Sunday, August 23, 2015

बच्चा पढ़ता क्यों नहीं है?

एक मित्र हैं..उनका एक बेटा है..और एक बेटी है..मित्र दिन रात बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित रहते हैं..बेटी बड़ी है और होशियार है..पढ़ने में नंबर-वन..खेलकूद में नंबर वन..स्कूल की हर प्रतियोगिता में उसको पुरस्कार मिलते हैं..और स्वभाव में भी नंबर वन...बेटी से तो वो खुश हैं लेकिन बेटा के मारे परेशान..बेटा छोटा है...छोटी क्लास है लेकिन उसकी पढ़ाई को लेकर बात नहीं बन रही..एक तो उसका पढ़ने में मन नहीं लगता है..दूसरा खेल खेलने जाता है तो चोट लगा कर आ जाता है..कुल मिलाकर बेटी पर जितना फोकस रखने की जरूरत नहीं रहती..बेटे पर उससे दोगुना ध्यान रखना पड़ता है। जिससे भी चर्चा होती है तो वो पूछते हैं कि क्या किया जाए..बहन से कुछ सीखता ही नहीं है..थोड़ी देर पढ़ने बैठेगा..फिर कहेगा..अब हो गया..खेलने जा रहा हूं..जबर्दस्ती करो..तो थोड़ी देर बैठा रहेगा..और फिर बहाना बनाकर भाग जाएगा...कुछ अच्छा खिलाने का लालच दो तो बैठ जाएगा..लेकिन जब मन का न हो..तो पेट दर्द शुरू हो जाएगा...

कुल मिलाकर ये है कि उसका पढ़ाई में न तो उतना मन लगता है और न ही क्लास में अपनी बहन जितना होशियार है और यही परेशानी उन्हें खल रही है कि बेटा बेटी के बराबर क्यों नहीं हैं। कहावत है कि पांचों उंगलियां एक समान नहीं होती...हर बच्चा मेधावी नहीं होता..हर बच्चा खिलाड़ी नहीं होता..हर बच्चा हीरो नहीं बनता..हर बच्चा आईएएस नहीं बनता..हर बच्चा नेता नहीं बनता..हर बच्चा बड़ा बिजनेस मैन नहीं बनता..

ये एक घर की नहीं..घर-घर की कहानी है कि बच्चा पढ़ता क्यों नहीं है और सारे बच्चे एक जैसे क्यों नहीं होते..कलाम राष्ट्रपति बन गए..उनके भाई उनके बराबर नहीं पहुंचे..मोदी प्रधानमंत्री बन गए..उनके भाई उनके बराबर नहीं पहुंचे...अमिताभ बच्चन देश के सुपर स्टार बन गए..अभिषेक बच्चन नहीं बन पाए..सचिन तेंदुलकर महान क्रिकेटर बन गए..उनके भाई नहीं बन पाए..ऐसे लाखों उदाहरण हमारे आसपास भी हैं..ज्यादातर लोग अपने बच्चों को आईएएस..आईआईटी..आईआईएम..पीएमटी में भेजना चाहते हैं लेकिन सब नहीं पहुंच पाते..पूरी जिंदगी कशमकश चलती है..खर्चा करते हैं..मेहनत करते हैं..परेशान होते हैं लेकिन नहीं हो पाता..
ये हमारी गलती है बच्चे की नहीं...जो हम बन पाए..जरूरी नहीं बच्चा भी बन पाए..जो हम नहीं बन पाए..हो सकता है बच्चा उससे अच्छा बन जाए..तो किसी की किसी से तुलना का कोई मतलब नहीं..किसी पर जबर्दस्ती थोपने से कुछ नहीं होगा..बच्चे को जो बनना है..वो उसका स्वाभाविक होगा..होना भी चाहिए..यदि जबर्दस्ती करेंगे...थोपेंगे तो हो सकता है कि बच्चा जो बन सकता था..वो भी न पाए..जिस रास्ते पर उसके चलने की इच्छा है उसे चलने दीजिए..करने दीजिए...उसी रास्ते पर सपोर्ट करिए...जबर्दस्ती अफसर..इंजीनियर या डाक्टर बनाने पर तुल गए..तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा...बाकी फिर....
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