Saturday, February 28, 2015

आपकी परीक्षा

हमारे घर में..परिवार में और मन में लगातार परीक्षाओं का दौर चलता रहता है लेकिन सबसे ज्यादा तनाव होता है बच्चों की परीक्षा का..बच्चों से ज्यादा हमें होता है...ऐसा लगता है कि हम ही परीक्षा दे रहे हैं और सब कुछ दांव पर लगा है..इसके बाद भी रिजल्ट कैसा रहेगा..इसके लिए मन रिजल्ट आने तक दिल घबराता है...मन चिंतित रहता है और दिमाग में कई सवाल उथल-पथल होते रहते हैं। खास तौर से उन बच्चों के लिए जिनकी 12 वीं बोर्ड है और उसके बाद उनका भविष्य नए दौर में दाखिला लेगा या फिर एक तरह से तय होगा कि बच्चे का जीवन किस रास्ते पर चलने वाला है। हम ए..बी..सी..डी प्लान लेकर चलते हैं कि यदि ऐसा होता है तो..वैसा करेंगे और वैसा होगा तो ऐसा करेंगे।


सच मानिए..8 वीं से लेकर 12 वीं तक क्लास की पढ़ाई..और इस दौरान बच्चों की उम्र सबसे कठिन परीक्षा के दौर से गुजरते हैं..यही वक्त मां-बाप के लिए सबसे कठिन होता है जब बच्चों की भी अग्नि परीक्षा होती है और हमारी भी। ये उम्र ही ऐसी होती है जिसमें बच्चा अपने आपको सबसे समझदार और परिपक्व मानता है..मन मचलता है..मन भटकता है..मन में हजारों सवाल उमड़ते हैं..कुछ के जवाब वो खुद तलाश लेता है तो कुछ माता-पिता बताते हैं..और कुछ दोस्त..कुछ सवालों के जवाब घटना-दुर्घटना वश मिलते हैं तो खुद गलती करने के बाद समझ आते हैं। चाहे शारीरिक हो या मानसिक.दोनों इस दौरान बड़ी तेजी से आगे बढ़तें हैं मन भी तेज भागता है..शरीर में भी गजब की फुर्ती होती है।

सवाल ये है कि ऐसे वक्त  दिमाग हो या दिल..या मन...ये जीवन के उस ट्रेक पर खड़े होते हैं जहां से आपकी असल दौड़ शुरू होती है..ज्यादातर मां-बाप और बच्चे अपने आसपास के प्रतियोगियों को देखकर दौड़ते हैं और जीत जाते हैं तो मान लेते हैं कि हम दौड़ में काफी आगे है..कुछ माता-पिता और बच्चे अपने को देखकर दौड़ते हैं तो उनकी क्षमता का आकलन बड़े कैनवस में होता है।

हर मां-बाप चाहता है कि उनका बेटा-बेटी उनसे ज्यादा तरक्की करे..नाम कमाएं..पैसा कमाएं..लेकिन सबके साथ ये संभव नहीं..जीवन एक दिन में तैयार नहीं होता..परीक्षा एक दिन में नहीं जीती जाती..हम तभी जीतते हैं जब उस जीत के लिए जमीन तैयार करते हैं..उसे जोतते हैं..सींचते हैं और रिजल्ट के तौर पर फसल काटते हैं..चाहे कितने बड़े स्कूल में पढ़ा लो..चाहे कितनी कोचिंग करा लो..चाहे कितने घंटे पढ़ाई करा लो..परीक्षा जीती नहीं जा सकती है..एक हाथ से ताली नहीं बजती..इसके लिए जितना मां-बाप का रोल है उतना ही बच्चे का..जंग बच्चे को ही लड़नी है..तरीका मां-बाप को बताना है..जहां लड़खड़ाएगा..वहां संभालना भी है..लड़ाई एक दिन की नहीं..जीवन भर की है..एक दिन गंवाते हैं..तो जीवन में कुछ कम हो जाता है..जब शुरू से क्षमता विकसित करते हैं..बढ़ाते हैं..और तेजी पकड़ते हैं तो लंबी रेस का घोड़ा कहलाते हैं..हर दिन हर पल की मेहनत..सोच..संघर्ष..और सक्रियता आपके जीवन को संवारती है। तनाव..लड़ाई-झगड़े और जल्दबाजी से हम परीक्षा को जीत नहीं सकते। ये बात भी सोच लीजिए..हर कोई सचिन नहीं बन सकता.हर कोई बिग बी नहीं हो सकता..हर कोई लता मंगेश्कर जैसे गला नहीं पा सकता..हर कोई नरेंद्र मोदी की तरह प्रधानमंत्री नहीं हो सकता..ये भी लंबी यात्रा के बाद उस मुकाम पर पहुंचे हैं और ऐसा भी नहीं कि जो लोग ये नहीं बन पाए तो उनके जीवन का कोई मतलब नहीं। बच्चा आप जैसा नहीं बन पाया तो ये हमारी खामी है और बच्चे की भी है..रिजल्ट को मत देखिए..हर रोज को देखिए कि हम जीवन की परीक्षा के लिए कैसे तैयारी कर रहे हैं..कितनी मेहनत कर रहे हैं..जरूर कामयाबी मिलेगी..और जितनी भी मिलेगी उस पर आपको संतोष होगा..गर्व होगा..बाकी फिर....






अच्छे दिन कैसे आएंगे?

आप सरकार के चक्कर में मत रहिए..वोट दे दिया उसके बाद भूल जाईए...अच्छे दिन आएंगे या नहीं..आप समझ गए होंगे..ये भी समझ लीजिए कि महंगाई एक बार बढ़ती है तो कभी घटती नहीं..सब्जी हमेशा तब सस्ती होती है जब उसकी बंपर पैदावार होती है..जैसे-जैसे दिन बीतते हैं वही सब्जी महंगी होती जाती है..कभी सुना है कि दूध के दाम घटे हैं..कभी सुना है कि किराना..यानि तेल..दाल..चावल..शक्कर..आटा सस्ता हो गया है। हां इतना जरूर होता है कि स्थिर रहता है वो भी ऐसे कि 500 ग्राम के पैकेट की जगह 450 या 400 ग्राम कर दिया..या फिर 1000 ग्राम के जरिए 950 ग्राम कर दिया..माल घटा दिया..कीमत वही रहने दी। कभी सुना है कि ट्रेन..बस..मेट्रो..आटो का किराया कम हो गया। कभी सुना है कि स्कूल की फीस कम हो गई..आज तक पेट्रोल-डीजल की को छोड़कर किसी चीज की कीमत घटी है.क्योंकि वो हर महीने पांच रुपए बढ़ता है तो दो रुपए घट जाता है..कुल मिलाकर ये ही महंगाई जिस दिन घट जाए..उस दिन समझो अच्छे दिन आ गए..जिसका सवाल ही पैदा नहीं होता..कोई माई का लाल कितना ही दम लगा ले..अगर देश में ऐसा हो जाए..तो समझ लो कि ऊपर से कोई अवतार आया और चमत्कार करके चला गया।

आम बजट में सर्विस टैक्स और बढ़ गया..समझ लो कि अब ऐसी कौन सी चीज है जिसके दाम नहीं बढने..इसलिए सरकार के भरोसे में मत रहो..अच्छे दिन सरकार सात जन्म में नहीं ला सकती..आप खुद जरूर ला सकते हो..वो कैसे..वो ऐसे..कि अपने जीवन को बेहतर बनाओ..फिजूलखर्ची कम करो...भारत सरकार की तरह घाटे का बजट मत बनाओ..जितनी चादर है उतने पैर पसारो...आमदनी अठन्नी खर्च रुपैया की तर्ज पर मत चलो..हर महीने की बैलेंस शीट चैक करो..कितनी आमदनी हुई..कितना खर्च हुआ..कितनी बचत कर पाए..इसके साथ ही आगे की सोचो कि महंगाई बढ़नी ही है..तो अगले साल 15 से 25 प्रतिशत तक आमदनी नहीं बढ़ी तो आप घाटे के बजट में चले जाएंगे..जो बचा पा रहे हैं उसमें और कमी आ जाएगी। बच्चे की पढ़ाई में खर्च बढ़ना ही है..मकान किराया बढ़ना ही है..उनकी तरह राजसी ठाठबाट में मत रहो जिन पर महंगाई का असर कभी नहीं पड़ता..काली कमाई वालों को नहीं मालूम होता कि कल सब्जी सस्ती थी या फिर आज..वो कभी नहीं देखते कि पेट्रोल महंगा हुआ..या सस्ता हो गया। उन्हें नहीं मालूम कि मकान किराया हर साल बढ़ जाता है..जिनकी कोठियां हों वो तो दूसरों पर महंगाई थोपते हैं..तभी वो और मोटे सेठ होते हैं। वो आपकी तरह सब्जी खरीदने नहीं जाते..


जीवन अपनी तरह से जीयो..जितनी भी कमाई है उसमें तालमेल बिठाना सीखो..उसे सलीके से खर्च करना सीखो..जरूरी खर्च में कोताही मत बरतो..विलासिता की होड़ में न रहो...कितनी भी कम कमाई हो..बचत करना सीखो...सरकार को गाली मत दो..गाली देते रहोगे..आप का गला थक जाएगा..ज्यादा होगा तो अस्पताल चले जाओगे..आपका खर्चा और बढ़ जाएगा..खुद की कमियां देखो..खुद की बेहतरी देखो..खुद की मेहनत देखो..खुद के संघर्ष को देखो..और फिर सोचो कि इससे अच्छा कैसे होगा..क्योंकि अच्छे दिन आपको खुद लाने हैं न कि सरकार को.जिस दिन ये समझ लोगे उस दिन से आपके अच्छे दिन की शुरूआत हो जाएगी नहीं तो आप भी सरकार की तरह अपने परिवार को वायदे के झुनझने पकड़ाते रहोगे..ख्याल पुलाव पकाते रहोगे कि हमारे भी अच्छे दिन आएंगे...बाकी फिर......






Friday, February 27, 2015

बढ़े हो गए बच्चे

हमारे जमाने में न मोबाइल थे..न फोन..न ही टीवी चैनल..न ही मल्टीप्लेक्स...न सोशल मीडिया...न हम जानते थे कि वेलेंटाइन डे क्या है..प्रपोज कैसे करते हैं..जहां तक मुझे याद है दसवीं और बारहवीं तक लड़कियों के सामने जाने में झेंप जाते थे..बात करने की बात तो दूर...यूं कहो कि जब ग्रेज्यूशेन में पहुंचे तो को एड शुरू हुई..और लगा कि अब हम बड़े हो गए हैं।

पिछले दस साल से पंद्रह साल में जमाना इतनी तेजी से बदला..टीवी चैनल आए..फोन के बाद मोबाइल आए..फिल्मों की पहुंच पेन ड्राइव तक हो गई। फेसबुक..टविटर..यूटयूब ने बच्चों की लाइफ ही बदल दी। बड़ों को अपने कामकाज से फुर्सत नहीं...परिवार के झमेलों का तनाव..तेज भागती जिंदगी में वक्त नहीं..आफिस को देखें..कामकाज का प्रेशर झेलें..कुछ घंटों की नींद लेना मुश्किल..ऐसे में बच्चों को देखने की हमें फुर्सत कहां...
जब हमें फुर्सत नहीं तो बच्चों ने भी तेजी से बढ़ना शुरू कर दिया और वक्त से पहले ही बड़े नहीं हो रहे..पांचवीं कक्षा के बाद वो फेसबुक पर आने लगे हैं..यूटयूब देखने लगे हैं...और दुनिया पित्तल दी..जिंदगी लुल्ल हो गई...मुन्नी बदनाम हुई..जैसे गाने गुनगुनाने लगे हैं..उन पर थिरकने लगे हैं। यही नहीं हम उन्हें कुछ दे नहीं पा रहे ऐसे में वो जो भी कर रहे हैं..उस पर हम उनकी हौसला अफजाई करने लगे हैं..छोटा सा बच्चा जब कहता है कि मेरी जिंदगी लुल्ल हो गई है या फिर मुन्नी बदनाम हो गई तो हम ठहाके लगाते हैं..और बोलते हैं शाबाश बच्चे..वेल डन..कीप इट अप..लगे रहो....

बच्चे अब खुद तय करने लगे हैं कि क्या अच्छा है..क्या बुरा..उन्हें क्या करना है..और यदि कोई रोकता है टोकता है तो मां-बाप को वो सुनाते भी हैं..बेकवर्ड भी बोलते हैं..और समझाते भी हैं कि स्मार्ट फोन में कौन सी सेटिंग कैसे करनी हैं..क्या बटना दबाना है कहां क्लिक करना है कहां नहीं....लेकिन  क्या कभी हमने सोचा है कि तेजी के जमाने में हमारे बच्चे इतने बड़े क्यों हो गए हैं..इतना मेटेरियल उन्हें कैसे मिल रहा है जो हम ग्रेज्यूशेन तक नहीं जुटा पाए..या सीख पाए....क्योंकि उस वक्त तक मोबाइल क्रांति नहीं हुई थी। इसमें वो सारे आप्शन हैं जो बड़े-बड़े एक्सपर्ट तक न समझ पाएं..लेकिन ज्यादातर बच्चों तक उनकी पहुंच हो जाती है...क्या नया फीचर है..क्या नया तरीका है...आप जो कह रहे हैं..जो लिख रहे हैं..वो दो लोगों के अलावा तीसरा नहीं पढ़ सकता। उसे भी कुछ वक्त के बाद डिलीट किया जा सकता है। चलते-चलते इतनी हरकतें होने लगी हैं..या बच्चे कर रहे हैं कि आप अंदाजा नहीं लगा सकते..आप खुद को तीसमारखां भले ही बोलो..लेकिन बच्चे आपसे आगे बढ़ चुके हैं। इतना जरूर कहूंगा कि उन्हें रोको मत..टोको मत..लेकिन नजर जरूर रखो..क्योंकि आज के जमाने में कौन-किस के संपर्क में हैं..किसकी किस पर नजर है...कौन क्या गुल खिला रहा है..न तो आपके बच्चे को मालूम है और न ही आपको....कहीं ऐसा न हो..बच्चा जब तक बढ़ा हो..उसके पहले ही उसका बुढ़ापा आ जाए..और खुद को दोषी ठहराएं...डरे नहीं..पर सतर्क जरूर रहें..मर्यादा के साथ रहें...इतना समझ लीजिए कि जितने मन में आप चालाक हैं..बच्चा आपसे ज्यादा चालाक हो चुका है...बाकी फिर......




Thursday, February 26, 2015

विचार बोल्ड..मन ब्यूटीफुल

अरुंधति भट्टाचार्य..एसबीआई प्रमुख...चंदा कोचर सीईओ..आईसीआईसीआई बैंक...शिखा शर्मा..सीईओ एंड एमडी एक्सिस बैंक..किरण मजूमदार...संस्थापक बायोकान...अखिला श्रीनिवासन...एमडी श्रीराम लाइफ इंश्योरेंस...उषा सांगवान..एमडी भारतीय जीवन बीमा निगम..मेरीकाम..सायना नेहवाल...पीटी ऊषा...इन्हें कहते हैं बोल्ड एंड ब्यूटीफुल...ऐसी और भी महिलाएं हैं जो कर्म से बोल्ड हैं और ब्यूटीफुल हैं...


शरीर की चमक-दमक से कोई सुंदर नहीं होता...शरीर को फोल्ड करने से कोई बोल्ड नहीं होता...अपने कर्म से..अपनी मेहनत से...अपने विचार से ..अपनी सोच से..अपने संघर्ष से..अपने व्यवहार से महिलाएं बनती हैं बोल्ड एंड ब्यूटीफुल....तन से बड़ा है मन...मन सुंदर हैं..दिमाग बोल्ड है..विचार बोल्ड हैं..तब कहीं जाकर आप कहलाते हैं बोल्ड एंड ब्यूटीफुल...गोरी चमड़ी..अंग प्रदर्शन..भड़कीली ड्रेस...भड़काऊ अदाओं से आप कुछ वक्त के लिए फायदा उठा लें...कुछ लोगों में अपनी पहचान बना लें..कुछ कमा लें..लेकिन न तो जीवन को बेहतर बना सकते हैं..न समाज में अपना स्थान बना सकते हैं..

महिला हो या पुरुष..शार्टकट से जब चलता है तो मात खा जाता है..कुछ पल के लिए लगता है कि हम रेस में आगे हैं..लेकिन जब पैर फिसलता है तो धूल में मिल जाते हैं..जब आप अपने शरीर को बेचने की कोशिश करते हैं तो उसी पर आश्रित हो जाते हैं और उसकी भी एक सीमा होती है चाहे शारीरिक हो मानसिक..ज्यादा जोर डालेंगे तो वो भी बोल जाएगा। वो महिलाएं अच्छी हैं जो मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालती हैं..वो महिलाएं अच्छी हैं जो एक-एक पैसा के लिए दिन रात एक करती है लेकिन ईमानदारी से..जितने भी लोग उन्हें जानते हैं..दिल से सम्मान करते हैं।

जो महिलाएं तन के बल पर आगे बढ़ने की होड़ में रहती हैं..वो जब गिरती हैं तो कोई साथ देने वाला नहीं होता...वो भले ही समझें कि हम विख्यात हैं लेकिन होती हैं कुख्यात...जो उन्हें सोशल मीडिया पर लाईक भी करते हैं तो किस भाव से.. आप समझ सकते हैं...लोग कैसे-कैसे उनकी व्याख्या करते हैं...क्या सोच रखते हैं...उभारों को उभार कर खुद को भले ही सातवें आसमान पर समझें लेकिन हकीकत उन्हें भी मालूम है कि उनके पास इसके अलावा कुछ नहीं...भीतर से उनका भी यही दर्द है कि दिमाग को उन्होंने ताक पर रख दिया है और कर्म को भुला दिया है। संघर्ष उनकी डिक्शनरी में नहीं...सबसे शार्टकट रास्ता अपनाने के चक्कर में जीवन का अर्थ खो दिया है...जीवन के सच से मुंह मोड़ लिया है..कुछ मित्र वाक्या सुना रहे थे कि दिल्ली में किस तरह आधी रात के बाद उन्होंने कैसे-कैसे मंजर देखे..ऐसी-ऐसी युवतियां..ऐसे-ऐसे कारनामे..देखने वाले दंग रह जाएं..सुनने वाले सिहर जाएं...लेकिन दुस्साहस देखिए उनका..किसी की कोई परवाह नहीं..ये बात अलग है कि जब आप गलत रास्ते पर सरपट भागते हैं तो चोट लगनी स्वाभाविक है..वो भी ऐसी कि सारा नशा काफूर हो जाए..और हाथ मलते रहे जाएं..वक्त बीतने के बाद अफसोस ही कर पाएंगे...बाकी फिर....





