हमारे घर में..परिवार में और मन में लगातार परीक्षाओं का दौर चलता रहता है लेकिन सबसे ज्यादा तनाव होता है बच्चों की परीक्षा का..बच्चों से ज्यादा हमें होता है...ऐसा लगता है कि हम ही परीक्षा दे रहे हैं और सब कुछ दांव पर लगा है..इसके बाद भी रिजल्ट कैसा रहेगा..इसके लिए मन रिजल्ट आने तक दिल घबराता है...मन चिंतित रहता है और दिमाग में कई सवाल उथल-पथल होते रहते हैं। खास तौर से उन बच्चों के लिए जिनकी 12 वीं बोर्ड है और उसके बाद उनका भविष्य नए दौर में दाखिला लेगा या फिर एक तरह से तय होगा कि बच्चे का जीवन किस रास्ते पर चलने वाला है। हम ए..बी..सी..डी प्लान लेकर चलते हैं कि यदि ऐसा होता है तो..वैसा करेंगे और वैसा होगा तो ऐसा करेंगे।
सच मानिए..8 वीं से लेकर 12 वीं तक क्लास की पढ़ाई..और इस दौरान बच्चों की उम्र सबसे कठिन परीक्षा के दौर से गुजरते हैं..यही वक्त मां-बाप के लिए सबसे कठिन होता है जब बच्चों की भी अग्नि परीक्षा होती है और हमारी भी। ये उम्र ही ऐसी होती है जिसमें बच्चा अपने आपको सबसे समझदार और परिपक्व मानता है..मन मचलता है..मन भटकता है..मन में हजारों सवाल उमड़ते हैं..कुछ के जवाब वो खुद तलाश लेता है तो कुछ माता-पिता बताते हैं..और कुछ दोस्त..कुछ सवालों के जवाब घटना-दुर्घटना वश मिलते हैं तो खुद गलती करने के बाद समझ आते हैं। चाहे शारीरिक हो या मानसिक.दोनों इस दौरान बड़ी तेजी से आगे बढ़तें हैं मन भी तेज भागता है..शरीर में भी गजब की फुर्ती होती है।
सवाल ये है कि ऐसे वक्त दिमाग हो या दिल..या मन...ये जीवन के उस ट्रेक पर खड़े होते हैं जहां से आपकी असल दौड़ शुरू होती है..ज्यादातर मां-बाप और बच्चे अपने आसपास के प्रतियोगियों को देखकर दौड़ते हैं और जीत जाते हैं तो मान लेते हैं कि हम दौड़ में काफी आगे है..कुछ माता-पिता और बच्चे अपने को देखकर दौड़ते हैं तो उनकी क्षमता का आकलन बड़े कैनवस में होता है।
हर मां-बाप चाहता है कि उनका बेटा-बेटी उनसे ज्यादा तरक्की करे..नाम कमाएं..पैसा कमाएं..लेकिन सबके साथ ये संभव नहीं..जीवन एक दिन में तैयार नहीं होता..परीक्षा एक दिन में नहीं जीती जाती..हम तभी जीतते हैं जब उस जीत के लिए जमीन तैयार करते हैं..उसे जोतते हैं..सींचते हैं और रिजल्ट के तौर पर फसल काटते हैं..चाहे कितने बड़े स्कूल में पढ़ा लो..चाहे कितनी कोचिंग करा लो..चाहे कितने घंटे पढ़ाई करा लो..परीक्षा जीती नहीं जा सकती है..एक हाथ से ताली नहीं बजती..इसके लिए जितना मां-बाप का रोल है उतना ही बच्चे का..जंग बच्चे को ही लड़नी है..तरीका मां-बाप को बताना है..जहां लड़खड़ाएगा..वहां संभालना भी है..लड़ाई एक दिन की नहीं..जीवन भर की है..एक दिन गंवाते हैं..तो जीवन में कुछ कम हो जाता है..जब शुरू से क्षमता विकसित करते हैं..बढ़ाते हैं..और तेजी पकड़ते हैं तो लंबी रेस का घोड़ा कहलाते हैं..हर दिन हर पल की मेहनत..सोच..संघर्ष..और सक्रियता आपके जीवन को संवारती है। तनाव..लड़ाई-झगड़े और जल्दबाजी से हम परीक्षा को जीत नहीं सकते। ये बात भी सोच लीजिए..हर कोई सचिन नहीं बन सकता.हर कोई बिग बी नहीं हो सकता..हर कोई लता मंगेश्कर जैसे गला नहीं पा सकता..हर कोई नरेंद्र मोदी की तरह प्रधानमंत्री नहीं हो सकता..ये भी लंबी यात्रा के बाद उस मुकाम पर पहुंचे हैं और ऐसा भी नहीं कि जो लोग ये नहीं बन पाए तो उनके जीवन का कोई मतलब नहीं। बच्चा आप जैसा नहीं बन पाया तो ये हमारी खामी है और बच्चे की भी है..रिजल्ट को मत देखिए..हर रोज को देखिए कि हम जीवन की परीक्षा के लिए कैसे तैयारी कर रहे हैं..कितनी मेहनत कर रहे हैं..जरूर कामयाबी मिलेगी..और जितनी भी मिलेगी उस पर आपको संतोष होगा..गर्व होगा..बाकी फिर....
