Monday, August 31, 2015

नाम से मतलब है या काम से?

मेरे विचारों को और अनुभव को जितने लोग पढ़ रहे हैं..उससे दोगुने लोग हमारे प्रोफाइल को पढ़ रहे हैं..मैं ये और जानना चाहता था कि लोग पहले प्रोफाइल पढ़ रहे हैं या फिर मेरे विचार..लेकिन इसका डाटा मेरे पास नहीं..दूसरी बात जो मैंने पहले भी लिखी है..कि जितने लोग देश में नहीं पढ़ रहे हैं..उससे करीब दो गुने लोग विदेशों में पढ़ रहे हैं..देशों की संख्या कम नहीं..सबसे ज्यादा यूएस है जो भारत की संख्या से भी ज्यादा है..करीब दो गुनी ही है..इसके अलावा ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, रसिया,आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर, यूक्रेन हैं..इनके अलावा भी और देश हैं।

अब ये सोचने की बात है कि आखिर लोगों को मेरे लिखे से लेना-देना है या फिर प्रोफाइल से...ज्यादा लोगों की दिलचस्पी प्रोफाइल में क्यों हैं?...ये भी तय है कि जो प्रोफाइल देख रहे हैं वो ब्लाग नहीं पढ़ रहे हैं और जो ब्लाग पढ़ रहे हैं वो प्रोफाइल नहीं देख रहे हैं। हर शख्स पहले एक माइंड सेट बनाता है कि किसे पढ़ना है..जो माइंड सेट बनता है उसी के आधार पर हम तय करते हैं कि उसका लिखा कितना अच्छा है। जिसका बड़ा नाम है..वो कुछ भी लिखता है तो उसके एक-एक शब्द पर बहस होती है..अच्छे-बुरे की तुलना होती है..समझ में नहीं भी आया है तो हम अपनी तरह से समझने की कोशिश कर लेते हैं।
ऐसे कई बड़े लेखक हुए हैं जिनका देश में नाम रहा है...जिनके सहायक मेरे कई मित्र रहे हैं..वो बताते रहे हैं कि फलां लेख मेरा लिखा हुआ है..नाम उनका है...जो कई अखबारों में छपा है..एक मित्र हैं वो आजकल दूसरों के लिए किताबें लिखने का काम कर रहे हैं..वो पर्दे के पीछे रहते हैं और किताब पर नाम किसी और का जाता है। मेरे एक और मित्र हैं जो फिल्म इंडस्ट्री में हैं। वो नामी लेखकों के लिए सीरियल की स्क्रिप्ट लिखते हैं।
ये उदाहरण सिर्फ इसलिए हैं कि हम दिल और दिमाग के जरिए ही चलते हैं..दिल भावुकता के साथ चलता है और दिमाग धारणा के साथ चलता है। जो अपने लगते हैं...उनसे हम जुड़ना चाहते हैं..ये दिल से होता है..दिमाग पहले से तय करके चलता है कि हमें किसके साथ क्या व्यवहार करना है। जिसे हम नहीं जानते हैं उसके बारे में हम धारणा तय नहीं कर पाते हैं..जिसे हम बिलकुल नहीं जानते है..उसके बारे में तो हम शून्य रहते हैं..हां अगर उसका प्रोफाइल ठीक है तो हम एक शुरूआती धारणा बना लेते हैं..जैसे एक फेसबुक यूजर ने एक महिला को मित्र बनाया..कोई दिक्कत नहीं..ऐसे हजारों लाखों में हैं..लेकिन जब उन्होंने अश्लील मैसेज और फोटो भेजने शुरू किए तो उन्होंने उनका नाम उजागर किया और जब उनका पूरा प्रोफाइल निकाला गया तो फेसबुक के प्रोफाइल से ठीक उलट था। जाहिर है जब उन्होंने मित्र बनाया होगा तो केवल फेसबुक के प्रोफाइल को पढ़कर धारणा बनाई होगी..जिन्हें हम बिलकुल नहीं जानते हैं उनके लिखे हुए से हम धारणा बनाते हैं..यदि अच्छा लगता है तो जुड़ते हैं नहीं तो छोड़ देते हैं..
ये भी तय है कि यदि एक बार धारणा बदलती है तो आप फिर दोबारा उसे बदलते नहीं..जैसे कोई बेवसाइट है यदि उसमें कुछ अश्लील है...तो फिर आप उसे नहीं खोलते..क्योंकि धारणा बन जाती है। ये भी सच है कि हम या तो बहुत बड़े नाम से खुद को जोड़ना चाहते हैं या फिर बिलकुल अनजान से सहजता से जुड़ जाते हैं जो बीच के हैं..बराबरी के हैं..हम से थोड़े बड़े हैं..या थोड़े नीचे हैं..वहां हम जुड़ने में असहज महसूस करते हैं। जो बड़े नाम हैं..उनसे जुड़कर हम अपने को और दूसरों को दिखाना चाहते हैं कि हम भी करीब-करीब उसी स्तर पर हैं...जो बहुत छोटे हैं...उनसे हम सीखना नहीं चाहते..लगता है कि यदि वो सीख देने वाले होते तो इतने छोटे नहीं होते...
सहज हम केवल वहां हैं जिसका बहुत बड़ा प्रोफाइल है..या फिर जिसका कोई प्रोफाइल हमारे सामने नहीं है।
 ये सोच केवल लिखने पढ़ने के लिए नहीं..जीवन में हर वक्त हमारे साथ अनुभव होता है। चाहे घर-परिवार में हो..दफ्तर में हो...दोस्तों के साथ हो..पड़ोसियों के साथ हो..या फिर समाज में दूसरों के साथ...जैसे कोई अपनी महिला मित्र के साथ मूवी देख रहा है..या फिर रेस्टोरेंट में हैं..या फिर शापिंग कर रहा है..अगर कोई जान-पहचान का नहीं है तो अलग ही अंदाज होता है लेकिन कोई मिल जाए तो असहज हो जाता है। जितना आपका सर्किल है..आप समझ जाते हैं कि कल तक सबको इस बारे में जानकारी जरूर मिल जाएगी।
अब आपको तय करना है कि हमें काम के आधार पर धारणा बनानी है या फिर नाम के आधार पर..बाकी फिर....
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Sunday, August 30, 2015

'उठने' के लिए कितना गिरोगे?

पीटर मुखर्जी, इंद्राणी मुखर्जी, शीना बोरा, राहुल, संजीव खन्ना, ड्राइवर और न जाने कितने किरदार..संबंधों का ऐसा ताना-बाना..जिसे देखकर..सुनकर हर कोई हैरान रह गया..क्योंकि इन संबंधों के बारे में पहले किसी को नहीं पता था..कई सालों से सब चल रहा था, मर्डर भी हो गया..उसके बाद ये संबंध निभ रहे थे..निभाए जा रहे थे..लेकिन किसी को भनक नहीं...तमाम किरदार..तमाम तरह के संबंधों से भरपूर किस्से..कुछ ऐसा ही नोएडा के आरुषि हत्याकांड में हुआ था..महीनों चला घटनाक्रम..

 हर रोज नई तरह की खबरें..नए खुलासे..नए मोड़..टीवी चैनल पर भले ही ये किसी मसाला फिल्म जैसा लगे..हर रोज ब्रेकिंग न्यूज से आप भले ही रोमांचित हों..गली-मोहल्लों में डिस्कशन करते नजर आएं..लेकिन गहराई से सोचें तो ये 'संबंध' संबंध शब्द पर सवाल खड़े कर दें..आज की परिभाषा में संबंध..जिन घटनाक्रमों के लिए हो रहा है..वो वाकई सवाल और संदेह खड़ा करने वाला है।

पहले आज जैसे संबंध नहीं होते थे. जो अब बनाए जाते हैं..रिश्ते होते थे...जो निभाए जाते थे...पैसे कमाने की होड़..ग्लैमर का चस्का..हाई प्रोफाइल सोसायटी के छल प्रपंच और ढोंग के चक्कर में हम अपनी असलियत भूल गए..होड़ में ऐसे जुटते हैं कि केवल दो चीजों की चिंता रहती है..एक तो पैसा और दूसरा स्टेटस..इन दोनों के लिए कुछ भी करने की जिद..चाहे मेहनत करनी पड़े..चाहे साजिश-षडयंत्र करना पड़े..चाहे कुछ भी करना पड़े...ऊपर उठने के लिए हम कितने भी गिरने को तैयार हैं...हमें ये भी नहीं पता..कि पत्नी का मतलब क्या है..पति का मतलब क्या है..बेटी-बेटा क्या होते हैं..बाकी रिश्तों को छोड़ दीजिए...आखिर ये सब किस लिए लोग करते हैं..कर रहे हैं...
बस दो ही चीज है..पहला पैसा..दूसरा स्टेटस...इसके लिए किसी से भी शादी कर सकते हैं..कभी भी तलाक ले सकते हैं...कभी भी मर्डर कर सकते हैं..कुछ भी कर सकते हैं....बात वही आती है कि कितना भी कमा लो..पहले भी लिखा है कि अकेले ही आए हो..अकेले ही जाना है..खाली हाथ आए थे..खाली हाथ जाना है...फिर भी दिन-रात इस होड़ में न जिंदगी जी पाए..पैसा कमाने में लगे रहे..उसे संभालने में लगे रहे..उसे हथियाने में लगे रहे..उसे छीनने में लगे रहे...न सोए..न खाए..न स्वस्थ रहे..केवल कमाते गए..बटोरते गए..और जब धराशायी हुए..तो सारा मैल हो गया..खाली हो गए...जिंदगी जीने का मकसद ही खत्म हो गया...जो है..जितना है..जैसा है..जी लो..अच्छे से जी लो..खुद भी जीयो..दूसरों को भी जीने दो..तो बेहतर हो...बाकी फिर.....
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Wednesday, August 26, 2015

ज्यादा बोलते हैं...या फिर चुप रहते हैं..

रिश्ते में भाभी लगती हैं...जब भी मिलती हैं...नान स्टाप बोलती हैं...आधा घंटे बाद तो सांस लेती है..और अगर दूसरा प्रसंग छेड़ दिया तो फिर आधा घंटा....जहां भी होती हैं..चर्चा का विषय रहती हैं..कोई हंसी-मजाक में लेता है तो कोई उनको देखते ही भागने की सोचता है....अब ये आईं..और आधा या एक घंटा गया..दुनिया जहान की बातें करती हैं...न जाने बोलने का इतना भंडार कहां से आता है..कुछ तो वो मौका..माहौल से ही बोलने का मेटेरियल निकाल लेती हैं..हर चीज पर बात कर लो...पालिटिक्स से लेकर क्रिकेट तक..सब्जी भाजी से लेकर बच्चों की पढ़ाई तक...रहन-सहन..आस-पड़ोस..नाते-रिश्तेदारी..न जाने कितने टापिक हैं..न जाने कितनी बातें हैं..हर रोज बोलती हैं..हर वक्त बोलती हैं...लेकिन भंडार खत्म नहीं होता..मुश्किल ये भी है कि आपने उनके बोलने में अनमना सा मन बनाया...रिस्पांस नहीं दिया तो आधा घंटे उसी पर नसीहत मिल जाएगी......

जीवन दर्शन का एक किरदार ऊपर था अब दूसरे शख्स से मिलिए...ये मेरे भाई जैसे हैं...चुपचाप..गुम सुम..केवल हां और न में जवाब देना..दस आदमी इकटठे हैं..हर कोई बोल रहा है लेकिन ये केवल सुनते हैं...जब बोलते हैं तो लोगों को ताज्जुब सा होता है और सभी की नजरें उनकी तरफ चली जाती हैं..चलो..कुछ तो बोले..कुछ तो राय रखी..लेकिन एक लाइन के बाद फिर चुप हो जाते हैं..फिजूल की मस्ती..मजाक...गपशप उन्हें बिलकुल पसंद नहीं...या तो सोने में आनंद आता है..या फिर लिखने-पढ़ने में..या फिर दूसरों को सुनने में...पता नहीं जीवन के कितने साल में बाकी लोगों की तुलना में 10-20 प्रतिशत बोले भी या नहीं....

निश्चित तौर पर भाभी जी आपको अच्छी लगी होंगी..लेकिन सच कहें कि मुझे दोनों किरदार पसंद नहीं...ज्यादा बोलना..और बिलकुल न बोलना..दोनों हमारी सेहत के लिए ठीक नहीं..हमारे जीवन के लिए ठीक नहीं...जितना ज्यादा बोलेंगे...हम अपनी सीमा से बाहर जाएंगे..उनमें से काफी शब्द या बोली ऐसी होगी..जो फिजूल की होगी..दूसरों को कष्ट देने वाली होगी..सारगर्भित नहीं होगी..टू द पाइंट नहीं होगी...यही नहीं..हमें अपने बारे में या दूसरों के बारे में जितनी राय रखनी हैं..उससे ज्यादा रखेंगे...खुद के बारे में जब अब सब कुछ खोल देंगे..अनाप-शनाप बोल देंगे तो आपके बारे में किसी की राय ठीक नहीं बनेगी..
इसके ठीक उलट दूसरे शख्स के साथ भी है..जब आप कुछ भी नहीं बोलेंगे..न तो दूसरों को अपने बारे में राय बनाने देंगे..न तो दूसरों को समझेंगे..न दूसरों को समझाएंगे..तो आपके बारे में जो धारणा बनेगी..वो ठीक नहीं होगी..या तो लोग समझेंगे..आपको कुछ आता नहीं है..या फिर आप जरूरत से ज्यादा चालाक या स्मार्ट बनने की कोशिश कर रहे हैं..या फिर आप दूसरों के साथ इंटरेस्ट नहीं ले रहे हैं...
जितना बोलना जरूरी है..जहां बोलना जरूरी है..जैसा बोलना जरूरी है..जरूर बोलना चाहिए..न किसी चीज की अति और न किसी चीज की कमी..हमारे जीवन के लिए ठीक नहीं...इसलिए न तो बिलकुल चुप रहें और न जरूरत से ज्यादा बोलें...निश्चित ही हम अपने को बेहतर कर पाएंगे...बाकी फिर......ये भी पढ़िए..for ghost- bhootstoryworld.blogspot.com  for fun- whatappup.blogspot.com

आप किसके बारे में जानना चाहते हैं?