न बोल्ड न ब्यूटीफुल

आज महिलाओं की बात करते हैं..एक से बढ़कर एक महिलाएं हैं..सबके अपने-अपने रंग..हर कोई अपने-अपने मग्न है..कोई कामकाजी है..कोई घरेलू महिला है..किसी को पढ़ने का शौक..किसी को लिखने का..कोई गीत-संगीत में मग्न..कोई खाना बनाने में..कोई धर्म-कर्म में...किसी को शापिंग में मजा आता है तो किसी को अच्छी-अच्छी ड्रेस पहनने में..इन सबके बीच उनका परिवार है..पति है..बच्चे हैं जिनकी शादी नहीं हुई है वो अपने माता-पिता के साथ व्यस्त..यही उनकी दुनिया है..इन महिलाओं को समाज नोटिस नहीं करता।

जिन महिलाओं को नोटिस करता है उनमें से कुछ महिलाएं बिलकुल अलग किस्म की है..पता नहीं उनकी कोई दुनिया है या नहीं..उनकी जो दुनिया दिखती है बड़ी बदरंग है। सोशल मीडिया पर उसके दर्शन होते हैं..अपने शरीर के बलबूते पर अपनी पहचान बनाना चाहती हैं..अपने उभारों के बलबूते पर लोगों को आकर्षित करना चाहती हैं। पता नहीं..ये उनका शौक है..मजबूरी है या फिर फेमस होने का जरिया..जब आप मानसिक रूप से खोखले हो जाते हैं..दिमागी रूप से शून्य हो जाते हैं तो आप क्या करेंगे..आपके पास बचता है जिस्म. जिससे अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं..पता नहीं उनके परिवार इसे किस रूप में लेते हैं..कैसे सहन करते हैं...कोई जिस्म के जरिए मेहनत करता है तो मजदूरी कर पेट पालता है..कुछ अपने दिमाग के जरिए अपनी कमाई करते हैं..समाज में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं जिनके पास कुछ नहीं होता है..तो अपने शरीर को देखते हैं और उसे पेश कर अपना जीवन आगे बढ़ाना चाहते हैं।

पहले होता था कि जब आपके पास कोई चारा नहीं बचा तो आप अपने शरीर का सहारा लेंगे लेकिन अब फैशन बन गया है..एक शार्टकट है जिसके जरिए न तो आपको मेहनत करनी है..न दिमाग को खर्च करना है बस उस शरीर को पेश करना है और उस पर लगे पर्दे को हटाना है। ये उनकी नजर में सबसे सस्ता..सुंदर और टिकाऊ माध्यम है..कुछ लोग भले ही गाली दें...उनके बारे में निचले स्तर के विचार रखें लेकिन हकीकत ये है कि आपकी उन पर नजर पड़ती है...एक नजर तो जरूर देखते हो...और जब देख लेते हो कि कोई नोटिस नहीं कर रहा है तो और मौका तलाशते हो..फिर आप  उसकी बेशर्मी पर दूसरों से टिप्पणी करते हैं। इसे आज का जमाना भले ही बोल्ड एंड ब्यूटीफुल कहे लेकिन ये कहीं से ब्यूटीफुल नहीं...बोल्ड भी नहीं...आगे चर्चा करेंगे कि क्या बोल्ड होता है और क्या ब्युटीफुल...ये तो वो फूल हैं जिसे हिंदी में बेवकूफ कहते हैं...करने वाले भी और देखने वाले भी...बाकी फिर.....







Wednesday, February 25, 2015

जितनी चादर हो उतने पैर पसारो...

क्या आप भारत सरकार की तरह व्यवहार कर रहे हैं जो किसी की मदद करती है और खुद भी मदद मांगती है..लोन देती भी है और लोन लेती भी है....आप उधार क्यों लेते हैं और उधार क्यों देते हैं...आप बोलेंगे कि इसमें कौन सी अबूझ पहेली है...जब आपके पास पैसों की कमी होगी तब आप उधार लेंगे और जब आपसे कोई मांगेगा और आपके पास ज्यादा पैसा होगा..तब ही आप उधार लेंगे। क्या कभी आपने सोचा है कि उधार लेने से और उधार देने से न केवल आपको जीवन में कितनी मुश्किल होती है..मानसिक तनाव होता है..संबंध खराब होते हैं और आपका पैसा भी डूब जाता है.. या फिर आपको ज्यादा रकम खर्च करनी पड़ती है।


ये तो आपको मालूम ही है कि जब आप बैंक से लोन लेते हैं तो करीब दुगना उसे वापस करते हैं...भले ही लंबे अंतराल में..इसमें कोई दिक्कत नहीं..क्योंकि आपके पास रकम थी ही नहीं..जो आपको मिली..इसके लिए आपने दुगनी रकम दी। लेकिन कभी आपने सोचा कि आप एक जिद पूरी करने के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं। अगर आपकी हैसियत है तो आपने मकान ले लिया...आपकी हैसियत है तो गाड़ी ले ली..इसके बाद एक-एक कर आप आधे से ज्यादा वेतन को ईएमआई पर ले गए...और चैन नहीं आया तो क्रेडिट कार्ड से रकम खर्च कर ली। इसके बाद माथा पकड़ कर बैठ गए..ब्याज भी भर रहे हो..पैनाल्टी भी दे रहे हो..ऊपर से तनाव भी झेल रहे हो..ऐसा शौक किस काम का..ऐसी ऐश किस काम की...कुछ वक्त मजा करने के बाद दिन-रात सजा भोग रहे हो। इससे ज्यादा अति तब हो जाती है जब हम उधार मांगने की हालत में पहुंच जाते हैं...जब आप किसी से भी उधार मांगते हैं तो स्वाभाविक है कि उसके सामने लज्जित होते हैं..उसकी शर्तों को मानते हैं और उसे ज्यादा रकम देते हैं। ऐसे में दोस्ती..रिश्तेदारी..संबंध खराब तो होना ही है..और जब आप रकम नहीं लौटाते हैं तो ये संबंध दुश्मनी तक में बदल जाते हैं।

अगर आप उधार नहीं लेते..जो जाहिर है आप संतुलन के साथ..सोच-समझकर आगे बढ़ रहे हैं लेकिन तब भी आपको लोग चैन नहीं लेने देंगे। शायद ही ऐसा कोई शख्स होगा जिससे कोई उधार मांगने न आया हो...आप उस पर रहम खाकर उधार दे देते हो..अगर वक्त पर उसने लौटा दिया तो ठीक है वरना परेशान आपको ही होना है..पहले उधार लेने वाला चक्कर काट रहा था..अब आप काटोगे...पहले आप उससे बच रहे थे...अब वो आपसे बचेगा...अगर पकड़ में आ गया तो बहाना बनाएगा..मोहलत मांगेगा...और एक सीमा के बाद जब आप हार थक जाएंगे तो यही मानेंगे..कि पैसा डूब गया...तनाव लेंगे।
इसलिए ऐसा काम करो ही नहीं..जिसको करने से पहले से पता है कि नतीजा क्या होगा। आप मेहनत से कमाते हो..और सौ रुपए भी जाता है तो दर्द होता है..इसलिए कोशिश करो कि जितनी चादर हो उतने पैर पसारो....उधार लोगे तो तनाव झेलोगे..और उधार दोगे तो भी....बाकी फिर.......



आपका बजट क्या है

देश का बजट जैसा भी आए..हम अपने बजट को भी देख लें तो जीवन बेहतर हो....बहुत सारे लोगों को मैंने देखा है कि बड़े बंगले..बड़ी गाड़ी में घूमते हैं...महंगा फोन..महंगी ड्रेस पहनते हैं...रईसी दिखा रहे हैं..दोस्तों में अपना जलवा दिखा रहे हैं..आस-पड़ोस वाले जल रहे हैं...रिश्तेदार देखकर दंग हो जा रहे हैं...भई आपका जवाब नहीं...किसी ने थोड़ा चढ़ाया नहीं कि आपने कार्ड स्वीप करा दिया..खाओ पियो मस्त रहो...ऐश करो...लेकिन जब दुखती रग छेड़ो तो बोलेंगे कि  संभल ही नहीं रहा...लोन की लंबी-चौड़ी किश्त है..सब कुछ ईएमआई पर चल रहा है..मकान की इतनी..गाड़ी की इतनी..मोबाइल की इतनी...यानि इन्होंने जो भी खरीदा..ईएमआई पर ही खरीदा..और खरीदते चले जा रहे हैं...साथ में रोते भी जा रहे हैं।



दूसरे प्रकार के लोग होते हैं जो एमआईजी खरीद सकते हैं लेकिन खरीदेंगे एलआईजी...महंगी कार ले सकते हैं लेकिन लेते हैं छोटी गाड़ी...फोन ऐसा लेंगे जिससे काम चल जाए..यानि हर जगह किफायत...कम से कम लोन...कम से कम ईएमआई....उधार में नहीं नगद में भरोसा....ऐसे लोग दबा कर चलते हैं...जल्दबाजी में नहीं रहते।दूसरों की देखादेखी नहीं करते हैं..झूठी शान में नहीं जीते हैं और अपनी आर्थिक क्षमता को ध्यान में रखते हैं..ऐसे लोगों को आप परेशान नहीं देखेंगे। आपकी जितनी कमाई है यदि खर्च में उसी हिसाब से संतुलन हैं तो आप मानसिक तनाव से नहीं घिरते। 

जब आप एक प्लानिंग के साथ हर महीने का और साल का बजट बनाते हैं...यानि मकान..गाड़ी...पढ़ाई..खान-पान..मनोरंजन...यात्रा...कहां कितना खर्च करना है..कितना जरूरी है..कितना सही है.. हर महीने कितना खर्च...कितनी बचत...और यही स्थिति साल भर की...यानि कहीं अनुपात गड़बड़ा गया तो अगले महीने संभाल लिया। ये नहीं कि महीने दर महीने खर्चे पर खर्चे किए जा रहे और कोई हिसाब ही नहीं रखा...चाहे आप दस हजार रुपए महीने कमाते हों या फिर एक लाख रुपए महीने...ये आप पर निर्भर है कि आप मकान पर कितना खर्च करें..गाड़ी पर कितना करें..पढ़ाई पर कितना करें...खान-पान पर कितना करें..मनोरंजन पर कितना करें..और एक होता है विविध यानि मिसलेनियस..जो सबसे खतरनाक होता है जिसका पता भी नहीं चलता कि आपने कहां खर्च किया है और कितना किया है और क्यों किया है लेकिन जब टोटल आएगा तो हो सकता है कि जरूरी मदों से ज्यादा हो जाए...इसलिए कुल कमाई का कम से कम एक चौथाई हिस्सा बचत में जाना जरूरी है जो आपके आड़े वक्त आए...ये थोड़ा ज्यादा भी हो जाए तो गलत नहीं..क्योंकि बचत ही होती है जिसके आधार पर आपका कान्फीडेंस बढ़ता है। जो रोज खर्च कर रहे हो उससे घटता है लेकिन जो डिपाजिट है उससे आपमें मजबूती है। इसलिए बजट खुद तय करिए..संतुलन के साथ करिए..ऐसा भी नहीं कि केवल बचत करें..और जीवन के रंग फीके हो जाएं...हर चीज का महत्व है..पढ़ाई का भी है...मकान का भी है..गाड़ी का भी है..खानपान का भी है..मनोरंजन का भी है और स्टेटस सिंबल का भी है लेकिन बैलेंस हो तो फिर आपका बजट सबसे अच्छा है...बाकी फिर.......


Tuesday, February 24, 2015

सावधानी हटी..दुर्घटना घटी

ट्रेन का सफर तो एक-दो दिन में पूरा हो जाता है पर जिंदगी का सफर लंबा है और इसे सुहाना बनाना है तो पूरी प्लानिंग के साथ..संतुलन के साथ..अनुशासन के साथ..सुरक्षा के साथ..धैर्य के साथ पूरा करना होगा। हम हमेशा दो मोर्चे पर काम करते हैं..एक तो शारीरिक और दूसरा मानसिक...शारीरिक दिनचर्या जब तक व्यवस्थित नहीं होगी...उसमें अनुशासन नहीं होगा..संतुलन नहीं होगा..शरीर साथ छोड़ने लगेगा। शरीर रेल की तरह ही है जो नई होगी तो मेंटिनेंस फ्री रहेगी..धीरे-धीरे उसके इंजन को..उसके शरीर में मरम्मत..ब्रेक आयल..क्लच प्लेट...चार्ज बैटरी...टायर में हवा..की जरूरत पड़ेगी। यानि आप प्रकृति के अनुरूप सुबह कितने बजे सो कर उठते हैं..कितने बजे नाश्ता करते हैं..कब तैयार होकर काम पर निकलते हैं..कब लंच करते हैं..कब डिनर करते हैं..कब सोते हैं और कितना सोते हैं। सेहत को बरकरार रखने के लिए क्या खाते हैं कितना खाते हैं और कब खाते हैं। चाहे आंखें हों या पेट हो..या हाथ-पैर हों..किसी पर ज्यादा बोझ लादा..तनाव दिया तो बोल जाएंगे और फिर डाक्टर सुधार करता रहेगा लेकिन वो मजबूती नहीं आएगी जो नेचुरल थी।


जितना शरीर का ध्यान रखना जरूरी है..उससे कहीं ज्यादा मानसिक मजबूती और स्वस्थ होना जरूरी है। आपकी सोच कैसी है पाजिटिव या निगेटिव..पाजिटिव सोच आपके काम को बेहतर बनाती हैं..एक उत्साह और इनर्जी पैदा करती है..हौसला देती है और उड़ान भरने के लिए तैयार रखती है...निराशा आपके मानसिक और शारीरिक सेहत को कमजोर कर देती है। जो आप सोचते हैं उसे आपको करना भी है इसके लिए प्लानिंग भी होनी चाहिए..अनुशासन भी होना चाहिए...केवल सोचते हैं तो जीवन भर सोचते रह जाएंगे..प्लानिंग को अमल में नहीं ला पाएंगे। अगर वक्त के पाबंद हैं..और समय सीमा का ध्यान रखते हैं तो सोच काम में तब्दील होती है और मंजिल की और तेजी से बढ़ने लगती है। जिस स्टाप पर रुकना है..समय देना है वहां रुकना भी होगा..बिना ब्रेक के चलेंगे तो एक्सीडेंट कर बैठेंगे..आपके काम को क्षति पहुंचेगी और आपको भी...ब्रेक यानि धैर्य भी जरूरी है। जहां रास्ता साफ है वहां जितनी मर्जी स्पीड बढ़ाएं लेकिन ये भी ध्यान रखें कि हड़बड़ाहट में नहीं..सुरक्षा के साथ..नहीं तो सावधानी हटी..और दुर्घटना घटी...


जीवन के सफर में अगर शताब्दी एक्सप्रेस की रफ्तार से चल रहे हैं तो आपकी पटरियां भी मजबूत हों...वक्त का ध्यान हो..सेहत भरा भोजन हो...मंजिल पर आप अच्छे माहौल में पहुंचेंगे नहीं तो किसी भी स्टेशन पर रुके रह जाएंगे और जितनी देर रुके रहेंगे..उतना ही जीवन पिछड़ जाएगा। वक्त-वक्त पर आत्म चिंतन भी करना होगा कि सब कुछ अपडेट है या नहीं...कहीं सफर में कोई कमजारी तो नहीं आ रही...न तो लगातार सफर अच्छा..न ही एक स्टेशन पर खड़े रहना..न तो इंजन का इतना दोहन करना कि सौ साल के सफर का खात्मा आधे रास्ते में हो जाए। न तो ऐसे सफर करना कि डेंट-पेंट लग जाए..या फिर आपके परिवार के डिब्बे पटरियों से उतर जाएं। जैसे किसी ट्रेन के बारे में इमेज होती है वैसे ही आपकी इमेज भी बनती या बिगड़ती है। अगर राजधानी एक्सप्रेस बनना है तो इमेज का भी ध्यान रखना होगा ताकि हर कोई आपकी ट्रेन का डिब्बा बनकर सफर करना चाहे नहीं तो एक बार के बाद लोग दूसरे का रुख कर लेंगे और लोगों का साथ आपसे छूटता जाएगा। यानि सफर अकेले नहीं होता..उसमें आपका परिवार..आपके दोस्त..आपके प्रशंसक...भी होते हैं..ऐसे यात्रियों का भी ध्यान रखना है जो ट्रेन को डेमेज करने वाले होंगे..उनसे सावधानी रखनी होगी..सुरक्षा करनी होगी..जवाब भी देना होगा...ये आप पर है कि आप जीवन की इस रेल को क्या रुप देना चाहते हैं क्या नाम देना चाहते हैं..कितनी तेजी से सफर करना चाहते हैं..और आपनी मंजिल पर किस तरह पहुंचना चाहते हैं...बाकी फिर.....


