Monday, August 17, 2015

मौत रिश्वत नहीं लेती....

एक और इंजीनियर के यहां 20 करोड़ रुपए कैश निकले..नोट गिनने की मशीनों से जैसे-तैसे काम पूरा हुआ..घर में 20 करोड़ का कैश..अब ऐसे समाचारों से ताज्जुब नहीं होता..हां ये अंदाजा जरूर लगा लेते हैं कि जब घर में 20 करोड़ कैश है तो कुल संपत्ति कितनी गुना होगी..कोई दो सौ करोड़ से ज्यादा तो होगी ही...मकान, प्लाट, गाड़ी, ज्वैलरी और अन्य सामान मिलाकर..हो सकता इससे ज्यादा भी हो.

.इंजीनियर क्या..पब्लिक डीलिंग से जुड़े किसी भी अफसर के पास चले जाईए..अफसर क्या किसी कर्मचारी के यहां ही चले जाईए..वेतन कितना होता है..25 से 50 हजार रुपए महीने..इतने में खर्चा कैसे चलता है.एनसीआर में रजिस्ट्री होती है...रजिस्ट्री के लिए बिल्डर एक मुश्त रकम दस से 20 हजार ले लेता है.ये रजिस्ट्री का वो खर्च है जो उसे वकील और रजिस्ट्री आफिस को देना है..कागज का खर्च अलग से...आप जाते हैं..केवल साइन करने हैं..फोटोे खिंचाते हैं और सैकड़ों लोगों की रजिस्ट्री आराम से हो जाती है..वहां प्यून होता है जो आपको रजिस्ट्री की रसीद देता है..लाखों का मकान लिया है तो मिठाई के नाम पर सौ रुपए मांगता है..तब तक वो रसीद नहीं देता है..रोज का काम है उसका...कम से कम 50 रजिस्ट्री आम तौर पर हो जाती है...कुल हुए 5000 हजार रुपए एक दिन के..महीने के कितने हुए करीब डेढ़ लाख रुपए...ये सबसे निचले कर्मचारी की ईमानदारी की कमाई है..नियम-कायदा बना हुआ है..हर कोई देता है...आप रजिस्ट्री पाकर खुश हैं..वो सौ का नोट पाकर..सौ-सौ कर जिंदगी में कितने बनाएगा..आप केलकुलेटर से गिनती कर लीजिए...
अब इंजीनियर के यहां सौ दौ करोड़ निकल रहे हैं तो क्या ज्यादा हैं....पुलिस को कितना पेट्रोल मिलता है महीने का..सुनकर दंग रह जाएंगे..इतने में वो थाने से घर नहीं जा सकते..पेट्रोलिंग तो छोड़ दीजिए..फिर कहां से आएगा पेट्रोल...अब आप कहेंगे...पुलिस को तो कभी रोते नहीं देखा..दूसरों को ही रुला देते हैं..इसलिए कागज पर क्या मिल रहा है..उससे कोई फर्क नहीं पड़ता...सैकड़ों और हजारों में आजकल होता क्या है...महंगे बंगले..फ्लैट, महंगी गाड़ी, महंगे स्कूल..कैसे संभव है..इसके लिए कुछ तो करना ही होगा..
एक-दो छापों से क्या होता है..लाइन से पता कीजिए..कितने हजारों इंजीनियर निकलेंगे..अकेले इंजीनियर ही क्यों दोषी है..तमाम अफसरों और कर्मचारियों की छानबीन कर लीजिए..लेकिन सबकी छानबीन भी नहीं हो सकती..जो छानबीन कर रहे हैं उन्हें भी तो अपने बच्चों के पेट पालने के लिए कुछ करोड़ चाहिए..इसलिए जो नहीं देगा..छापा तो उसी के डाला जाएगा..सबके यहां क्यों? लोग विदेश से आकर लौटते हैं तो किस्से सुनाते हैं.कोई एक कागज सड़क पर नहीं फेंक सकता..गलत पार्किंग नहीं कर सकते..सड़क पर थूक नहीं सकते...इतनी ज्यादा सख्ती..इतना अनुशासन..फिर जीने का क्या मतलब है..आजादी का क्या मतलब है..हमें मुश्किल में तो आजादी मिली है..इसलिए जो मर्जी आए..करिए..जो जितना लूट सकता है..लूटे..सब अपने-अपने में व्यस्त हैं..परेशान होने से क्या होगा...बाकी फिर.......
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