दाउद इब्राहिम की रोज खबरें चलती हैं...पाकिस्तान में हैं..कराची में हैं...दाउद आएगा..नहीं आएगा..कैसे आएगा..पाकिस्तान पर दबाव है...हम बातचीत नहीं करेंगे.इसी बहाने और डान की भी चर्चा हो जाती है..छोटा राजन..टाइगर और भी..सब का प्रोफाइल बताया जाता है..हम बड़े गौर से देखते हैं..सुनते हैं...अक्षय कुमार को शूटिंग में चोट लग गई..बड़ी खबर है..कैसे लगी..क्यों लगी..कितने दिलेर हैं...और किस-किस को चोट लगी अभी तक..कैसे स्टंट सीन होते हैं....हार्दिक पटेल को कुछ दिन पहले कोई नहीं जानता है..अब हार्दिक पटेल की नस-नस लोगों के सामने परोस दी गई है..हर रोज नए खुलासे..नए दस्तावेज..नयी कहानी...राधे मां आईं..तो राधे मां की पूरी कुंडली सात दिन में हमें रट गई...कमोबेश हर रोज किसी 'महान' शख्सियत के बारे में हमारा ज्ञान बढ़ता है या बढ़ाया जाता है क्योंकि हम इस ज्ञान को बढ़ाना चाहते हैं..आखिर क्यों?

हममें से ज्यादातर विभूतियों को इनसे लेना-देना नहीं है..न ही इनसे काम पड़ना है..न ही हम इनसे सीधे प्रभावित हैं...न ही ये हमारे जीवन का हिस्सा है..न ही बिजनेस का हिस्सा..न ही हमारे पड़ोसी है न ही रिश्तेदार..दरअसल हम भीड़ तंत्र का हिस्सा है...जो हमारे लिए जानना जरूरी है..उसे नहीं जानते..उसमें कष्ट नहीं उठाते..बल्कि उनको जानना चाहते हैं..जो किसी न किसी वजह से मशहूर हुए हैं..कुख्यात हुए हैं..नाम किया है या फिर बदनाम किया है..
बीच की श्रेणी से हमें कोई लेना-देना नहीं..जो हम खुद हैं...जो अलग करता है..जो नया करता है..जो मजबूर करता है..जो प्रभावित करता है..जिसके हम वशीभूत होते हैं..उसे हम जानना चाहते हैं..हमारे बगल की नाली में गंदगी साफ नहीं हो रही है..उसकी चिंता हम नहीं करते..लेकिन किसी 'महान' शख्सियत पर टिप्पणी करने..उसकी गहराई में घुसने की इच्छा प्रबल होती है...जब हम भीड़ की तरह व्यवहार करते हैं...जब हम अपने को नहीं देखना चाहते..हम रोज रिश्वत देते हैं तो उसे आम बात मानते हैं और जब कोई क्लर्क के यहां छापे में करोड़ों की संपत्ति मिलती है तो हम वाह और आह करते नजर आते हैं...
खुद में झांकते हैं तो हम कष्ट होता है..लेकिन ये कष्ट दवा की तरह है जो हम मजे से नहीं पीना चाहते..जब बीमार होते हैं तो डाक्टर के कहने पर मजबूरी में पी लेते हैं..दूसरे क्या हैं..क्यों हैं..कैसे हैं...उन्हें छोड़कर पहले खुद को सोचो..हमें ऐसे क्यों हैं..वैसे क्यों हैं..क्या कर सकते हैं..कैसे कर सकते हैं...क्यों नहीं कर सकते हैं..तो जरूर कुछ बेहतर हो...बाकी फिर......

Tuesday, August 25, 2015

हम नेता क्यों बनाते हैं?

कोई कैसे नेता बन जाता है..इस वक्त हार्दिक पटेल मीडिया में छाए हुए हैं..22-23 साल उम्र..गुजरात में धूम मचा दी है..गुजरात में क्या देश भर में धमक हो गई है..मीडिया में सुबह से शाम चर्चा छिड़ी हुई है..कौन है हार्दिक पटेल..कहां से आया..क्या बैकग्राउंड..कौन माता-पिता..कौन है इसके पीछे...कैसे बन गया इतना बड़ा नेता..क्या ये दूसरी केजरीवाल है..इस तरह की तमाम बहस छिड़ी हुई है...

इसके पहले केजरीवाल को लेकर भी यही सब हुआ था..केजरीवाल कौन हैं..कहां से आए..कैसे बने इतने बड़े नेता..कौन हैं इनके पीछे..अगर और पीछे लौट जाएं..तो ये पहली बार नहीं हुआ है..पुराने सालों में भी ये सब हुआ है..हां..पहले टीवी नहीं था..सोशल मीडिया नहीं था..इसलिए केवर न्यूज पेपर के जरिए या फिर रेडियो के जरिए जो खबर मिलती थी..वो पढ़ लेते थे..लेकिन अब सब तात्कालिक है..तूफान आता है और बहकर एक दो दिन हफ्ते भर में बहके चला जाता है इसके बाद दूसरी खबर के हाथ पैर सिर.आंखें..अंतड़ियों तक की खबरें आपके सामने आ जाती हैं..जयप्रकाश नारायण के वक्त से मुझे याद है.अटल बिहारी वाजपेयी...लालू यादव..मुलायम सिंह...उमाभारती..कांशीराम..मायावती, ममता बनर्जी..शिवराज सिंह चौहान..जैसे तमाम नाम हैं..लंबी लिस्ट है..इनमें से कुछ पहले छोटे नेता बने और धीरे-धीरे बड़े नेता बने..तो कुछ बिलकुल आम परिवार से..आम आदमी से बड़े नेताओं में शुमार हो गए..हां ये बात जरूर है कि केजरीवाल और हार्दिक पटेल ऐसे उदाहरण हैं जो इतने तेजी से उभरे..तो इसके पीछे आज की मीडिया और सोशल मीडिया है..जो अपने कंपटीशन में सुबह से लेकर रात तक सारा निचोड़ देना चाहती है..और इतना निचोड़ती है कि एक दिन में ही सैकड़ों चैनल..सोशल मीडिया..करोड़ों तक अपनी आवाज पहुंचा देती है।

अब सवाल ये है कि ये नेता कैसे बने..जब आप जनता की हित की बात करते हैं तो जाहिर है कि जनता आपके पीछे होगी..जब आप जनता के लिए संघर्ष करते हैं तो वो आपको लीडर बनाएगी..जब आप फुल टाइम..संघर्ष..मेहनत..प्रचार..प्रसार..सोच-विचार करते हैं तो जनता आपका साथ देगी..उसे जब लगता है कि ये शख्स मुझे कुछ फायदा दिलाएगा..तो उसे वो अपने सिर माथे पर बिठा लेती है..जाहिर है कि हार्दिक के पास अभी खोने के लिए कुछ नहीं है..वो भी उसी जनता के एक नुमाइंदे हैं..और उनके हित की बात कर रहे हैं..ये बात अलग है कि उनका जो हित है वो बाद में सामने आएगा...इसलिए जब तक आप सड़क पर होते हैं..आप सबके होते हैं जब आप सत्ता के महल में होते हैं तो हकीकत से रुबरू होते हैं..तुलना का सामना करते हैं...इसलिए जब हम कुछ नहीं कर पाते हैं..तो हम अपना नेता बनाते हैं...बाकी फिर...
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Monday, August 24, 2015

क्या सोच कर परेशान हो जाते हैं?

गूगल के प्रमुख सुंदर पिचाई की एक स्पीच चर्चाओं में हैं..खासकर आईआईएम और आईआईटी के छात्रों ने इसे बड़ा पसंद किया है..उन्होंने एक वाक्या सुनाया कि एक रेस्टोरेंट में कुछ महिलाएं लंच ले रही थीं..तभी एक काक्रोच न जाने कहां से आ गया..वो एक महिला के ऊपर बैठा तो उसने पूरे रेस्टोरेंट में अफरातफरी फैला दी और चीख चिल्लाहट के बाद काक्रोच दूसरी महिला पर जाकर बैठ गया..फिर तीसरे पर..चौथे पर..काफी देर तक हंगामा चलता रहा है..तभी काक्रोच एक वेटर के ऊपर जा पहुंचा..वेटर शांत रहा..जहां था..वहीं खड़ा रहा..कोई पैनिक नहीं फैलाया और आराम से उस काक्रोच को अपनी गिरफ्त में ले लिया..

मेरे एक परिचित हैं वो भी कुछ ऐसे ही वाक्या सुना रहे थे..वो एक बार बचपन में गांव में थे..तालाब में डूबते-डूबते बचे और आज का दिन है..पचास साल के हो गए हैं लेकिन तैरने की बात तो दूर...पानी में जाने से अब भी डर लगता है...यहां तक कि वाटर पार्क के स्वीमिंग पूल में भी नहीं घुसते...उनकी पत्नी की दूसरी समस्या है..उन्हें छिपकली से डर लगता है..बचपन में उन्हें किसी ने एक किस्सा सुनाया कि एक छिपकली किसी बच्चे के ऊपर सोते में चढ़ गई और फिर पूरे बदन में उसके जहर फैल गया..फफोले पड़ गए..और उसकी मौत हो गई...तबसे आज का दिन है..छिपकली देखते ही उनकी चीख निकल जाती है...

मैं पास के पार्क में टहलने जाता था..एक बार उस पार्क में एक लाश टंगी हुई थीं..ये किस्सा जिस दिन बेटी को सुनाया..तबसे बेटी उस पार्क के पास से गुजरने में भी डरने लगी।यहां तक कि उसे काफी समझाने के बाद भी नहीं मानती..और उस पार्क के बगल से निकलने में डर लगने लगता है।
खास तौर से बचपन में जो भ्रम..असलियत हमारे दिमाग में छप जाती है..उसे बहुत कम लोग ही निकाल पाते हैं..और वही छवि..वही तस्वीर हम जीवन भर ढोते हैं..यहां तक कि किसी व्यक्ति के बारे में..किसी वस्तु के बारे में..किसी पशु-पक्षी के बारे में...किसी वाहन के बारे में...कई लोग हैं जो प्लेन से सफर नहीं करते..कई लोग हैं जो कभी वाहन नहीं चलाते..कई लोग हैं जो किसी शख्स का नाम लेते ही बौखला जाते हैं...
असलियत है तो उसे जरूर मानना चाहिए लेकिन भ्रम है तो उसे दूर करना चाहिए..क्योंकि इसी भ्रम के चलते कई बार हम अपना नुकसान कर बैठते हैं..गलत धारणा बना लेते हैं..परेशान हो जाते हैं और अपने को कमजोर कर लेते हैं..यही कमजोरी हमारे जीवन की तेजी को..उत्साह को धीमा कर देती है..जितने ज्यादा भ्रम..उलझनें..धारणाएं हम बनाकर चलेंगे..उतना ही कष्ट में रहेंगे...बाकी फिर....
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Sunday, August 23, 2015

बच्चा पढ़ता क्यों नहीं है?

एक मित्र हैं..उनका एक बेटा है..और एक बेटी है..मित्र दिन रात बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित रहते हैं..बेटी बड़ी है और होशियार है..पढ़ने में नंबर-वन..खेलकूद में नंबर वन..स्कूल की हर प्रतियोगिता में उसको पुरस्कार मिलते हैं..और स्वभाव में भी नंबर वन...बेटी से तो वो खुश हैं लेकिन बेटा के मारे परेशान..बेटा छोटा है...छोटी क्लास है लेकिन उसकी पढ़ाई को लेकर बात नहीं बन रही..एक तो उसका पढ़ने में मन नहीं लगता है..दूसरा खेल खेलने जाता है तो चोट लगा कर आ जाता है..कुल मिलाकर बेटी पर जितना फोकस रखने की जरूरत नहीं रहती..बेटे पर उससे दोगुना ध्यान रखना पड़ता है। जिससे भी चर्चा होती है तो वो पूछते हैं कि क्या किया जाए..बहन से कुछ सीखता ही नहीं है..थोड़ी देर पढ़ने बैठेगा..फिर कहेगा..अब हो गया..खेलने जा रहा हूं..जबर्दस्ती करो..तो थोड़ी देर बैठा रहेगा..और फिर बहाना बनाकर भाग जाएगा...कुछ अच्छा खिलाने का लालच दो तो बैठ जाएगा..लेकिन जब मन का न हो..तो पेट दर्द शुरू हो जाएगा...

कुल मिलाकर ये है कि उसका पढ़ाई में न तो उतना मन लगता है और न ही क्लास में अपनी बहन जितना होशियार है और यही परेशानी उन्हें खल रही है कि बेटा बेटी के बराबर क्यों नहीं हैं। कहावत है कि पांचों उंगलियां एक समान नहीं होती...हर बच्चा मेधावी नहीं होता..हर बच्चा खिलाड़ी नहीं होता..हर बच्चा हीरो नहीं बनता..हर बच्चा आईएएस नहीं बनता..हर बच्चा नेता नहीं बनता..हर बच्चा बड़ा बिजनेस मैन नहीं बनता..

ये एक घर की नहीं..घर-घर की कहानी है कि बच्चा पढ़ता क्यों नहीं है और सारे बच्चे एक जैसे क्यों नहीं होते..कलाम राष्ट्रपति बन गए..उनके भाई उनके बराबर नहीं पहुंचे..मोदी प्रधानमंत्री बन गए..उनके भाई उनके बराबर नहीं पहुंचे...अमिताभ बच्चन देश के सुपर स्टार बन गए..अभिषेक बच्चन नहीं बन पाए..सचिन तेंदुलकर महान क्रिकेटर बन गए..उनके भाई नहीं बन पाए..ऐसे लाखों उदाहरण हमारे आसपास भी हैं..ज्यादातर लोग अपने बच्चों को आईएएस..आईआईटी..आईआईएम..पीएमटी में भेजना चाहते हैं लेकिन सब नहीं पहुंच पाते..पूरी जिंदगी कशमकश चलती है..खर्चा करते हैं..मेहनत करते हैं..परेशान होते हैं लेकिन नहीं हो पाता..
ये हमारी गलती है बच्चे की नहीं...जो हम बन पाए..जरूरी नहीं बच्चा भी बन पाए..जो हम नहीं बन पाए..हो सकता है बच्चा उससे अच्छा बन जाए..तो किसी की किसी से तुलना का कोई मतलब नहीं..किसी पर जबर्दस्ती थोपने से कुछ नहीं होगा..बच्चे को जो बनना है..वो उसका स्वाभाविक होगा..होना भी चाहिए..यदि जबर्दस्ती करेंगे...थोपेंगे तो हो सकता है कि बच्चा जो बन सकता था..वो भी न पाए..जिस रास्ते पर उसके चलने की इच्छा है उसे चलने दीजिए..करने दीजिए...उसी रास्ते पर सपोर्ट करिए...जबर्दस्ती अफसर..इंजीनियर या डाक्टर बनाने पर तुल गए..तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा...बाकी फिर....
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Saturday, August 22, 2015

दुश्मनी किससे निभा रहे हैं?