ये सफर नहीं है सुहाना

हर साल रेल बजट आता है..हर बार मीडिया दिखाती है कि किस तरह राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस जैसी खास ट्रेनों की पेंट्री कार कितनी गंदी है..इन ट्रेनों में सफर करने वाले खुद को वीआईपी मानते हैं लेकिन भोजन जिस तरह बन रहा है..उसे बनते देख लो तो जीवन भर ट्रेनों में खाने से मुंह मोड़ लो। जहां खाना बन रहा है वहां इतनी गंदगी..कीड़ों-मकोड़ों की मौजूदगी...गंदा पानी...खुले में रखी खाद्य सामग्री...और ठीक उसके उलट जब हमारे पास आती है तो कर्मचारी साफ-सुथरी ड्रेस में..बड़े नजाकत से ढकी हुई थाली में मिनरल वाटर के साथ जब भोजन रखता है तो हमें लगता है कि पैसा वसूल हो गया। जब वीआईपी ट्रेनों का ये हाल है तो बाकी ट्रेनों में क्या परोसा जा रहा होगा..आप अंदाजा लगा सकते हैं।

एक तरफ जो पैसा खर्च किया है उसका मोह..दूसरी तरफ सेहत..हम अक्सर पैसे की ओर झुक जाते हैं..जिसका नतीजा हमें उससे कई गुना महंगा भुगतना पड़ सकता है। ये तो है ट्रेनों के खाद्य सामग्री की हकीकत..दूसरी हकीकत है रेल प्रबंधन की..माननीय मंत्री जी कहते हैं..हमारा लक्ष्य है सुरक्षित सफर..बेहतरीन भोजन..पानी...साफ-सफाई..समय पर मंजिल तक पहुंचाना और न जाने क्या-क्या। आप अच्छी तरह समझते हैं कि इतने सालों के बाद भी अगर रेलवे स्टेशन पर आप पानी पी रहे हैं तो जरा टंकी में झांक कर देख लीजिए कि उसमें कितना पानी है..कितने कीड़े-मकोड़े हैं और कितना कचरा है..साफ-सफाई की बात करें तो दिल्ली के स्टेशन पर ही देख लीजिए कि प्लेटफार्म से लेकर पटरियों के बीच कितनी सुहानी तस्वीरें हैं। अब बात कर लेते हैं सुरक्षा की तो...एक्सीडेंट हो जाए तो रेलवे की गलती नहीं...या तो ड्राइवर की होगी..या स्टेशन मास्टर की..या फिर भगवान भरोसे छोड़ी गईं रेलवे क्रासिंग की...

जहां तक वक्त पर पहुंचाने की बात है तो कहने ही क्या..एक बार ट्रेन वक्त पर पहुंची तो एक विदेशी ने कहा कि अरे..वाह भारत में भी ट्रेन सेंकडस के हिसाब से चलती है..तो भारतीय ने बताया कि ये आज की नहीं कल की ट्रेन आई है। ये तो मजाक की बात है लेकिन हमारे साथ मजाक कम नहीं हो रहा...अगर ट्रेन लेट हो गई है तो इसकी सूचना पाना भी आसान नहीं...139 नंबर पर आपरेटर आ जाए तो बड़ी बात..पूछताछ खिड़की पर लंबी-लंबी कतारें और सूचना देने वाला गुस्सा...उस पर ही मजाक ये कि जितनी देरी बताई जा रही है..उतनी ही देर और लग जाए तो कोई नई बात नहीं...ट्रेन है...व्यवस्था है...सफर है लेकिन अनुशासन बिलकुल नहीं..न तो यात्रियों का न रेलवे प्रबंधन का...रिजर्वेशन के डिब्बे में भी यात्री ऐसे भरे पड़े रहते हैं कि आप सीट तक पहुंच जाए तो आप साहसी पुरुष...बिहार के लोग ट्रेनों का जो किस्सा सुनाते हैं तो सुनने वाले को लगता है कि कामेडी शो है और जो भुक्तभोगी है उसके लिए नरक की यात्रा है..तीन चार महीने पहले से रिजर्वेशन मिल जाए तो आप लकी है..नहीं तो हमेशा वेटिंग से ही शुरूआत होती है..ऐसा करिश्मा फुल प्रूफ सिस्टम में कैसे संभव है ये रेलवे उन दलालों से पूछे..जो एक रात पहले भी आपको कन्फर्म टिकट दे देंगे लेकिन दुगने और तिगने दाम में। चलो टिकट मिल गया तो ट्रेन में आप घुसेंगे कैसे..ये आपकी जिम्मेदारी है रेलवे की नहीं..टायलेट में अगर 12 यात्री घुस सकते हैं तो डिब्बे में कितने..ये आप केलकुलेशन कर लीजिए। अगर दुमका से ट्रेन जा रही है तो नक्सली आपका स्वागत कभी भी कर सकते हैं..ये आपकी किस्मत पर निर्भर है। अव्वल तो ज्यादातर प्लेटफार्म टिकट लेते नहीं..जो लेना भी चाहें तो ट्रेन निकलने के बाद ही मुमकिन है।

हैरानी इस बात की है कि कोई मानीटर सिस्टम है या नहीं...कोई पेट्रीकार देखता है या नहीं..कोई पानी की टंकी में झांकता या नहीं..प्लेटफार्म तो इतना बड़ा है फिर वहां की और पटरियों पर गंदगी क्यों नहीं दिखती..रिजर्वेशन के डिब्बे में इतने लोग कैसे घुसकर सफर कर लेते हैं। कोई पूछताछ नंबर पर डायल कर जांच क्यों नहीं करता..उन दलालों से ये रहस्य क्यों पता नहीं लगा पाते कि कन्फर्म टिकट के लिए उनके पास कौन सी जादू की छड़ी है। यदि ये सिस्टम रेलवे के अफसरों को नहीं दिखता तो फिर बुलेट ट्रेन की क्यों सोच रहे..पहले पैसेंजर ट्रेन की हालत ही सुधार लो..पानी-भोजन को ही सुधार लो..पूछताछ और रिजर्वेशन को ही सुधार लो..बुलेट ट्रेन में बाद में सवार हो लेंगे...नहीं तो ऊपर दिया टाइटिल ट्रेन पर लगा दो..और चलते रहो...बाकी फिर......







Monday, February 23, 2015

what is your religion

मदर टेरेसा लोगों को ईसाई धर्म में शामिल करने के लिए सेवा करती थीं..ये कहना है आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का..इतने सालों बाद मदर टेरेसा पर ये सवाल उठाना भी कई सवाल खड़े करता है..अगर मोहन भागवत सही भी हैं तो आज ये सवाल क्यों उठा..वो भी उस महिला के लिए जिसे शांति दूत कहा गया..जिसने जीवन भर लोगों की सेवा की...अगर मैं जीवन भर पीड़ित हूं..शोषित हूं...आर्थिक तंगी का शिकार हूं...और कोई आकर मेरा जीवन संवारता हैं..मुझे संबल देता है..मेरी सेवा करता है..तो मैं कोई भी धर्म स्वीकार कर लूं...कम से कम मदर टेरेसा उनसे तो बेहतर थीं..जो किसी एक धर्म के लोगों के बच्चे को कुत्तों के पिल्ले कहते हैं..उनसे तो बेहतर थीं जो चार-चार बच्चे पैदा करने को कहते हैं।

मेरे कई जानने वाले हैं जिन्होंने बच्चे गोद लिए हैं..न तो उस बच्चे को मालूम कि वो कहां पैदा हुए..उनके माता-पिता किस धर्म के थे..किस जाति के थे..उन्हें केवल ये मालूम कि वो अब जहां हैं वो उसी के हैं। पीके फिल्म में आमिर कहते हैं कि बताओ धर्म का ठप्पा कहां लगा है..एक तथाकथित संत के आगे हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई को खड़ा कर देते हैं और उनसे पहचानने को कहते हैं तो वो वेशभूषा के आधार पर बताते हैं जबकि हकीकत में वो किसी और धर्म के होते हैं। जीवन की हकीकत भी यही है..जब कोई बच्चा इस दुनिया में आता है तो उसे नहीं मालूम होता है कि उसका धर्म क्या है..उसके माता-पिता जैसा कहते हैं..वो करता जाता है..जैसा बताते हैं..वो ही संस्कार ढालता जाता है और जब वो बड़ा होता है तो वो यही सब अपने बच्चों के साथ करता है।

आप पूजा करो या इबादत..आप गुरुद्वारे जाओ या चर्च...ऐसा कौन सा धर्म है जो आतंकवादी बनने को कहता है..ऐसा कौन सा धर्म है जो चोर-डकैत बनने को कहता है..ऐसा कौन सा धर्म है जो धोखाधड़ी करने को कहता है..ऐसा कौन सा धर्म है जो भ्रष्टाचार करने को कहता है। ऐसा कौन सा धर्म है जो झूठ बोलने की ट्रेनिंग देता हो... ऐसा कौन सा धर्म नहीं..जो इंसानियत न सिखाता हो..दरअसल हम अपनी सुविधा से परिभाषाएं गढ़ते हैं...हम करते हैं तो वो लीला होती है..दूसरे करते हैं तो पाप होता है...छत्तीसगढ़ में ईसाई से हिंदू बनाए जाते हैं तो उसे घर वापसी कहते हैं...अगर हिंदू से कोई मुस्लिम या ईसाई बनता है तो उसे धर्मांतरण कहा जाता है।

जहां हमारा जीवन सुख से चले..सुविधा से चले..शांति से चले..वो धर्म सबसे अच्छा..कोई अगर इसके लिए कहता भी है तो क्या बुरा है...आलोचना करने में पैसा खर्च नहीं होता...सवाल ये है कि अपना घर ठीक कर लो..तो दूसरे के घर के तरफ कोई क्यों देखेगा...अपनी कमियां सुधार लो...तो दूसरे पर सवाल उठाने की जरूरत नहीं...किसी धर्म ने ठेकेदारी का टेंडर पास नहीं किया..तो स्वयभूं ठेकेदार कहां से आ गए...कोई भी धर्म हो..उसमें रहने का अधिकार हमारा खुद का है..अगर बुरा है तो हमारा है..अच्छा है तो हमारा है..दूसरे के पेट में दर्द क्यों होता है...अगर दर्द है तो उसकी दवा दो..बाकी फिर........



स्वास्थ्य मंत्री को स्वाईन फ्लू

देश विश्व शक्ति बनने वाला है..सौ स्मार्ट सिटी बनेंगी..देश की गंगा साफ हो जाएगी...भ्रष्टाचार मिट जाएगा..महंगाई कम हो जाएगी...दिल्ली वाई-फाई हो जाएगा..और न जाने क्या-क्या हो जाएगा..लेकिन स्वाईन फ्लू से कौन निपटेगा..आपका जवाब होगा..सरकार...लेकिन नहीं..अभी-अभी न्यूज चैनल पर एक खबर फ्लैश होती दिखी..कि गुजरात के स्वास्थ्य राज्यमंत्री को स्वाईन फ्लू हो गया..उसके पहले जम्मू के एसपी को और गाजियाबाद के डीएम को...एक आईएएस दंपत्ति को..डाक्टरों को..स्वास्थ्य कर्मचारियों को..आम आदमी की तो बात ही मत करिए..आंकड़ा आठ सौ से ज्यादा के मरने का हैं..मरीज हजारों में हैं..जिनका आंकड़ा नहीं..उनकी कोई गिनती भी नहीं कर रहा...

गनीमत यहीं तक नहीं..स्वाईन फ्लू की नकली दवाएं मार्केट में आ गईं...बदमाशों ने स्वाईन फ्लू के नाम पर घरों में जाकर दवा पिला कर रकम ऐंठने का काम शुरू कर दिया...इतने गंभीर मसले के बीच WhatsApp  पर एक मैसेज चल रहा है कि जितने लोग मरे हैं..या जितने लोग स्वाईन फ्लू से पीड़ित हैं..उनमें एक भी शराब पीने वाला नहीं..यानि जो दारू पी रहा है उसे स्वाईन फ्लू नहीं हो रहा। ये है हमारा देश..जहां स्वास्थ्य राज्यमंत्री खुद बीमारी से पीड़ित हो जा रहे हैं..अधिकारी-डाक्टर हो जा रहे हैं..जहां इसके नाम पर गोरखधंधा शुरू हो गया है तो कुछ स्वाईन फ्लू को सेलिब्रेट कर रहे हैं।

गनीमत यहीं तक नहीं...इस बीच विशेषज्ञ बता रहे हैं कि जैसे ही गर्मी बढ़ेगी वैसे ही बीमारी खत्म हो जाएगी...यानि हमें इंतजार है गर्मी का..जो स्वाईन फ्लू को नष्ट करेगा..और हमारी जान बचाएगा। एक ने तो यहां तक कहा कि स्वाईन फ्लू को लेकर डरने की जरूरत नहीं..इसमें बुखार होता है..खांसी होती है..कोई ज्यादा परेशानी नहीं.यानि..अगर स्वर्ग सिधार जाओ तो ज्यादा कष्ट नहीं होगा..पर उपदेश कुशल बहुतेरे..टीवी पर विज्ञापन चल रहे हैं कि सतर्क रहो...स्वाईन फ्लू से...अगर खांसी है तो स्कूल मत जाओ..घर से बाहर न निकलो..स्वाईन फ्लू की बीमारी से पीड़ित शख्स से दूर रहो..रायपुर के सरकारी अस्पताल में स्वाईन फ्लू के दो-दो संदिग्ध मरीज एक ही पलंग पर..ऐसा क्यों..जवाब मिलता है जगह नहीं..अगर स्वाईन फ्लू तो अलग कर देंगे।

इन सारी हकीकत पर हंसी भी आती है दुख भी होता है। जब तक हम खुद नहीं भुगतते...न तो हमें गंभीरता का एहसास होता है न ही हम में चेतना जागती है। उपदेश..सलाह...आलोचना..आसान है..विनम्र विनती है सरकारों से..मंत्रियों...अधिकारियों से..विशेषज्ञों से...ठगों से..कि कम से कम बीमारी के नाम पर ढकोसलेबाजी बंद कर दो..थोड़े गंभीर हो जाओ..थोड़े ईमानदार हो जाओ..थोड़े सतर्क हो जाओ...उनकी सुध ले लो..जो सरकारी अस्पतालों में धक्के खाकर मौत को गले लगा रहे हैं..जो मेहनत की कमाई प्राइवेट अस्पतालों में लुटा रहे हैं...जो ठगे जा रहे हैं..धोखा देना बंद करो..कभी खुद धोखा खाओगे तो सारा नशा हिरन हो जाएगा..सारी मस्ती उड़नछू हो जाएगी..जीवन का सत्य पहचान जाओगे लेकिन तब..जब आप किसी अपने को खो दोगे। बाकी फिर.....










Sunday, February 22, 2015

बच्चा नहीं है मन का सच्चा

ये टाईटिल आपको ठीक नहीं लग रहा होगा लेकिन जैसे आप हैं वैसे ही बच्चे हैं। जैसे-जैसे आप दुनिया के छल प्रपंच में अपना वक्त गुजारते हैं तो बच्चा भी उससे अछूता नहीं रहता। छोटे-छोटे बच्चे ऐसे-ऐसे कारनामे दिखाने लगे हैं कि आपने अपनी उम्र में जिसे करने की कल्पना भी नहीं की होगी। टीवी-फिल्म और अब फेसबुक-यूट्यूब ने सारी कसर पूरी कर दी है। लोग पैदा होते ही बच्चों का फेसबुक-फेक एकाउंट बनाने लगे हैं और वही बच्चा जब बोलने और लिखने की स्थिति में पहुंचता है तो उसकी उंगलियां स्मार्ट फोन पर जितनी तेजी से चलने लगी हैं उतनी तेजी से आपकी हमारी नहीं चल सकती।

एक स्मार्ट फोन में कितने फंक्शन हैं..आप नहीं बता सकते..लेकिन आपका छोटा बच्चा इतना समझदार है कि उसे मालूम है कि कौन सा बटन दबाना है और सेटिंग में कहां-कहां जाना है। कंपटीशन के हाईटेक युग में बच्चों की क्षमता भी बढ़ी है..जितनी तेजी से वो बढ़े हो रहे हैं..हम आजतक नहीं हो पाए हैं। तो स्वाभाविक हैं कि जब वक्त से पहले वो बड़े हो रहे हैं तो जहां तक वो सोच रहे हैं आप सोच नहीं सकते। आपका बच्चा आपके लिए सौ साल की उम्र में बच्चा ही रहेगा। आप उसे ताउम्र वैसे ही डांटेंगे..समझाएंगे..पुचकारेंगे और उसके प्रति दया भाव दिखाएंगे लेकिन बड़ी हैरानी होती है कि आठवीं के बच्चे स्कूल जाने से पहले किसी खंडहर में मनभावन ड्रेस पहनते हैं..फूल वाले के पास स्कूल बैग रखते हैं..और माल में जाकर फिल्म देखते हैं। माल से बाहर आते हैं..स्कूल बैग उठाते हैं और खंडहर में जाकर फिर ड्रेस पहनते हैं..वापस घर पहुंचते हैं..मां सोचती है बेटा-बेटी पढ़कर आए हैं..उनकी सेवा में जुट जाती है। सुबह-सुबह अपने आसपास देखता हूं..सातवीं-आठवीं में पढ़ने वाली लड़की घर से स्कूल के लिए रिक्शे पर निकलती है। अपनी ही कालोनी के बाहर पान के ठेले पर रुकती है..सिगरेट लेकर सुलगाती है..और स्कूल के लिए रवाना होती है। सुबह मार्निंग वाक पर जाता हूं तो ऐसे ऐसे वाक्ये देखने को मिलते हैं कि हैरान हो जाओ..स्कूल जाते छोटे-छोटे बच्चे पार्क में क्या गुल खिला रहे हैं..आप और हमने बचपन में ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी।

अपने स्मार्ट फोन में छोटे-छोटे बच्चे फेसबुक पर कैसे-कैसे कमेंट लिख रहे हैं..कैसे-कैसे फोटो चिपका रहे हैं...कैसे-कैसे वीडियो देख रहे हैं जो आप एडल्ट होने के बाद भी देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। ऐसी ही घटना पर एक छोटी सी फिल्म किसी ने बनाई थी जिसमें दो भाई-बहन होते हैं...दोनों एक-दूसरे को फेसबुक पर चैट करते हैं..दोस्ती होती है..और एक कैफे में मिलने का वक्त तय होता है..जब दोनों एक-दूसरे से मिलते हैं तो क्या होता है..ये बताने की जरूरत नहीं...

 आप तो यही कहेंगे कि नहीं..ऐसे बच्चे हमारे नहीं..हमारा बच्चा बड़ा शरीफ है..नजर उठाकर भी नहीं देखता..दरअसल हम दूसरों को देखते हैं..अपनों को नहीं...कौन क्या कर रहा है..इसका अंदाजा तभी लगता है जब आप खुद उसे देखते हैं। खास तौर से स्मार्ट दुनिया ने बच्चों को भी स्मार्ट बना दिया है और वो वक्त से पहले वो सब कर रहे हैं जो आप और हमें भी नहीं करना चाहिए। कभी बारीकी से नजर डालकर देखिए..कभी बच्चों के चेहरों को पढ़ने की कोशिश करिए...कभी बच्चों को टटोलने की कोशिश करिए...कोई बुराई नहीं...फिर तय करिए कि बच्चा है मन का सच्चा या फिर नहीं हैं मन का सच्चा...बाकी फिर.....







