स्कूल के दिनों में आजादी के पर्व के दिन खास तैयारी करता था..कई दिनों पहले से ही आजादी पर भाषण के लिए पिता जी से पूछता था..किताबों को पढ़ता था..और भाषण तैयार करता था, कुर्ता पाजामा पहनकर नेता की तरह भाषण देता था, पुरस्कार भी मिलते थे, कभी निबंध लिखता था, कभी कविता पढ़ता था, इस बहाने बहुत कुछ आजादी के मतवालों के बारे में जान लेता था, मिष्ठान मिलता था, एक जश्न जैसा माहौल रहता था, घर आता था तो एक जोश सा भरा रहता था, ऐसा लगता था कि नए सिरे से ऊर्जा का संचार हो गया, नया उत्साह पैदा हो गया, नया जोश भर गया।
ये तो पुराने वक्त की बात है..अब आज की बात करता हूं, मेरी बेटी के स्कूल में चाहे 15 अगस्त हो या 26 जनवरी या फिर 2 अक्टूबर..उसकी छुट्टी रहती है, पूछने पर पता चलता है कि केवल टीचर पहुंचते हैं, कुछ मानीटर टाइप के बच्चों को बुलाया जाता है, कर्मचारी पहुंचते हैं और झंडारोहण के बाद स्कूल बंद हो जाता है..वो शुरू से टीवी पर आजादी का पर्व देखती है और मेरे से पूछती है कि पंद्रह अगस्त को लाल किले से कौन बोलता है, 26 जनवरी को कौन बोलता है, झांकियां कब निकलती हैं, और इस दिन ऐसा क्यों होता है, इस दिन वैसा क्यों होता है, कई सवालों के जवाब मेरे पास भी नहीं रहते..
सवाल तो हजारों हैं जिनके जवाब हमारे पास नहीं है..बच्चों को तो छोड़ दीजिए, सवालों के जवाब न तो नेताओं के पास है, न तो सरकार के पास, जब स्कूलों में ही 15 अगस्त को औपचारिकता मान लिया जाए, छुट्टी का दिन मान लिया जाए, तो बड़ों को क्या दोष दो, बड़ों के पास तो अपने तर्क हैं...छुट्टी का दिन मिला है तो घर-परिवार के कामकाज निपटा लिए..तनाव की जिंदगी में थोड़ा आराम कर लिया जाए या फिर माल में मूवी देखकर मनोरंजन कर लिया जाए, आजादी के मतवाले शहीद हो गए, ठीक है, बहुत हुआ तो whatsapp पर
मैसेज भेज दिया जाए, और ज्यादा हुआ तो टीवी पर देख लिया जाए, प्रधानमंत्री ने क्या कहा, और ज्यादा हुआ तो टीवी पर बहस देख ली जाए, कि प्रधानमंत्री ने पिछली बार क्या कहा था, इस बार क्या कहा, कितना पूरा हुआ..कितना नहीं हुआ..
सवाल सबसे बड़ा ये है कि जो भविष्य हैं, जो पीढ़ी आ रही है, उसे आजादी का कितना मतलब पता है, , उसे कितनी चिंता है, अगर ध्यान दें तो बच्चों को केवल इतना मतलब है कि हमारा कैरियर किससे बनता है, अगर एनडीए में जाने से बनता है तो मतलब है, यदि आईआईटी में जाने से बनता है तो उसी से मतलब है, यदि पीएमटी में जाने से बनता है तो उसी से मतलब है, बाकी न तो पढ़ने की जरूरत है, न समझने की जरूरत है और न ही जज्बे की जरूरत है, जज्बा केवल कैरियर तक है और परिवार को भी इसी की चिंता है, इसलिए आजादी को याद करने के लिए एक दिन तो बहुत बड़ी बात है, आधा दिन या एक घंटा भी साल में दे लिया, तो समझ लीजिए, बहुत कर दिया...बाकी फिर.......