ट्रेन हादसे तो होते ही रहेंगे, पहले भी होते आए हैं, कोई नहीं बात नहीं है, हो सकता..आपको लगे कि ये मैं क्या बोल रहा हूं, बुरा मुझे भी लगता है, दुख भी होता है लेकिन जो कड़वा सच है, उसे हम आप नहीं बदल सकते। मध्यप्रदेश के रूट पर ही इटारसी में हादसा हुआ तो महीने भर से ज्यादा के बाद भी ठीक नहीं हो पाया, दिल्ली से मुंबई तक ट्रेन रूट प्रभावित रहा, लाखों यात्रियों को गर्मियों की छुट्टियों में भारी दिक्कत का सामना करना पड़ा, मैं खुद भुक्तभोगी रहा हूं, मेरा परिवार भी रहा है, इसके बाद हरदा में हादसा हो गया, इसके पहले मध्यप्रदेश क्या, देश का कौन सा राज्य है, जहां ट्रेन चलती हो और हादसा नहीं हुआ है, जाहिर है कि ट्रेन चल रही है तो हादसे होंगे ही, लेकिन कितने और कब तक?
सवाल यही है कि बारिश होती है..पटरियों के नीचे मिट्टी खिसक जाती है, और लोगों की जानें चली जाती हैं, रेल मंत्री भी कहते हैं कि न तो ड्राइवर की गलती है, न रेलवे की गलती है, तो फिर गलती बारिश की है, इतनी नहीं होनी चाहिए थी, गलती उन यात्रियों की भी हो, उन्हें बारिश में खतरा नहीं मोल लेना था, गलती हम सबकी है..ट्रेन में चल रहे हैं तो सुरक्षा हमें खुद करनी होगी, या फिर घर में बैठकर ही काम चलाना होगा, चाहे कितनी मजबूरी हो, ये तब बात हो रही है जब हम बुलेट ट्रेन चलाने की बात कर रहे हैं, जब एक बारिश में ट्रेन हादसा हो जाता है और उससे उबरने में हमें कई दिन लग जाते हैं, फिर हम बुलेट ट्रेन की बात कैसे कर लेते हैं, हमने पहले भी चर्चा की थी कि पहले पैसेंजर और मालगाड़ी ही सुरक्षित चलती रहें, एक्सप्रेस तो बाद की बात है।
सवाल ये भी है कि हम बुलेट ट्रेन की चर्चा तो करने लगे हैं लेकिन धरातल पर इन जर्जर पटरियों का, सिस्टम का..भ्रष्टाचार का क्या करें, अगर ये सब ठीक हो जाए तो बुलेट ट्रेन भी चल जाएं। ऐसे दुख के वक्त भी ये मजाक ही लगता है कि दुनिया से मुकाबले की बात करते हैं तब हम ऐसे हादसों को रोकने की गारंटी क्यों नहीं ले पाते, अमेरिका में सुनामी से भी खतरनाक तूफान आता है तो उनका मेनेजमेंट कैसे लोगों की सुरक्षा कर ले जाता है।
दरअसल हम बुनियादी सुविधाओं को पूरा नहीं कर पाए, भ्रष्टाचार को दूर नहीं कर पाए, अनुशासन बना नहीं पाए, लेकिन हम थोड़ा-थोड़ा कर सब पा लेना चाहते हैं..ऐसे में सब पीछे छूट रहे हैं। रेलवे का बजट देखेंगे तो होश उड़ जाएंगे, इसमें से कितना पैसा वाकई लगा है और कितने रेलवे अफसरों की तिजोरियों में सड़ रहा है, जरा पता लगा लें, जब एक इंजीनियर सैकड़ों करोड़ तक पहुंच जाता है तो बड़े-बड़े अफसरों का बजट रिटायरमेंट तक कितना पहुंचता होगा?..जब किसी पर छापा पड़ता है तो हम आहें भरने लगते हैं लेकिन जिनके नहीं पड़ा है..जरा उन्हें भी तो देख लो, इसलिए जीवन दर्शन तो यही है कि पहले भ्रष्टाचार को रोक लो, सिस्टम सुधार लो, अनुशासन कर लो, फिर चाहे कितनी ही बारिश हो, एक्सप्रेस क्या बुलेट ट्रेन भी चलती रहेंगी..बाकी फिर.....ये भी पढ़िए..bhootstoryworld.blogspot.com whatappup.blogspot.com
सवाल यही है कि बारिश होती है..पटरियों के नीचे मिट्टी खिसक जाती है, और लोगों की जानें चली जाती हैं, रेल मंत्री भी कहते हैं कि न तो ड्राइवर की गलती है, न रेलवे की गलती है, तो फिर गलती बारिश की है, इतनी नहीं होनी चाहिए थी, गलती उन यात्रियों की भी हो, उन्हें बारिश में खतरा नहीं मोल लेना था, गलती हम सबकी है..ट्रेन में चल रहे हैं तो सुरक्षा हमें खुद करनी होगी, या फिर घर में बैठकर ही काम चलाना होगा, चाहे कितनी मजबूरी हो, ये तब बात हो रही है जब हम बुलेट ट्रेन चलाने की बात कर रहे हैं, जब एक बारिश में ट्रेन हादसा हो जाता है और उससे उबरने में हमें कई दिन लग जाते हैं, फिर हम बुलेट ट्रेन की बात कैसे कर लेते हैं, हमने पहले भी चर्चा की थी कि पहले पैसेंजर और मालगाड़ी ही सुरक्षित चलती रहें, एक्सप्रेस तो बाद की बात है।
दरअसल हम बुनियादी सुविधाओं को पूरा नहीं कर पाए, भ्रष्टाचार को दूर नहीं कर पाए, अनुशासन बना नहीं पाए, लेकिन हम थोड़ा-थोड़ा कर सब पा लेना चाहते हैं..ऐसे में सब पीछे छूट रहे हैं। रेलवे का बजट देखेंगे तो होश उड़ जाएंगे, इसमें से कितना पैसा वाकई लगा है और कितने रेलवे अफसरों की तिजोरियों में सड़ रहा है, जरा पता लगा लें, जब एक इंजीनियर सैकड़ों करोड़ तक पहुंच जाता है तो बड़े-बड़े अफसरों का बजट रिटायरमेंट तक कितना पहुंचता होगा?..जब किसी पर छापा पड़ता है तो हम आहें भरने लगते हैं लेकिन जिनके नहीं पड़ा है..जरा उन्हें भी तो देख लो, इसलिए जीवन दर्शन तो यही है कि पहले भ्रष्टाचार को रोक लो, सिस्टम सुधार लो, अनुशासन कर लो, फिर चाहे कितनी ही बारिश हो, एक्सप्रेस क्या बुलेट ट्रेन भी चलती रहेंगी..बाकी फिर.....ये भी पढ़िए..bhootstoryworld.blogspot.com whatappup.blogspot.com