मन की बात

प्रधानमंत्री जी ने बच्चों से परीक्षा को लेकर मन की बात की....हमारे जीवन की परीक्षा में बच्चों की परीक्षा का पूरा दारोमदार है। जितनी बच्चों की परीक्षा नहीं..उससे ज्यादा माता-पिता अपनी परीक्षा मानते हैं। किसी से भी बात करो..इतनी मेहनत किस लिए..तो जवाब मिलता है बच्चों के लिए...बच्चे आगे चलकर नाम कमाएं..पद हासिल करें...पैसा कमाएं..सबकी यही तमन्ना है। बच्चों के पढ़ाने के लिए चाहे जितना खर्च हो जाए..कितनी ही मेहनत करना पड़े..लोन लेना पड़े..लेकिन बच्चों के लिए कोई कमी न रह जाए...माता-पिता चौबीस घंटे इसी चिंता में दुबले होकर जीवन काट देते हैं। हम जो न बन पाए...हमारे बच्चे बन जाएं..हम न केवल उन्हें पढ़ाते-लिखाते हैं...शादी करते हैं..उनके बच्चों को भी पालने या मदद की आस रखते हैं बल्कि इतना करना चाहते हैं कि वो जीवन में किसी परेशानी का सामना न करें..इसके लिए जिंदगी भर जमा-पूंजी इकट्ठी करते रहते हैं ताकि जीवन के आखिरी पड़ाव में उन्हें इतना धन संपत्ति सौंप कर जाएं कि उन्हें कोई कष्ट न हो...आज भी हमारे पिता चिंता करते हैं कि बेटा तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं...75 साल से ज्यादा उम्र के बावजूद उन्हें दिन-रात और कोई काम नहीं...बस बेटे-बेटियों की चिंता..नाती-पोतों की चिंता और उनके सुख-दुख का ख्याल।


ये जीवन की नियति है या फिर परंपरा कि हमारे पिता हमारी चिंता करते हैं और हम हमने बच्चों की...तो आगे चलकर भी यही होना है...जिनके बच्चे बड़े हो चुके हैं..शादी-शुदा है..बच्चे वाले हैं तो फिर वो आपकी कितनी चिंता कर रहे हैं..उनका धर्म है अपने बच्चों की चिंता....दरअसल हम आगे की पीढ़ी की चिंता करते हैं पिछली पीढ़ी की चिंता उसके पहले की पीढ़ी की है। यानि आगे की सोचना है पीछे को भुला देना है..कहते भी हैं कि बीती ताहि बिसार दे..आगे की सुध ले...हमने जो कमाया..उसे अपने बच्चों के लिए छोड़ा..हमारे पिता ने जो कमाया..वो हमारे लिए छोड़ा....जब एक परिवार वक्त बीतने के बाद अलग-अलग युनिट में तब्दील होता है तो
नया मुखिया अपने युनिट की चिंता करता है। ये जीवन का कड़वा सच है कि जिसके लिए आप जिंदगी भर रात-दिन एक कर रहे हैं उसे आपका नहीं..अपने बच्चों का दायित्व निभाना है। ऐसे तमाम माता-पिता मैंने अपनी आंखों से देखे हैं जिन्हें उनके करोड़पति बच्चे शेल्टर होम में छोड़कर चले गए..वो इसलिए क्योंकि वो उनकी लाइफ स्टाइल में फिट नहीं थे..कई ऐसे पिता हैं जिन्हें उनके ही बच्चों ने घर से निकाल दिया क्योंकि अपने ही पिता की कमाई से बना घर उनकी बपौती बन गया। इससे भी ज्यादा हद तो तब होती है कि जिसने जन्म दिया..उसकी ही जान के दुश्मन बन गए। कई लोग कहते हैं कि मैं तो अपने पिता से बहुत प्यार करता हूं..सम्मान करता हूं...लेकिन मेरी पत्नी नहीं चाहती...उसकी इच्छा का सम्मान करने के लिए मैं उन्हें नहीं रख सकता। ऐसी-ऐसी दलीलें हैं लोगों के पास कि पूछो मत...हम तो दूध के धुले हैं पर हालात ऐसे हैं कि हम अपने माता-पिता का इलाज नहीं करा सकते..हम उन्हें अपने साथ नहीं रख सकते। हमारे पिता माल नहीं छोड़ गए..वरना हम भी ऐश काट रहे होते।

कोई माने या न माने पर..मेरा मानना ये है कि बच्चा चाहे दसवीं या बारहवीं की परीक्षा में कितने ही नंबर लाए.पर जीवन की परीक्षा में फेल न हो..वो चाहे कुछ भी बने...कितना भी कम कमाए..कोई भी ओहदा हासिल करे...हमने  जो संस्कार दिए वो न भूले...हमने उन पर जो दुलार लुटाया..वो हमें वापस भी मिले...उसे हमने जो भी दिया..उस पर ताने न मारे...जीवन में ये कभी न भूले कि हमने उसे जन्म दिया...नहीं तो मैं जरूर अपने जीवन में फेल हो जाऊंगा। बाकी फिर.......







Saturday, February 21, 2015

जासूस..आपके आसपास भी हैं

भारत सरकार में तो एक के बाद एक जासूसों का खुलासा होता जा रहा है लेकिन हमारे जीवन में भी जासूसों की कमी नहीं। यहां तक के हमारे परिवार, पड़ोस और दोस्तों से लेकर समाज तक..दफ्तर में स्थानीय प्रबंधन से लेकर मुख्यालय तक..हर शख्स जासूस बना रहता है। जब हम छोटे थे तो हमारे पिता का जासूस हमारा सबसे छोटा भाई हुआ करता था। पांच भाई बहनों से लेकर रिश्तेदारों और आस-पड़ोस की जासूसी का जिम्मा उसी का था..पिता जी किसी की भी संदिग्ध हरकत देखते..छोटे भाई को काम पर लगा देते थे..और वो सारा बायोडाटा निकालकर दे देता था। जहां जहां मैने काम किया है..वहां भी खूब जासूस देखे हैं। एक नहीं कई-कई..जो बास के कहने पर काम पर लगे रहते थे। मजे की बात ये है कि जो जासूसी कर रहा है वो खुश हो रहा है कि वो सीधे बास के संपर्क में है लेकिन उसे नहीं मालूम कि बास उसकी जासूसी दूसरे से करा रहा है..तो दूसरा भी खुश..और बास तो है ही..क्योंकि दोनों का कच्चा चिट्ठा उसके पास अपने आप आ रहा है। जासूस भी कलाकार होते हैं..वो जासूसी इस तरह करते हैं कि आपको भनक भी न लग पाए..आपका हितैषी बनेगा...जिसके लिए जासूसी कर रहा है..उसकी बुराई शुरू करेगा..आपसे मन की बात उगलवाएगा और फिर कोने में जाकर...मोबाइल से सब कुछ बास को उगल देगा।

महिलाओं में भी आपस में खूब जासूसी चलती है..खास तौर से अपनी मित्र मंडली में या फिर आस-पड़ोस में....मसलन..जब दो महिलाएं मिलेंगी तो तीसरे के बारे में सब कुछ चटखारे लेकर बताएंगी और जब तीसरे से मिलेगी तो चौथे के बारे में..ये सिलसिला आज से नहीं..जब से होश संभाला है तब से देख रहा हूं। दूसरों के पतियों के बारे में..पत्नियों के बारे में...बच्चों के बारे में...किस्से-कहानियां आसपास तैरती रहती हैं...उस वक्त आप ये जरूर भूल जाते हैं कि आपके बारे में भी दूसरों के घरों में खूब चटखारे लिए जा रहे हैं..हमारे घर में कामकाज करने वाली महिलाओं भी अवैतनिक जासूस की तौर पर जुटी रहती हैं। इस घर से उस घर में..और जहां-जहां उसकी पहुंच है..आपके घर की तमाम अंदरूनी बातें पहुंच जाएगी। आपको पता भी नहीं चलेगा।

इसे आप मोडीफाई करें तो आजकल के जासूस उन्हें कह सकते हैं जो दूसरों की गोपनीय रिपोर्ट संबंधित के पास पहुंचा रहे हैं। एक ऐसे शख्स को जानता हूं जो एक साथ कई अधिकारियों के लिए जासूसी करते हैं..उनकी खासियत ये है कि वो हर अधिकारी के बारे में दूसरे अधिकारी को रिपोर्ट देते हैं लेकिन मजाल..कि किसी को भनक लग पाए..और वे ऐसा करके सभी के चहेते बने रहते हैं। उनकी खासियत ये भी है कि वो आपके आसपास ही मोबाइल पर सब कुछ बता रहे होंगे लेकिन आपको पता नहीं चलेगा कि वो क्या रिपोर्ट कर रहे हैं और किसे कर रहे हैं।

कहते हैं कि घर का भेदी लंका ढाए..विभीषण ने तो भले के लिए ये काम किया था लेकिन आजकल के विभीषण आपको कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं...ये आपको अंदाजा नहीं...मजाक-मजाक में..किसी के बारे में आप दिन भर टिप्पणी करते रहते हैं लेकिन उसकी रिकार्डिंग या फिर वो बात मय सबूत के पहुंच जाती है तो आपका कल्याण होना तय है। इसलिए आसपास नजर रखें  और पहचानें कि आपके आसपास कितने जासूस हैं...बाकी फिर.....






Friday, February 20, 2015

श्श्श कोई है

कोई हैरानी नहीं कि पेट्रोलियम और कोयला मंत्रालय में जासूसी करते अधिकारी-कर्मचारी पकड़े गए...कुछ कंपनियों के अधिकारी भी गिरफ्त में आ गए..जो पकड़ा जाए वो चोर..जो न पकड़ा जाए.वो शरीफ....सौ में से एक-दो अधिकारी..कर्मचारी..नेता..पुलिस..मीडिया के लोग शायद ऐसे निकल आएं कि जो जासूसी न कर रहे हों। जासूसी का उपकरण तो हमारी आंखों में शुरू से सेट है। हमारी निगाहें किसी न किसी का हर वक्त पीछा कर रही होती हैं। जब हमें दिखाना है तो हम दिखाते हैं नहीं तो कनखियों से देखकर पलट जाते हैं। पति पत्नी पर नजर रखता है..पत्नी पति पर नजर रखती है..माता-पिता बच्चों पर नजर रखते हैं..दफ्तर में हम अपने सहयोगियों पर नजर रखते हैं। हर वक्त दूसरे की गतिविधियों का डाटा अपने दिल-दिमाग के कंप्यूटर में स्टोर करते जाते हैं और वक्त आने पर उसे बताते हैं या दर्शाते हैं। किसके कहां लिंक हैं आप समझ भी नहीं सकते। आपके घर में सफाई करने आने वाली महिला आपके घर की कहानी कैसे घर-घर की कहानी बनाती है..आपको नहीं मालूम...डिजिटल जमाने में आपकी एक-एक हरकत उस महिला के फ्रेंड सर्किल और एक्सटेंडिड सर्किल तक कैसे पहुंचती है..आपको अंदाजा भी नहीं होगा।

एक सज्जन बोले कि मध्यप्रदेश में प्यून से लेकर क्लर्क तक करोड़ों की रकम छापे में निकल रही है..लगता है कि वहां पैसा बहुत है। उनकी नादानी पर तरस आया कि दरअसल ऐसा कोई सरकारी कर्मचारी नहीं..जिस पर यदि छापा पड़े और करोड़ों की संपत्ति न निकले...और फिर दिल्ली,नोएडा, गुड़गांव और गाजियाबाद तो सोने की खान है। यहां एक पुलिसकर्मी से लेकर अफसर..मंत्री तक रोजाना कितनी रकम पीट रहे हैं..उन्हें हिसाब रखना मुश्किल हो रहा है। पकड़े नहीं गए हैं इसलिए चोर नहीं..यादव सिंह के यहां निकला..तो लोग घबरा से गए कि इतनी संपत्ति..नोएडा अथारिटी में शायद ही कोई ऐसा कर्मचारी हो जो नौकरी के बाद हरिद्धार भजन-कीर्तन की सोच रहा हो। एक और उदाहरण बताता हूं...अरबों के मालिक बिल्डर रजिस्ट्री कराने की फीस के नाम पर आप से 15 से 20 हजार की रकम आम तौर पर लेते हैं। ये फीस होती है वकील के नाम पर...रजिस्ट्री कार्यालय में हर रोज सैकड़ों की तादाद में रजिस्ट्री होती हैं। इस फीस में से वकील आधे से ज्यादा हिस्सा रजिस्ट्री कार्यालय पहुंचाता है। रजिस्ट्री कार्यालय में जो प्यून बख्शीश के नाम पर आपसे सौ रुपए लेता है और रजिस्ट्री की रसीद पकड़ाता है वो हर शख्स से सौ रुपए लेता है..कहने को बख्शीश है पर फिक्स है..आप चाहे ज्यादा दे सकते हैं कम नहीं...सौ का सौ में गुणा करेंगे तो होंगे दस हजार रुपए..ये है हर रोज की कमाई एक प्यून की...महीने की करीब तीन लाख रुपए। ऐसे उदाहरण हर सरकारी दफ्तर के हैं। एक सरकारी स्कूल का बजट..नामी प्राइवेट स्कूल से कम होगा..एक सरकारी अस्पताल का बजट एक निजी अस्पताल से कम होगा...दोनों में फर्क कितना होता है आपको खुद मालूम है। दरअसल हमें पता है..लेकिन जब पकड़ा जाता है तब चोर की तख्ती उसके सीने पर लगती है।

पेट्रोलियम-कोयला मंत्रालय के साथ ही प्रस्तावित बजट तक की कापी यदि कर्मचारी निकाल कर निजी कंपनियों को दे रहे हैं तो ताज्जुब की कौन सी बात है। ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ होगा। नहीं तो कुछ ही सालों में अकूत दौलत ईमानदारी से तो नहीं कमाई जा सकती। कितना ही बड़ा अफसर हो..कर्मचारी हो..मंत्री हो या विधायक हो...अगर ईमानदारी से घर चलाए तो घाटे में चला जाए। जितना कमा रहा है उससे कई गुना खर्च कर उस पर करोड़ों का कर्ज बढ़ जाए। प्रधानमंत्री जी गंगा की सफाई में करोड़ों रुपए खर्च करने की बात कह रहे हैं..अच्छा ये हो कि भ्रष्टाचार के जो नाले देश भर में बह रहे हैं..उनकी सफाई कर दी जाए..इसमें एक पैसा भी खर्च नहीं होना है....बाकी फिर.....






स्वाईन फ्लू का सच

जम्मू के एसपी की मौत स्वाईन फ्लू से हो जाए...गाजियाबाद के डीएम को स्वाईन फ्लू के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़े। रायपुर के सरकारी अस्पताल में स्वाईन फ्लू का टेस्ट करने वाले कर्मचारी को ये बीमारी लग जाए..एक आईएएस दंपत्ति को स्वाईन फ्लू हो जाए..कोई बड़ी बात नहीं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री कहते हैं कि हालात नियंत्रण में हैं। हमारा देश धन्य है जहां आजादी के इतने सालों बाद देश की राजधानी दिल्ली के चुनाव पानी-बिजली पर लड़े जाएं और देश में सौ स्मार्ट सिटी बनाने की बात कही जाए। ये आप मान लीजिए कि स्वाईन फ्लू से बचाने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं आपकी है। सतर्कता आपको बरतनी है और अगर किसी को ये बीमारी हो भी जाए तो भुगतना उसे ही है। यदि आपके पास पैसा है तो उसे दिल खोलकर बहाएं...क्योंकि जान बचानी है। अगर पैसा नहीं है तो जान गंवाने को तैयार रहें क्योंकि सरकारी अस्पताल के कारिंदे आपकी सेवा में नहीं..अपनी सेवा में लगे हैं। उन्हें आपके जीवन से ज्यादा खुद के भ्रष्टाचार से फूलते जा रहे पेट को भरना है।

जहां तक निजी अस्पतालों का सवाल है तो उनके पास हर मर्ज की दवा है पर गरीबों के लिए...यदि आपके पास नोटों की गड्डियां तो उन्हें लुटाते जाईए और फिर अस्पताल में इलाज का नहीं..फाइव स्टार होटल का मजा लीजिए। आपको वो जीवन तो दे देंगे लेकिन उस जीवन का बाकी वक्त आप उस रकम को चुकाने में लगा देंगे जिसकी बदौलत आप बचे हैं। एक बात और ध्यान रखें कि स्वाईन फ्लू को लेकर..WhatsApp पर पैदा हुए सलाहकारों से बचें जो स्वाईन फ्लू से बचने की सलाह दे रहे हैं और दवाएं भी बांट रहे हैं। अगर एहतियात बरतनी है तो खुद से बरतें... नीम-हकीम और तथाकथित सलाहकारों की बजाए किसी अच्छे डाक्टर से बात करें। न तो बेवजह डरें..न मन में आशंकाएं पालें..न किसी के बहकावे में आएं...जान है तो जहान हैं.. ऐसा न हो कि आशंका में भी बीपी बढ़ाकर नुकसान उठा जाएं।  खुद की हिम्मत...सतर्कता और समझदारी ही काम आएगी..ये आपको तय करना है कि इस बीमारी से कैसे बचना है...कैसे निपटना है...बाकी फिर........