एक शख्स हैं दिन रात गुणा भाग में लगे रहते हैं..बड़ी पोस्ट पर हैं..जितने दोस्त हैं उससे ज्यादा दुश्मन हैं..कुछ दुश्मन अपने आप बन गए..कुछ उन्होंने बना लिए...अब नौकरी से ज्यादा उनका फोकस उन दुश्मनों से निबटने में लगा रहता है..उनकी एक-एक खबर पाने के लिए कई जासूस लगे हुए हैं..जो दुश्मन हैं उनके जासूस इन शख्स के पीछे लगे हुए हैं...इधर की खबर उधर पहुंचती है और उधर की खबर इधर आ जाती हैं..एक दिन विस्तार से चर्चा हो रही थी..बताने लगे कि यार..नौकरी भी आसान नहीं..कोई काम नहीं करने देता..जिसका भला करो..उसके लिए अच्छा..जिसका फेवर नहीं करो...वो बुरा बन जाता है...हमारा गडढा खोदने में जुट जाता है..नौकरी को देखूं कि इन दुश्मनों को देखूं....लेकिन मैं भी पीछे हटने वाला नहीं..अगर मुझे निबटाने के लिए काम करेगा..तो क्या मैं उसे छोड़ दूंगा..उसके पीछे भी आदमी लगा दिए हैं...मैं भी देखता हूं उसे तो मैं पटक-पटक कर मारूंगा..कहीं का नहीं रहेगा..मेरा जीना हराम कर रखा है तो उसे भी चैन से नहीं जीने दूंगा...

कुल मिलाकर जैसे ही केबिन में पहुंचते हैं...मुखबिर एक-एक कर रिपोर्ट करते हैं..कि फलां दुश्मन के बारे में क्या खबर है?..किससे मिल रहा है..आपके खिलाफ क्या कर रहा है..क्या नया पैतरा चला है या चलने वाला है...दूसरा मुखबिर कुछ और बताता है...घर पहुंचते हैं तो mobile. sms और whatsapp पर मुखबिर खबरें पहुंचाते हैं...और फिर उस खबर को तोड़ निकालने की तैयारी में जुट जाते हैं...इस बीच उन्हें अपने मूल काम का होश नहीं रहता और न ही वक्त मिलता है....जब दुश्मन को पटखनी मिलती है तो बड़ा ही विजयी भाव उनके चेहरे पर होता है..मूड इतना अच्छा होता है कि मुखबिरों को बढ़िया लंच-डिनर करा देते हैं और उन्हें जुटे रहने का हौंसला देते हैं..लेकिन जब दुश्मन भारी पड़ता है तो आफिस तो दूर घर पर भी बेचैन रहते हैं....

ये तो एक उदाहरण हैं..ये हर तरफ हो रहा है..जाहिर है जो उनका दुश्मन है उसकी भी यही हाल होगा..जो जिस ग्रुप में है उसका हित उस ग्रुप से जुड़ा हुआ है..इसलिए जब बास परेशान होता है तो उसके ग्रुप मेंबर भी परेशान हो जाते हैं...जब बास खुश होता है..तो उनके चेहरे पर भी खुशी छा जाती है...कुल मिलाकर गडढा खोदने...उसे पूरने में दिन रात एक हो रहा है...जीवन यूं ही चलता जा रहा है...ऐसे में उनकी खुद की पाजिटिव इनर्जी कहां गई...पता नहीं...केवल साजिश, षडयंत्र, मुखबिरी और एक दूसरे पर दांव खेलने में जीवन का सारा वक्त निकल रहा है...
मूल बात ये है कि चाहे हमारे परिचित शख्स जीतें..या फिर उनका दुश्मन..किसी का एक नुकसान तो होना ही है..लेकिन भला किसी का नहीं होना है...चेहरे बदलते रहते हैं लेकिन फितरत नहीं बदलती...नाम बदल जाता है लेकिन काम नहीं बदलता...हो सकता है..आप हम में भी कई लोग इसी प्रक्रिया से गुजर रहे होंगे...लेकिन जरा सोचकर देखिए..कि आप दूसरे का नुकसान कर पाएं या न कर पाएं..अपना नुकसान जरूर कर रहे हैं...अगर पाजिटिव चलेंगे..तो आपका सम्मान बढ़ेगा..आपका खुश रहेंगे...चैन की नींद सो पाएंगे..नहीं तो जीवन से ही दुश्मनी कर बैठेंगे..और जीवन जीने के लिए है..दुश्मनी निभाने के लिए नहीं...बाकी फिर......
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Thursday, August 20, 2015

खर्चा क्यों नहीं चलता?

हमारे एक मित्र हैं..लगभग हमारी ही उम्र के...हमारे साथ ही कैरियर शुरू किया..हमारे जितना ही परिवार...कमाई ढाई लाख रुपए हर महीने...एक दिन बैठे गपशप कर रहे थे...बोले..यार जिंदगी बड़ी कठिन है..खर्चा ही नहीं चलता... 30 % टैक्स में कट जाता है..पीएफ और कुछ और रकम संस्थान ले लेता है..मिला जुलाकर दो लाख से भी कम हाथ में आता है..उसमें से पचास हजार से ऊपर  मकान के लोन में चला जाता है...पंद्रह हजार करीब कार की किश्त में...बच्चे की पढ़ाई में पंद्रह हजार रुपए महीने...साल में एक बार कहीं घूमने चला जाता हूं तो एक से डेढ़ लाख खर्चा हो जाता है...मोबाइल,नेट,बिजली, घर का काम करने वाली बाई, दूध, सब्जी, बच्चे की कोचिंग..मिला जुलाकर जब महीने का आखिर आता है..तो शायद ही कुछ हजार बैंक बैलेंस बचता है..और यदि किसी रिश्तेदार की शादी आ जाए..बीमारी..दुखी..कोई मेहमान डेरा डाल लें..तो फिर तो पूछो मत... क्या हाल होता है...बड़ा झमेला है यार...हर रोज हजार-दो हजार तो ऐसे उठते हैं जैसे जेब खर्च...

नौकरी की शुरूआत हुई थी मात्र 600 रुपए महीने से...तब लगता था कि कम से कम एक हजार हो जाएं तो जीवन सुधर जाए..दूसरी नौकरी लगी डेढ़ हजार की..बड़े खुश..बोले...अब ठीक है..कम से कम कुछ बेहतर हुई लाईफ...एक दो महीने बाद बोले..डेढ़ हजार में क्या होता है...कम से कम तीन हजार तो मिलने चाहिए..करते-करते दस हजार के वेतन पर दिल्ली पहुंच गए..बोले ठीक है दस हजार मिल रहे हैं..लेकिन छोटे शहर के पांच हजार के बराबर हैं...चार-पांच साल में पच्चीस हजार मिलने लगे...बोले..जब पचास हजार होगी तब थोड़ा सुकून होगा....पचास के बाद एक लाख की बारी आई..एक के बाद दो लाख की..लेकिन हालत जस के तस है..वही समस्या..जब छह सौ रुपए कमाई थी तो दो सौ रुपए का मकान किराए पर लिए थे..अब 50 हजार रुपए किश्त जाती है..तब न तो शादी हुई थी न बच्चा था..अब तीन लोगों का परिवार..पहले पांच पैसे दस पैसे और पचास पैसे चलते थे अब सौ रुपए से शुरूआत होती है...कुल मिलाकर दो लाख की कमाई पर छह सौ रुपए भारी थे..
यहां तक तो सही है...लेकिन खर्चा हमेशा चलता है और खर्चा हमेशा नहीं चलता है..ये आपके ऊपर है कि आप कितने में सुकून पा लेते हैं और कितने में नहीं..दो लाख क्या पांच लाख वालों से पूछो..उनके खर्च उतने ही बड़े...और तीस हजार वालों से पूछो..तो वो भी उसी हालत में हैं..महंगाई कभी कम नहीं होनी..इच्छाएं कभी कम नहीं होनी..ये आपके ऊपर है कि आप कहां सुकून तलाश पाते हो..कहां नहीं..नहीं तलाश पाए तो जीवन पर नोट गिनते रहेगो..और जब अंत होगा..तो जो रखा है..वो रखा रह जाएगा...बाकी फिर......

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Wednesday, August 19, 2015

काम क्यों बिगड़ जाता है ?

एक परिचित बड़े बिजनेस मैन हैं..अचानक एक दिन उनके यहां बड़ा हादसा हुआ...तीन मंजिला मकान में आग लग गई...घर से ही बिजनेस चल रहा था...अच्छा खासा कारोबार था..सब कुछ जलकर खाक हो गया...लाखों का सामान बर्बाद हो गया..मकान को भी नुकसान पहुंचा..गनीमत ये रही कि परिवार के सारे शख्स बच गए..दो लोग घर में थे..कूंद-फांद कर बचा लिए गए...जब ये घटना हुई तो सारे लोगों ने कहा कि जो हुआ सो हुआ..भगवान का लाख-लाख शुक्रिया कि सारे लोग सुरक्षित हैं...कारोबार तो फिर खड़ा हो जाएगा..

इस घटना के बाद कुछ दिन निकलने के बाद उनकी सबसे बड़ी चिंता ये थी कि कारोबार को कैसे चलाया जाए...खासा पैसा बर्बाद हो चुका था..मन में अजीब सी अनहोनी का डर समा चुका था..सो किसी ने सलाह दी कि आपका वक्त खराब चल रहा है..जरूर कुछ न कुछ पनौती है..अपनी कुंडली दिखाओ...नहीं तो ऐसे अचानक आग लगने का कोई कारण नहीं बनता है...जरूर ग्रह दशा में कुछ गड़बड़ है..जब कई लोग बोलते हैं तो हमारे आपके मन में भी वही धारणा बनती है...और ज्योतिषी की शरण ले लेते हैं..ज्योतिषी के पास जाओगे तो शायद ही कोई ज्योतिषी ये बताए कि नहीं आपकी ग्रह दशा ठीक है..ऐसे ही भले ही आप बिलकुल चंगे हो..डाक्टर के पास जाओगे..टेस्ट कराओगे तो शायद ही दुनिया का कोई इंसान बिलकुल सेहतमंद निकले...उन्हें भी ज्योतिषी ने बताया कि वक्त आपका ठीक नहीं है..इसलिए हवन-पूजा कराओ...हाथ में पुखराज पहनो...और भी कई धार्मिक विधि-विधान बताए..
बेचारे..पहले ही से ही आर्थिक तंगी से परेशान थे..ज्योतिषी ने हजारों का खर्च बता दिया..घरवालों ने कहा कि ये तो करना है..चाहे जैसे करो..कर्जा ले लो...तो दबाव में उन्होंने ये भी कर डाला...अब वो कर्जे को लेकर परेशान हैं..
ये उदाहरण इसलिए दिया कि जब तक सब अच्छा होता है..तब तक हम अपना वक्त अच्छा मानते हैं..जब काम बिगड़ जाता है..कोई अनहोनी हो जाती है...तो हम मानते हैं कि ये सब ग्रह दशा की वजह से हो रहा है...जैसे घर में चोरी हो जाए..बच्चा परीक्षा में फेल हो जाए...बिजनेस में नुकसान हो जाए...नौकरी में तरक्की न हो..या नौकरी छूट जाए...एक्सीडेंट हो जाए..जीवन है तो जीवन में अलग-अलग रंग हैं..अलग-अलग अच्छी और बुरी घटनाएं हैं...जिनसे हमें ही निपटना हैं..हमें ही नैया पार लगाना है...अपने कर्म से..अपनी मेहनत से...उनसे जूझना है...डरना नहीं है..निराश नहीं होना है..क्योंकि अगर आप जीतना चाहोगे तो जीतोगे..निराश होगे तो हार जाओगे..और हारे हुए का कोई साथ नहीं देता..ज्योतिष क्या भगवान भी कुछ नहीं करेगा...हर बार काम नहीं बनता है..हमेशा अच्छा नहीं होता..हमेशा अनहोनी नहीं होती..इसलिए जो हुआ..सो हुआ..उसे मत साथ लो..जो आगे करना है..उसे साथ लो..और आगे बढ़ो..इसी में हमारी भलाई है..बाकी फिर.....
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सांपों को दूध क्यों पिलाते हो?

