जो भी आवाज हमारे कानों तक पहुंचती है..हम उसे सुनते हैं..जो संवाद हमसे है..उसे तो सुनते ही है जो आवाज हमारे आसपास गूंज रही है..वो भी हम सुनते हैं...हम जो भी सुनते हैं..वो कच्चे माल की तरह है..उसमें से कुछ अच्छा हो सकता है..कुछ खराब..हो सकता है पूरी बात ही खराब हो..हो सकता है पूरी बात ही अच्छी हो...पूरी ध्वनि हमारे भीतर जाती है..कोई पूरी बस जाती है..तो कोई पल भर में हम भूल जाते हैं...हम सुनते सबकी हैं...ध्वनि के मन तक छूने के बाद होता है आत्म मंथन...जो हमारे लायक है..हम ग्रहण कर लेते हैं..बाकी को भुला देते हैं...छोटा बच्चा हो..या फिर कोई बड़ा व्यक्ति...प्रवचन देने वाला हो या फिर राजनीतिक..सामाजिक हो या सांस्कृतिक..हम सुनते हैं..पढ़ते हैं...देखते हैं..और फिर हमारा मन उसे मथता है..समुद्र मंथन की तरह जो सार निकलता है..जो अच्छा होता है..जो काम का होता है..उसे हम चुनते हैं और आत्मसात कर लेते हैं..और फिर उसका उपयोग करते हैं...कहने का मतलब है कि पहले सुनो...फिर उसे मन में गुनो..और फिर चुनो...इन तीनों में तालमेल होना बहुत जरूरी है..यदि हम किसी की नहीं सुनते...केवल हम अपनी कहते हैं तो हम जहां है..वहीं ठहर जाएंगे और आपके भीतर जो क्षमता है..वो धीरे-धीरे खत्म होती जाएगी...सीखने की प्रक्रिया जीवन भर जारी रहती है तो हम लगातार आगे बढ़ते रहते हैं। एक तो वो शख्स है जो किसी के नहीं सुनते..दूसरे वो शख्स होते हैं जो केवल सुनते हैं और उसी पर अमल करते..यानि उसे गुनते नहीं और चुनते नहीं...तीसरे वो शख्स होते हैं जो सुनते हैं..गुनते हैं लेकिन चुन नहीं पाते...और यदि चुनते भी हैं तो उसे दूसरों तक नहीं पहुंचाते। जो इन तीनों में संतुलन बनाए रखते हैं..उनका व्यक्तित्व निखरता जाता है। कोई बड़ा नहीं होता..कोई छोटा नहीं होता..ये सब हम बनाते हैं..उसके व्यक्तित्व के आधार पर....बाकी फिर...
( साथियो जो हमारे भीतर है वो आपके नहीं..जो आपके भीतर है वो हमारे नहीं..लंबे अरसे तक लेखनी से दूर रहने के बाद नए साल में अचानक लिखने का विचार आया..जीवन में जो देखा है..समझा है..महसूस किया है...सोचा कुछ आत्ममंथन कर लिया जाए..इसे न तो प्रवचन समझे..न ज्ञान गंगा..ये मेरे लिए भी है आपके लिए भी...सोशल साइट पर तमाम टाइम पास की जगह अगर दो मिनट हम अपना आत्म मंथन कर लें तो शायद अगला दिन बेहतर हो....हम दूसरों के बजाए पहले खुद में झांकें..तो शायद हम अपना भी भला करें.और दूसरों का भी.. )
( साथियो जो हमारे भीतर है वो आपके नहीं..जो आपके भीतर है वो हमारे नहीं..लंबे अरसे तक लेखनी से दूर रहने के बाद नए साल में अचानक लिखने का विचार आया..जीवन में जो देखा है..समझा है..महसूस किया है...सोचा कुछ आत्ममंथन कर लिया जाए..इसे न तो प्रवचन समझे..न ज्ञान गंगा..ये मेरे लिए भी है आपके लिए भी...सोशल साइट पर तमाम टाइम पास की जगह अगर दो मिनट हम अपना आत्म मंथन कर लें तो शायद अगला दिन बेहतर हो....हम दूसरों के बजाए पहले खुद में झांकें..तो शायद हम अपना भी भला करें.और दूसरों का भी.. )