Thursday, February 19, 2015

what is WhatsApp

कोई खिलौना इतना ताकतवर हो सकता है कि दंगे तक भड़का दे..ब्लड प्रैशर बड़ा दे...न जाने कितना नुकसान पहुंचा दे..WhatsApp के साथ यही हो रहा है। इसके अनगिनत फायदे हैं और अनगिनत नुकसान. अनुमान लगाएं तो लगता है कि 90 % लोग तो इसे मौज मस्ती के लिए कर रहे हैं। इंटरटेनमेंट के लिए कर रहे हैं लेकिन जो 10% हैं वो इसका बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं। 5% तो इसका उपयोग अपने बिजनेस...अपने काम को सरल बनाने...अपने नाम-काम के फायदे के लिए कर रहे हैं। अब बचे 5% लोग..जो इसका दुरुपयोग घातक हथियार के रूप में कर रहे हैं। अफवाह फैलाने का सबसे बड़ा तंत्र  बन चुका है WhatsApp।

एक बच्चे की मदद करने के लिए अपील WhatsApp पर घूम रही थी..पता चला कि ये अपील एक साल पहले शुरू हुई थी और अब बच्चा स्वस्थ भी हो चुका है। एक अफवाह कल जोरों से उड़ी कि मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान इस्तीफा देने वाले हैं और अगले सीएम होंगे...नरेंद्र सिंह तोमर या कैलाश विजयवर्गीय....तेजी से भोपाल से शुरू हुई अफवाह दिल्ली तक पहुंची...एक अफवाह चल रही है कि स्वाइन फ्लू की दवा पिलाने के बहाने कुछ लोग घर आएंगे और लूटपाट कर चले जाएंगे। ऐसी अफवाह जब सांप्रदायिक होती हैं तो दंगे तक भड़क जाते हैं। इसकी चपेट में यूपी से लेकर दिल्ली तक आ चुका है। मौज-मस्ती तक तो ठीक है लेकिन मजाक-मजाक में किसी की जान चली जाए..किसी का नुकसान हो जाए..कोई घातक कदम उठा बैठे..इससे गंभीर मसला और क्या हो सकता है। किसी की भी तस्वीर किसी के साथ भी जोड़कर उसे बदनाम करने का चलन भी खूब चल रहा है। ऐसी हरकत कर आप भले ही मजा ले लें लेकिन दूसरे की जिंदगी में कितना जहर घुल रहा है..इसका अंदाजा आपको नहीं होगा। हां..जब कोई भी किसी को भी निशाना बना रहा है तो आप भी उसका शिकार हो सकते हैं। दरअसल WhatsApp  ने क्रिएटिविटी के सारे दरवाजे खोल दिए हैं और छोटे-छोटे बच्चे भी खेल-खेल में खतरनाक हथियार बनाकर सप्लाई कर दे रहे हैं। इसलिए पहले सोचे-समझें फिर रियेक्ट करें..नहीं तो नुकसान उठा लेंगे क्योंकि कुछ ही पलों में ये अफवाह देश-विदेश में पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता। एक बार तीर कमान से निकला नहीं..कि इतनी दूर तक जाएगा कि आप अनुमान भी न लगा पाएंगे।इसलिए WhatsApp  करें पर WhatsDown नहीं....बाकी फिर......





कंधा आपका,गोली किसी और की

बिहार की राजनीति में यही हो रहा है..मांझी अपना कंधा लेकर घूम रहे हैं...पहले नीतीश कंधे पर बंदूक रखकर गोली चला रहे थे..अब मांझी ने कंधा बीजेपी को दे दिया है..इसलिए मांझी के कंधे से बीजेपी की बंदूक से गोली निकल रही है। ये कोई पहली घटना नहीं...राजनीति में ही नहीं हमारे जीवन में अक्सर ऐसा होता है। हम या तो किसी को कंधा इस्तेमाल करने देते हैं या फिर हम किसी का कंधा इस्तेमाल करते हैं।

कोई भी विवाद हो..आंदोलन हो..धरना हो..प्रदर्शन हो...साजिश हो या षडयंत्र हो...प्लानिंग कोई करता है..उकसाता कोई है..करवाता कोई है..इस्तेमाल हम हो जाते हैं। छोटे-छोटे उदाहरण हम अक्सर रोज अपने जीवन में देखते हैं। जैसे...अक्सर दूसरे हमें एहसास कराते हैं कि आपका इस्तेमाल हो रहा है...आपसे काम निकाला जा रहा है..फायदा दूसरा उठा रहा है..आप मेहनत कर रहे हो..पिसे चले जा रहो हो..मलाई दूसरा ले जा रहा है और जैसे ही आपके दिलो-दिमाग में दूसरे की बात जम जाती है..आप रियेक्ट कर देते हो। यदि मिशन कामयाब होता है तो पीछे वाला शख्स क्रेडिट ले लेता है और जब आपकी बात बिगड़ जाती है तो उसकी बात बन जाती है...और फिर दोषी आपको ही ठहराता है कि मैंने ऐसे थोड़े ही कहा था..आप कुछ ज्यादा कर गए..आप ये गलती कर गए..इसलिए आप नुकसान उठा गए। जब आप फंस जाते हो..तो पीछे वाला शख्स नदारद हो जाता है।

दरअसल एक-दूसरे को इस्तेमाल करने की कोशिश हम दफ्तर में...पड़ोस में..अपने सर्किल में...अक्सर करते नजर आते हैं वो इसलिए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे....क्या गलत है..क्या सही है..ये अगर हम खुद तय करें तो सोच-समझ कर फैसला लेंगे लेकिन हर बात के लिए किसी और की सलाह से चलेंगे..बहकाबे में रहेंगे तो नुकसान ही उठाएंगे। जब एक ग्रुप बात करता है तो हम पीड़ित-शोषित में हवा भरते हैं और चाहते हैं कि वो फट जाए..और अपना काम बन जाए। खुद आगे आएंगे तो एक्सपोज हो जाएंगे। ...जहां तक माझी का सवाल है तो उन्हें  एहसास हो गया कि नीतीश उनके कंधे का इस्तेमाल कर रहे हैं और जब बंदूक चल जाएगी तो यूज एंड थ्रो हो जाएंगे इसलिए उन्होंने अपना कंधा खिसका लिया। बीजेपी को कंधा इसलिए दे दिया है कि नीतीश को नुकसान पहुंचाए...तो आप समझ लीजिए कि आप यदि किसी का इस्तेमाल कर रहे हैं और वो एहसास होने पर पलट गया तो आपकी बंदूक की गोली आपको ही लगनी है..इसलिए न तो आप इस्तेमाल हों और न ही इस्तेमाल करे तो बेहतर होगा...बाकी फिर....



Wednesday, February 18, 2015

'अंध' विश्वास तो है

पहले बिग बी बोले कि जब मैं क्रिकेट मैच देखता हूं तो भारत हार जाता है...अब सचिन तेंदुलकर बोले कि हम भी टोटके करते थे..सौरभ गांगुली ने भी हां में हां मिलाई। कभी सेंचुरी बनने के पहले एक जगह से नहीं उठते थे..कभी पैड नहीं बदलते थे..कभी बैट नहीं बदलते थे। यहां तक कि सौरभ गांगुली ने कहा कि सेंचुरी बनने के लिए दो घंटे तक बालकनी में टांग ऊपर रखकर बैठे रहे..बाद में खड़े होने में काफी दिक्कत हुई। यानि भारत कहीं से कहीं पहुंच जाए..लेकिन टोने-टोटकों से हम बाज नहीं आएंगे।

बड़ा से बड़ा आदमी अंधविश्वासी है। कभी कोई अंगूठी पहनता है तो कभी माला डालता है। कभी किसी रंग को लेकर शंका हो जाती है। कभी घर में रखी ड्रेसिंग टेबिल को खिसकाते हैं..कभी मिरर से जीवन खराब होने का डर लगता है। कभी भगवान को एक दिशा से दूसरी दिशा में खिसकाते हैं। कभी बिल्ली रास्ता काट जाए तो नुकसान होने का भय सताता है। हम अपने दिमाग और दिल में तमाम आशंकाएं लेकर चलते हैं...और अगर वो घटनाएं सच हो जाती है तो हम किसी न किसी वस्तु से उसे जोड़ लेते हैं। कभी कहते हैं कि उसका सुबह-सुबह चेहरा देख लिया..दिन खराब हो गया। ये हमें तय करना हैं कि हम अंध विश्वास किस चीज से जोड़ें और फिर उसका सत्यानाश कर दें। अपनी गलती मानने का सवाल ही नहीं..अपनी कमजोरी का सवाल ही नहीं..किसी का रिजल्ट खराब हो गया। कोई इंटरव्यू में सिलेेक्ट नहीं हो पाया। हम पहले से तय कर लेते हैं कि हमें दोषी किसे ठहराना हैं। जब कुछ न मिले तो भगवान बेचारा है ही...ईश्वर नहीं चाहता है..या फिर किस्मत को कोसने का विकल्प है। नहीं तो वक्त खराब है..कहकर काम चला लेते हैं।

अंध विश्वास का मतलब ही है अंधा विश्वास है..जिसकी आंखें नहीं..जिसमें रोशनी नहीं..लेकिन उस पर जब विश्वास करेंगे तो कहां तक जाएगा..क्योंकि अंधेरे का अंत नहीं। जितना आप उसमें धंसते जाएंगे..अपनी कमजोरी को बढ़ाते जाएंगे। किसी भी काम के अच्छे और बुरे नतीजे के कारणों को हम पहले से तैयार रखते हैं और जैसा नतीजा आता है..उसे तत्काल उससे जोड़ देते हैं। खराब नतीजा है तो खुद को छोड़कर जिस चाह पर गाज गिराओ आपकी मर्जी....बाकी फिर......


गिफ्ट तो एक बहाना है

मोदी जी को गिफ्ट किया गया सूट विवादों में आ गया। गिफ्ट हम क्यों देते हैं..कब देते हैं..किसको देते हैं और कितनी बड़ी या छोटी गिफ्ट देते हैं। गिफ्ट में सबसे पहले हम अपनी हैसियत देखते हैं..फिर सामने वाली की हैसियत देखते हैं..दोनों की हैसियत को तौलते हैं और उसमें जो बैलेंस निकलता है उसके आधार पर हम गिफ्ट का प्रकार और कीमत तय कर देते हैं। जितना बड़ा आदमी होता है उतनी ही हमें जेब ढीली करनी पड़ती है क्योंकि हमें उसकी हैसियत का भी ध्यान रखना होता है। जब हम आपस में बराबरी वाले लोगों के बीच गिफ्ट को गिव एंड टेक करते हैं तो हम ध्यान रखते हैं कि उसने हमें कितना दिया था..उतना ही हमें देना है। कम दिया था तो कम ही करेंगे..ज्यादा दिया था जो ज्यादा करेंगे। अगर हमारी हैसियत बड़ी है तो हम उससे थोड़ा ज्यादा कर देंगे और हमारी हैसियत थोड़ी कम है तो हम सस्ते में ही काम चला लेंगे।

ये तो साफ है कि जो हमें गिफ्ट देता है..हम उसका बदला चुकाते हैं..लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें हमें गिफ्ट देना पड़ता है भले ही वो हमें कभी गिफ्ट दें या न दें। ऐसा इसलिए हम करते हैं क्योंकि हमें या तो उनसे काम पड़ना है या फिर हम गिफ्ट देकर उनके नजदीक आना चाहते हैं..इसे आम तौर पर रिश्वत नहीं कहा जाता है लेकिन इससे बढ़िया कोई रिश्वत नहीं...दरअसल आप किसी को कैश देंगे..तो वो रिश्वत हो जाएगी..सामने वाला झिझकेगा..डरेगा और चाहते हुए भी लेने में तब तक आनाकानी करेगा जब तक कि वो आपके हमाम में नंगा न हो जाए। एक बार नंगा हो जाएगा तो कैश भी लेगा और चाय भी पिलाएगा और यहां तक बैशर्म हो जाएगा कि कहेगा... पहले वाले नोट तो करारे थे..इस बार ढीले-ढाले नोट कहां से उठा लाए..या फिर पिछली बार गिनती में एक नोट कम निकला था।

गिफ्ट एक ऐसा बहाना है जो सबसे कारगर है..देने वाला और लेने वाला दोनों समझते हैं पर हंसी-खुशी स्वीकार कर लेते हैं..मसलन आप मिठाई लेकर पहुंचे हैं तो बीबी-बच्चों के लिए..आपको रखनी ही पड़ेगी..अरे साहब हमारे इलाके की प्रसिद्ध मिठाई है आप भी चख कर देखिए..आपके लिए स्पेशल लाए हैैं...कई लोग आगरा का पेठा और मुरैना की गजक दिल्ली के रेलवे के स्टेशन से खरीदकर नेताओं को टिपा आते हैं। मिठाई तो पांच सौ हजार की रिश्वत हो गई..इससे बड़ी रिश्वत आप कैसे पहुंचाते हैं ये आपको भी मालूम... बस मैं तो लिखकर चस्पा कर रहा हूं...आजकल मोबाइल का जमाना है..सबसे अच्छी गिफ्ट है..एप्पल आई फोन से बढ़िया और क्या हो सकता है...घड़ी भी एक विकल्प है...और महंगे में लुटना है तो सोना-चांदी भी खूब चलता है..जिन अधिकारियों के छापे पड़ते हैं किलो के भाव से सोना निकलता है। इससे आगे बढ़ेंगे तो कार और मकान की छोटी सी चाबी ही पकड़ानी है। ऐसे तमाम विकल्प हैं जो गिफ्ट के जरिए..आदान-प्रदान होते हैं तो गिफ्ट देते रहिए और अपना काम निकालते रहिए...लेकिन मन में तो मान ही लीजिए कि गिफ्ट तो एक बहाना है....बाकी फिर..........


Tuesday, February 17, 2015

डर बहुत लगता है

मैं किसी से नहीं डरता..अक्सर हम ये जुमला दिन में कई बार बोलते हैं लेकिन भीतर से हम जानते हैं कि हम हर पल डरते हैं..कई बार इसकी वजह होती है कई बार बिना वजह हम डर को पाल लेते हैं जो हमारी सोच और आगे बढ़ने की ताकत को रोक देता हैं। दिन में कई बार में हम छोटे बच्चों को हिदायत देते रहते हैं कि बेटा ऐसा मत करो..चोट लग जाएगी..पढ़ाई पर ध्यान दो...रिजल्ट खराब हो जाएगा..ऐसे कपड़े मत पहनो...ये मत खाओ..24 घंटे उन पर हमारा पहरा होता है जहां ज्यादा डर होता है वहां ज्यादा निगेटिविटी होती है। खुद के लिए भी और दूसरों के लिए भी...ट्रेन में जा रहे हैं..बस में जा रहे हैं...हर पल हमारी निगाहें अपनों पर दूसरों पर साए की तरह पीछा करती हैं...टीवी चैनल पर जो देखते हैं..उससे डर जाते हैं चाहे वो किसी के साथ हुआ है। दरअसल हम कोई भी बुरी घटना को खुद से कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं..बुरी घटना को देखकर और सुनकर हम सहम जाते हैं और वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं..जरूरत से ज्यादा सावधानी बरतने की कोशिश करते हैं और ऐसे में हम अपनी क्षमता को समेट लेते हैं..डर के आवरण से बाहर नहीं निकल पाते हैं।

 हजारों- लाखों लोग ऐसे हैं जो एक छोटी से घटना को जीवन भर नहीं भुला पाते..जैसे किसी को छिपकली से डर लगता है किसी को मकड़ी से..कोई चूहा देखकर चीख उठता है तो कोईं सांप को देखकर...दरअसल बचपन में हुई घटना हमारे मन-मस्तिष्क पर छाई रहती है..उदाहरण के लिए मुझे तालाब से डर लगता है क्योंकि बचपन में पानी में बिना-सोचे समझे कूद गया..और बमुश्किल बचाया गया। मैं जीवन भर नहीं भूल सकता। बच्चों को हम जितना डराएंगे..वो उतना दब्बू बनेंगे...उनका दायरा उतना ही सिमटता जाएगा...एक निगेटिव इनर्जी का सर्किल हम अपने चारों ओर तैयार करते हैं होता वो सुरक्षा के लिए है लेकिन उस सर्किल की वजह से अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते..क्षमता बढ़ाने की बात तो दूर की बात है...

दरअसल हम डर कर या डरा कर अपनी सुरक्षा तलाशते हैं। जैसे बिग बी भारत-पाक मैच की कमेंट्री करते वक्त बोले कि मैं जब भी मैच देखता हूं तो भारत हार जाता है..और कमेंट्री छोड़कर चले गए..बाद में भारत जीत गया। मैंने इसका जिक्र इसलिए किया कि कोई भी हो कितना ही बड़ा आदमी हो..एक अंध विश्वास एक डर उसका साया बनकर साथ में चलता है। जब हम फेल हो जाते हैं तो खुद को दोषी नहीं ठहराते..वक्त को दोषी ठहरा देते हैं या फिर कहते हैं कि मुहुर्त गलत हो गया...पूजा गलत हो गई...मैंने ज्योतिषी की बात नहीं मानी...बहुत से डर तो हम उजागर कर देते हैं लेकिन बहुत से डर ऐसे हैं जो हमारे भीतर बचपन से पल रहे हैं और साथ चल रहे हैं...खास तौर से खुद के लिए और अपने बच्चे के लिए...आपका बच्चा कहीं बिगड़ तो नहीं रहा..कहीं नशा तो नहीं करने लगा..कहीं लव-लपाटे में तो नहीं उलझ गया...हैरानी आपको तब होगी जब आप उस पर पूरी नजर रखने के बाद भी कई सालों तक सही से पता नहीं लगा पाते। कोई भी काम शुरू करने के पहले घबराते हैं कि पता नहीं कामयाब होगा या नहीं...इंटरव्यू देने जाते हैं तो घबराते हैं...हम जितना डरेंगे..जितना घबराएंगे..जितना बेचैन होंगे..उतना ही अपना नुकसान करेंगे इसीलिए कहते हैं कि डर के आगे जीत है...बाकी फिर......


Monday, February 16, 2015

ईश्वर से हमें क्या चाहिए?

सावन का सोमवार हो या ही शिवरात्रि, या फिर रामनवमी, ..या फिर जन्माष्टमी.. कोई मंगलवार को व्रत रखता है, कोई शुक्रवार को, कोई गुरूवार को, कोई शनिवार को। मैं भी रखता हूं...सवाल उठ रहा है कि व्रत क्यों? बाकी दिन क्यों नहीं. इस दिन व्रत रखने के कितने फायदे हैं...क्या भक्ति का एक जरिया उपवास रखना है...क्या उपवास रखने से ईश्वर ज्यादा प्रसन्न होते हैं। नहीं मालूम।

..ईश्वर कण-कण में है..ईश्वर की भक्ति हर दिन है..पूजा हर दिन है....आज व्रत क्यों...आज ही नहीं..रामनवमी..जन्माष्टमी पर भी रखते हैं। किसी भगवान के जन्मदिन पर...किसी की शादी पर....शिवजी का जन्म कब हुआ था..उनका जन्मदिन हम क्यों नहीं मनाते..उस दिन व्रत क्यों नहीं रखते...किसी भगवान का जन्मदिन मनाते है..किसी की शादी का पर्व मनाते हैं। वजह मुझे नहीं मालूम..आपको मालूम हो तो जरूर बताएं...

