Saturday, August 22, 2015

दुश्मनी किससे निभा रहे हैं?

एक शख्स हैं दिन रात गुणा भाग में लगे रहते हैं..बड़ी पोस्ट पर हैं..जितने दोस्त हैं उससे ज्यादा दुश्मन हैं..कुछ दुश्मन अपने आप बन गए..कुछ उन्होंने बना लिए...अब नौकरी से ज्यादा उनका फोकस उन दुश्मनों से निबटने में लगा रहता है..उनकी एक-एक खबर पाने के लिए कई जासूस लगे हुए हैं..जो दुश्मन हैं उनके जासूस इन शख्स के पीछे लगे हुए हैं...इधर की खबर उधर पहुंचती है और उधर की खबर इधर आ जाती हैं..एक दिन विस्तार से चर्चा हो रही थी..बताने लगे कि यार..नौकरी भी आसान नहीं..कोई काम नहीं करने देता..जिसका भला करो..उसके लिए अच्छा..जिसका फेवर नहीं करो...वो बुरा बन जाता है...हमारा गडढा खोदने में जुट जाता है..नौकरी को देखूं कि इन दुश्मनों को देखूं....लेकिन मैं भी पीछे हटने वाला नहीं..अगर मुझे निबटाने के लिए काम करेगा..तो क्या मैं उसे छोड़ दूंगा..उसके पीछे भी आदमी लगा दिए हैं...मैं भी देखता हूं उसे तो मैं पटक-पटक कर मारूंगा..कहीं का नहीं रहेगा..मेरा जीना हराम कर रखा है तो उसे भी चैन से नहीं जीने दूंगा...

कुल मिलाकर जैसे ही केबिन में पहुंचते हैं...मुखबिर एक-एक कर रिपोर्ट करते हैं..कि फलां दुश्मन के बारे में क्या खबर है?..किससे मिल रहा है..आपके खिलाफ क्या कर रहा है..क्या नया पैतरा चला है या चलने वाला है...दूसरा मुखबिर कुछ और बताता है...घर पहुंचते हैं तो mobile. sms और whatsapp पर मुखबिर खबरें पहुंचाते हैं...और फिर उस खबर को तोड़ निकालने की तैयारी में जुट जाते हैं...इस बीच उन्हें अपने मूल काम का होश नहीं रहता और न ही वक्त मिलता है....जब दुश्मन को पटखनी मिलती है तो बड़ा ही विजयी भाव उनके चेहरे पर होता है..मूड इतना अच्छा होता है कि मुखबिरों को बढ़िया लंच-डिनर करा देते हैं और उन्हें जुटे रहने का हौंसला देते हैं..लेकिन जब दुश्मन भारी पड़ता है तो आफिस तो दूर घर पर भी बेचैन रहते हैं....

ये तो एक उदाहरण हैं..ये हर तरफ हो रहा है..जाहिर है जो उनका दुश्मन है उसकी भी यही हाल होगा..जो जिस ग्रुप में है उसका हित उस ग्रुप से जुड़ा हुआ है..इसलिए जब बास परेशान होता है तो उसके ग्रुप मेंबर भी परेशान हो जाते हैं...जब बास खुश होता है..तो उनके चेहरे पर भी खुशी छा जाती है...कुल मिलाकर गडढा खोदने...उसे पूरने में दिन रात एक हो रहा है...जीवन यूं ही चलता जा रहा है...ऐसे में उनकी खुद की पाजिटिव इनर्जी कहां गई...पता नहीं...केवल साजिश, षडयंत्र, मुखबिरी और एक दूसरे पर दांव खेलने में जीवन का सारा वक्त निकल रहा है...
मूल बात ये है कि चाहे हमारे परिचित शख्स जीतें..या फिर उनका दुश्मन..किसी का एक नुकसान तो होना ही है..लेकिन भला किसी का नहीं होना है...चेहरे बदलते रहते हैं लेकिन फितरत नहीं बदलती...नाम बदल जाता है लेकिन काम नहीं बदलता...हो सकता है..आप हम में भी कई लोग इसी प्रक्रिया से गुजर रहे होंगे...लेकिन जरा सोचकर देखिए..कि आप दूसरे का नुकसान कर पाएं या न कर पाएं..अपना नुकसान जरूर कर रहे हैं...अगर पाजिटिव चलेंगे..तो आपका सम्मान बढ़ेगा..आपका खुश रहेंगे...चैन की नींद सो पाएंगे..नहीं तो जीवन से ही दुश्मनी कर बैठेंगे..और जीवन जीने के लिए है..दुश्मनी निभाने के लिए नहीं...बाकी फिर......
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