Friday, August 7, 2015

न अन्नदाता रहेगा..न हम

एक मित्र ने मुझे फेसबुक पर लिखा कि  उन किसानों पर भी लिखिए जो लगातार दम तोड़ रहे हैं, वाकई हम जितने सहनशील हैं शायद ही कोई और देश में हों, हम राजनीतिक तौर पर झंडे-डंडे लेकर सड़कों पर खड़े हो जाते हैं, बसों को फूंक देते हैं, बस-ट्रेन को रोक देते हैं, पुतला दहन करते हैं, तोड़फोड़ करते हैं लेकिन इन किसानों के लिए देश में क्यों कोई आवाज नहीं उठाता, ललित मोदी के लिए संसद परेशान है लेकिन उन किसानों के लिए नहीं जो अन्नदाता कहलाते हैं।
ये देश किसानों की माटी से ही बना है, आज वो किसान ही हैं जिन्होंने पर्यावरण को बचाकर रखा है, शुद्ध जल बचाकर रखा है, आवोहवा बचा कर रखी है और अगर इन राजनेताओं को अन्न न मिले, तो नोट खाकर जिंदा नहीं रह पाएंगे, वो क्या कोई भी नहीं, हम भी नहीं।
देश में हर साल, हर महीने और हर दिन किसान यूं ही दम तोड़ते जा रहे हैं दरअसल उनकी नहीं, देश से अन्न की मौत हो रही है और अन्न की मौत होना, अन्न की कीमत न समझना..आप समझ सकते हैं, आज भी हम कितने ही कथित प्रगतिशील हो गए हों लेकिन अन्न का दाना यूं ही छोड़ना ठीक नहीं मानते, क्योंकि वही जीवनदाता है, अन्न का त्याग करने पर हमारा जीवन मुमकिन नहीं, फिर अन्नदाता का त्याग कर हम कितना बड़ा पाप कर रहे हैं।
पैसे की कीमत पर हम अन्न जरूर खरीद लेते हैं लेकिन जब न अन्नदाता रहेगा और न ही अन्न, फिर वही सवाल होगा कि आप क्या नोट खाएंगे?...किसानों को हमारे देश में सदा बेजा इस्तेमाल किया गया, न तो उन्हें बाजिव दाम मिला और न ही सरकारों का ईमानदारी से सहयोग..किसानों के लिए सैकड़ों योजनाएं चलीं..सब्सिडी मिली..बैंकों से लोन मिले..लेकिन कितने किसानों को मिले, और कितनी ईमानदारी से मिले..मैंने खुद देखा है कि सब्सिडी का ज्यादातर पैसा अफसर-कर्मचारी खा गए...बैंक मैनेजर लोन में पैसा खा गए...जब किसानों की हालत खराब हुई तो हजारों करोड़ की मनरेगा योजना आई..चलो..मजदूरी कर जीवन यापन कर लो..लेकिन दस मजदूरों से काम कराके सौ मजदूरों के पैसों कागजों पर भर लिए गए..फर्जी मजदूर..फर्जी पारिश्रमिक...इतने घोर घोटाले हमारे देश में ही संभव हैं..यहां हम इतने सहनशील हैं कि पूछो मत..आखिर हम क्यों किसानों के लिए मरें...हां..उन बिल्डर्स
के लिए जान न्यौछावर कर सकते हैं जो किसानों की जमीन कौड़ियों के दाम लेकर लोगों को करोड़ों में बेच रहे हैं..और उन नेताओं को भी खिला रहे हैं..उन अफसरों को भी खिला रहे हैं..जिनके पेट पहले से ही नोटों की गर्मी से फटे जा रहे हैं..फिर भी चैन नहीं...

किसानों को बर्बाद कर दिया..अन्न पैदा करने वाली जमीन को बर्बाद कर दिया...पर्यावरण को बर्बाद कर दिया...और इस बर्बादी के ढेर पर हम बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी के सपने में खोए हुए हैं..जब ये सपना टूटेगा तो पता चलेगा कि जब जड़ ही कट गई तो उस पर पेड़ कैसे बनाओगे..एक जेनेरिक दवा को कंपनियां एक रुपए की जगह सौ से हजार रुपए में बेच रही हैं लेकिन अन्नदाता को जीने का माहौल नहीं छोड़ा गया है..धन्य हैं हम और आप..जो हर उस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर जंग छेड़े हुए हैं लेकिन उन किसानों के लिए एक शब्द तक नहीं...अभी मत सोचो..एक वक्त ऐसा नजदीक आ रहा है जब न तो अन्नदाता रहेगा और न ही अन्न..हो सकता कि हमारा जीवन निकल जाए..लेकिन हमारे भविष्य की पीढ़ियों का क्या होगा..इसे जरूर सोच लो..बाकी फिर.....
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