आज मंदिर गया तो देखा कि पुरुषों की भीड़ काफी कम..महिलाओं की कई गुना ज्यादा...ये भी एक सवाल है कि महिलाएं ज्यादा भक्ति क्यों करती हैं। पुरुष क्यों नहीं करते...महिलाएं व्रत भी ज्यादा रखती है पुरुष नहीं.. क्या पुरुष ज्यादा व्यस्त हैं इसलिए महिलाओं ने उनकी भी भक्ति का ठेका ले रखा है या फिर महिलाएं अपने परिवार को लेकर ज्यादा चिंतित रहती हैं इसलिए भक्ति के जरिए वो सुख-समृद्धि बढ़ाने में जुटी हैं।

बुरा न मानना..एक और सवाल मन में घुमड़ रहा है कि जो हिंदू-मुस्लिम...पति-पत्नी है वो दोनों के धर्म क्यों निभाते हैं...जो पति-पत्नी हिंदू ही है वो मस्जिद क्यों नहीं जाते..या फिर जो मुस्लिम पति-पत्नी हैं वो मंदिर क्यों नहीं जाते।  हिंदू-मुस्लिम पति-पत्नी एक-दूसरे से निभाने के लिए..एक दूसरे के प्रति सदभाव के लिए मंदिर-मस्जिद जाते हैं। ऐसा ही ईसाई और सिखों के लिए है। दरअसल हमने न तो धर्म जाना..न ईश्वर...हम तो देखा-देखी जो हो रहा है..उसे निभाते हैं..चाहे दबाव में निभाएं...चाहे दिखावे के लिए निभाएं..चाहे परंपरा के नाम पर निभाएं..जब समय मिलता है तो पूजा करते हैं..व्रत रखते हैं..जब मौका होता है तो मंदिर में मत्था टेकते हैं..जब मौका होता है तो प्रसाद चढ़ाते हैं..वो भी अपने सामर्थ्य के अनुसार..ईश्वर के लिए पूरा धन समर्पित नहीं करते..दस या बीस रुपए का प्रसाद चढ़ाकर उनसे करोड़ों की मन्नत मांगते हैं। हम चाहते हैं कि कम से कम में काम बन जाएं..दरअसल हम अपनी सुविधा से चलते हैं. जरा सोचिए कि किस-किस ईश्वर की भक्ति करनी है.. ईश्वर की भक्ति क्यों करनी है.कैसे करनी है...कितनी करनी हैं..कब करनी हैं...किसको कम किसको ज्यादा करनी हैं..सवाल का जवाब मिले तो सारे भक्तों को बताना.कोई मन में भक्ति करता है तो कोई जोर-जोर से बोलकर, कोई तमाम लोगों को निमंत्रण देकर, कोई हाथ जोड़कर काम चला लेता है तो कोई पूजा-अर्चना विधिविधान से करता है, कोई दो मिनट करता है तो कोई आधा घंटा..कोई कभी व्रत नहीं रखता तो कोई हर हफ्ते एक दिन रखता है तो कोई केवल किसी खास त्योहार पर सबके अपने अपने तर्क हैं सबके अपने-अपने तरीके हैं लेकिन सब सुख, संतुष्टि और समृद्धि मांगते हैं..कोई अपनी नौकरी के लिए प्रार्थना करता है तो कोई कमाई बढ़ाने के लिए.तो कोई अपने बच्चे के भविष्य के लिए.तो कोई सेहत अच्छी करने के लिए..जब जीवन में ज्यादा कष्ट होता है तो पूजा ज्यादा बढ़ जाती है जब अपने जीवन में ज्यादा मस्त रहते हैं तो केवल रुटीन से काम चला लेते हैं...क्या कभी सोचा है कि हमें पूजा कब करनी चाहिए, क्यों करनी चाहिए, कितनी करनी चाहिए और क्या करनी चाहिए, व्रत कब रखना चाहिए, क्यों रखना चाहिए, कैसे रखना चाहिए? ये तमाम सवाल मेरे मन में भी घुमड़ते हैं, आपको जवाब मिले तो जरूर बताईए...बाकी फिर....

..बाकी फिर......

Sunday, February 15, 2015

भ्रष्टाचार तो रग-रग में बसा है

केजरीवाल ने कह दिया है कि पांच साल के भीतर दिल्ली भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगी...नहीं हो पाएगी...अगर हो जाएगी तो ईश्वर के अगले अवतार केजरीवाल ही होंगे। शायद ये बात केजरीवाल और उनके समर्थकों को बुरी लगे..लेकिन सच उस कड़वी दवाई की तरह है जिसे मान लेने से सेहत ठीक हो जाती है। भ्रष्टाचार का खून तो रग-रग में है। बच्चा जब पैदा होता है तो अस्पताल में नर्स को कुछ नोट थमाने से हम भ्रष्टाचार का श्रीगणेश कर देते हैं। जब मंदिर जाते हैं तो पुजारी को कुछ नोट थमाते हैं..भगवान को भी कुछ नोट चढ़ाते हैं और कहते हैं कि हमारा काम कर दो। हम अपने बास को खुश करने के लिए रिश्वत चढ़ाते हैं। केजरीवाल को ही लोगों ने न जाने कितने किलो मिठाईयां और फूल भेंट किए होंगे..क्यों....कुछ ने क्यों भेंट किए..कुछ ने क्यों नहीं भेंट किए...जिनका वास्ता पड़ना है..जिन्हें आगे कुछ लेना-देना है उन्हें किसी तरह से केजरीवाल को खुश करना है..नहीं करोगे तो काम कैसे बनेगा..मीडिया भी खुश करने में लगी है..पहले मोदी को खुश करने में लगी थी...कभी न कभी काम तो पड़ेगा ही...जो मंत्री बने हैं उनके यहां भीड़ ज्यादा क्यों हैं...जो केवल विधायक बने हैं उनके यहां भीड़ कम है..हार के बाद बीजेपी के दफ्तर में सन्नाटा क्यों छा गया। इसलिए कि वहां मायूसी के अलावा कुछ हाथ नहीं आना है...जहां फायदा है वहां भीड़ है। जब तक कोई आपका बास है तब तक उससे लेना देना है..आपके जीवन में ऐसे न जाने कितने लोग आते हैं आपका संपर्क तब तक ही रहता है जब तक कि आपका लेना-देना है। बच्चों को भी आप रिश्वत देते हैं..अगर अच्छे नंबरों से पास हो जाओगे तो आपको ये गिफ्ट मिलेगी...अगर इससे ज्यादा लाओगे तो और बड़ी गिफ्ट मिलेगी। रिश्वत के अनगिनत रूप हैं..कुछ कैश में होती है तो कुछ काइंड में...काइंड में रिश्वत देना आसान है। सबसे अच्छी रिश्वत फूलों के जरिए होती है..उसके बाद मिठाई से...इसके बाद आते हैं त्यौहार और जन्मदिन..शादी की वर्षगांठ...आप जब कोई आयोजन करते हैं तो रिश्वत आने का एक अच्छा मौका होता है। रिश्वत को गिफ्ट में आसानी से बदला जा सकता है। आपको जितना लेना-देना है..उसके हिसाब से ही आप गिफ्ट तय करते हैं...छोटा आदमी है तो छोटी गिफ्ट..बड़ा आदमी है तो बड़ी गिफ्ट....चापलूसी भी रिश्वत का एक अंश है जिसमें कुछ खर्च नहीं होता है केवल जुबान से ही काम हो जाता है। तारीफ के इतने पुल बांधों कि सामने वाला दिनभर उससे उबर न पाए..इतना गदगद हो जाए कि आपसे कुछ बोल भी न पाए..कोई भी शख्स एक रुपए भी बिना मतलब खर्च नहीं करता.या तो आप डर के मारे रिश्वत देते हैं..या लालच में....जहां ये दोनों नहीं होते..वहां आप फूटी कौड़ी देने वाले नहीं...दान भी रिश्वत का एक और रूप है..जितना ज्यादा दान दोगे..उससे ज्यादा की डिमांड करोगे। जो इनवेस्ट किया है उसका रिटर्न तो निकालना ही पड़ेगा। जरा सोचिए..आपने बिना मतलब कब कोई गिफ्ट दी है..कब दान दिया है..बिना मतलब कब तारीफ की है..बिना मतलब खर्च करने का तो सवाल ही नहीं...बाकी फिर.......


पूजा क्यों करते हो?

ईमानदारी से सोचना और फिर बताना..पूजा क्यों करते हो? ईश्वर को प्रसन्न क्यों करना चाहते हो? प्रसाद क्यों चढ़ाते हो? भगवान के चरणों में नोट क्यों डालते हैं..ईश्वर कब याद आते हैं..ईश्वर को ज्यादा चढ़ावा कब चढ़ाते हो..ईश्वर से क्या-क्या मन्नतें मांगते हो..क्या-क्या डिमांड रखते हो भगवान से...क्या-क्या लालच देते हो भगवान को...अलग-अलग भगवान की पूजा क्यों करते हो..एक भगवान की क्यों नहीं करते...सारे भगवान की भी नहीं करते..कुछ को रोज याद करते हो..बाकी को क्यों छोड़ देते हो..किसी को हफ्ते के एक दिन करते हो...किसी को साल में एक बार ही करते हो...किसी की दिन में दो बार सुध लेते हो...आखिरी भगवान की शरण में क्यों जाते हो..जो किसी के आगे नहीं झुकता वो भगवान की शरण में झुकता है इसीलिए  कि वो सबसे शक्तिशाली है..उसे सब मालूम है..वो ही आपका भला कर सकता है...वो ही आपके दुख दूर कर सकता है..वो आपको अपने से थोड़ी कम तक ऊंचाई दे सकता है...जो ऊंचाई आप जिंदगी भर के बाद भी नहीं छू सकते..भगवान चाहे तो एक दिन में कमाल कर सकता है...किसी की भी लाटरी खुल सकती है..किसी को निपटाना है तो भगवान के सहारे उसे आप बर्बाद भी कर सकते हैं...ये बात भी है कि जब भगवान आपकी मांग पूरी नहीं करते तो आप उसे भी नहीं छोड़ते हैं...ज्यादा नहीं तो थोड़ा-बहुत जरूर कोस लेते हैं कि भगवान ने मदद नहीं की..उलाहना देते तो बहुत लोग नजर आते हैं..आप को भगवान से सब कुछ चाहिए..सब कुछ अच्छा ही अच्छा..बुरा कुछ भी नहीं...भगवान के सामने भी संकट है कि वो किसकी मानें..किसकी न मानें...आपकी एक डिमांड पूरी होती नहीं...दूसरी शुरू हो जाती है...डिमांड अनगिनत हैं. वो भी ऐसी-ऐसी कि पूरी करना आसान नहीं...आप भी कहेंगे कि वो तो भगवान हैं..उनके लिए तो छोटी डिमांड हो या बड़ी डिमांड सब बराबर हैं..और फिर जब किसी से मांगना ही है तो बड़ा ही मांगो..जब हम घुटने टेक ही रहे हैं तो मेहनत तो पूरी ही हो रही है फिर शर्माना क्या...और कौन-कौन सा जोर से मांग रहे हैं. ये तो अंदर की बात है..हमारे और भगवान के बीच ही रहेगी। तीसरे को तो पता ही नहीं चलना है...और डिमांड पूरी भी हो जाएगी तो फिर ये थोड़े ही बताना है कि भगवान ने की है..कह देंगे ये तो हमारी मेहनत है...भगवान के सामने ये भी संकट है कि वो किस-किस को दें..आप कहेंगे कि उनके पास तो कोई कमी नहीं..वो तो जितने चाहे नोट पैदा कर दें..सही बात है लेकिन सबको नोट दे देंगे तो कम ज्यादा का फर्क कैसे नजर आएगा..आप जैसे ही नोट सबके पास होंगे तो एक करोड़ की एक चाय भी न मिलेगी..क्योंकि चाय वाले के पास भी करोड़ों ही होंगे...सबके पास एक जैसे बंगले हो जाएंगे तो फिर छोटे-बड़े बंगले में क्या फर्क रह जाएगा। भगवान अगर एक को देता है तो वो दूसरे के पास से देता है.अगर आपकी कमाई हो रही है तो दूसरे के पास से कम हो रहा है..जितना आपको मिलेगा..दूसरे के पास से मिलेगा...दो प्रतियोगी फाइनल में लड़ रहे हैं..भगवान एक को जिताएगा तो दूसरे को हराएगा भी...भगवान का दोहन पूरी दुनिया करनी चाहती है...भगवान किस-किस को दे..किससे कम करे..किसको ज्यादा करे...ये दुनिया उसी ने बनाई है लेकिन उसने नियम भी तय किए हैं...उस नियम में भगवान भी बंधे हैं..नहीं तो उनकी ही बनाई दुनिया नष्ट हो जाएगी...इसलिए संकट आपके सामने भी है..भगवान के सामने भी है। आप अपने बारे में तो हमेशा से सोच रहे हैं..कभी भगवान के लिए भी सोचिए....बाकी फिर..........

Saturday, February 14, 2015

इन ख्वाहिशों का अंत नहीं

दिल क्या चाहता है...दिल चाहता है कि जिंदगी में सब कुछ अच्छा ही अच्छा हो..जो चाहो वो मिल जाए..जो करो वो हो जाए...दिल मांगे मोर..आज जो पाया है वो हमारा हो गया..कल जो चाहूं वो भी हमारा हो जाए...तरक्की के सारे पायदान चढ़ जाएं...दौलत भरमार हो जाए..लेकिन इसका अंत नहीं..हम उस बच्चे की तरह हैं जो डिमांड करता है और जब उसे नहीं मिलता है तो रोने लगता है...चिढ़ में उल्टा-पुल्टा करने लगता है जो मिल जाता है तो चेहरे पर मुस्कान खिल जाती है। जब स्कूल जाने लगता है तो बच्चा भी चाहता है कि उसकी हर जगह तारीफ हो..नहीं होती तो गुस्सा आता है..माता-पिता के मापदंड पर खरा नहीं उतरता तो माता-पिता चिढ़ जाते हैं..गुस्सा भड़कने लगता है। जब नौकरी की बारी आती है तो एक नौकरी..दूसरी नौकरी..आईआईटी आईआईएम से भी तसल्ली नहीं तो आईएएस..इसके बाद भी चैन नहीं..डीएम बने तो चीफ सेकेट्र्ररी तक की दौड़...विधायक बने तो मंत्री..मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक...बेटा हो गया तो बेटी चाहिए..बेटी हो गई तो बेटा चाहिए...एमआईजी फ्लैट हो गया तो एमआईजी..एचआईजी..बंगला तो कहने ही क्या...बाइक के बाद छोटी कार..फिर और बड़ी कार...हर दिन अलग-अलग ख्वाहिशें...जो खा लिया..उसमें मजा नहीं..जो पी लिया..उसके आगे क्या...जो पहन लिया..उससे बढ़कर क्या...जो कदम बढ़ा लिया..उसके आगे एक और कदम की ख्वाहिश..इस दौड़ का अंत नहीं..बस दौड़ते रहो..हमें खुद नहीं मालूम कि हमें कहां तक जाना है..कब रुकना है..जब तक जीवन है..चलते जाओ..जो पा लिया..उसे छोड़ते जाओ..जो नहीं मिला है..उसे पकड़ने की होड़ में लगे रहो...एक सपना पूरा हुआ तो दूसरा सपना तैयार...आगे निकलने की अंधी होड़ में जीवन का क्या उद्देश्य है किसी को नहीं मालूम...जरा सोचकर देखो..कि हमारी मंजिल क्या है.....बाकी फिर.....

Friday, February 13, 2015

how can you feel love?

 हर दिन प्यार का है..हर पल प्यार का...जो भी आपका अपना है...जो आपको अच्छा लगता है..जो खूबसूरत है...जीवन सुंदरता की चाहत रखता है..आकर्षण शारीरिक सुंदरता देखता है..जिसने वासना भी पैदा होती है..प्यार मन की सुंदरता से होता है। आप अपने माता-पिता को प्यार करते हैं..अपने बच्चों को प्यार करते हैं..अपने अजीज दोस्त को प्यार करते हैं..यहां तक कि फूलों को देखकर आपका मन तरोताजा हो जाता है..आप जानवरों से प्यार करते हैं...किसी को पुस्तकों से प्यार है..कोई कविता का दीवाना है..कोई संगीत में रम जाता है...कोई खेल में डूब जाता है..ये हैं प्यार के अलग-अलग रंग..
प्यार एक दिन का नहीं..प्यार एक गिफ्ट का नहीं..प्यार वासना का नहीं..प्यार दिखावे का नहीं..प्यार खरीदा नहीं जा सकता है..प्यार में दबाव नहीं है..प्यार की भाषा नहीं..प्यार आंखों में पढ़ा जा सकता है..प्यार दिमाग से नहीं..दिल से होता है...दुनिया मार्केटिंग और ब्रांडिंग के इर्द-गिर्द घूम रही है..उसी से बने हैं डे...फादर डे..मदर डे..वैलेंटाइन डे..कम से कम एक दिन की बिक्री में महीनों का कारोबार हो...प्यार मार्केटिंग से नहीं खरीदा जा सकता...प्यार का कारोबार नहीं हो सकता...हम जानते हैं कि हम किससे प्यार करते हैं..किससे दिखावा करते हैं..किससे औपचारिकता निभाते हैं..किसको बेवकूफ बनाते हैं..जिनसे हम प्यार करते हैं..उन्हें हमें लिखकर नहीं बताते..उन्हें कुछ देकर नहीं जताते..सैकड़ों किलोमीटर दूर रहने वाले शख्स की चिंता करते हैं..सालों न मिलने पर भी उस पर नजर रखते हैं..प्यार वो है जो दुख में काम आए..प्यार वो है जो जिंदगी को पाजिटिव बनाए..प्यार वो है जिससे हम दूसरे को खुशियां दें..चाहे वो कोई भी है..प्यार वो भी है जो किसी असहाय को मदद करे..किसी भूखे को खाना खिलाए...प्यार सहारा देता है..प्यार आड़े वक्त काम आता है..प्यार वासना नहीं उपासना है...जीवन में जितना प्यार देंगे..उससे ज्यादा मिलेगा..चाहे वो कोई भी हो..
दरअसल प्यार न तो जताया जाता है, न बताया जाता है, न दिखाया जाता है, न दिया जाता है और न लिया जाता है, प्यार को महूसस किया जाता है, दिल में अपने आप उतरता है, दिल में बसता है, यहां दिमाग का कोई काम नहीं, दिमाग गुणाभाग करता है दिल नहीं, दिल है कि मानता नहीं, बस जब दिल कह रहा हो, तो मान लो कि प्यार है वो चाहे माता-पिता है, भाई बहन का है, पति पत्नी का, बच्चे का है, प्रेमी-प्रेमिका है, पुस्तक से है, फूलों से ईश्वर से है, जानवर से है, प्यार के रंग अब खुद तय करते हैं....बाकी फिर.....

