दाउद इब्राहिम की रोज खबरें चलती हैं...पाकिस्तान में हैं..कराची में हैं...दाउद आएगा..नहीं आएगा..कैसे आएगा..पाकिस्तान पर दबाव है...हम बातचीत नहीं करेंगे.इसी बहाने और डान की भी चर्चा हो जाती है..छोटा राजन..टाइगर और भी..सब का प्रोफाइल बताया जाता है..हम बड़े गौर से देखते हैं..सुनते हैं...अक्षय कुमार को शूटिंग में चोट लग गई..बड़ी खबर है..कैसे लगी..क्यों लगी..कितने दिलेर हैं...और किस-किस को चोट लगी अभी तक..कैसे स्टंट सीन होते हैं....हार्दिक पटेल को कुछ दिन पहले कोई नहीं जानता है..अब हार्दिक पटेल की नस-नस लोगों के सामने परोस दी गई है..हर रोज नए खुलासे..नए दस्तावेज..नयी कहानी...राधे मां आईं..तो राधे मां की पूरी कुंडली सात दिन में हमें रट गई...कमोबेश हर रोज किसी 'महान' शख्सियत के बारे में हमारा ज्ञान बढ़ता है या बढ़ाया जाता है क्योंकि हम इस ज्ञान को बढ़ाना चाहते हैं..आखिर क्यों?
हममें से ज्यादातर विभूतियों को इनसे लेना-देना नहीं है..न ही इनसे काम पड़ना है..न ही हम इनसे सीधे प्रभावित हैं...न ही ये हमारे जीवन का हिस्सा है..न ही बिजनेस का हिस्सा..न ही हमारे पड़ोसी है न ही रिश्तेदार..दरअसल हम भीड़ तंत्र का हिस्सा है...जो हमारे लिए जानना जरूरी है..उसे नहीं जानते..उसमें कष्ट नहीं उठाते..बल्कि उनको जानना चाहते हैं..जो किसी न किसी वजह से मशहूर हुए हैं..कुख्यात हुए हैं..नाम किया है या फिर बदनाम किया है..
बीच की श्रेणी से हमें कोई लेना-देना नहीं..जो हम खुद हैं...जो अलग करता है..जो नया करता है..जो मजबूर करता है..जो प्रभावित करता है..जिसके हम वशीभूत होते हैं..उसे हम जानना चाहते हैं..हमारे बगल की नाली में गंदगी साफ नहीं हो रही है..उसकी चिंता हम नहीं करते..लेकिन किसी 'महान' शख्सियत पर टिप्पणी करने..उसकी गहराई में घुसने की इच्छा प्रबल होती है...जब हम भीड़ की तरह व्यवहार करते हैं...जब हम अपने को नहीं देखना चाहते..हम रोज रिश्वत देते हैं तो उसे आम बात मानते हैं और जब कोई क्लर्क के यहां छापे में करोड़ों की संपत्ति मिलती है तो हम वाह और आह करते नजर आते हैं...
खुद में झांकते हैं तो हम कष्ट होता है..लेकिन ये कष्ट दवा की तरह है जो हम मजे से नहीं पीना चाहते..जब बीमार होते हैं तो डाक्टर के कहने पर मजबूरी में पी लेते हैं..दूसरे क्या हैं..क्यों हैं..कैसे हैं...उन्हें छोड़कर पहले खुद को सोचो..हमें ऐसे क्यों हैं..वैसे क्यों हैं..क्या कर सकते हैं..कैसे कर सकते हैं...क्यों नहीं कर सकते हैं..तो जरूर कुछ बेहतर हो...बाकी फिर......
हममें से ज्यादातर विभूतियों को इनसे लेना-देना नहीं है..न ही इनसे काम पड़ना है..न ही हम इनसे सीधे प्रभावित हैं...न ही ये हमारे जीवन का हिस्सा है..न ही बिजनेस का हिस्सा..न ही हमारे पड़ोसी है न ही रिश्तेदार..दरअसल हम भीड़ तंत्र का हिस्सा है...जो हमारे लिए जानना जरूरी है..उसे नहीं जानते..उसमें कष्ट नहीं उठाते..बल्कि उनको जानना चाहते हैं..जो किसी न किसी वजह से मशहूर हुए हैं..कुख्यात हुए हैं..नाम किया है या फिर बदनाम किया है..
बीच की श्रेणी से हमें कोई लेना-देना नहीं..जो हम खुद हैं...जो अलग करता है..जो नया करता है..जो मजबूर करता है..जो प्रभावित करता है..जिसके हम वशीभूत होते हैं..उसे हम जानना चाहते हैं..हमारे बगल की नाली में गंदगी साफ नहीं हो रही है..उसकी चिंता हम नहीं करते..लेकिन किसी 'महान' शख्सियत पर टिप्पणी करने..उसकी गहराई में घुसने की इच्छा प्रबल होती है...जब हम भीड़ की तरह व्यवहार करते हैं...जब हम अपने को नहीं देखना चाहते..हम रोज रिश्वत देते हैं तो उसे आम बात मानते हैं और जब कोई क्लर्क के यहां छापे में करोड़ों की संपत्ति मिलती है तो हम वाह और आह करते नजर आते हैं...
खुद में झांकते हैं तो हम कष्ट होता है..लेकिन ये कष्ट दवा की तरह है जो हम मजे से नहीं पीना चाहते..जब बीमार होते हैं तो डाक्टर के कहने पर मजबूरी में पी लेते हैं..दूसरे क्या हैं..क्यों हैं..कैसे हैं...उन्हें छोड़कर पहले खुद को सोचो..हमें ऐसे क्यों हैं..वैसे क्यों हैं..क्या कर सकते हैं..कैसे कर सकते हैं...क्यों नहीं कर सकते हैं..तो जरूर कुछ बेहतर हो...बाकी फिर......