.....