Thursday, February 12, 2015

हम से अच्छा कौन है?

हम से अच्छा कोई नहीं..हम होते तो ये कर देते..वो कर देते...मोदी की समझ में नहीं आ रहा..केजरीवाल फंस जाएगा...अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे...दूसरों का मजाक उड़ाना..हंसी उड़ाना...इससे ज्यादा आसान कोई काम नहीं...कभी खुद का मजाक उड़ाकर देखो..कभी खुद की कमियां गिनकर देखो..कभी खुद की कमजोरी टटोलकर देखो..इतना फुर्सत हमें कहां हैं?...दूसरों को कोसने में तो दिनभर निकल जाता है..हमें अपने बारे में सोचने का वक्त कहां है?...दूसरों के जीवन में झांकने में इतना आनंद आता है कि पूछो मत..दूसरों की जिंदगी में टांग अड़ाने में इतना मजा आता है कि पूछो मत....जब खुद की बारी आती है तो हम बगलें झांकने लगते हैं...जब कोई हमारी कमी बताता है तो बड़ा गुस्सा आता है...हम तत्काल विषय बदलने की कोशिश करते हैं..गलती करते हैं तो दाएं-बाएं देखकर छिपाने की कोशिश करते हैं...दूसरों की किसी भी गलती को बड़ा करने की हमारी भरसक कोशिश होती है..जो खुद से प्यार करते हैं..खुद से गुस्सा करते हैं..खुद की गलतियों को उजागर करते हैं...वो जीवन में खुद को बेहतर करते हैं...जो दूसरे के चक्कर में फंसे रहते हैं...उसे बर्बाद कर पाएं या न कर पाएं...खुद को जरूर बर्बाद कर लेते हैं...अपनी बात करो..अपना काम करो...अपने व्यवहार पर ध्यान दो..अपने रहन-सहन को देखो...अपने परिवार को देखो...तो शायद जीवन में कष्ट कम हों...दूसरों को ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं..खुद रोज दफ्तर से आकर नोट गिनते हैं कि आज की कमाई कम हुई या ज्यादा..कम हुई तो निराश...ज्यादा हुई तो मौज-मस्ती का मूड होता है। जब कोई चोर पकड़ा जाता है तो मजे लेते हैं कि बताईए...सरकार को घुन लगा रहा था..करोड़ों से भी पेट नहीं भरा..इतना बड़ा घोटाला कर डाला...सफाई अभियान को लेकर हम दूसरों को कोसते हैं कि वीवीआईपी केवल एक दिन झाड़ू के साथ फोटो खिंचाकर चलते बने...लेकिन हम सड़क पर फेंके गए केले के छिलके...या चिप्स के पैकेट को उठाकर डस्टबिन में डालने की हिम्मत नहीं जुटा पाते...जिसने फेंका है वहीं उठाए...ये मेरा ठेका थोड़े ही है...दरअसल जो हम करते हैं..वो सही होता है...जो दूसरा करता है वो गलत करता है....इसी में हमारे जीवन का ज्यादातर वक्त नष्ट हो रहा है..इसीलिए..आज भी हम कहते हैं कि दस साल पहले गलती कर दी..नहीं तो आज हमारा जीवन कुछ और होता..जो अभी गलती कर रहे हो..उस पर ध्यान नहीं....हम से अच्छा कौन है....बाकी फिर.....

Wednesday, February 11, 2015

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

एक बड़ा ही आलसी था..दिन भर कोई काम नहीं..जो मिल गया..खा लिया..दिन भर लेटे रहना...एक दिन उसके पिता ने समझाया कि बेटा..कुछ मजदूरी कर ले..दिनभर में कुछ कमा लेगा..बेटा बोला..इससे क्या होगा पिता जी?...पिता बोला..बेटा उसमें से कुछ हर रोज बचाएगा तो चार-छह महीने में एक फुटपाथ पर चाय-पान की गुमटी खुल जाएगी..फिर दूसरों की मजदूरी नहीं करेगा..खुद अपनी दुकान से कमाएगा..मजदूरी से ज्यादा कमाई होगी जिससे और ज्यादा बचत होगी और एक-दो साल में पक्की दुकान मिल जाएगी...बेटा बोला..पिता जी छोटी दुकान हो या बड़ी दुकान..क्या फर्क पड़ेगा....पिता बोला...बेटा..समझो...बड़ी दुकान में और ज्यादा कमाई होगी....नौकर-चाकर रख लेना..फिर तुम घर पर आराम फरमाओगे...मैनेजर-नौकर दुकान संभालेंगे...तुमें कोई काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी...बेटे का जवाब था...अभी आराम ही तो कर रहा हूं...अगर इतनी मेहनत और इतने सालों के बाद आराम ही करना है तो फिर क्या फायदा....

एक बार दुनिया के छटे हुए आलसियों की प्रतियोगिता हुई...एक बड़े से मैदान में उन आलसियों को रख दिया गया। इसके बाद उनके आलसपन की जांच शुरू हुई...मैदान के बाहर से ऐलान किया गया कि इस मैदान में आग लगाई जाने वाली है जिससे आप सब मर जाओगे...ऐलान होते ही ज्यादातर आलसी भागना शुरू हो गए..तीन आलसी बच गए...इसके बाद हकीकत में आग लगा दी गई...मैदान में आग लगते ही एक और आलसी भाग निकला...जैसे ही आग बाकी आलसियों के पास पहुंची...दूसरा आलसी भागा और बचाव के लिए पास में बने पानी के तालाब में कूद गया। आखिरी आलसी को जब आग पकड़ गई तो आयोजक चिल्लाए...कि
आप जीत गए हो..पास के पानी के तालाब में कूद कर जान बचाओ...नंबर वन आलसी बोला..यदि इतनी ही
मेहनत करनी होती तो आलस क्यों करता..और जलकर खाक हो गया।

जब हमें कोई काम दिया जाता है तो हम तब तक निश्चिंत रहते हैं कि जब तक उसकी मियाद खत्म होने का वक्त नहीं आता...मैने कई साथियों को देखा है कि उन्हें जो टारगेट दिया गया..वो पहले सुस्त चाल चलते हैं और जैसे-जैसे दिन नजदीक आते हैं उनकी चाल तेज हो जाती है...और आखिरी दिन तो गजब की बेचैनी..गजब की मेहनत दिखाई देती है। अगर हम पहले दिन से ही तेज चलते हैं...एक लय में चलते हैं तो आखिरी दिन से पहले ही काम कर लेते हैं बल्कि टारगेट से ज्यादा हासिल करते हैं। कोशिश हमेशा कामायाब होती है...आज केजरीवाल के कसीदे पढ़े जा रहे हैं...पिछले चुनाव के बाद उन पर पत्थर फेंके जा रहे थे..लोग अपने घरों का दरवाजा बंद कर रहे थे...दरअसल जहां आप हिम्मत हार गए...जहां आप थम गए..जहां आप आलसी हो गए...तो जो आपके पास है...वो भी नहीं बचेगा...कभी रूके नहीं..कभी थके नहीं....कभी डरे नहीं..तो कोई भी फील्ड हो..कामयाबी आपके कदम चूमेगी...हो सकता है पहली बार असफल हो..लेकिन उस असफलता से आपको सीख मिलेगी और गलतियों को आप अपने जीवन से दूर फेंकते चले जाओगे...बाकी फिर.......





Tuesday, February 10, 2015

अहंकार ले डूबता है

हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है अहंकार...जब हम कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते हैं तो साथ-साथ अहंकार भी उसके साथ चढ़ता है और जब असफल होते हैं तो अहंकार उतरता जाता है। बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर आप..मोदी हों या केजरीवाल..सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी...लालू यादव हों या नीतीश...मायावती हों या मुलायम सिंह...देश के तमाम ऐसे नेता हैं जो कामयाबी के शिखर पर जब चढ़े..तो मीडिया ने उन्हें इतना ऊंचा दर्जा दे दिया कि वहां से और ऊपर जाना नामुमकिन हो जाए...कुछ ऐसा ही केजरीवाल और आप पार्टी के साथ हो रहा है। कांग्रेस पहले ही साफ हो रही थी..बीजेपी भी साफ हो गई...इसमें सबसे बड़ा रोल है अहंकार का..बड़बोलेपन का...जब हम आसमान पर हैं तो जमीन पर पैर नहीं पड़ते...लेकिन जब हम जमीन पर रहकर आसमान को छूते हैं तो हमारा धरातल नहीं खिसकता। अहंकार हमसे वो सब कराता है जो हमारी सच्चाई नहीं। इसके ठीक उलट होती है विनम्रता। जब हम अपनी गलती स्वीकार करते हैं..जब हम ईमानदारी से काम करते हैं..तो हम आगे बढ़ते जाते हैं। जितने लोगों का ऊपर जिक्र किया..ऐसा नहीं है कि ये सब इन्हीं के साथ हुआ है या हो रहा है..हमारे जीवन की कड़वी हकीकत भी यही है। जितना ज्यादा अहंकार होगा..हम उतने ही मक्कार..कामचोर..भ्रष्ट और दूसरों को नुकसान पहुंचाने की जुगत में लगे रहेंगे। हम जितने विनम्र होंगे..ईमानदारी..मेहनत..लगन और संघर्ष करते रहेंगे। दरअसल अहंकार के जहर की पुड़िया साथ लेकर चलेंगे तो हमारी मौत होना स्वाभाविक है। कुछ पल के लिए दूसरों का अपमान कर...नुकसान पहुंचाकर खुश जरूर हो लेंगे..लेकिन असल में हम अहंकार के जरिए खुद को नष्ट करने के सफर पर होंगे। जब सब मिट जाता है तो अहंकार हमारे पास से उसके पास चला जाता है जिसने हमें नष्ट किया है। जब हम सब खो देते हैं तो अहंकार खुद ब खुद गायब हो जाता है। अहंकार हमेशा बुरे लोगों का साथ देता है..विनम्रता अच्छे लोगों का साथ देती है। ये हमें तय करना है कि हमें अहंकार के साथ चलना है या फिर विनम्रता के साथ....बाकी फिर.....

Monday, February 9, 2015

जनता सब जानती है

हिंदू या मुस्लिम..या सिख ईसाई..जनता को न तो किसी पार्टी से मतलब है न ही किसी जाति से..उसकी सबसे पहली प्राथमिकता उसका खुद का जीवन..जो सरल बने..महंगाई हो या भ्रष्टाचार..ये तो दीमक की तरह उसके जीवन को चाट ही रहे हैं..देश की राजधानी तक पानी-बिजली को लेकर बेहाल है। देश का जो बजट है उसका अगर ईमानदारी से इस्तेमाल हो तो एक बजट में ही देश का कायाकल्प बदल जाए..दिल्ली का एक प्राइवेट अस्पताल और एक सरकारी अस्पताल का बजट देख लो तो सरकारी अस्पताल का बजट ज्यादा निकलेगा..फिर क्यों लोग सरकारी अस्पताल नहीं जाते...एक सरकारी स्कूल और एक प्राइवेट स्कूल का बजट देख लो तो सरकारी स्कूल पर ज्यादा रकम खर्च हो रही होगी। फिर क्यों सरकारी स्कूल में गरीब बच्चे ही पढ़ने जाते हैं। आखिर रकम कहां जाती है..स्व.राजीव गांधी ने तो एक रुपए में 15 पैसे जनता तक पहुंचने की बात कही थी..लगता है कि अब 5 पैसे तक पहुंच चुका है। राजनेता हो या अफसर और कर्मचारी..सौ में से एक-दो ऐसे शायद मिल जाएं जो ईमानदारी से अपना जीवन चला रहे हों नहीं तो सभी करोड़ों की जायदाद के मालिक हैं और गरीब जनता पिसती चली जा रही है। ये देश का दुर्भाग्य है कि आज भी राजधानी की जनता बिजली-पानी और रोटी-कपड़ा-मकान की लड़ाई लड़ रही है और हम वर्ल्ड पावर बनने की बात कर रहे हैं। इसीलिए जनता ने आप को वोट दे दिया..कहते हैं ईश्वर देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है और लेता है तो खाल खींच कर लेता है। छप्पर फाड़ के आपको मिला है..खाल खींच के बीजेपी से लिया है..ये बीजेपी को सबक है तो आप को संदेश है कि जनता सब जानती है...हमने कल कहा था कि वादा किया है तो निभाना पड़ेगा...और ये भी कहा था कि पाना आसान है..निभाना मुश्किल..इसलिए जनता ने अपना काम कर दिया...लोकसभा चुनाव में बीजेपी को छप्पर फाड़ कर दिया..केजरीवाल ने मोदी से ज्यादा वायदे किए हैं...इसलिए जनता ने उन्हें और ज्यादा दिया है..अब उतना ही बोझ लेकर केजरीवाल को चलना है..जीत का दंभ रहा...भ्रष्टाचार की नदियां बहीं...कोरी भाषणबाजी रही...तो आगे भी जनता के पास जाना है..चाहे नगर निगम चुनाव हों..या देश के दूसरे हिस्से हों. लोग कहते हैं कि संगठन में शक्ति है...हम कहते हैं कि जनता में शक्ति है...बीजेपी जितना बड़ा संगठन किसी का नहीं...इतनी ताकत..इतनी पुरानी पार्टी...दिल्ली में कांग्रेस विरोधी लहर थी..बीजेपी की नहीं...फिर भी जनता ने आप को चुना..इसीलिए कि कहीं न कहीं जनता कांग्रेस के साथ बीजेपी से भी गुस्सा है और केजरीवाल के जो वादे हैं उस पर जनता ने भरोसा किया है..ये भरोसा कायम रखना पड़ेगा नहीं तो जनता सब जानती हैं....बाकी फिर.......

Sunday, February 8, 2015

वादा किया है तो निभाना पड़ेगा

जीवन में कोई भी लक्ष्य हासिल करना आसान हो सकता है लेकिन निभाना उससे कई गुना मुश्किल...चाहे घर खरीदें या कार...या घर का कोई अन्य सामान...चाहे कोई पद हासिल कर लें..चाहे कोई मुकाम पा लें..लेकिन उस तक पहुंचने के बाद उसे जस का तस बनाए रखने या उससे बेहतर करना आसान नहीं..लोग किसी भी चीज के लिए कहते हैं कि सफेद हाथी पाल रखा है..उसे जीवन भर कौन खिलाएगा...दिल्ली चुनाव में केजरीवाल या किरण बेदी सीएम बनेंगे..जो भी सीएम बनेगा..आप बड़े-बड़े वादे कर कुर्सी तो हासिल कर लेंगे..लेकिन असली अग्नि परीक्षा कुर्सी पर बैठने के बाद शुरू होगी और पांच साल चलेगी..यदि खरे उतरेंगे तो और ऊपर जाएंगे नहीं तो घर बिठा दिए जाएंगे....जितनी मेहनत प्रचार में न की होगी..उससे सैकड़ों गुना ज्यादा पूरे पांच साल करनी होगी। आप जो कहते हैं..एक क्षण लोग भले ही विश्वास कर लेते हैं..जब तक ये भरोसा कायम रहता है तब तक आपकी बात और आपका वजन रहता है..जो झूठ बोलते हैं..जो कामचोर होते हैं..जो धोखाधड़ी करते हैं..उन्हें एक बार पहचानने के बाद लोग उससे दूर होने लगते हैं..सावधान हो जाते हैं..उसकी असलियत जान जाते हैं। आपसे कोई वादा करता है और उसे निभाता नहीं..तो आपकी मन में जो छवि बनती है वही छवि उस शख्स के मन में भी बनती है जब आप वादा करते हैं और उसे पूरा नहीं करते। इसलिए जीवन में जो कहो..उसे पूरा करने की हिम्मत रखो..जो वादा करो..उसे पूरा करने का माद्दा होना चाहिए..अपने को अच्छा दिखाने की कोशिश में यूं ही कुछ भी न कह दो..हम ये कर देंगे..हम ये दे देंगे..ऐसे सैकड़ों लोगों से मेरा वास्ता पड़ा है जो हर रोज किसी बात को पूरा करने का भरोसा दिलाते हैं लेकिन आज तक नहीं कर पाए..मजे की बात ये है कि सफेद झूठ को बार-बार दोहराते हुए लोग नहीं थकते..अपनी पोल खुलने पर भय नहीं खाते..कभी मन को टटोलकर देखो कि किसी से झूठा वादा करने पर उसे आपसे कितनी आस जगती है और जब वो आस टूटती है तो उससे कई गुना दर्द होता है और आपके प्रति कैसी छवि बनती है। हां..कई ऐसे भी लोग हैं जो साफ कहते हैं..केवल उसी क्षण बुरा लगता है लेकिन बाद में समझ आता है कि उसने मुगालते में नहीं रखा..आप दुविधा में नहीं रहे..इसलिए या तो वादा करो मत..और करो तो उसे निभाओ जरूर..बाकी फिर.........

Saturday, February 7, 2015

गुस्सा क्यों आता है हमें?