नागपंचमी पर हम सांपों को दूध पिलाते हैं..लेकिन जिन सांपों को हम जीवन भर दूध पिला रहे हैं..उनका क्या करोगे?..जाने-अनजाने में हमने ऐसे सांप पालकर रखे हैं..और उन्हें जीवन की मेहनत की कमाई से दूध भी पिला रहे हैं..दूध पीकर वो मोटे-ताजे हो रहे हैं और आप दुबले हुए जा रहे हैं...हकीकत में सांप सीधा होता है..जब तक आप उसे नहीं छेड़ोगे..तब तक वो आपको नहीं छेड़ेगा लेकिन इंसान रूपी सांप जितने खतरनाक होते जा रहे हैं..उनसे कैसे निबटोगे..ये बात अलग है कि जब इन सांपों में जरूरत से ज्यादा..उनकी क्षमता से ज्यादा जहर भर जाता है तो अपने ही जहर से फट जाएंगे..कट जाएंगे और जब ऐसे सांप मरते हैं तो आप उनका क्रियाकर्म कर शमशान घाट पर फूंक आते हो।

कायदे की बात ये है कि जीवन में इन जहरीले सांपों को पहचानना है..उनसे दूरी बनाकर रखना है..उन्हें पालना नहीं है..और न ही उन्हें दूध पिलाना है...यदि आपने हमने इंसानों के भेष में पल रहे सांपों को पहचान लिया तो ठीक है... नहीं तो ऐसे सांप हमारी बर्बादी की वजह बनेंगे और बन रहे हैं। ऐसे सांपों का एक ही धर्म होता है कि भीतर ही भीतर इतना जहर पैदा करते हैं..और फिर जब जहर ज्यादा हो जाता है तो उसे उगलना शुरू कर देते हैं...काटने को दौड़ते हैं..आप भागोगे भी तो आपका पीछा करेंगे..आप कहीं भी होगे..आपके लिए जहर तैयार कर रहे होंगे..चाहे वो शब्दों के रूप में हों..चाहे आपकी शिकायत के रूप में हों..चाहे आपके खिलाफ साजिश के रूप में हो..चाहे आपके खिलाफ भड़काने के लिए हों..हर दिन हर वक्त इनका काम है जहर की पुड़िया तैयार करना..और उसे अपने में समाते जाना..जब अब निश्चिंत हो..जब आप बेपरवाह हो..जब आप अपने काम में जुटे हों..तो घात लगाकर वार करेंगे और मौत के जहर से अपने आगोश में ले लेंगे..चाहे ये मौत राजनीतिक हो..सामाजिक हो..आर्थिक हो..पारिवारिक हो..मानसिक हो...और फिर ये सांप दूसरे शिकार की ओर चल देते हैं...
लेकिन कहते हैं कि सांप सांप होता है जब जहर लेता है..जहर उगलता है तो उसका खुद का जीवन भी जहरीला होता है..जब जीवन ही जहर का पर्याय बन जाए तो क्या होगा?.. वो केवल जहर लेगा..जहर देगा और जहर ही उसकी दुनिया है..उसे जहर के बिना कुछ अच्छा नहीं लगता...इसलिए उसका जीवन तो जहर है ही..अपना मत बनाओ..ऐसे सांपों से बचो...दूरी बनाकर रखो..रास्ता बदल दो..और जब देखो कि सांप इतने पर नहीं मान रहा है..तो समझ लो कि अब उसके मरने की बारी है..उसका जहर इतना बढ़ गया है कि उससे नहीं संभल रहा है..और अपना जहर दूसरे को बांटने के बिना नहीं मानने वाला है तो ऐसे सांप को सतर्क होकर मार दो.ताकि उस को भी सदगति प्राप्त हो..और आपका जीवन में भी शांति हो...बाकी फिर.....

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Monday, August 17, 2015

आबिद, नाजनीन की हनुमान भक्ति

मोदी अबूधावी की मस्जिद में गए..बड़ी खबर बन गई..पूरे देश के लिए..पूरे विश्व के लिए...क्यों...अगले दिन एक और खबर देखी..जौनपुर के आबिद ने हनुमान चालीसा का उर्दू में अनुवाद किया है..और दूसरी खबर ये है कि वाराणसी की नाजनीन ने शिव चालीसा..दुर्गा सप्तशती का उर्दू में अनुवाद किया है..वो हनुमान चालीसा पढ़
ती हैं...पूजा करती हैं..उनका परिवार कट्टरपंथी है..आठवीं के बाद पढ़ाई की मनाही हो गई लेकिन उन्होंने एक संगठन की मदद से अपने को सामाजिक कार्यों में आगे बढ़ाया और अब बच्चों को तालीम देने के अलावा भाईचारे..सदभाव का संदेश फैला रही है...ऐसी खबरें क्यों बनती है..क्या इसलिए कि हम भले ही चांद पर जाने की बात करें..धर्मनिरपेक्षता की कितनी ही दुहाई दें..कितने ही आधुनिक बनने की बात करें..लेकिन जड़ में अब भी हिंदू..मुस्लिम और तथाकथित धर्म की भावना कूट-कूट कर भरी है।

अजमेर की दरगाह पर जितने मुस्लिम जाते हैं उतने ही हिंदू भी जाते हैं...मुंबई में हजरत अली की दरगाह और दिल्ली में निजामुद्दीन की दरगाह पर भी ऐसा ही है..तो प्रसिद्ध मंदिरों में मुस्लिम भी पहुंचते हैं...लेकिन गली-मोहल्लों के मंदिरों में ऐसा नजर नहीं आता...न ही मस्जिदों में..ऐसा क्यों हैं?

हिंदू-मुस्लिम जो दोस्त हैं...वो ईद भी मनाते हैं..होली और दीवाली भी..दशहरा भी...रक्षाबंधन भी..एक दूसरे के घर जाते हैं..सेवईंयां खाते हैं..और मिठाई भी..होली पर रंग खेलते हैं..इसके बावजूद...कटटरपंथ जाता क्यों नहीं है... पीके फिल्म इसी विषय पर भी थी...वीरजारा और बजरंगी भाई जान भी इसी विषय पर बनी...लोगों ने बड़ी सराही..इसके बावजूद हिंदू-मुस्लिम कटटरपंथ अब भी क्यों जिंदा है?...
दरअसल जहां जिसका जैसा स्वार्थ होता है..वैसा ही चलता है..जहां हिंदू मुस्लिम में दोस्ती है...सहयोगी है..बिजनेस है...सीनियर-जूनियर है...पड़ोसी है...पति-पत्नी हिंदू मुस्लिम हैं..वहां सब कुछ सामान्य होता है..प्यार भरा होता है..सदभाव नजर आता है..लेकिन जहां हमारे स्वार्थ आड़े आते हैं..ठेकेदारी आड़े आती है..राजनीतिक फायदा नजर आता है..वहां से दुश्मनी शुरू हो जाती है..जिसे हम पैदा नहीं करते..पैदा कराई जाती है..जो मोहरे बनते हैं..वो फालो करते हैं..जो लीडर होते हैं..वो नफरत फैलाकर अपना हित साधते हैं...आबिद और नाजनीन जैसे युवा लीडर हैं. पाजिटिव लीडर हैं...भाईचारे का संदेश फैला रहे हैं..खुद तय कर रहे हैं कि उन्हें क्या अच्छा लगता है..क्या करना है..तालिबान और आईएस जैसे लीडर नफरत फैला रहे हैं..उनकी कोई सोच नहीं..उन्हें न तो धर्म का पता है..न धर्म से लेना-देना है..उन्हें अपनी हुकूमत से मतलब है..पाजिटिव होकर नहीं जीत सकते..इसलिए निगेटिव होकर जबर्दस्ती पर उतरने को मजबूर हुए हैं..वो पहले से हारे हुए हैं..आबिद और नाजनीन ऐसे लीडर हैं जो खुद तो विनर हैं ही..हिंदू हो या मुस्लिम..सभी को जीतने के लिए प्रेरित कर रहे हैं....बाकी फिर....
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मौत रिश्वत नहीं लेती....

एक और इंजीनियर के यहां 20 करोड़ रुपए कैश निकले..नोट गिनने की मशीनों से जैसे-तैसे काम पूरा हुआ..घर में 20 करोड़ का कैश..अब ऐसे समाचारों से ताज्जुब नहीं होता..हां ये अंदाजा जरूर लगा लेते हैं कि जब घर में 20 करोड़ कैश है तो कुल संपत्ति कितनी गुना होगी..कोई दो सौ करोड़ से ज्यादा तो होगी ही...मकान, प्लाट, गाड़ी, ज्वैलरी और अन्य सामान मिलाकर..हो सकता इससे ज्यादा भी हो.

.इंजीनियर क्या..पब्लिक डीलिंग से जुड़े किसी भी अफसर के पास चले जाईए..अफसर क्या किसी कर्मचारी के यहां ही चले जाईए..वेतन कितना होता है..25 से 50 हजार रुपए महीने..इतने में खर्चा कैसे चलता है.एनसीआर में रजिस्ट्री होती है...रजिस्ट्री के लिए बिल्डर एक मुश्त रकम दस से 20 हजार ले लेता है.ये रजिस्ट्री का वो खर्च है जो उसे वकील और रजिस्ट्री आफिस को देना है..कागज का खर्च अलग से...आप जाते हैं..केवल साइन करने हैं..फोटोे खिंचाते हैं और सैकड़ों लोगों की रजिस्ट्री आराम से हो जाती है..वहां प्यून होता है जो आपको रजिस्ट्री की रसीद देता है..लाखों का मकान लिया है तो मिठाई के नाम पर सौ रुपए मांगता है..तब तक वो रसीद नहीं देता है..रोज का काम है उसका...कम से कम 50 रजिस्ट्री आम तौर पर हो जाती है...कुल हुए 5000 हजार रुपए एक दिन के..महीने के कितने हुए करीब डेढ़ लाख रुपए...ये सबसे निचले कर्मचारी की ईमानदारी की कमाई है..नियम-कायदा बना हुआ है..हर कोई देता है...आप रजिस्ट्री पाकर खुश हैं..वो सौ का नोट पाकर..सौ-सौ कर जिंदगी में कितने बनाएगा..आप केलकुलेटर से गिनती कर लीजिए...
अब इंजीनियर के यहां सौ दौ करोड़ निकल रहे हैं तो क्या ज्यादा हैं....पुलिस को कितना पेट्रोल मिलता है महीने का..सुनकर दंग रह जाएंगे..इतने में वो थाने से घर नहीं जा सकते..पेट्रोलिंग तो छोड़ दीजिए..फिर कहां से आएगा पेट्रोल...अब आप कहेंगे...पुलिस को तो कभी रोते नहीं देखा..दूसरों को ही रुला देते हैं..इसलिए कागज पर क्या मिल रहा है..उससे कोई फर्क नहीं पड़ता...सैकड़ों और हजारों में आजकल होता क्या है...महंगे बंगले..फ्लैट, महंगी गाड़ी, महंगे स्कूल..कैसे संभव है..इसके लिए कुछ तो करना ही होगा..
एक-दो छापों से क्या होता है..लाइन से पता कीजिए..कितने हजारों इंजीनियर निकलेंगे..अकेले इंजीनियर ही क्यों दोषी है..तमाम अफसरों और कर्मचारियों की छानबीन कर लीजिए..लेकिन सबकी छानबीन भी नहीं हो सकती..जो छानबीन कर रहे हैं उन्हें भी तो अपने बच्चों के पेट पालने के लिए कुछ करोड़ चाहिए..इसलिए जो नहीं देगा..छापा तो उसी के डाला जाएगा..सबके यहां क्यों? लोग विदेश से आकर लौटते हैं तो किस्से सुनाते हैं.कोई एक कागज सड़क पर नहीं फेंक सकता..गलत पार्किंग नहीं कर सकते..सड़क पर थूक नहीं सकते...इतनी ज्यादा सख्ती..इतना अनुशासन..फिर जीने का क्या मतलब है..आजादी का क्या मतलब है..हमें मुश्किल में तो आजादी मिली है..इसलिए जो मर्जी आए..करिए..जो जितना लूट सकता है..लूटे..सब अपने-अपने में व्यस्त हैं..परेशान होने से क्या होगा...बाकी फिर.......
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Sunday, August 16, 2015

महंगा क्यों अच्छा होता है?

हमारा दिमाग कैसे काम करता है..हमारी सोच कैसे काम करती है, हम कैसे किसी के बारे में राय बनाते हैं, हमें दिमाग से कैसे निर्देश मिलते हैं..इसका उदाहरण एक साइंस चैनल ने दिखाया..उन्होंने दो केक बनाए..ग्राहकों के सामने फ्री डेमो किया..एक का रेट 50 डालर रखा तो दूसरे का 10 डालर..दोनों केक के सेंपल फ्री में ग्राहकों को टेस्ट कराए और कहा कि वो जानना चाहते हैं कि इनमें से कौन सा केक अच्छा है ताकि आगे वो अपने ग्राहकों को उसी कीमत में उसी टेस्ट का केक बनाएं..तमाम लोगों ने फ्री में केक को टेस्ट किया..सारे ग्राहकों ने महंगे केक को पसंद किया..उसकी खूबियां भी बताईं कि उस केक में मेटरियल स्वाद भरा है, साफ्ट है, मुंह में रखते ही घुल जाता है, फ्लेवर अच्छा है...जबकि सस्ते केक में मेटेरियल अच्छा नहीं है, स्वाद भी बेहतर नहीं है, केक हार्ड है...कुल मिलाकर ग्राहकों ने सलाह दी कि 50 डालर वाला केक ही बनाएं क्योंकि सबकी पसंद वही है...अब आप को बता दें कि दोनों केक एक जैसे थे, एक जैसा मेटेरियल..एक जैसा फ्लेवर..एक जैसी क्वालिटी..कोई फर्क नहीं..केवल प्राइस टैग अलग-अलग रखे गए थे...

साफ है कि कीमत देखकर ग्राहकों का दिमाग उन्हें निर्देशित कर रहा था कि महंगी चीज अच्छी होती है..इसीलिए उन्हें महंगे केक का स्वाद भी अच्छा लग रहा था और क्वालिटी भी अच्छी लग रही थी..और ये बिलकुल सच भी है कि हमारे दिमाग ने जो धारणा बना रखी है हम वही करते हैं..उसी का चुनाव करते हैं..उसी को अच्छा मानते हैं..कोई कितना भी कुछ कह ले..
उदाहरण के लिए..हम देखते हैं कि सामने वाला किस ब्रांड का कपड़ा पहने है, किस ब्रांड के जूते पहने हैं..किस ब्रांड की घड़ी पहने है..किस ब्रांड की गाड़ी है..और उस ब्रांड का क्या क्लास है..यदि हम जानते हैं तो सामने वाले का स्टेटस मन ही मन तय कर लेते हैं वो कितना बड़ा आदमी है..उसकी कितनी बड़ी हैसियत है...अगर हम किसी को पहचानते हैं तो उसकी हैसियत के हिसाब से उसके हावभाव को देखते हैं..नहीं पहचानते हैं तो वो कितना ही बड़ा आदमी हो..यदि ब्रांडेड नहीं है तो हमें अंदाजा नहीं लग पाता है कि उसका क्या स्टेटस है..यदि कोई बड़ा आदमी किसी ब्रांड को पहने है..और वो नकली भी है तो हम उसे असली मानेंगे..और कोई मजदूर किसी बड़े ब्रांड की शर्ट पहने हैं..तो हम अपने आप ही अंदाजा लगा लेंगे कि वो जरूर नकली होगी..भले ही उसे किसी ने दी हो और असली ब्रांड हो...
तो हमारे दिमाग ने जो तय कर रखा है..हम उसी के निर्देश पर चलते हैं कि क्या बेहतर है..क्या सही है..क्या गलत है...यदि हमने किसी शख्स को..किसी वस्तु को..किसी सोच को गलत तय किया है तो हम जीवन में उस गलत को भी सही मानकर चलते जाएंगे..इसलिए जो भी तय करना है उसे सोच-समझ करें क्योंकि जीवन में आगे चलना उसी हिसाब से हैं...बाकी फिर......

