Sunday, August 16, 2015

महंगा क्यों अच्छा होता है?

हमारा दिमाग कैसे काम करता है..हमारी सोच कैसे काम करती है, हम कैसे किसी के बारे में राय बनाते हैं, हमें दिमाग से कैसे निर्देश मिलते हैं..इसका उदाहरण एक साइंस चैनल ने दिखाया..उन्होंने दो केक बनाए..ग्राहकों के सामने फ्री डेमो किया..एक का रेट 50 डालर रखा तो दूसरे का 10 डालर..दोनों केक के सेंपल फ्री में ग्राहकों को टेस्ट कराए और कहा कि वो जानना चाहते हैं कि इनमें से कौन सा केक अच्छा है ताकि आगे वो अपने ग्राहकों को उसी कीमत में उसी टेस्ट का केक बनाएं..तमाम लोगों ने फ्री में केक को टेस्ट किया..सारे ग्राहकों ने महंगे केक को पसंद किया..उसकी खूबियां भी बताईं कि उस केक में मेटरियल स्वाद भरा है, साफ्ट है, मुंह में रखते ही घुल जाता है, फ्लेवर अच्छा है...जबकि सस्ते केक में मेटेरियल अच्छा नहीं है, स्वाद भी बेहतर नहीं है, केक हार्ड है...कुल मिलाकर ग्राहकों ने सलाह दी कि 50 डालर वाला केक ही बनाएं क्योंकि सबकी पसंद वही है...अब आप को बता दें कि दोनों केक एक जैसे थे, एक जैसा मेटेरियल..एक जैसा फ्लेवर..एक जैसी क्वालिटी..कोई फर्क नहीं..केवल प्राइस टैग अलग-अलग रखे गए थे...

साफ है कि कीमत देखकर ग्राहकों का दिमाग उन्हें निर्देशित कर रहा था कि महंगी चीज अच्छी होती है..इसीलिए उन्हें महंगे केक का स्वाद भी अच्छा लग रहा था और क्वालिटी भी अच्छी लग रही थी..और ये बिलकुल सच भी है कि हमारे दिमाग ने जो धारणा बना रखी है हम वही करते हैं..उसी का चुनाव करते हैं..उसी को अच्छा मानते हैं..कोई कितना भी कुछ कह ले..
उदाहरण के लिए..हम देखते हैं कि सामने वाला किस ब्रांड का कपड़ा पहने है, किस ब्रांड के जूते पहने हैं..किस ब्रांड की घड़ी पहने है..किस ब्रांड की गाड़ी है..और उस ब्रांड का क्या क्लास है..यदि हम जानते हैं तो सामने वाले का स्टेटस मन ही मन तय कर लेते हैं वो कितना बड़ा आदमी है..उसकी कितनी बड़ी हैसियत है...अगर हम किसी को पहचानते हैं तो उसकी हैसियत के हिसाब से उसके हावभाव को देखते हैं..नहीं पहचानते हैं तो वो कितना ही बड़ा आदमी हो..यदि ब्रांडेड नहीं है तो हमें अंदाजा नहीं लग पाता है कि उसका क्या स्टेटस है..यदि कोई बड़ा आदमी किसी ब्रांड को पहने है..और वो नकली भी है तो हम उसे असली मानेंगे..और कोई मजदूर किसी बड़े ब्रांड की शर्ट पहने हैं..तो हम अपने आप ही अंदाजा लगा लेंगे कि वो जरूर नकली होगी..भले ही उसे किसी ने दी हो और असली ब्रांड हो...
तो हमारे दिमाग ने जो तय कर रखा है..हम उसी के निर्देश पर चलते हैं कि क्या बेहतर है..क्या सही है..क्या गलत है...यदि हमने किसी शख्स को..किसी वस्तु को..किसी सोच को गलत तय किया है तो हम जीवन में उस गलत को भी सही मानकर चलते जाएंगे..इसलिए जो भी तय करना है उसे सोच-समझ करें क्योंकि जीवन में आगे चलना उसी हिसाब से हैं...बाकी फिर......

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