हमने कभी सोचा है कि हमें गुस्सा क्यों आता है..कब आता है...कितना आता है...जरा सोच कर देखिए...कोई गलती करता है..आपके मनमाफिक काम नहीं होता है...जो आपको चाहिए..वो नहीं मिलता है तो हम गुस्से से भड़क जाते हैं..कभी-कभी आप दूसरे को अपने कंट्रोल में करने के लिए गुस्सा करते हैं...बार-बार आपके समझाने से नहीं मान रहा है तो गुस्सा आता है..गुस्से में एक डर भी छिपा होता है..एक दबाव भी छिपा होता है..एक मजबूरी भी छिपी होती है...गुस्सा कितना आता है..ये सबसे अहम है..क्या हम अक्सर झुंझलाते हैं...क्या छोटी-छोटी सी बात पर भड़क जाते हैं..तब जरूर हमें चिंतन करना चाहिए...आखिर ऐसा क्यों हो रहा है...कहां हो रहा है...कब हो रहा है....आपके जो विचार हैं..आपकी जो सोच है....जब दूसरा उसे चुनौती देता है...तो आपसे रहा नहीं जाता....हमें ये भी देखना चाहिए कि उसके साथ भी यही दिक्कत हो सकती है...जब दो गुस्सैल मिलते हैं तो बवंडर उठना स्वाभाविक है...जब एक धैर्य रखता है..सयंम  नहीं खोता..तो सामने वाला अपना गुस्सा निकाल कर शांत हो जाता है...लेकिन अगर क्रिया की प्रतिक्रिया बराबर होती है या उससे ज्यादा होती है तो मामला बिगड़ जाता है...और तनाव पैदा होता है जो कई दिनों..कई महीनों या फिर जिंदगी भर चल सकता है। आपको लगता है कि आप सही है..सामने वाले को लगता है कि वो सही है....इसलिए तकरार स्वाभावक है। जो शख्स अपनी झुंझलाहट..अपनी कमी..अपनी लाचारी..अपनी मजबूरी को दर्शाता नहीं..वो गुस्से पर काबू कर लेता है। गुस्से का रिजल्ट निगेटिव ही मिलता है। कोई भी हो..चाहे आपके अधीन हो..आपका दोस्त हो..आपसे सीनियर हो...गुस्सा मन से आसानी से निकलता नहीं..जो आपने उसे दिया है..वो उसे लौटाने की फिराक में जरूर रहेगा..जैसे आपने उसे भलाई दी है तो वो जरूर चाहेगा कि उससे ज्यादा भलाई आपको लौटाए..यही हाल गुस्से का है...जब मौका आएगा आपको रिटर्न मिलेगा..हो सकता है कि आपको पता भी नहीं चले कि ये गुस्सा आपको किसने वापस दिया है लेकिन जीवन में नुकसान के रूप में आपको जरूर मिलेगा। जो बिलकुल गुस्सा नहीं कर रहा है..उसे आप कमजोर मान सकते हैं लेकिन वो निश्चित तौर से आपसे ज्यादा आनंद में है क्योंकि वो न तो अपनी वाणी खो रहा है..न अपनी क्षमता को नष्ट कर रहा है और न ही तनाव ले रहा है...आप भले ही मन ही मन घुलते रहो..मानसिक तौर पर या शारीरिक तौर पर...ये आपको तय करना है कि गुस्सा करना है या नहीं..और करना है तो क्यों करना है..कब करना है...कितना करना है...बाकी फिर..........

Thursday, February 5, 2015

जैसा करोगे...वैसा भरोगे

हम झूठ बोलते हैं..अपने थोड़े से फायदे के लिए..अपने बचाव के लिए...हम साजिश करते हैं..दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए...हम कामचोरी करते हैं..आलस में...हम मौके का फायदा उठाते हैं माहौल देखकर...हम कानून तोड़ते हैं..जल्दबाजी में...इनमें से बड़ी घटनाएं तो हमें याद रहती हैं..छोटी घटनाएं हम हर रोज करने के बाद भूल जाते हैं लेकिन एक बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि हम जैसा करते हैं..वैसा भरते हैं..किसी न किसी रूप में..क्रिया की प्रतिक्रिया होती है...हम अपने जीवन में जिस किसी का बुरा करते हैं..गलत करते हैं...नुकसान पहुंचाते हैं..उसका हमें दंड जरूर मिलता है...चाहे वो शारीरिक रूप से मिले..आर्थिक रूप से मिले..भावनात्मक रूप से मिले...मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूं जिन्होंने खूब पैसा कमाया लेकिन गलत रूप से...ओहदा और हैसियत होने के बावजूद जीवन में ऐसे लोग सुखी नहीं रहे..चाहे खुद बीमारी से घिरे हों...चाहे संतान से कष्ट मिला हो..चाहे समाज से बेरूखी मिली हो..जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं होता..ओहदा ही सब कुछ नहीं होता...जीवन में सुख शांति कितनी है..इससे पता चलता है कि आप कितने समृद्ध हैं। आपकी सेहत अच्छी हैं...आप मानसिक रूप से सुकून से हैं..आपको रात में नींद आती है...आपकी संतान आपको सुख दे रही है...आप परिवार में मंगलमय जीवन जी रहे हो..इससे बेहतर कुछ नहीं..करोड़ों का बैंक बैलेंस..जमीन-जायदाद..सोना-चांदी..सब कुछ यहीं रह जाएगा...इसलिए ये हमेशा याद रखो कि आप यदि आगे नहीं बढ़ पा रहे हो तो वो आपकी कमी है..यदि आपकी सेहत खराब है तो वो आपकी कमी है..यदि आपकी नींद उड़ी हुई है तो वो उसकी वजह आप हो...जीवन में सच बोलने का माद्धा रखो..अपनी कमियों को स्वीकारने की हिम्मत जुटाओ...दूसरे को कष्ट न पहुंचाओ...अपने को बेहतर करो..अपने काम को मन लगाकर करो..अच्छे नतीजे आने से कोई नहीं रोक सकता..आप जैसी छवि बनाना चाहते हो..वैसी ही बनती है....आपका हर कदम आपको वापस मिलता है..अच्छा करोगे..अच्छा मिलेगा..गलत करोगे..गलत मिलेगा..ये आपको तय करना है कि आपको किस तरफ कदम बढ़ाना है...बाकी फिर.......

Wednesday, February 4, 2015

हम तो दूध के धुले हैं

हर दिन हम किस-किसको कितना कोसते हैं..कभी सोचा है....नहीं.....तो सोचकर देखो...घर से लेकर बाहर तक...हम हर रोज न जाने कितने लोगों को कोसते हैं और पानी पी-पीकर कोसते हैं..भले ही उससे कोई लेना-देना हो या नहीं....पीएम से लेकर अपने दोस्तों तक...हर किसी के बारे में राय जाहिर करने में हम कतई पीछे नहीं रहते...चाहे हम सफर पर हों..चाय-पान की दुकान पर हों....घर में हों..या दफ्तर में....ओबामा से लेकर अपने पड़ोसी तक..हर किसी की खामियों..स्टाइल..काम करने के तरीकों...व्यवहार..दिखावे..हैसियत...पर हम बिना रुके...नान स्टाप घंटों राय जाहिर कर सकते हैं....वो केवल बोलता है..वो झूठ बोलता है..वो दिखावा करता है..उसकी काली कमाई है..कामचोर है...लापरवाह है...अज्ञानी है..डरपोक है....चापलूस है..न जाने क्या-क्या...दूसरों के बारे में हमारे पास राय देने का भंडार है...पन्ने खोलो..तो खुलते चले जाते हैं....बड़ा मजा आता है....अच्छा टाइम पास हो जाता है...यही बात खुद पर लागू करके देखोगे तो बड़ा कष्ट होगा....कभी हमने सोचा है कि लोगों की हमारे बारे में क्या धारणा है...हम कितना काम करते हैं..कितने दयालू हैं..कितने व्यवहारिक हैं..कितना झूठ बोलते हैं...कितने लापरवाह हैं..कितने चापलूस हैं..कितने षठयंत्रकारी हैं...नहीं सोचा होगा क्योंकि हमसे अच्छा कोई नहीं...सारी गड़बड़ तो दूसरे कर रहे हैं...गंदगी दूसरे फैला रहे हैं..कानून दूसरे तोड़ रहे हैं...भ्रष्टाचार दूसरे कर रहे हैं...हम तो दूध के धुले हैं....बड़ा कठिन है अपने बारे में सोचना...अपने बारे में फीडबैक लेना...कभी सोचा है कि लोग हमारे दुश्मन क्यों बनते हैं..लोग हमसे घृणा क्यों करते हैं....क्यों हमारी छवि खराब है..क्या कमियां हैं..हमें इतनी फुर्सत हैं कहां...पहले दूसरों को तो देख लें...परनिंदा में जितना सुख है उतना और किसी में नहीं....जिन्हें हम कोस रहे हैं...उनमें से ज्यादातर का तो आपसे लेना-देना ही नहीं..जिनसे लेना-देना है..परनिंदा से उनका कुछ नहीं बिगड़ रहा..बिगड़ेगा तो हमारा...घंटों की चर्चा में हम अपने काम को मार रहे हैं..अपने सोच को मार रहे हैं..अपनी क्षमता को नष्ट कर रहे हैं..नुकसान किसका हो रहा है हमारा और आपका...हमसे अच्छे तो वो कामेडियन हैं जो अपना और अपने परिवार का मजाक बनाकर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं..नाम और हैसियत कमा रहे हैं...कभी खुद की कमियों को उजागर करने की हिम्मत जुटाओ...दूसरों को बताने की हिम्मत नहीं तो कम से कम मन ही विचार करके देखो..कष्ट भले ही हो लेकिन उस दवा की तरह होगा जिसे खाने के बाद खुद को स्वस्थ महसूस करोगे....बाकी फिर......

Tuesday, February 3, 2015

मुंह में राम..बगल में छुरी



एक साध्वी ने यूपी में कहा कि हम चार बच्चों को पैदा करने की कहते हैं तो तूफान आ जाता है जो चालीस पिल्ले करते हैं..तो उन्हें कुछ नहीं होता..ये खुद को साध्वी कहती हैं। आप समझ सकते हैं कि ये साध्वी तो दूर की बात इंसान कहलाने लायक नहीं...इन्हें किस श्रेणी में रखा जाए..आप खुद तय कर लें...दूसरी बात जो चार बच्चों को पैदा करने की बात कर रहे हैं..सबसे पहले उन्हीं से सवाल है कि क्या उन्होंने चार बच्चे पैदा किए..नहीं किए तो दूसरों को सलाह क्यों दे रहे हो..क्या इन्होंने एक लिस्ट बनाई है चार बच्चों के सदस्यता अभियान की...सौ लोगों की लिस्ट जारी कर दें और उन पर निगाह रखें कि क्या वो चार बच्चे पैदा कर रहे हैं या नहीं....दरअसल हमें आगे बढ़ना है..तो हम इसके उपाय सोचते हैं..सही रास्ता कठिन होता है..वक्त लगता है..जब हम देखते हैं कि हमें कोई नोटिस नहीं कर रहा है तो हम शार्टकट अपनाते हैं और  नाम नहीं तो बदनाम ही सही..का रास्ता अख्तियार करते हैं...हम अपने मन में हर वक्त एक प्लान बनाते रहते हैं और उसे अंजाम देने की जुगत में जुटे रहते हैं.....कैसे बढ़ोगे..दिखावा करना होगा..हम अच्छे हैं..आपके लिए अच्छे हैं...आपके साथ हैं...आपसे प्यार करते हैं..आपको सम्मान देते हैं...आपको फायदा पहुंचाते हैं...आप जैसा कहेंगे..वैसा करेंगे...हम सदा हैं आपके लिए...ऐसा हम करते हैं....ऐसा हम दिखावा करते हैं...लेकिन हमारे मन में किसी भी शख्स के लिए क्या भाव हैं..क्या चाहत है..ये हम ही जानते हैं कोई और नहीं....हम अच्छी तरह जानते हैं कि हम वाकई किसके लिए हैं..क्यों हैं...कब तक हैं..कहां तक हैं...दरअसल जैसे कंप्यूटर में इतना माल भरा है..इतने तथ्य हैं..इतने आंकड़े हैं..आप और हमें नहीं मालूम...इससे भी बड़ा है हमारा मन..जो पूरा संसार समेटे है..कहीं तक जा सकता है...इसकी कल्पनाशीलता का अंदाजा हम खुद भी नहीं लगा सकते हैं..जब हम सोचते हैं तो पूरी दुनिया का सफर चंद पलों में ही कर सकते हैं...लेकिन हम किसी को बताते नहीं...हम वही बताते हैं जो हमें बताना है..जो हमें दिखाना है...हम खुद को अच्छा दिखाने की कोशिश करते हैं..लेकिन हकीकत में हम खुद को जानते हैं कि हम कितने सही हैं या कितने गलत...इसलिए मुंह में राम रखते हैं और बगल में छुरी रखते हैं..जब जिसका इस्तेमाल करना है कर देते हैं..कुछ खुलेआम करते हैं..तो कुछ राम का उच्चारण जोर-जोर से करते हैं लेकिन छुरी का इस्तेमाल धीरे से करते हैं...जो ज्यादा राम-राम कर रहा है..वो सबसे ज्यादा दिखावा कर रहा है..उसकी छुरी उतनी ही घातक होगी..उतनी तेजी से आपका काम तमाम कर देगी। इसलिए बच कर रहो..खुद भी ऐसा मत करो..दूसरों को भी समझो..जो आपके लिए राम-राम कर रहा है..निश्चित तौर पर उसके बगल में एक छुरी होगी..जो आपको दिखाई नहीं दे रही होगी..लेकिन कभी भी आपको छलनी कर सकती है...बाकी फिर......

Monday, February 2, 2015

आग का दरिया है..डूब कर जाना है

जीवन में हम जितना जूझेंगे..चिंतन करेंगे..मंथन करेंगे...उतना ही निखार लाएंगे..मोदी हों या केजरीवाल..या किरण बेदी..या फिर अन्ना हजारे...ऐसे हजारों लोग हैं जिन्होंने अपनी सोच..अपनी मेहनत..अपने संघर्ष से अपनी जगह बनाई..चाहे बिग बी हों या सचिन तेंदुलकर...लता मंगेश्कर हों..देश में ऐसी तमाम हस्तियां हैं जिन्हें लेकर हमारे मत भिन्न हो सकते हैं...लेकिन उनकी लोकप्रियता..उनके मुकाम को झुठलाया नहीं जा सकता। हम कह सकते हैं कि इसकी वजह..उसकी पार्टी..उसका परिवार..उसकी हैसियत..जैसे सपोर्ट हैं लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि ऐसे ही हालात में तमाम ऐसे लोग हैं जिनके जाने-माने परिवार हैं या थे..जिनकी हैसियत बड़ी थी..जिनके पास पैसे की कमी नहीं थी..लेकिन वो अपने ऊंचा मुकाम नहीं बना सके। दरअसल जरूरी नहीं कि पिता बड़ा बलवान हो तो बेटा या बेटी भी होगी...किसी भी मुकाम को पाने से ज्यादा मुश्किल भरा है उसे कायम रखना..कई फिल्मी सितारे आए..एक फिल्म के बाद गुमनाम हो गए..कई खिलाड़ी आए...एक-दो मैच के बाद हट गए..कई उद्योगपतियों के बेटों को हम नहीं जानते..तो कई अपने पिता से आगे बढ़ गए..कई लोग ऐसे हैं जो बिना बैकग्राउंड के... अकेले अपने दम पर समाज और देश में स्थान बना पाए। दरअसल जिसने अपनी अच्छी सोच विकसित की..जिसने लगातार संघर्ष किया..जो रुका नहीं...चलता चला गया...वो आगे बढ़ता गया। जीवन मे जितना संघर्ष करेंगे...उतना निखरेंगे...जितना मंथन करेंगे..अपने को बेहतर बना पाएंगे..जिसने सुस्ती दिखाई..लापरवाही दिखाई....संघर्ष में पीछे हट गए..जितनी जल्दी हार मान ली..उतने गडढे में जाएंगे...इसीलिए कहते हैं कि जीवन आग का दरिया है..और उसमें डूब कर जाना है...वक्त कभी थमता नहीं..जो वक्त निकल गया..वो हाथ से गया...हर पल.. हर दम लड़ाई लड़ना..जूझते रहना ही जिंदगी का फलसफा है..बाकी फिर....

Sunday, February 1, 2015

वादे हैं वादों का क्या?

आजकल नेता जितने वादे करते हैं..उतना कोई नहीं...सुबह से लेकर रात तक अनगिनत वादे..उन्हें भी नहीं मालूम रहता है कि वो..पिछली सभा में क्या कह गए?..नेताओं की बात छोड़िए..अपनी बात करते हैं...हम भी कम वादे नहीं करते..और फिर मुकर जाते हैं...दरअसल वक्त का तकाजा होता है तो हम किसी भी बात पर हामी भर देते हैं..कई बार हमें मालूम भी होता है कि ये वादा निभाना हमारे बस में नहीं..हमारी हैसियत में नहीं...लेकिन कर जाते हैं...शायद बड़बोलेपन के कारण..शायद मजबूरी में..शायद पीछा छुड़ाने के लिए..शायद दबाव में...कई वजहें हो सकती हैं जबकि भीतर से हम जानते हैं कि ये वादा हम पूरा करने वाले नहीं...दिन भर हम बातचीत में...फोन पर दूसरों से हामी भरते रहते हैं..कि ये काम हो जाएगा..हम करे देंगे..हम बात कर लेंगे..हम चले जाएंगे..हम पता कर लेंगे..न जाने क्या-क्या?...और फिर बात करने के तत्काल बाद भूल जाते हैं कि हमने किसी से वादा किया है...जब कोई याद दिलाता है तो हम फिर दिलासा दे देते हैं कि वक्त नहीं मिल पाया..शख्स नहीं मिल पाया...जगह नहीं मिल पाई..उसने फोन नहीं उठाया..मैं बीमार पड़ गया था..फैमिली में दिक्कत थी..दफ्तर में बिजी था...बहानों की लंबी लिस्ट हमारे पास है..जो जहां फिट हो..तत्काल लागू कर दो...पीछा छुड़ाना है तो बहाना तो बनाना ही होगा...हम अपने परिवार में भी वादे करते हैं..दफ्तर में भी करते हैं..रिश्तेदारों से भी करते हैं..दोस्तों से भी करते हैं...कई बार हम दूसरों से भी वादे लेने के लिए पीछे पड़ जाते हैं..कि आपको ये काम करना ही होगा..आपको आना ही होगा...आपको बात करनी ही होगी..पता है कि सामने वाला दबाव में हां में हां मिला रहा है लेकिन नहीं मानते...पता है कि वो नहीं कर पाएगा..लेकिन एक आस में..एक दबाव में... हम सामने वाले को टटोलते हैं....अगर एक दिन ही हम चिंतन करें कि आज हमने क्या वादे किए..किससे किए..क्यों किए...और इनमें से कितने पूरे होंगे...तो समझ में आ जाएगा..कि वादे हैं वादों का क्या.....बाकी फिर....