मोदी अबूधावी की मस्जिद में गए..बड़ी खबर बन गई..पूरे देश के लिए..पूरे विश्व के लिए...क्यों...अगले दिन एक और खबर देखी..जौनपुर के आबिद ने हनुमान चालीसा का उर्दू में अनुवाद किया है..और दूसरी खबर ये है कि वाराणसी की नाजनीन ने शिव चालीसा..दुर्गा सप्तशती का उर्दू में अनुवाद किया है..वो हनुमान चालीसा पढ़
ती हैं...पूजा करती हैं..उनका परिवार कट्टरपंथी है..आठवीं के बाद पढ़ाई की मनाही हो गई लेकिन उन्होंने एक संगठन की मदद से अपने को सामाजिक कार्यों में आगे बढ़ाया और अब बच्चों को तालीम देने के अलावा भाईचारे..सदभाव का संदेश फैला रही है...ऐसी खबरें क्यों बनती है..क्या इसलिए कि हम भले ही चांद पर जाने की बात करें..धर्मनिरपेक्षता की कितनी ही दुहाई दें..कितने ही आधुनिक बनने की बात करें..लेकिन जड़ में अब भी हिंदू..मुस्लिम और तथाकथित धर्म की भावना कूट-कूट कर भरी है।
अजमेर की दरगाह पर जितने मुस्लिम जाते हैं उतने ही हिंदू भी जाते हैं...मुंबई में हजरत अली की दरगाह और दिल्ली में निजामुद्दीन की दरगाह पर भी ऐसा ही है..तो प्रसिद्ध मंदिरों में मुस्लिम भी पहुंचते हैं...लेकिन गली-मोहल्लों के मंदिरों में ऐसा नजर नहीं आता...न ही मस्जिदों में..ऐसा क्यों हैं?
हिंदू-मुस्लिम जो दोस्त हैं...वो ईद भी मनाते हैं..होली और दीवाली भी..दशहरा भी...रक्षाबंधन भी..एक दूसरे के घर जाते हैं..सेवईंयां खाते हैं..और मिठाई भी..होली पर रंग खेलते हैं..इसके बावजूद...कटटरपंथ जाता क्यों नहीं है... पीके फिल्म इसी विषय पर भी थी...वीरजारा और बजरंगी भाई जान भी इसी विषय पर बनी...लोगों ने बड़ी सराही..इसके बावजूद हिंदू-मुस्लिम कटटरपंथ अब भी क्यों जिंदा है?...
दरअसल जहां जिसका जैसा स्वार्थ होता है..वैसा ही चलता है..जहां हिंदू मुस्लिम में दोस्ती है...सहयोगी है..बिजनेस है...सीनियर-जूनियर है...पड़ोसी है...पति-पत्नी हिंदू मुस्लिम हैं..वहां सब कुछ सामान्य होता है..प्यार भरा होता है..सदभाव नजर आता है..लेकिन जहां हमारे स्वार्थ आड़े आते हैं..ठेकेदारी आड़े आती है..राजनीतिक फायदा नजर आता है..वहां से दुश्मनी शुरू हो जाती है..जिसे हम पैदा नहीं करते..पैदा कराई जाती है..जो मोहरे बनते हैं..वो फालो करते हैं..जो लीडर होते हैं..वो नफरत फैलाकर अपना हित साधते हैं...आबिद और नाजनीन जैसे युवा लीडर हैं. पाजिटिव लीडर हैं...भाईचारे का संदेश फैला रहे हैं..खुद तय कर रहे हैं कि उन्हें क्या अच्छा लगता है..क्या करना है..तालिबान और आईएस जैसे लीडर नफरत फैला रहे हैं..उनकी कोई सोच नहीं..उन्हें न तो धर्म का पता है..न धर्म से लेना-देना है..उन्हें अपनी हुकूमत से मतलब है..पाजिटिव होकर नहीं जीत सकते..इसलिए निगेटिव होकर जबर्दस्ती पर उतरने को मजबूर हुए हैं..वो पहले से हारे हुए हैं..आबिद और नाजनीन ऐसे लीडर हैं जो खुद तो विनर हैं ही..हिंदू हो या मुस्लिम..सभी को जीतने के लिए प्रेरित कर रहे हैं....बाकी फिर....
