चाल और चेहरे से मिलकर बनता है चरित्र..चेहरे के हाव-भाव को देखते ही हम सामने वाले किसी भी शख्स के बारे में तत्काल एक राय अपने दिलो-दिमाग में बना लेते हैं..अनजान शख्स के बारे में ये धारणा तात्कालिक होती है और जिसे हम जानते हैं, उसके बारे में ये धारणा बनी रहती है..ये कहें स्टोर रहती है...चेहरे के साथ ही चाल हमें किसी को पहचानने में और मदद करती है..हम कहते भी हैं कि फलां की चाल-ढाल ठीक नहीं है..उसकी चाल तो देखो..कैसे रंग-ढंग हैं..चाल और चेहरे ही मिलकर रंग-ढंग तय करते हैं और चाल-ढाल तय करते हैं..तो बाहरी चेहरा और चाल तो हम आसानी से समझ लेते हैं कि कोई व्यक्ति या महिला कैसी है..लेकिन भीतरी चाल और छिपे हुए चेहरे को समझना सबसे अहम है...
जब हम किसी शख्स के अंदर की सोच-विचार और मन को टटोल लेते हैं तो उसे सही से जान लेते हैं नहीं तो गच्चा खा जाते हैं..खास तौर से राजनेता और साधुसंत इस कला में माहिर होते हैं वो हमारे भीतर के चेहरे और चाल को समझ लेते हैं लेकिन हम उनके बारे में नहीं जान पाते..जब उनकी पोल खुलती है तो हमें पता चलता है कि अरे..ये तो बड़ा कलाकार निकला...वाकई जो जितना बड़ा कलाकार है उसे समझना उतना ही कठिन...
चाल और चेहरे से मिलकर चरित्र बनता है..बाहरी चरित्र तो हमें नजर आता है लेकिन भीतरी चरित्र ही उसकी असलियत होता है...हम दिन भर में किस तरह बहुरुपिया बनते हैं चाहे वो चाल से या चेहरे से..या फिर लोग हमें बेवकूफ बना जाते हैं..भीतरी चरित्र वो होता है जो बता कर नहीं सामने नहीं आता..अपने आप आता है...मसलन..कोई कितना ही बड़ा आदमी हो या छोटा...यहां हम हैसियत की बात कर रहे हैं..किसी का भी चरित्र अच्छा या बुरा हो सकता है..छोटे आदमी का चरित्र बड़े से अच्छा हो सकता है..किसी प्यासे को पानी पिला देना..किसी असहाय को सीट दे देना...किसी हादसे में परिचित न होकर भी मदद कर देना..यहां भीतरी चरित्र की एक झलक देखी जा सकती है..
हम जानकर किसी की मदद करते हैं तो उसमें चरित्र अच्छा होने पर भी नहीं जान सकते..इसमें स्वार्थ भी हो सकता है..मजबूरी भी हो सकती है..दबाव भी हो सकता है...चरित्र वहां उभर कर आता है जहां बिना स्वार्थ के किसी के जीवन में सहयोग करना..चाहे वो कोई भी हो...जिसे हम जानते हैं उसका चरित्र जानना ज्यादा कठिन है जिसे हम नहीं जानते..या फिर वो हमें नहीं जानता..वहां हम ज्यादा वास्तविक नजर आते हैं लेकिन जब हम जानते हैं तो चाल..चरित्र और चेहरा बनावटी हो जाता है..तो भीतरी चाल..चरित्र और चेहरे को पहचानिए..way of life जरूर बेहतर होगा...बाकी फिर.....
.ये भी पढ़िए..bhootstoryworld.blogspot.com whatappup.blogspot.com
जब हम किसी शख्स के अंदर की सोच-विचार और मन को टटोल लेते हैं तो उसे सही से जान लेते हैं नहीं तो गच्चा खा जाते हैं..खास तौर से राजनेता और साधुसंत इस कला में माहिर होते हैं वो हमारे भीतर के चेहरे और चाल को समझ लेते हैं लेकिन हम उनके बारे में नहीं जान पाते..जब उनकी पोल खुलती है तो हमें पता चलता है कि अरे..ये तो बड़ा कलाकार निकला...वाकई जो जितना बड़ा कलाकार है उसे समझना उतना ही कठिन...
चाल और चेहरे से मिलकर चरित्र बनता है..बाहरी चरित्र तो हमें नजर आता है लेकिन भीतरी चरित्र ही उसकी असलियत होता है...हम दिन भर में किस तरह बहुरुपिया बनते हैं चाहे वो चाल से या चेहरे से..या फिर लोग हमें बेवकूफ बना जाते हैं..भीतरी चरित्र वो होता है जो बता कर नहीं सामने नहीं आता..अपने आप आता है...मसलन..कोई कितना ही बड़ा आदमी हो या छोटा...यहां हम हैसियत की बात कर रहे हैं..किसी का भी चरित्र अच्छा या बुरा हो सकता है..छोटे आदमी का चरित्र बड़े से अच्छा हो सकता है..किसी प्यासे को पानी पिला देना..किसी असहाय को सीट दे देना...किसी हादसे में परिचित न होकर भी मदद कर देना..यहां भीतरी चरित्र की एक झलक देखी जा सकती है..
हम जानकर किसी की मदद करते हैं तो उसमें चरित्र अच्छा होने पर भी नहीं जान सकते..इसमें स्वार्थ भी हो सकता है..मजबूरी भी हो सकती है..दबाव भी हो सकता है...चरित्र वहां उभर कर आता है जहां बिना स्वार्थ के किसी के जीवन में सहयोग करना..चाहे वो कोई भी हो...जिसे हम जानते हैं उसका चरित्र जानना ज्यादा कठिन है जिसे हम नहीं जानते..या फिर वो हमें नहीं जानता..वहां हम ज्यादा वास्तविक नजर आते हैं लेकिन जब हम जानते हैं तो चाल..चरित्र और चेहरा बनावटी हो जाता है..तो भीतरी चाल..चरित्र और चेहरे को पहचानिए..way of life जरूर बेहतर होगा...बाकी फिर.....
.ये भी पढ़िए..bhootstoryworld.blogspot.com whatappup.blogspot.com