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Saturday, August 15, 2015

आजादी का क्या मतलब है?

स्कूल के दिनों में आजादी के पर्व के दिन खास तैयारी करता था..कई दिनों पहले से ही आजादी पर भाषण के लिए पिता जी से पूछता था..किताबों को पढ़ता था..और भाषण तैयार करता था, कुर्ता पाजामा पहनकर नेता की तरह भाषण देता था, पुरस्कार भी मिलते थे, कभी निबंध लिखता था, कभी कविता पढ़ता था, इस बहाने बहुत कुछ आजादी के मतवालों के बारे में जान लेता था, मिष्ठान मिलता था, एक जश्न जैसा माहौल रहता था, घर आता था तो एक जोश सा भरा रहता था, ऐसा लगता था कि नए सिरे से ऊर्जा का संचार हो गया, नया उत्साह पैदा हो गया, नया जोश भर गया।

ये तो पुराने वक्त की बात है..अब आज की बात करता हूं, मेरी बेटी के स्कूल में चाहे 15 अगस्त हो या 26 जनवरी या फिर 2 अक्टूबर..उसकी छुट्टी रहती है, पूछने पर पता चलता है कि केवल टीचर पहुंचते हैं, कुछ मानीटर टाइप के बच्चों को बुलाया जाता है, कर्मचारी पहुंचते हैं और झंडारोहण के बाद स्कूल बंद हो जाता है..वो शुरू से टीवी पर आजादी का पर्व देखती है और मेरे से पूछती है कि पंद्रह अगस्त को लाल किले से कौन बोलता है, 26 जनवरी को कौन बोलता है, झांकियां कब निकलती हैं, और इस दिन ऐसा क्यों होता है, इस दिन वैसा क्यों होता है, कई सवालों के जवाब मेरे पास भी नहीं रहते..
सवाल तो हजारों हैं जिनके जवाब हमारे पास नहीं है..बच्चों को तो छोड़ दीजिए, सवालों के जवाब न तो नेताओं के पास है, न तो सरकार के पास, जब स्कूलों में ही 15 अगस्त को औपचारिकता मान लिया जाए, छुट्टी का दिन मान लिया जाए, तो बड़ों को क्या दोष दो, बड़ों के पास तो अपने तर्क हैं...छुट्टी का दिन मिला है तो घर-परिवार के कामकाज निपटा लिए..तनाव की जिंदगी में थोड़ा आराम कर लिया जाए या फिर माल में मूवी देखकर मनोरंजन कर लिया जाए, आजादी के मतवाले शहीद हो गए, ठीक है, बहुत हुआ तो whatsapp पर 
मैसेज भेज दिया जाए, और ज्यादा हुआ तो टीवी पर देख लिया जाए, प्रधानमंत्री ने क्या कहा, और ज्यादा हुआ तो टीवी पर बहस देख ली जाए, कि प्रधानमंत्री ने पिछली बार क्या कहा था, इस बार क्या कहा, कितना पूरा हुआ..कितना नहीं हुआ..
सवाल सबसे बड़ा ये है कि जो भविष्य हैं, जो पीढ़ी आ रही है, उसे आजादी का कितना मतलब पता है, , उसे कितनी चिंता है, अगर ध्यान दें तो बच्चों को केवल इतना मतलब है कि हमारा कैरियर किससे बनता है, अगर एनडीए में जाने से बनता है तो मतलब है, यदि आईआईटी में जाने से बनता है तो उसी से मतलब है, यदि पीएमटी में जाने से बनता है तो उसी से मतलब है, बाकी न तो पढ़ने की जरूरत है, न समझने की जरूरत है और न ही जज्बे की जरूरत है, जज्बा केवल कैरियर तक है और परिवार को भी इसी की चिंता है, इसलिए आजादी को याद करने के लिए एक दिन तो बहुत बड़ी बात है, आधा दिन या एक घंटा भी साल में दे लिया, तो समझ लीजिए, बहुत कर दिया...बाकी फिर.......

Friday, August 14, 2015

हम follower क्यों हैं, leader क्यों नहीं?

1986 की बात है..मैं हाईस्कूल में था, मेरे चाचा जी अमेरिका से लौटे थे..वो इंग्लिश के प्रोफेसर थे..पिता जी बैंक में थे..इसलिए उन्हें बता रहे थे..अमेरिका में ऐसे बैंक हैं जहां कोई कर्मचारी नहीं रहता..एक मशीन लगी होती है..जिसमें बटन दबाओ..एमाउंट भरो..और जितना पैसा चाहो..निकाल लो..अपने आप रुपए निकल कर बाहर आ जाते हैं...पासबुक नहीं होती..आप अपना बैलेंस, हिसाब-किताब सब कुछ बटन दबाकर निकाल लेते हैं..मैं पास में बैठा ये रोचक बातें सुन रहा था...मुझे लगा कि चाचा जी कुछ ज्यादा ही फेंक रहे हैं..अमेरिका से आए हैं..कौन वहां देखने जा रहा...बात आई-गई होगी..लेकिन जब भारत में एटीएम लगी तो वो चाचा जी की बात याद आ गई...

दूसरा किस्सा उन्होंने सुनाया...वहां जितने भी स्टोर हैं..वहां सामान खुद उठाना पड़ता है..जो चाहे मर्जी ले लो..और काउंटर पर पेमेंट कर के चले जाओ..हमारे एक परिचित ने देखा कि यहां तो कोई देख नहीं रहा...एक किताब बैग में डाली और हमारे साथ निकलने लगे...गेट पर उन्हें रोक लिया और बताया गया कि उनके बैग में एक किताब है..उसका पेमेंट कर दीजिए...तीसरी आंख उन पर नजर रख रही थी..आज घर-घर में.. हर दुकान में..सीसीटीवी लगे हैं...
तीसरा किस्सा उन्होंने सुनाया कि वहां 30 मंजिल इमारत एक मिनट में पत्ते की तरह नीचे धराशायी हो जाती है..एेसे गिरती है जैसे ताश के पत्ते नीचे गिर रहे हों...इमारत का जितना हिस्सा गिराना है उतना ही गिरेगा..आसपास की इमारत को खरोंच तक नहीं आएगी...ऐसा विस्फोट लगाया जाता है..बिलकुल नापतौल कर..आज मध्यप्रदेश के इंदौर के एक्सपर्ट सर्वटे न जाने कितनी इमारतें इसी अंदाज में गिरा चुके हैं।
ये किस्से इसलिए याद आ रहे हैं कि हम दस से बीस साल पीछे क्यों चलते हैं..हैरानी की बात ये है कि इन सारी करामातों..तकनीकों और हुनर में भारतीयों का ही हाथ होता है...अमेरिका के जितने बड़े संस्थान हैं..भारतीयों का उनमें दबदबा है...लेकिन हम नहीं कर पाते..वो शुरूआत करते हैं...हम फालो करते हैं..इसीलिए हम आज बुलेट ट्रेन की सोच रहे हैं..स्मार्ट सिटी की सोच रहे हैं..और न जाने क्या-क्या सोच रहे हैं..सोचते ज्यादा हैं..करते कम हैं...बाकी फिर.....

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Thursday, August 13, 2015

राधे मां आपको किस क्यों नहीं कर सकतीं?

गुड़गांव एयरपोर्ट पर मेरे बैग को चैकिंग के लिए रोक लिया गया..और उसमें रखी सेविंग किट से छोटी सी कैंची को निकालने को कहा गया..ऐसे ही मेरे एक परिचित सरोता रखे हुए थे..उनका सरोता जब्त कर लिया गया लेकिन राधे मां ईश्वर का रूप हैं..बल्कि ये मैं कुछ कम कह रहा हूं उनके भक्त तो उन्हें साक्षात ईश्वर मानते हैं...इसलिए वो त्रिशूल लेकर हवाई जहाज में सफर कर सकती हैं...जाहिर है आम आदमी पहले तो हवाई जहाज में सफर करने लायक नहीं होता और अगर इमरजेंसी में वो जाता भी है तो उसके लिए नियम-कायदे कानून पूरे लागू होते हैं।


कानून हमारी संसद बनाती है जहां पूरे सत्र में एक दिन नहीं होता..जिसमें दो सौ करोड़ रुपए बेकार चले जाते हैं...संसद नहीं चल पाती..जब चलती है तो कानून बनते हैं और फिर वो कानून आम आदमी के लिए होते हैं..वीआईपी के लिए कोई कानून नहीं होता..राधे मां तो ईश्वर हैं..धरती पर उतर आई हैं..या फिर कहें आम आदमी थीं लेकिन अचानक उनमें ईश्वर दाखिल हो गए..कहती हैं शिवजी सीधे उनके भीतर हैं..हांलाकि नाम उनका राधे मां हैं...उनके हेयर स्टायलिस्ट बालीवुड के हैं..ड्रेस डिजायनर बालीवुड के हैं...मेकअप किट के 25 हजार मांगती हैं...चौकी लगवाने के लिए 5 लाख से 25 लाख लगते हैं...जो चौकी लगवाते हैं वही उन्हें गोद में उठा सकते हैं..वही उन्हें किस कर सकते हैं..वो भी उन्हें किस कर सकती हैं..थूका हुआ प्रसाद ऐसे बड़े लोगों को ही नसीब होता है.वो खुद को मां कहती हैं..और कहती हैं कि एक मां अपने बच्चे को किस कर सकती है..और मां को गोद में उठाने में क्या दिक्कत है..बात तो सही है...मां को गोद में उठाने में पुण्य ही मिलेगा..लेकिन मां महंगी है..आम आदमी को गोद में उठाने का मौका नहीं मिलता...आम आदमी किस भी नहीं कर सकता..लेकिन ऐसी मां नहीं देखी..ऐसा भगवान नहीं देखा जो हजारों का मेकअप करता हो..डिजायनर साड़ी पहनता हो..भगवान को सजने-संवरने की क्या जरूरत है.

राधे मां भगवान हैं इसलिए हवाई जहाज में त्रिशूल लेकर चल सकती है..कुछ लोग नाहक ही त्रिशूल पर सवाल उठा रहे हैं..त्रिशूल तो भगवान का अस्त्र है..भगवान धारण करते हैं..राधे मां भी धारण करती हैं..और राधे मां भी भगवान का इस कलयुग में अवतार हैं...इसलिए उनसे कोई सवाल नहीं उठा सकता..न ही एयरपोर्ट के अधिकारी..या सुरक्षाकर्मी उठा सकते हैं.....छोटे लोग दुत्कार के लिए बने हैं..कानून का पालन करने के लिए बने हैं...दो वक्त की रोजी-रोटी के लिए संघर्ष के लिए बने हैं..कुछ पल के लिए मुझे गुस्सा आया था कि राधे मां त्रिशूल लेकर कैसे हवाई जहाज में कैसे चल सकती है..और मैं सेविंग किट की छोटी सी कैंची लेकर क्यों नहीं चल सकता है..भगवान और आम आदमी को अपना फर्क समझना चाहिए...आप भी समझ लें. देश भी समझ ले..बाकी फिर......
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Tuesday, August 11, 2015

बाबाओं से तो अच्छे हैं सुंदर पिचाई

सुंदर पिचाई गूगल के सीईओ बन गए, भारत में कुछ लोग उन्हें बधाई दे रहे हैं, भारत की शान मान रहे हैं,इतनी कम उम्र में गूगल का प्रमुख बनने को बड़ी बात मान रहे हैं, तो कुछ लोगों के पेट में दर्द हो रहा है..उनका कहना है कि बन गए तो क्या हुआ..कौन सा भारत के लिए बने हैं, खुद की कमाई के लिए बने हैं, भारत के लिए क्या कर रहे हैं?

