हमारे एक मित्र हैं..लगभग हमारी ही उम्र के...हमारे साथ ही कैरियर शुरू किया..हमारे जितना ही परिवार...कमाई ढाई लाख रुपए हर महीने...एक दिन बैठे गपशप कर रहे थे...बोले..यार जिंदगी बड़ी कठिन है..खर्चा ही नहीं चलता... 30 % टैक्स में कट जाता है..पीएफ और कुछ और रकम संस्थान ले लेता है..मिला जुलाकर दो लाख से भी कम हाथ में आता है..उसमें से पचास हजार से ऊपर मकान के लोन में चला जाता है...पंद्रह हजार करीब कार की किश्त में...बच्चे की पढ़ाई में पंद्रह हजार रुपए महीने...साल में एक बार कहीं घूमने चला जाता हूं तो एक से डेढ़ लाख खर्चा हो जाता है...मोबाइल,नेट,बिजली, घर का काम करने वाली बाई, दूध, सब्जी, बच्चे की कोचिंग..मिला जुलाकर जब महीने का आखिर आता है..तो शायद ही कुछ हजार बैंक बैलेंस बचता है..और यदि किसी रिश्तेदार की शादी आ जाए..बीमारी..दुखी..कोई मेहमान डेरा डाल लें..तो फिर तो पूछो मत... क्या हाल होता है...बड़ा झमेला है यार...हर रोज हजार-दो हजार तो ऐसे उठते हैं जैसे जेब खर्च...
नौकरी की शुरूआत हुई थी मात्र 600 रुपए महीने से...तब लगता था कि कम से कम एक हजार हो जाएं तो जीवन सुधर जाए..दूसरी नौकरी लगी डेढ़ हजार की..बड़े खुश..बोले...अब ठीक है..कम से कम कुछ बेहतर हुई लाईफ...एक दो महीने बाद बोले..डेढ़ हजार में क्या होता है...कम से कम तीन हजार तो मिलने चाहिए..करते-करते दस हजार के वेतन पर दिल्ली पहुंच गए..बोले ठीक है दस हजार मिल रहे हैं..लेकिन छोटे शहर के पांच हजार के बराबर हैं...चार-पांच साल में पच्चीस हजार मिलने लगे...बोले..जब पचास हजार होगी तब थोड़ा सुकून होगा....पचास के बाद एक लाख की बारी आई..एक के बाद दो लाख की..लेकिन हालत जस के तस है..वही समस्या..जब छह सौ रुपए कमाई थी तो दो सौ रुपए का मकान किराए पर लिए थे..अब 50 हजार रुपए किश्त जाती है..तब न तो शादी हुई थी न बच्चा था..अब तीन लोगों का परिवार..पहले पांच पैसे दस पैसे और पचास पैसे चलते थे अब सौ रुपए से शुरूआत होती है...कुल मिलाकर दो लाख की कमाई पर छह सौ रुपए भारी थे..
यहां तक तो सही है...लेकिन खर्चा हमेशा चलता है और खर्चा हमेशा नहीं चलता है..ये आपके ऊपर है कि आप कितने में सुकून पा लेते हैं और कितने में नहीं..दो लाख क्या पांच लाख वालों से पूछो..उनके खर्च उतने ही बड़े...और तीस हजार वालों से पूछो..तो वो भी उसी हालत में हैं..महंगाई कभी कम नहीं होनी..इच्छाएं कभी कम नहीं होनी..ये आपके ऊपर है कि आप कहां सुकून तलाश पाते हो..कहां नहीं..नहीं तलाश पाए तो जीवन पर नोट गिनते रहेगो..और जब अंत होगा..तो जो रखा है..वो रखा रह जाएगा...बाकी फिर......
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नौकरी की शुरूआत हुई थी मात्र 600 रुपए महीने से...तब लगता था कि कम से कम एक हजार हो जाएं तो जीवन सुधर जाए..दूसरी नौकरी लगी डेढ़ हजार की..बड़े खुश..बोले...अब ठीक है..कम से कम कुछ बेहतर हुई लाईफ...एक दो महीने बाद बोले..डेढ़ हजार में क्या होता है...कम से कम तीन हजार तो मिलने चाहिए..करते-करते दस हजार के वेतन पर दिल्ली पहुंच गए..बोले ठीक है दस हजार मिल रहे हैं..लेकिन छोटे शहर के पांच हजार के बराबर हैं...चार-पांच साल में पच्चीस हजार मिलने लगे...बोले..जब पचास हजार होगी तब थोड़ा सुकून होगा....पचास के बाद एक लाख की बारी आई..एक के बाद दो लाख की..लेकिन हालत जस के तस है..वही समस्या..जब छह सौ रुपए कमाई थी तो दो सौ रुपए का मकान किराए पर लिए थे..अब 50 हजार रुपए किश्त जाती है..तब न तो शादी हुई थी न बच्चा था..अब तीन लोगों का परिवार..पहले पांच पैसे दस पैसे और पचास पैसे चलते थे अब सौ रुपए से शुरूआत होती है...कुल मिलाकर दो लाख की कमाई पर छह सौ रुपए भारी थे..
यहां तक तो सही है...लेकिन खर्चा हमेशा चलता है और खर्चा हमेशा नहीं चलता है..ये आपके ऊपर है कि आप कितने में सुकून पा लेते हैं और कितने में नहीं..दो लाख क्या पांच लाख वालों से पूछो..उनके खर्च उतने ही बड़े...और तीस हजार वालों से पूछो..तो वो भी उसी हालत में हैं..महंगाई कभी कम नहीं होनी..इच्छाएं कभी कम नहीं होनी..ये आपके ऊपर है कि आप कहां सुकून तलाश पाते हो..कहां नहीं..नहीं तलाश पाए तो जीवन पर नोट गिनते रहेगो..और जब अंत होगा..तो जो रखा है..वो रखा रह जाएगा...बाकी फिर......
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