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ती हैं...पूजा करती हैं..उनका परिवार कट्टरपंथी है..आठवीं के बाद पढ़ाई की मनाही हो गई लेकिन उन्होंने एक संगठन की मदद से अपने को सामाजिक कार्यों में आगे बढ़ाया और अब बच्चों को तालीम देने के अलावा भाईचारे..सदभाव का संदेश फैला रही है...ऐसी खबरें क्यों बनती है..क्या इसलिए कि हम भले ही चांद पर जाने की बात करें..धर्मनिरपेक्षता की कितनी ही दुहाई दें..कितने ही आधुनिक बनने की बात करें..लेकिन जड़ में अब भी हिंदू..मुस्लिम और तथाकथित धर्म की भावना कूट-कूट कर भरी है।
अजमेर की दरगाह पर जितने मुस्लिम जाते हैं उतने ही हिंदू भी जाते हैं...मुंबई में हजरत अली की दरगाह और दिल्ली में निजामुद्दीन की दरगाह पर भी ऐसा ही है..तो प्रसिद्ध मंदिरों में मुस्लिम भी पहुंचते हैं...लेकिन गली-मोहल्लों के मंदिरों में ऐसा नजर नहीं आता...न ही मस्जिदों में..ऐसा क्यों हैं?
हिंदू-मुस्लिम जो दोस्त हैं...वो ईद भी मनाते हैं..होली और दीवाली भी..दशहरा भी...रक्षाबंधन भी..एक दूसरे के घर जाते हैं..सेवईंयां खाते हैं..और मिठाई भी..होली पर रंग खेलते हैं..इसके बावजूद...कटटरपंथ जाता क्यों नहीं है... पीके फिल्म इसी विषय पर भी थी...वीरजारा और बजरंगी भाई जान भी इसी विषय पर बनी...लोगों ने बड़ी सराही..इसके बावजूद हिंदू-मुस्लिम कटटरपंथ अब भी क्यों जिंदा है?...
दरअसल जहां जिसका जैसा स्वार्थ होता है..वैसा ही चलता है..जहां हिंदू मुस्लिम में दोस्ती है...सहयोगी है..बिजनेस है...सीनियर-जूनियर है...पड़ोसी है...पति-पत्नी हिंदू मुस्लिम हैं..वहां सब कुछ सामान्य होता है..प्यार भरा होता है..सदभाव नजर आता है..लेकिन जहां हमारे स्वार्थ आड़े आते हैं..ठेकेदारी आड़े आती है..राजनीतिक फायदा नजर आता है..वहां से दुश्मनी शुरू हो जाती है..जिसे हम पैदा नहीं करते..पैदा कराई जाती है..जो मोहरे बनते हैं..वो फालो करते हैं..जो लीडर होते हैं..वो नफरत फैलाकर अपना हित साधते हैं...आबिद और नाजनीन जैसे युवा लीडर हैं. पाजिटिव लीडर हैं...भाईचारे का संदेश फैला रहे हैं..खुद तय कर रहे हैं कि उन्हें क्या अच्छा लगता है..क्या करना है..तालिबान और आईएस जैसे लीडर नफरत फैला रहे हैं..उनकी कोई सोच नहीं..उन्हें न तो धर्म का पता है..न धर्म से लेना-देना है..उन्हें अपनी हुकूमत से मतलब है..पाजिटिव होकर नहीं जीत सकते..इसलिए निगेटिव होकर जबर्दस्ती पर उतरने को मजबूर हुए हैं..वो पहले से हारे हुए हैं..आबिद और नाजनीन ऐसे लीडर हैं जो खुद तो विनर हैं ही..हिंदू हो या मुस्लिम..सभी को जीतने के लिए प्रेरित कर रहे हैं....बाकी फिर....
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