दोनों पक्ष हैं, दोनों के अपने तर्क हैं, कौन सही है, कौन गलत है, ये हमारी अपनी सोच है, हर कोई अपने तरीके से सोचता है, कुछ लोग धरातल पर बात करते हैं, कुछ लोग बौद्धिक हैं, लेकिन आम आदमी की सोच क्या है, भारत में सौ में से 95 तो आम आदमी ही होगा, वो क्या सोचता है, वो ये सोचता है कि सबसे पहले रोजी-रोटी कमानी है, अपने परिवार का पेट पाल लें, इसके बाद आगे की देखेंगे, तो सीधी सी बात है कि हर कोई सबसे पहले कमाई की सोचता है और अगर वो ईमानदारी से और मेहनत से कमाई की सोचता है तो गलत नहीं है, सुंदर पिचाई ने कितनी मेहनत से पढ़ाई की, आईआईटी के बाद विदेश गए और गूगल में सालों तक नौकरी के बाद वो प्रमुख बन गए..तो क्या गलत कर दिया..अगर वो मेहनत, ईमानदारी और अपने पाजिटिव दिमाग से कमाई कर रहे हैं तो गलत क्या है? उनसे तो अच्छे हैं तो जो हमारे देश में धूर्तता से पैसे कमा रहे हैं, उन ढोंगी बाबाओं से तो अच्छे हैं जो दूसरों की मेहनत कमाई को धूल झोंक कर लूट रहे हैं, जो झूठ बोल रहे हैं, ब्रेन वाश कर रहे हैं, उनसे तो अच्छे हैं जो भ्रष्टाचार की काली कमाई से संपत्तियां बना रहे हैं और अपने बच्चों को विदेश पढ़ाई के लिए या फिर बिजनेस के लिए भेज रहे हैं, उनसे तो अच्छे हैं जो नेता जनता की कमाई को लूट रहे हैं..।
यदि सुंदर पिचाई को इतना पैसा भारत में मिल रहा होता तो वो विदेश क्यों जाते, यदि यहां ईमानदारी और मेहनत की पूजा होती तो विदेश का रुख कोई क्यों करे...देश में ऐसे कितने लोग हैं जो केवल समाजसेवा और दान कर जीवन जी रहे हैं..जाहिर हैं कि जब कमाएंगे नहीं तो दान कैसे करोगे?
प्रधानमंत्री का भी दर्द है कि हमारे होनहार विदेशों में धूम मचा रहे हैं, सब कुछ बना रहे हैं..सब कुछ चला रहे हैं..चाहे सत्या नडेला हो या इंदिरा नुई..या फिर सुंदर पिचाई..तो हमारे यहां क्यों नहीं हुआ..हम क्यों googleनहीं बना पाए..हम क्यों microsoft  नहीं बना पाए..हम क्यों master card या visaनहीं बना पाए..हम क्यों facbook. या फिर yahoo नहीं बना पाए और नहीं बना पाए तो अब सोच लें...सुंदर पिचाई को यहां ले आएं..जितने पैसे ले रहे हैं उससे दोगुना दे दें..कम से देश का तो भला हो जाएगा..हमारा और आपका भी भला हो जाएगा..आज हम भी तो गूगल पर टिके हैं..याहू पर टिके हैं..फेसबुक और whatsapp  पर टिके हैं। उसी पर निर्भर हैं जो गूगल बताएगा..वही मानेंगे, गूगल के बिना न भारत सरकार का गुजारा है और न हमारा आपका...गूगल चाहे कमाई कर रहा हो, चाहे विदेशी हो..कम से कम इतनी तो गैरत है कि गूगल पर हम गूगल के बारे में भी कुछ भी लिख रहे हैं..तो फिर सुंदर पिचाई यदि गूगल के प्रमुख बन गए तो क्या गलत हो गया....कम से कम कुछ दे ही रहे हैं..ले तो नहीं रहे हैं..बाकी फिर.....

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यही है नजरिया जीवन दर्शन का

जीवन दर्शन देश नहीं विदेशों में भी पढ़ रहे हैं...ये हमारे लिए है..आपके लिए है..हम सबके लिए..जीवन को बेहतर बनाने के लिए..बड़ी खुशी होती है जब इसे पढ़ने वाले अपने कमेंट करते हैं..अपना नजरिया पेश करते हैं..क्योंकि हम मिलकर बेहतर सोच को विकसित कर सकते हैं..ये कोई खोज नहीं..ये कोई छिपाने की चीज नहीं..ये कोई छिप कर पढ़ने की नहीं..जो हमारे पास है..वो हमें दूसरों को देना है..जो दूसरे के पास है..उसे हमें लेना है..छानकर जीवन में अपनाना है..जो best है उसे ले लेना है..जो खराब है उसे नष्ट कर देना है..उसे त्याग देना है।


हमारे एक साथी ने जीवन दर्शन पर जो कमेंट लिखें हैं, उनका नाम श्री मयंक आर्य जी है..

मयंक जी ने डर बहुत लगता है...पर लिखा है.... इंसान को जिस कार्य को करने में तनिक भी भय लगे, उसे वह कार्य नहीं करना चाहिए।

इन ख्वाहिशों का अंत नहीं...पर लिखा है कि अक्षरस: सत्य।

माया और वासना व्यक्ति को मृत्यु के क्षण तक अंधकार में रखती है।

गिफ्ट तो बहाना है..पर लिखा है..ये जीवन स्वयं में ईश्वर का सर्वोत्तम उपहार है जबकि यह भी नश्वर है तो अन्य कोई भी उपहार कैसे बेहतर हो सकता है?

हम से अच्छा कौन है..पर लिखा है...ये तो स्वयं में प्रतिस्पर्धात्म प्रश्न है।

जो आपमें है वहीं सबमें भी है। जब सर्वत्र सिर्फ एक तत्व है तो वही तत्व खुद से अच्छा या बुरा कैसे हो सकता है?
खुदा कहें...ईश्वर कहें या वाहे गुरू। तत्व तो सब एक ही हैं।

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती....पर लिखा है..पूर्ण सत्य।

जो जीता वहीं सिकंदर..पर लिखा है..प्रभु जो खाली हाथ चला गया वो सिकंदर भी इस दुनिया में नहीं जीता।
प्रतिस्पर्धा करने के लिए नहीं वरन् परम लक्ष्य की प्राप्ति को जीवन का लक्ष्य बनाएं।

हम जीते क्यों हैं..पर लिखा है...खुद को जानने के लिए यह जन्म मिला है। आत्म तत्व का बोध होते ही जीवन के प्रति मोह समाप्त हो जाता है।

अहंकार ले डूबता है...पर लिखा है...जब तक आप स्वयं को एक शरीर मानते हैं..राग, द्वेष, अनुराग, अभिमान व अहंकार साथ रहते हैं। अपने आत्मस्वरूप की प्राप्ति होते ही ये सभी भावनाएं नष्ट हो जाती हैं।

गुस्सा क्यों आता है...पर लिखा है...चाहत जब आहत होती है तो व्यक्ति को क्रोध आता है।

वाकई जो comment हैं वो भीतर उतारने वाले हैं..ये सार है जो कुछ मैंने लिखा है..सोचा है..देखा है...सुना है..महसूस किया है..ऐसा नहीं है ये आपने भी किया होगा..लेकिन जो सार है वो यही है..यही सही नजरिया है जीवन दर्शन का..यही है way of life for best of life के लिए...बाकी फिर....


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Sunday, August 9, 2015

चाल, चरित्र और चेहरा-3

चाल और चेहरे से मिलकर बनता है चरित्र..चेहरे के हाव-भाव को देखते ही हम सामने वाले किसी भी शख्स के बारे में तत्काल एक राय अपने दिलो-दिमाग में बना लेते हैं..अनजान शख्स के बारे में ये धारणा तात्कालिक होती है और जिसे हम जानते हैं, उसके बारे में ये धारणा बनी रहती है..ये कहें स्टोर रहती है...चेहरे के साथ ही चाल हमें किसी को पहचानने में और मदद करती है..हम कहते भी हैं कि फलां की चाल-ढाल ठीक नहीं है..उसकी चाल तो देखो..कैसे रंग-ढंग हैं..चाल और चेहरे ही मिलकर रंग-ढंग तय करते हैं और चाल-ढाल तय करते हैं..तो बाहरी चेहरा और चाल तो हम आसानी से समझ लेते हैं कि कोई व्यक्ति या महिला कैसी है..लेकिन भीतरी चाल और छिपे हुए चेहरे को समझना सबसे अहम है...


जब हम किसी शख्स के अंदर की सोच-विचार और मन को टटोल लेते हैं तो उसे सही से जान लेते हैं नहीं तो गच्चा खा जाते हैं..खास तौर से राजनेता और साधुसंत इस कला में माहिर होते हैं वो हमारे भीतर के चेहरे और चाल को समझ लेते हैं लेकिन हम उनके बारे में नहीं जान पाते..जब उनकी पोल खुलती है तो हमें पता चलता है कि अरे..ये तो बड़ा कलाकार निकला...वाकई जो जितना बड़ा कलाकार है उसे समझना उतना ही कठिन...

चाल और चेहरे से मिलकर चरित्र बनता है..बाहरी चरित्र तो हमें नजर आता है लेकिन भीतरी चरित्र ही उसकी असलियत होता है...हम दिन भर में किस तरह बहुरुपिया बनते हैं चाहे वो चाल से या चेहरे से..या फिर लोग हमें बेवकूफ बना जाते हैं..भीतरी चरित्र वो होता है जो बता कर नहीं सामने नहीं आता..अपने आप आता है...मसलन..कोई कितना ही बड़ा आदमी हो या छोटा...यहां हम हैसियत की बात कर रहे हैं..किसी का भी चरित्र अच्छा या बुरा हो सकता है..छोटे आदमी का चरित्र बड़े से अच्छा हो सकता है..किसी प्यासे को पानी पिला देना..किसी असहाय को सीट दे देना...किसी हादसे में परिचित न होकर भी मदद कर देना..यहां भीतरी चरित्र की एक झलक देखी जा सकती है..
हम जानकर किसी की मदद करते हैं तो उसमें चरित्र अच्छा होने पर भी नहीं जान सकते..इसमें स्वार्थ भी हो सकता है..मजबूरी भी हो सकती है..दबाव भी हो सकता है...चरित्र वहां उभर कर आता है जहां बिना स्वार्थ के किसी के जीवन में सहयोग करना..चाहे वो कोई भी हो...जिसे हम जानते हैं उसका चरित्र जानना ज्यादा कठिन है जिसे हम नहीं जानते..या फिर वो हमें नहीं जानता..वहां हम ज्यादा वास्तविक नजर आते हैं लेकिन जब हम जानते हैं तो चाल..चरित्र और चेहरा बनावटी हो जाता है..तो भीतरी चाल..चरित्र और चेहरे को पहचानिए..way of life जरूर बेहतर होगा...बाकी फिर.....

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Saturday, August 8, 2015

चाल, चरित्र और चेहरा-2

चेहरे का चाल से गहरा संबंध है और फिर चरित्र से..तीनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं..तीनों एक दूसरे को बनाते हैं और बिगाड़ते हैं..ये ही आपकी personality को उलझाते हैं और सुलझाते हैं। चेहरे के बाद अब बात करते हैं चाल की..अब यहां फिर बाहरी और भीतरी चाल दोनों को देखना होगा..बाहरी चाल हमें सबकी दिखती है..कोई भी कैसे चलता है..हमें नजर आता है, एक सेहतमंद व्यक्ति की चाल से समझ में आता है..उसमें स्फूर्ति होती है..उत्साह होता है..तेजी होती है..चाल सधी हुई होती है..एक बीमार व्यक्ति की चाल होती है..हम किसी भी अनजान शख्स को देखकर आमतौर पर समझ जाते हैं कि ये स्वस्थ है या बीमार है..कई बार तो पूछ ही लेते हैं कि इनको क्या हुआ है..क्या परेशानी है...शराबी की चाल देखकर आप समझ जाते हैं बल्कि ये भी अंदाजा लगा लेते हैं कि इसने कितनी पी रखी है...जितना लड़खड़ा रहा है..उसी हिसाब से आप आकलन कर लेते हैं..किसी को चोट लगी है तो पता चल जाता है...

उम्र  के हिसाब से चाल भी बदलती जाती है..सेहत के हिसाब भी उसमें बदलाव आता जाता है..ये पुरुष के साथ भी होता है महिलाओं के साथ भी होता है..तो बाहरी चाल को हम समझ लेते हैं लेकिन असल चाल होती है भीतरी..जिसे आप हम नहीं देख सकते..जो हम चाल चलने वाले हैं..जो हम सोच रहे हैं..जो हम प्लानिंग कर रहे हैं..वो हमें भी पता है..सामने वाले को नहीं...सामने वाला आपके लिए कौन सी चाल सोचकर रखा है..ये आपको नहीं मालूम..असल चाल यही है जिसे हमें आपको समझना जरूरी है..कोई भी हो..कितने ही नजदीक हो..खास कर अनजान शख्स या अपने दुश्मन से तो आप पहले ही सतर्क रहते हैं..उस पर संदेह करते हैं कि ये कुछ गलत कर सकता है..भले ही वो न करे..लेकिन जिसे अपना समझते हैं..जिसके बारे में आप अपनी राय बना चुके होते हैं..उसकी भीतरी चाल को समझ गए तो ठीक वरना उसकी चाल आपको ज्यादा महंगी पड़ सकती है। हम जीवन में इसीलिए धोखा खाते हैं कि न तो उसके चेहरे को पढ़ पाए..न ही उसकी चाल समझ गए..जो चेहरे पर नकाब है..उसे ही हकीकत मान लिया और जो बाहरी चाल है..उसे ही असली चाल मान लिया..

हम जीवन में कई बार धोखा खाते हैं..कुछ लोग ज्यादा खाते हैं..अक्सर शिकार होते हैं तो कुछ लोग कम..जो कम धोखा खाते हैं..उनकी समझ जरूर बेहतर है..इसीलिए किसी व्यक्ति को अपना बनाने से पहले उसके चेहरे और चाल को नाप लेते हैं और फिर अपने लिए सामने वाली की रेटिंग तय कर व्यवहार करते हैं..उससे उतना ही नाता रखते हैं..या फिर दूरी बना लेते हैं..जो अक्सर धोखा खा जाते हैं..उन्हें किसी को परखने के लिए थोड़ा सा ध्यान देना होगा..सामने वाले के भाव को समझना होगा...हमारा आपका या किसी भी तीसरे शख्स का चरित्र चाल और चेहरे से ही तय होता है...बाकी फिर.....