सच मानिए..8 वीं से लेकर 12 वीं तक क्लास की पढ़ाई..और इस दौरान बच्चों की उम्र सबसे कठिन परीक्षा के दौर से गुजरते हैं..यही वक्त मां-बाप के लिए सबसे कठिन होता है जब बच्चों की भी अग्नि परीक्षा होती है और हमारी भी। ये उम्र ही ऐसी होती है जिसमें बच्चा अपने आपको सबसे समझदार और परिपक्व मानता है..मन मचलता है..मन भटकता है..मन में हजारों सवाल उमड़ते हैं..कुछ के जवाब वो खुद तलाश लेता है तो कुछ माता-पिता बताते हैं..और कुछ दोस्त..कुछ सवालों के जवाब घटना-दुर्घटना वश मिलते हैं तो खुद गलती करने के बाद समझ आते हैं। चाहे शारीरिक हो या मानसिक.दोनों इस दौरान बड़ी तेजी से आगे बढ़तें हैं मन भी तेज भागता है..शरीर में भी गजब की फुर्ती होती है।
सवाल ये है कि ऐसे वक्त दिमाग हो या दिल..या मन...ये जीवन के उस ट्रेक पर खड़े होते हैं जहां से आपकी असल दौड़ शुरू होती है..ज्यादातर मां-बाप और बच्चे अपने आसपास के प्रतियोगियों को देखकर दौड़ते हैं और जीत जाते हैं तो मान लेते हैं कि हम दौड़ में काफी आगे है..कुछ माता-पिता और बच्चे अपने को देखकर दौड़ते हैं तो उनकी क्षमता का आकलन बड़े कैनवस में होता है।
हर मां-बाप चाहता है कि उनका बेटा-बेटी उनसे ज्यादा तरक्की करे..नाम कमाएं..पैसा कमाएं..लेकिन सबके साथ ये संभव नहीं..जीवन एक दिन में तैयार नहीं होता..परीक्षा एक दिन में नहीं जीती जाती..हम तभी जीतते हैं जब उस जीत के लिए जमीन तैयार करते हैं..उसे जोतते हैं..सींचते हैं और रिजल्ट के तौर पर फसल काटते हैं..चाहे कितने बड़े स्कूल में पढ़ा लो..चाहे कितनी कोचिंग करा लो..चाहे कितने घंटे पढ़ाई करा लो..परीक्षा जीती नहीं जा सकती है..एक हाथ से ताली नहीं बजती..इसके लिए जितना मां-बाप का रोल है उतना ही बच्चे का..जंग बच्चे को ही लड़नी है..तरीका मां-बाप को बताना है..जहां लड़खड़ाएगा..वहां संभालना भी है..लड़ाई एक दिन की नहीं..जीवन भर की है..एक दिन गंवाते हैं..तो जीवन में कुछ कम हो जाता है..जब शुरू से क्षमता विकसित करते हैं..बढ़ाते हैं..और तेजी पकड़ते हैं तो लंबी रेस का घोड़ा कहलाते हैं..हर दिन हर पल की मेहनत..सोच..संघर्ष..और सक्रियता आपके जीवन को संवारती है। तनाव..लड़ाई-झगड़े और जल्दबाजी से हम परीक्षा को जीत नहीं सकते। ये बात भी सोच लीजिए..हर कोई सचिन नहीं बन सकता.हर कोई बिग बी नहीं हो सकता..हर कोई लता मंगेश्कर जैसे गला नहीं पा सकता..हर कोई नरेंद्र मोदी की तरह प्रधानमंत्री नहीं हो सकता..ये भी लंबी यात्रा के बाद उस मुकाम पर पहुंचे हैं और ऐसा भी नहीं कि जो लोग ये नहीं बन पाए तो उनके जीवन का कोई मतलब नहीं। बच्चा आप जैसा नहीं बन पाया तो ये हमारी खामी है और बच्चे की भी है..रिजल्ट को मत देखिए..हर रोज को देखिए कि हम जीवन की परीक्षा के लिए कैसे तैयारी कर रहे हैं..कितनी मेहनत कर रहे हैं..जरूर कामयाबी मिलेगी..और जितनी भी मिलेगी उस पर आपको संतोष होगा..गर्व होगा..बाकी फिर....