Wednesday, August 26, 2015

ज्यादा बोलते हैं...या फिर चुप रहते हैं..

रिश्ते में भाभी लगती हैं...जब भी मिलती हैं...नान स्टाप बोलती हैं...आधा घंटे बाद तो सांस लेती है..और अगर दूसरा प्रसंग छेड़ दिया तो फिर आधा घंटा....जहां भी होती हैं..चर्चा का विषय रहती हैं..कोई हंसी-मजाक में लेता है तो कोई उनको देखते ही भागने की सोचता है....अब ये आईं..और आधा या एक घंटा गया..दुनिया जहान की बातें करती हैं...न जाने बोलने का इतना भंडार कहां से आता है..कुछ तो वो मौका..माहौल से ही बोलने का मेटेरियल निकाल लेती हैं..हर चीज पर बात कर लो...पालिटिक्स से लेकर क्रिकेट तक..सब्जी भाजी से लेकर बच्चों की पढ़ाई तक...रहन-सहन..आस-पड़ोस..नाते-रिश्तेदारी..न जाने कितने टापिक हैं..न जाने कितनी बातें हैं..हर रोज बोलती हैं..हर वक्त बोलती हैं...लेकिन भंडार खत्म नहीं होता..मुश्किल ये भी है कि आपने उनके बोलने में अनमना सा मन बनाया...रिस्पांस नहीं दिया तो आधा घंटे उसी पर नसीहत मिल जाएगी......

जीवन दर्शन का एक किरदार ऊपर था अब दूसरे शख्स से मिलिए...ये मेरे भाई जैसे हैं...चुपचाप..गुम सुम..केवल हां और न में जवाब देना..दस आदमी इकटठे हैं..हर कोई बोल रहा है लेकिन ये केवल सुनते हैं...जब बोलते हैं तो लोगों को ताज्जुब सा होता है और सभी की नजरें उनकी तरफ चली जाती हैं..चलो..कुछ तो बोले..कुछ तो राय रखी..लेकिन एक लाइन के बाद फिर चुप हो जाते हैं..फिजूल की मस्ती..मजाक...गपशप उन्हें बिलकुल पसंद नहीं...या तो सोने में आनंद आता है..या फिर लिखने-पढ़ने में..या फिर दूसरों को सुनने में...पता नहीं जीवन के कितने साल में बाकी लोगों की तुलना में 10-20 प्रतिशत बोले भी या नहीं....

निश्चित तौर पर भाभी जी आपको अच्छी लगी होंगी..लेकिन सच कहें कि मुझे दोनों किरदार पसंद नहीं...ज्यादा बोलना..और बिलकुल न बोलना..दोनों हमारी सेहत के लिए ठीक नहीं..हमारे जीवन के लिए ठीक नहीं...जितना ज्यादा बोलेंगे...हम अपनी सीमा से बाहर जाएंगे..उनमें से काफी शब्द या बोली ऐसी होगी..जो फिजूल की होगी..दूसरों को कष्ट देने वाली होगी..सारगर्भित नहीं होगी..टू द पाइंट नहीं होगी...यही नहीं..हमें अपने बारे में या दूसरों के बारे में जितनी राय रखनी हैं..उससे ज्यादा रखेंगे...खुद के बारे में जब अब सब कुछ खोल देंगे..अनाप-शनाप बोल देंगे तो आपके बारे में किसी की राय ठीक नहीं बनेगी..
इसके ठीक उलट दूसरे शख्स के साथ भी है..जब आप कुछ भी नहीं बोलेंगे..न तो दूसरों को अपने बारे में राय बनाने देंगे..न तो दूसरों को समझेंगे..न दूसरों को समझाएंगे..तो आपके बारे में जो धारणा बनेगी..वो ठीक नहीं होगी..या तो लोग समझेंगे..आपको कुछ आता नहीं है..या फिर आप जरूरत से ज्यादा चालाक या स्मार्ट बनने की कोशिश कर रहे हैं..या फिर आप दूसरों के साथ इंटरेस्ट नहीं ले रहे हैं...
जितना बोलना जरूरी है..जहां बोलना जरूरी है..जैसा बोलना जरूरी है..जरूर बोलना चाहिए..न किसी चीज की अति और न किसी चीज की कमी..हमारे जीवन के लिए ठीक नहीं...इसलिए न तो बिलकुल चुप रहें और न जरूरत से ज्यादा बोलें...निश्चित ही हम अपने को बेहतर कर पाएंगे...बाकी फिर......ये भी पढ़िए..for ghost- bhootstoryworld.blogspot.com  for fun- whatappup.blogspot.com