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Friday, August 7, 2015

चाल, चरित्र और चेहरा-1

आप किसी भी शख्स की पहचान कैसे करते हैं, कैसे उसके बारे में राय बनाते हैं और भविष्य में उसके साथ किस तरह का व्यवहार करते हैं...चाल, चरित्र और चेहरा..कहने को ये तीन शब्द हैं, लेकिन इनके अर्थ गहरे हैं और अगर इनके भाव को समझ लें तो हम अपने आसपास के लोगों से रिश्ते बनाने और बिगाड़ने में मदद कर सकते हैं..जितने ठीक तरह से समझेंगे..उतने ही हम जीवन के बेहतर रास्ते यानि way of life की ओर बढ़ेंगे..ये तीनों शब्द हमारे लिए भी लागू होते हैं और हमारी भी पहचान..शख्सियत और सम्मान इनसे तय होता है।


सबसे पहले बात करते हैं चेहरे की...चेहरे से जब नकाब उठेगा? इस पर हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं..चेहरे पर हम सब हर रोज कई चेहरे पहन लेते हैं..मेकअप से इतना बेहतर face नहीं बना सकते..जितना हम अपने विचारों..भावों और व्यवहार से पहन लेते हैं जो दूसरों को बिलकुल वास्तविक लगता है लेकिन हम भीतर से जानते हैं कि जो दिख रहा है वो असल चेहरा नहीं है..इसीलिए जब कोई शिक्षक, कोई रिश्तेदार, पड़ोसी..जान-पहचान वाला किसी बच्ची से गलत हरकत करता है तो हमें पता नहीं चलता..जब हमारा अपना ही कोई ठग लेता है..धोखा दे देता है...जब हमारा ही बच्चा..पति-पत्नी हम एक दूसरे से झूठ बोल देते हैं..और जब पता चलता है तब आप समझते हैं कि हमारे चेहरे पर कितने नकाब हैं जो दिखते नहीं है...चेहरा वक्त के हिसाब से बदलता है..जगह के हिसाब से बदलता है, व्यक्ति के हिसाब से बदलता है..मौसम और माहौल के हिसाब से बदलता है..जब हम घर में होते हैं तो कुछ और होते हैं..जब दफ्तर में होते हैं तो कुछ और होते हैं..जब हम public place में होते हैं तो कुछ और होते हैं...आराम के वक्त चेहरा कुछ और होता है..काम के वक्त कुछ और होता है...तनाव के वक्त कुछ और होता है...बच्चों के साथ हमारा चेहरा अलग होता है..पत्नी के साथ अलग..भाई-बहन और माता-पिता के साथ अलग..दोस्तो के साथ अलग...
चेहरा..जो ऊपर से हम देखते हैं..उससे बहुत कुछ समझ में आ जाता है जैसे सामने वाला खुश है..दुखी है..गुस्से में हैं..तनाव में हैं..घमंड में है..भावुक है...ये तो हमें दिखता है..जब शख्स जो कुछ दिखाना चाहता है..वो आप उसके चेहरे के जरिए दिखा देता है..जता देता है और आप उसे मान लेते हैं लेकिन असल चेहरा वो है जो वो दिखाता नहीं है..ये हम देख नहीं सकते..जो वो face के पीछे छिपाए हैं..अपनी आंखों से जो भाव उसके भीतर पल रहे हैं..वो हम आप नहीं आसानी से नहीं समझ सकते...
 चेहरे का असल भाव हम तब समझ पाते हैं जब वो अपनी चाल में कामयाब हो जाता है..चेहरे का चाल के साथ गहरा नाता है..चेहरा और चाल से ही चरित्र बनता है..तीनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं..अभी हम केवल चेहरे की बात कर रहे हैं..चेहरे में भी सबसे अहम रोल आंख का है जो आंखें देखती हैं..पढ़ती हैं..गढ़ती हैं..वही उसकी चाल और चरित्र में शामिल हो जाता है। इसीलिए जब हम किसी के बारे में राय बनाते हैं...रिश्ते बनाते हैं..दोस्ती करते हैं और अपने किसी को सम्मान देते हैं तो सोच-समझ कर...चाल..चरित्र और चेहरा के भाव समझ कर..हमारे जीवन में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब हम कहते हैं कि रिश्ता बदल गया..दोस्त बदल गया...उसका व्यवहार बदल गया...लेकिन कुछ लोग हमारे जीवन में ऐसे भी होते हैं जिनके बारे में जीवन में कभी राय नहीं बदलती..और उन्हीं से आप समझ सकते हैं कि आपने उनके चाल चरित्र और चेहरे को सही पढ़ा है..गढ़ा हैं...आगे बात करेंगे चाल की..और उसके बाद चरित्र की...बाकी फिर......
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न अन्नदाता रहेगा..न हम

एक मित्र ने मुझे फेसबुक पर लिखा कि  उन किसानों पर भी लिखिए जो लगातार दम तोड़ रहे हैं, वाकई हम जितने सहनशील हैं शायद ही कोई और देश में हों, हम राजनीतिक तौर पर झंडे-डंडे लेकर सड़कों पर खड़े हो जाते हैं, बसों को फूंक देते हैं, बस-ट्रेन को रोक देते हैं, पुतला दहन करते हैं, तोड़फोड़ करते हैं लेकिन इन किसानों के लिए देश में क्यों कोई आवाज नहीं उठाता, ललित मोदी के लिए संसद परेशान है लेकिन उन किसानों के लिए नहीं जो अन्नदाता कहलाते हैं।
ये देश किसानों की माटी से ही बना है, आज वो किसान ही हैं जिन्होंने पर्यावरण को बचाकर रखा है, शुद्ध जल बचाकर रखा है, आवोहवा बचा कर रखी है और अगर इन राजनेताओं को अन्न न मिले, तो नोट खाकर जिंदा नहीं रह पाएंगे, वो क्या कोई भी नहीं, हम भी नहीं।
देश में हर साल, हर महीने और हर दिन किसान यूं ही दम तोड़ते जा रहे हैं दरअसल उनकी नहीं, देश से अन्न की मौत हो रही है और अन्न की मौत होना, अन्न की कीमत न समझना..आप समझ सकते हैं, आज भी हम कितने ही कथित प्रगतिशील हो गए हों लेकिन अन्न का दाना यूं ही छोड़ना ठीक नहीं मानते, क्योंकि वही जीवनदाता है, अन्न का त्याग करने पर हमारा जीवन मुमकिन नहीं, फिर अन्नदाता का त्याग कर हम कितना बड़ा पाप कर रहे हैं।
पैसे की कीमत पर हम अन्न जरूर खरीद लेते हैं लेकिन जब न अन्नदाता रहेगा और न ही अन्न, फिर वही सवाल होगा कि आप क्या नोट खाएंगे?...किसानों को हमारे देश में सदा बेजा इस्तेमाल किया गया, न तो उन्हें बाजिव दाम मिला और न ही सरकारों का ईमानदारी से सहयोग..किसानों के लिए सैकड़ों योजनाएं चलीं..सब्सिडी मिली..बैंकों से लोन मिले..लेकिन कितने किसानों को मिले, और कितनी ईमानदारी से मिले..मैंने खुद देखा है कि सब्सिडी का ज्यादातर पैसा अफसर-कर्मचारी खा गए...बैंक मैनेजर लोन में पैसा खा गए...जब किसानों की हालत खराब हुई तो हजारों करोड़ की मनरेगा योजना आई..चलो..मजदूरी कर जीवन यापन कर लो..लेकिन दस मजदूरों से काम कराके सौ मजदूरों के पैसों कागजों पर भर लिए गए..फर्जी मजदूर..फर्जी पारिश्रमिक...इतने घोर घोटाले हमारे देश में ही संभव हैं..यहां हम इतने सहनशील हैं कि पूछो मत..आखिर हम क्यों किसानों के लिए मरें...हां..उन बिल्डर्स
के लिए जान न्यौछावर कर सकते हैं जो किसानों की जमीन कौड़ियों के दाम लेकर लोगों को करोड़ों में बेच रहे हैं..और उन नेताओं को भी खिला रहे हैं..उन अफसरों को भी खिला रहे हैं..जिनके पेट पहले से ही नोटों की गर्मी से फटे जा रहे हैं..फिर भी चैन नहीं...

किसानों को बर्बाद कर दिया..अन्न पैदा करने वाली जमीन को बर्बाद कर दिया...पर्यावरण को बर्बाद कर दिया...और इस बर्बादी के ढेर पर हम बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी के सपने में खोए हुए हैं..जब ये सपना टूटेगा तो पता चलेगा कि जब जड़ ही कट गई तो उस पर पेड़ कैसे बनाओगे..एक जेनेरिक दवा को कंपनियां एक रुपए की जगह सौ से हजार रुपए में बेच रही हैं लेकिन अन्नदाता को जीने का माहौल नहीं छोड़ा गया है..धन्य हैं हम और आप..जो हर उस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर जंग छेड़े हुए हैं लेकिन उन किसानों के लिए एक शब्द तक नहीं...अभी मत सोचो..एक वक्त ऐसा नजदीक आ रहा है जब न तो अन्नदाता रहेगा और न ही अन्न..हो सकता कि हमारा जीवन निकल जाए..लेकिन हमारे भविष्य की पीढ़ियों का क्या होगा..इसे जरूर सोच लो..बाकी फिर.....
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Thursday, August 6, 2015

how can earn more money?

क्या आप ज्यादा कमाई करना चाहते हैं, क्या आप ऐसा business तलाश रहें हैं जिसमें बिलकुल मेहनत न हो और earning भरपूर हो, ऐसा मुमकिन है और नौकरी और धंधे से आसान है, जिसमें पूंजी भी बिलकुल नहीं लगानी है और कमाई लगातार बढ़ती जानी है, न भी बढ़े तो आपका कुछ लगना नहीं है और अगर काम चमक गया तो न केवल आपका मान-सम्मान बढ़ेगा, आप इतने famous हो जाएंगे कि मीडिया आपका इंटरव्यू लेगी, आप उन्हें विज्ञापन देंगे, बड़े-बड़े नेता, अफसर, बिजनेस मेन आपके पैर छुएंगे और कमाई इतनी होगी कि साल दो साल में तो आप करोड़ों गिनेंगे, इसके लिए आपको पूरी टीम रखनी पड़ेगी। आपका अपना स्टाफ होगा, एकाउंटेंट होगा, सीए होगा, बेवसाइट होगी, मैनेजर होंगे और सेवकों की तो कोई कमी नहीं रहेगी, यहां तक कि आपको वक्त ही नहीं होगा कि कहां जाएं, कहां न जाएं, किसे time दें किसे न दें..जिंदगी कुछ ही साल में व्यस्त हो जाएगी....

अब मैं रहस्य से पर्दा खोल ही देता हूं, पहेलियां नहीं बुझाता हूं, कमाई और सम्मान का सबसे आसान जरिया है कि यदि पुरुष हैं तो निर्मल बाबा बन जाओ, आसाराम बन जाओ, और भी साधु-संत हैं जिनका नाम लूंगा तो उनके भक्त मुझे ही निशाना बना देंगे, यदि महिला हो तो सबसे आदर्श राधे मां हैं, जो पहले क्या करती थीं और अब उनकी हर स्टाइल पर चर्चा हो रही है, मीडिया चला रही है, सोशल मीडिया भी पीछे पड़ा है चारों तरफ जय-जयकार है।
यदि आपसे कोई अनाथ बच्चा पांच-दस रुपए कुछ खाने के लिए मांगे, अगर कोई विकलांग आपसे मदद मांगे, यदि कोई रिक्शेवाला बीस की जगह पच्चीस रुपए मांगे तो आप उसे झिड़क देंगे, उस पर पिल पड़ेंगे, उसकी हिंदी-इंगिलश कर देंगे, सारा अपना ज्ञान-रुतबा उस पर उड़ेल देंगे। हर रोज बड़े-बड़े आदमी, बिजनेस मैन एक-एक रुपए के लिए हायतौबा मचाते हुए आपको सड़क पर नजर आएंगे, हम भी करते हैं, यदि एक रुपया कोई ज्यादा ले रहा है या दे रहा है तो हम उसे छोड़ते नहीं हैं लेकिन जहां भक्ति का सवाल आएगा तो सौ-दो सौ रुपए तो मामूली है, कर्जा चढ़ा है लेकिन साधू-संत के लिए फल-मेवे से लेकर रुपए लेकर उसके चरणों में बिछ जाएंगे, कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, कितनी ही दूर चले जाएंगे, कितना ही समय दे देंगे।
 दरअसल जब खुद को कमजोर पाते हैं तो दूसरे का सहारा लेते हैं और ईश्वर के नाम पर तो हम बिलकुल किसी के भी शरणागत हो जाते हैं चाहे वो ईश्वर की खातिर अपनी खातिरदारी में लगा हो, तो सलाह यही है कि कम से कम भारत में तो ढोगी बाबा बनने से अच्छा और आसान कोई उपाय है नहीं, यहां तक कि नोएडा के बड़े बिल्डर न तो बार खोलकर इतनी कमाई कर पाए और न ही बिल्डिंग बनाकर, हां, बाबा बनकर वो साल-दो-साल में जरूर अपने सारे पाप धो लेंगे और बिना पूजी के, बिना इनकम टैक्स के, बिना पुलिस के, बिना सरकार के मालामाल हो जाएंगे और जो उनसे लूटते थे, वहीं इनके चरण पकड़कर इन्हें ही दे जाएंगे, तो मेहनत न कर पाओ, ईमानदारी न बरत पाओ, कम कमाई में ज्यादा संतुष्ट न रह पाओ, दाल रोटी में मन न लगे तो you can earn more money by this way....बाकी फिर....ये भी पढ़िए..bhootstoryworld.blogspot.com  whatappup.blogspot.com

Wednesday, August 5, 2015

गलती हमारी है.....?

ट्रेन हादसे तो होते ही रहेंगे, पहले भी होते आए हैं, कोई नहीं बात नहीं है, हो सकता..आपको लगे कि ये मैं क्या बोल रहा हूं, बुरा मुझे भी लगता है, दुख भी होता है लेकिन जो कड़वा सच है, उसे हम आप नहीं बदल सकते। मध्यप्रदेश के रूट पर ही इटारसी में हादसा हुआ तो महीने भर से ज्यादा के बाद भी ठीक नहीं हो पाया, दिल्ली से मुंबई तक ट्रेन रूट प्रभावित रहा, लाखों यात्रियों को गर्मियों की छुट्टियों में भारी दिक्कत का सामना करना पड़ा, मैं खुद भुक्तभोगी रहा हूं, मेरा परिवार भी रहा है, इसके बाद हरदा में हादसा हो गया, इसके पहले मध्यप्रदेश क्या, देश का कौन सा राज्य है, जहां ट्रेन चलती हो और हादसा नहीं हुआ है, जाहिर है कि ट्रेन चल रही है तो हादसे होंगे ही, लेकिन कितने और कब तक?

सवाल यही है कि बारिश होती है..पटरियों के नीचे मिट्टी खिसक जाती है, और लोगों की जानें चली जाती हैं, रेल मंत्री भी कहते हैं कि न तो ड्राइवर की गलती है, न रेलवे की गलती है, तो फिर गलती बारिश की है, इतनी नहीं होनी चाहिए थी, गलती उन यात्रियों की भी हो, उन्हें बारिश में खतरा नहीं मोल लेना था, गलती हम सबकी है..ट्रेन में चल रहे हैं तो सुरक्षा हमें खुद करनी होगी, या फिर घर में बैठकर ही काम चलाना होगा, चाहे कितनी मजबूरी हो, ये तब बात हो रही है जब हम बुलेट ट्रेन चलाने की बात कर रहे हैं, जब एक बारिश में ट्रेन हादसा हो जाता है और उससे उबरने में हमें कई दिन लग जाते हैं, फिर हम बुलेट ट्रेन की बात कैसे कर लेते हैं, हमने पहले भी चर्चा की थी कि पहले पैसेंजर और मालगाड़ी ही सुरक्षित चलती रहें, एक्सप्रेस तो बाद की बात है।

सवाल ये भी है कि हम बुलेट ट्रेन की चर्चा तो करने लगे हैं लेकिन धरातल पर इन जर्जर पटरियों का, सिस्टम का..भ्रष्टाचार का क्या करें, अगर ये सब ठीक हो जाए तो बुलेट ट्रेन भी चल जाएं। ऐसे दुख के वक्त भी ये मजाक ही लगता है कि  दुनिया से मुकाबले की बात करते हैं तब हम ऐसे हादसों को रोकने की गारंटी क्यों नहीं ले पाते, अमेरिका में सुनामी से भी खतरनाक तूफान आता है तो उनका मेनेजमेंट कैसे लोगों की सुरक्षा कर ले जाता है।

दरअसल हम बुनियादी सुविधाओं को पूरा नहीं कर पाए, भ्रष्टाचार को दूर नहीं कर पाए, अनुशासन बना नहीं पाए, लेकिन हम थोड़ा-थोड़ा कर सब पा लेना चाहते हैं..ऐसे में सब पीछे छूट रहे हैं। रेलवे का बजट देखेंगे तो होश उड़ जाएंगे, इसमें से कितना पैसा वाकई लगा है और कितने रेलवे अफसरों की तिजोरियों में सड़ रहा है, जरा पता लगा लें, जब एक इंजीनियर सैकड़ों करोड़ तक पहुंच जाता है तो बड़े-बड़े अफसरों का बजट रिटायरमेंट तक कितना पहुंचता होगा?..जब किसी पर छापा पड़ता है तो हम आहें भरने लगते हैं लेकिन जिनके नहीं पड़ा है..जरा उन्हें भी तो देख लो, इसलिए जीवन दर्शन तो यही है कि पहले भ्रष्टाचार को रोक लो, सिस्टम सुधार लो, अनुशासन कर लो, फिर चाहे कितनी ही बारिश हो, एक्सप्रेस क्या बुलेट ट्रेन भी चलती रहेंगी..बाकी फिर.....ये भी पढ़िए..bhootstoryworld.blogspot.com  whatappup.blogspot.com


Tuesday, August 4, 2015

why do you like porn?

पोर्न की खबर को लोग हाथोंहाथ ले रहे हैं, कोई खुलेआम ले रहा है तो कोई चोरी-चुपके, दरअसल जब से डिजिटल दुनिया आई, तबसे पोर्न बहुत बड़ा subject नहीं रह गया। बेवसाइट पर सब कुछ उपलब्ध होने लगा, मोबाइल की क्रांति में ये और भी आसान हो गया, उसके उपयोग से ज्यादा दुरुपयोग भी होने लगा। हम अपने बच्चों के सामने या फिर अपने से बड़ों के सामने इस subject को लेकर असहज हो जाते हैं.
ये बात अलग है कि पहले से दुनिया बहुत बदली है, मैं जब छोटा था तब जींस शब्द नहीं जानता था, धीरे-धीरे लड़कों में जींस का क्रेज बढ़ने लगा और फिर लड़कियों में, शुरूआत में जब किसी लड़की को जींस पहने देखा तो तरह-तरह की चर्चाएं शुरू होने लगीं, सवाल भी उठने लगे, वक्त और बदला, लड़कियों के बाद महिलाओं ने भी पहनना शुरू कर दिया,  धीरे-धीरे ये आम बात हो गई, अब तो जो महिला जींस न पहने, वो पिछड़े तबके से आने वाली महिला कहलाने लगी।


जींस से आगे बढ़े तो कट स्लीव, नो स्लीव पर आ गए, इससे आगे बढ़े तो स्कर्ट और मिनी स्कर्ट पर आ गए, इससे भी बहुत आगे बढ़ चुके हैं, जो आम पहनावा बन चुका है, उस पर चर्चा नहीं होती, आज भी कोई लड़की आम ड्रेस से ऊपर है तो उसकी चर्चा होती है, ये सब आया पश्चिम से, जो वहां दस साल पहले हो जाता है उसे दस साल बाद हम भी अपना लेते हैं, वो कपड़ों से ऊपर उठ गए, तो उन्होंने हमारा योगा अपना लिया, शुरू-शुरू में फैशन टीवी आया, उस पर बवाल मचा, फिर tb-6 आया, तो देर रात लोग टीवी पर उसके लिए व्याकुल होने लगे, फिर web आया तो उसकी wave आ गई, पोर्न साइट धड़ल्ले से कुकरमुत्तों की तरह उग आईं, बड़ों की छोड़..बच्चे चोरी-छिपे देखने लगे, पहले सीडी का जमाना था अब तो मोबाइल, पेन ड्राइव, मेमोरी कार्ड न जाने क्या-क्या है, एक सेकेंड लगता है न जाने कहां तक कोई भी पोर्न क्लिप पहुंच जाती है। अब ऐसे पोर्न को भी लोग बहुत गंभीरता से नहीं लेते, हां अगर किसी खास व्यक्ति का है, परिचित का है तो मजे लेने के लिए हमारी दिलचस्पी बढ़ जाती है, उसकी करतूत देखने से अपना खून बढ़ जाता है,

असल मुद्दा ये है कि डिजिटल की दुनिया में आप कुछ नहीं रोक सकते, एक क्लिप और एक मैसेज एक सेकंड में इतनी दूरी तय कर लेता है, इतनी उसकी कापी हो जाती है कि आप पकड़ नहीं सकते, जहां तक पोर्न का मसला है तो ये हम खुद रोक सकते हैं, हम खुद तय कर सकते हैं कि हमें क्या करना है, कितना करना है और कैसे करना है, नहीं तो पोर्न तो डिजिटल में ही नहीं हमारे विचारों में हैं, हमारी सोच में है, हमारी निगाहों में हैं, इसे कौन कैसे रोकेगा, ये तो हमें ही रोकना है...बाकी फिर..........ये भी पढ़िए..bhootstoryworld.blogspot.com  whatappup.blogspot.com

Sunday, August 2, 2015

how can be brain fast?

जीवन में दिल और दिमाग का तालमेल बिठाना जरूरी है, दिमाग जितना तेज होगा, उतना ही हम जीवन में कामयाब होंगे, अगर दिमाग पर दिल हावी होगा, तो हम भावुकता में बह जाएंगे और तरक्की के रास्ते पर नहीं जाएंगे, रिश्तों में दिल काम आता है लेकिन तरक्की के लिए दिमाग की जरूरत है।
अब बात आती है कि दिमाग कैसे तेज हो, इसकी चाबी भी हमारे ही पास है, केवल सोचने से काम नहीं चलता, कई लोग ज्यादा सोचते हैं, इतना सोचते हैं कि उसी में परेशान हो जाते हैं और होते रहते हैं, उलझनों को मत दिल और दिमाग में बिठाईए, brain में हमेशा नई ऊर्जा होनी चाहिए, आगे बढ़ने की, नया करने की, मेहनत करने की, संघर्ष करने की, इतना भी मत सोचें कि  brain  पर बोझ लद जाए, क्या करें, क्या न करें, ये भी कर लें, वो भी कर लें, ज्यादा सोच-विचार कर लिया तो  brain  फट जाएगा, पहले खुद का आकलन करें कि आपकी क्षमता कितनी है, कितना आगे तक जा सकते हैं, कितना धैर्य रख सकते हैं, कितने positive हैं, कितनी मेहनत कर सकते हैं, कितना time दे सकते हैं, जितना बेहतर अपना आकलन करेंगे, दिमाग उसी दिशा में हमें आगे बढ़ाएगा, काम करने की इजाजत देगा, उसके हिसाब से ही  brain  plan बनाएगा और उसे अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू करेगा।

न तो जल्दबाजी से काम होगा और न ही जरूरत से ज्यादा तनाव लेकर, जिस काम में जितना वक्त लगना है, लगेगा, उसे वक्त से पहले पूरा करने की कोशिश करेंगे तो अपने को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचा बैठेंगे, यही नहीं काम या तो अधूरा रह जाएगा या फिर बिगड़ जाएगा।
 जब हम सुबह उठते हैं तो हमारा दिल-दिमाग दोनों fresh होते हैं और जैसे-जैसे वक्त बीतता जाता है, दिमाग में तमाम उलझनें, समस्याएं, विचार store होना शुरू हो जाते हैं, ये हमारे ऊपर है कि हम छोटी-छोटी बातों को,
समस्याओं को दिमाग में बैठने ही न दें,  brain को केवल उस project पर focus करें जो हमारी life को बेहतर करने वाला है, हमारे future को बेहतर बनाने वाला है, emotional होकर बैठ जाएंगे तो दिमाग पर दिल हावी हो जाएगा, भावुकता में बहे तो दिमाग शांत हो जाएगा, इसलिए दिमाग को सक्रिय रखें, केवल positive सोचें और उसे इतना मजबूत बनाएं कि हम अपने काम को अच्छे से अंजाम दें, step by step आगे बढ़ें, जो problem आ रही है, उसे दूर करें, और मिशन पर आगे बढ़ते जाएं। हमेशा मंजिल को दिमाग में बिठाएंगे, पड़ाव पर न रुक जाएं, चाहे वो पढ़ाई हो, बिजनेस हो, नौकरी हो या फिर कोई मिशन, ऐसे तमाम शख्स हैं जो शुरूआत में एक से चले थे आज सौ पर हैं, चाहे वो फिल्म अभिनेता हों, खिलाड़ी हों,क्रिकेटर हों, राजनेता हों, बिजनेसमेन हों, या फिर समाज सेवी हों। कोई भी क्षेत्र हो, सालों की मेहनत की मेहनत, प्लानिंग और संघर्ष के बाद मुकाम हासिल हो पाता है। हमें इनकी केवल मेहनत या नाम दिखता है लेकिन दिमाग को कैसे चलाया जाता है, कैसे सोच पैदा की जाती है, कैसे अमल में लाया जाता है, ये उनसे पूछिए, तो दिमाग को खुला रखें, अच्छा सोचें, उतना ही जितना आप कर सकते हैं, और फिर उसे अंजाम देने में जुट जाए, कामयाबी जरूर मिलेगी...बाकी फिर...ये भी पढ़िए..bhootstoryworld.blogspot.com  whatappup.blogspot.com


Saturday, August 1, 2015

please carefully read this advice

दिन भर में हम एक-दूसरे को पता है कितनी advice देते हैं? कभी गिन कर देखो, मन में सोच कर देखो, सुबह से लेकर रात तक हम अपने को छोड़कर सभी को सलाह देने में पीछे नहीं हटते, सुबह होते ही पत्नी, बच्चों को कहते हैं, ऐसा कर लो, वैसा कर लो, ये ठीक नहीं है, इसे ऐसे करना चाहिए, ये नहीं करना था, मैंने पहले ही बोला था, ऐसे जुमले रोज हम बोलते हैं, दफ्तर में जाते हैं तो वहां भी सलाह का सिलसिला बदस्तूर चलता रहता है, इस काम को इस तरह करो, ऐसे लिखना चाहिए, ऐसे दिखाओ, ऐसे बनाओ, ऐसे पेश करो। दोस्तों को भी खूब सलाह देते हैं, किसी को बीमारी हुई है, फोन पर ही हालचाल पूछ रहे हैं, क्या हुआ, वायरल हो गया, हां, मौसम ही ऐसा चल रहा है, थोड़ा केयर करने की जरूरत है, डाक्टर को दिखाया या नहीं, ऐसा करो, आर्युवेद ले लो, मैं बताता हूं, ये काढ़ा बनाकर पीलो, जल्द ही आराम मिलेगा, रेस्ट करना, आफिस मत जाना, तनाव मत लो, पानी बाहर का मत पीना, बीबी-बच्चों को बचाकर रखना, बड़ी जल्दी पूरे परिवार को लग जाएगा, ये तो कुछ common advice है।

ऐसी ही सलाह जब आपको मिलती है तो आप मन क्या सोचते हैं..अरे..तुम बताओगे क्या तभी डाक्टर के पास जाऊंगा, यदि तुम्हें ही आयुर्वेद की जानकारी है तो तुम्ही सबका इलाज कर लो, वायरल हुआ है, तो क्या दिन में सड़कों पर घूमूंगा, पानी कैसा पीना है, ये तो हमें भी मालूम है। अगर किसी का काम बिगड़ गया, तो भी हमारे पास सलाह हाजिर है, मैंने तो पहले ही किया था, मानता कहां है, अपने आपको होशियार समझता है, मेरी मान लेता तो आज ये हश्र नहीं होता।

हम अपने बच्चे को बाहर भेजते हैं तो advice देते हैं कि बेटा, मन लगाकर पढ़ना, बाजार की उल्टी-सीधी चीजें मत खाना, दोस्ती सोच-समझकर बनाना, रास्ते में कोई कुछ भी दे, मत खाना, गेट देखकर खोलना..अब आप ही सोचिए..यदि हम उसे नहीं बताते तो क्या वो वही करता, जो आपने बता दिया है. जो बड़ा होता है वो अपने को ज्यादा ज्ञानी समझता है, जितना बड़ा पद होता है, उतना ही आटोमेटिक ज्ञानी होता जाता है, और उतनी ही सलाह देने लगता है, जो बेचारा छोटा होता है, उम्र में हो या पद में, उतनी ही सलाहें वो झेलता है, मुद्दे की बात ये है कि कभी खुद को भी advice देकर देखो, way of life बेहतर हो जाएगा। फिजूल की सलाह देकर अपना वक्त बर्बाद मत करो, बल्कि जो बेहतर सलाह मिले, उसे अपना लो...बाकी फिर.....इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com